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§ 1५, ४. २५५९.

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पृर९ आअशिपऽमम्‌]8 6नोश्सते अ6 ५/५ {णारणण& ---

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४, 4 श्ण्ुण्लाौ 9 8 8. ५6 (ल छण, [९४६ पाठ एकु शलण्त ४. ^ प्र, द्ककरम९ 2, 4. 6 वनपपो8 0१1 ४0प ठप्‌ $प्प2&8, = 60068 प्ााहतुभ्लद 0 (प.

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२. 49. (५) [6 4 दिगण एकपमण--एग05 धल वदषलः कतत्‌ (एप). 1. 58, ( ,, ) 11०७ 8 रण 10 {0८ = ०8७६ 18 0 1त९र क. 7, ४९ गम्णणड 0०९९६०8 ऽछपात्‌ 16 पपक्ष

0 (नपण इ, खक्यौ बार १७१९७ ०४४७;

10 ठगो प, भजिगन कात्‌ भभ्भोजिनी १७०६७ प्रपान ¦ इनः सपरिति ६८ $ रेशभस्य ९. ; केयरा १४ ; छिन्नोपि ८० ; जयन्ति १९; दद्विण्ये १७; निन्दन्तु ७५५; बन्हस्तस्यः ७९} विद्या नाम १५ ; विपदि मह °. ९०} शक्यो ११; सृजति ८७,

1 पव्नणप 8. स्लैर्महं १७६४७ आप्रपषलः ; संतप्तायसि ६६.

व्नपपणर पु, अज्ञः ¦ नैवराकुततिः९3 ; पातितो ८४; मङ्जय १००; यां चिन्तयामि. १; रलनै ७९.

1४ (णपरम इ. दद्धिण्य २२१ व्यक वाङ ६.

19 (मपा) 7. भज्ञः सुख. १.

1 (्णोपणाप्र ‰. नेत्त यस्य ५५९.

1४ क्णप्णणण 4. अम्भैजिनी ४४; केयुरा १०७; कविद्धुमौ १८; दर्जन: ३०.

वकर प्र, वनन॑र क्णागत [१० प्रियक धय यदा िंचिन्‌.

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श्रीगणेशाय नमः अथ नीतिशतकम्‌

दिक्काहादयनवच्छिकानन्तचिन्मात्रमतये स्वानमत्येकसाराय नमः शान्ताय तेजते १॥ यां चिन्तयामि सततं मयिस्ता विरक्ता साप्यन्यमिच्छति जनं जनोन्यसक्तः। अस्मरहते परितुष्यति काचिदन्या धिक्तांचतंच मदनचडइमांचमां॥२॥) अन्नः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः ज्ञानरवदुर्विदग्धं ब्रह्मापि नरं रञ्जयति \॥ प्रसद्य मणिमुदरेन्मकरव्कदष्टा ङण. त्तमद्रमापि संतरपप्रचरदेमिमाङाकलम्‌ मुजङ्कमपि कोपितं हिरि पुष्पवदधारये नन तु प्रतिनिविष्टमृखंजनवचित्तमाराधयेव्‌ ४॥ 7. (9) दिकासनवच्छिननाय चिन्मात्रान्तमूर्तये, 50. (2) भूतये ०; भभू ०. 189. 29. 8. फ. 1. 7. ॐ. ©. साराय; मानाय, 7. 29.2४, प; ` 7, (५) पि ०; २. 2. (2) श्य चार. ०. 8०, 2. ४. सक्तः} रक्तः 89.0. (०) च; °. ९. ए, 56.०, 50.9. रतु °} शशु. इ. (ध) धिक्तं तेच; भिक्त तांच. पा, (8) विद्ये ०; ०4०. ह. 9.2. (2) उवदु्विद अषठेश्द ° 72. (2). श्परेन०; ग्वितैन० 0. व. 8. 1 भ. ड. 2. ए. 6. ए. (०) शङ्क °; दन्त ° ए. प. (8) °रेचछ्द्‌ °रेचपकद्‌ 80. 25. °रेत्चुरदू. ° प. ©. (ग्ल शणः चु). °रेचपडम्‌ ०. एए, °रेखसरद्‌ ~ 2. 896 पथः ०.०, (क) न्ख; षवे,

{4९

रूमेत सिकृतासु वैरूमपि यत्नतः पीडयन्‌

पिके मृगवुष्णकासु सखिलं पिपासार्दितः कदाचिदपि पयैठञ्डाशविषाणमास्तादये-

न्न तु प्रतिनिविष्टमूखैजनवित्तमाराधयेत्‌

न्याङं बालमृणाखकन्तुभिरसौ येद्ं समुज्जुम्भते

छेतुं वजमणीड्शिेषकुसुमप्रान्तेन संनद्यते

माधुर्य मधुबिन्दुना रचयितुं क्षाराम्बुेरीइते

नेतुं वाञ्छति यः खलान्पयि पततां सूक्तैः सुधास्यन्दिभिः स्वायत्तमेकान्तगुर्णं विधन्ना

विनिपिते छादनमज्ञतायाः विक्षतः सविद समजे

विभूषणं मौनमपण्डितानाम्‌ यदा किड्खज्जञोदं द्विप इवे मदान्धः सममव

तदा सरवज्ञेस्मीत्यभकदवलिप्तं मम मनः | यदय किच्िक्िच्िहूधजनसकाश्ादवगतं

तदा मूरख्मिति ज्वर इव मदो मे व्यपगतः

ए, (4) °मैत} °भेच. 2. ५. 8. 1. प्र. ©. (४) °का सकिलिम्‌ ; काजल- मयम्‌. 8. (¢) ण्ये °; व्य ०. 1. भ. (द) श्र; ्व०. फ.

प्‌, (2) न्या०; बा 1. ब्कर°; ° (°ज्ज०?) ©. (8) के०;मे०. ए0.9. , . ४. प्र. 2. 8.- ° नीज्सि °; “णि शि. ह, ०.०. फ. णी. ॐ.-- णद्मते; °द्यति. 8०. 2०. ए. 7. फ. (०). क्या ०. क्षी ०. 50. (९) खला- न्यथि सताम्‌; सतां पथि शान्‌, 2०. 56 ए. 7. #. ए, 2.- ४० ण019 {पप 110९ 8 मूखीन्यः प्रविनेतुमच्छति वाससः सुधास्यन्दिभिः पि.

ए. (५) °यत्च ०; यन्त ०, 89. मुणम्‌ .; दितम्‌. 86. 80. ह. 2. २. ए. प. (४). °ज्ञ.० न्ञा०. 8. “क्ष. ए. 0र्6 खद, सषि 28 का 9 ©.

ए. (०) हि; गन. प्त. (4. ए. 2.) (०) ( णदुष; डर; 4. ए.) °दश्र ०६ ०दधि ०, 7, ८०, 8०. (2) जर; वन §. ए०.४.

[३ 1]

' ङमिकुर्चितं लारू्किनं विगन्धि जुगुप्तितं निरुपमरसप्रीत्या खादनरास्थि निरामिषम्‌ सुरपतिमपि श्वा पानस्य विोक्य शङृते हि गणयति कषद्रो जन्तुः परिग्रहफस्मुवाम्‌ 1 शिरः शा स्वगात्पवति श्िरसरस्तर्कितिधरं ` -महीघ्रदुतुङ्गादवनिमवनेश्चापि जर्धिम्‌ अधो गङ्गा सेवं पदमुपमता स्तोकमथवा ` विवेकभ्रष्टानां मवि विनिपातः शतमुखः ९० शक्यो वारयितुं जलेन हुतमुक्छत्रेण सूर्यातपो नगेन्द्रो निशिताङ्कुशेन समदो दण्डन. गोगर्दभौ व्याधिर्ेषजसेग्रेश्य विविधेमन्रपयेगेरिष सर्वस्यौषधमस्ति शाखविदितं मूस नारूयोषभम्‌ ९९ साहित्यसतंमीतकराविदीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः

72. (५) °कचितम्‌ ;- ° ऊशंतम्‌, 7. “न्धि; शर्ितम्‌. 0. फ. °हित. 1, 6. 0) रस. रसम्‌ 0. 8. 1५. भ, 59. 29. ड. खादन्न स्वादन्न ०. 2. . °खन्यन ०. ०.०. खादन्ख ०. प. (2) न; वि ^. ह. 2. ४8. ए. 16 र०्‌6 [४5 38 सुरपतिमिव पारस्य शा सशा्कतमीकषते. 6.४. (2) हि गणयते ्षद्रो जन्तुः; गणयति हि क्षुद्रो जोकः. 5९.०, जन्तुः; मैत्री. 8. ए.

ॐ, (५) °गौत्‌; °गैम्‌, 7,. प. 59. ©. पति दिरसम्तन्क ०} पर्ुपतिनिरस्तः क्षि.° 7. 80.. ८. 8. पष..पतति शिर सीतः क्षि ०, 80. 86. (8) मशेघ्ा ०; मिते- न्द्रा, ०7. ‰. (०) अधो ग्ग सेयम्‌ ; भवो गङ्गक्ेपम्‌, ©. 1. 289.9. भषोधो गङ्गेय- म्‌. 1 89. 86. ८. ४. अथो गज् सेयम्‌, क्ष. पद ०; मद ०; ए, °मयवा; म. भना. 7. (4) ^खः; ° खैः. 59. 8,

ड्‌. (०) ०क्छत्रेण; ०व्खुर्येय. प. (2) मेरो; गोदभः. प्र. (©) संग्रहे वि- , विम ०; संग्रहेण विधिना ०, 8. इ, °न््र; नन्तः, 1, भ, 0. न,

.{ ४]

तृणं दादनपि जीवप्रान- स्तद्रामषेपं प्रमं पशूनाम्‌ ९२॥ येषां नव्द्यनवपोन दानं ज्ञानं नश्चीलं गुणो धर्मः। ते मव्॑रोके मुवि मारमूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ९३॥ वर पकवदुर्गेषु भान्वं वन चरैः सह मृखंजनसंपकः सूरेनद्रभवनेष्वपि ९४ इति अज्ञनिन्दप्रकरणम्‌ .

अथ विद्रत्प्रशसा दाघ्लोपस्रवश्चब्दसन्दरगिरः दिष्यप्रदेयागमा , विख्याताः कवयो वत्तन्ति विषये यस्प प्रमोर्मिर्धेनाः वज्जाडययं वसुधाधिपस्य केवयो इथं विनापीश्वराः कुत्स्याः स्युः कुपरीक्षका मणयो पैरघैतः पातिताः ९५ उवा. {५ ००; श्वव०. का. (५) यैर; ९०, प. 89. ©. (2) जानेन; चापि. 8. इ. ज्ञान च. 8०. ७. (०) मर्य; मृचु, 1,. फ. 8. ग, ह. ©, भुवि; मव. ए. 2०. उ, ७. स्य, (५) पवेत; गहन. ए. 6.४. न्तम्‌ $ कान्तम्‌, फ़. (@) मू्‌०; नो म्‌ ०. 8. इ. 8.9. सपक; संसर्गैः 50. 8०. इ. | ए. (०) °श्यप्रदेया ०६ °ध्योपदेशा ०, 86. 5०.४. °ध्याः प्रदेया 280. (०) कवयो ०; सुधिये द्य ° ८0. 86. 7. ए. उ. 14. 2. 2. स्धियसूक ०. प. (द) शस्स्याः; गन्साः. 8०. ए, फ. 2. 56. श^स्छा. 1. सस्स्या. ए. स्युः; तै. ए. "कान; ण्क्रेमे. त, 10. 8०.४. 7. प. ग्वा हि. 1, प्र, उ. 7. ©. °क्रेदि. 8. 29. 5९. ए. ००; ०्य॑०. 8. 1५ 8९. ०. इ, ए, 6, ग्य ° प्र, ए. 6.४. २, पे.

[५ 1

इत्वाति गोरं किमपि शं पुष्णावि यत्वैदा , हर्विभ्यः प्रतिपाद्यमानमनिशं प्राप्नोति वृद पराम्‌ ` कल्पान्तेष्वपि प्रयाति निधने विद्ाख्यमन्तधेन्‌ येषां दान्धरवि मानमुज््व नृपाः कस्तैः सह स्पथैते ६६ . अथिगत्रपरभायौन्पण्डिवान्मावमंस्था- स्तणमिव छधलक्ष्मीरनैषि वान्संरूणदि 4 अभिनवमदङ्खाइयामरगण्डस्थलानां म्॒ववि विस्वन्तुवौरणं वारणानाम्‌ १९७ भम्भोजिनीवननिवासविासंमेव हंसस्य इन्ति नितरां कुपिवो विधाता ववस्य दुग्धजलमेदविथी प्रतिं वैदण्ध्यकीर्षिमपदहतमसौ समथः ९८ केयूरा विभूषयन्ति पुरषं हारा चन्रोन्नल् ने स्नानं विलेपन कमं नालैरूता मृधेजाः।

ए. (9) ००; °न्तु ०, ‰. छम्‌ } सम्‌. 50.56. ए. यत्सवेदा; सकीतमना 1, (2) हय ०; °ष्व०, 80. ए, 86. 7. ४. प. वै ०, ०.9. गा ०; ०१९. ०६ ॐ. प्राप्नोति बृद्धि पराम्‌ ¦ वद्धिं परां गच्छति. 24, (९) °खय ०; ०ख ०. 86.४. (2) ° मुज्छतनुपाः; °मुच्छतिनृपः ए. 56.2. सह; समम्‌, 56४.

उषा. (८.) इयाम; श्याव, ॐ०.४. ° ०; छी ९, 1, 56. 89. ©,

पा (५) निवासविदासमेव; निकरससविकासहेतुम . इ, 0.2, विहारविठासमेव

(8.) इंस्य इन्तुमषरामपि तां विघता. 7६, 26.०४. (०२००४ विधवा ¢ विधाता) नघ ०} नोव ०, ए. 9.2. नन्व ०. 11. सिद्धाम्‌ ; शस्ताम्‌, ए. 6.४ {व} षेदश्ध्य; वैदोष्य, 2०,४. वैदग्ब 89. 89. 7. फ. 9. भु ०; शन्तु ०, 80. 28९. ए. समर्थः; विषाद 7.

डा (०) वरि रथिन. प. °य; °. 2. "ड; जो 2. (@) कुसुमम्‌ ; सुकुमुमम्‌ ए, 56.४, भनम्‌. 2.

[६ 1.

वाण्येका समङंकरोति पुरुषं या संस्छता धाते कषीयन्ते खल मूषणनि सततं वाग्भूषणं भूषणम्‌ १९ विदा नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छनगुप्तं धनं विद्या मोगरकरी यदशाःसुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः विदा बन्धुजनो षिदेशगमने विद्या परं दैवतं विद्या राजस पूजिता हि धनं व्रिदयाविदहीनः पशुः ॥२०॥ क्षान्तिश्रेद्रचनेन किं किमरिभेः करोधोस्ति चेदेदिनां ज्ञातिश्चेदनलेन किं यदि सुहुदिव्यौषपैः किं फलम्‌ रकि सर्पि दुर्जनाः किमु धननैर्वयानवद्या यदि व्रीडा चेत्किमु मृषः सुकविता यद्यस्ति राज्येन किम्‌ २९ दाक्षिण्यं स्वजने दया परजने शाठयं सदा दुज॑ने प्रीविः साधुजने नयो नृपजने विदरन्जनेप्याजैवम्‌ शनो शनुजने क्षमा गुरुजने नारीजने धृवैता ये चेवं पुरुषाः करासन कशङास्तेष्वेव लोकस्थितिः ॥.२२९ (2) “ण्ये ००. ०.२. पुरूषम्‌ ; कृतिनम्‌, इ. 2०. ८०. (2) सङ; “चिक. 8, फ. उ. 80. 8९. 9. ष, भूषणम्‌ ; कवित्‌. 2. २.

2. (2) परं देवतम्‌ } परा देवता, 8. 1, ड. प. परं देवता फ़. (2) निता; इयते 6.9. 10. 5. २. प. नहि;नतु 1. फ़, शुचि 9. ए. °नम्‌ ; ग्नी. फ. ` °ही०; ०हा०. ए,

सा. (2) क्षार; शा ०. गृ, णद्ववने ०; °त्कवचे ०, 80, 29. पि, (2) शरै ०ेः. ड. {0 श्वं ००३०. ¶, ०नाः६०न्‌ः ०.४ (4) °यै ०; गेन 6.४.

मषा, (४) °र ०; °रि०. 80. 5०. इ. २. सदा; जने #, (2) मर °; नी ०. ध. नयो ०-~०वम्‌ ; मा गुरुजने नरौजने भृता. ए. 29.०. 2, ए. ४, रमयः खजजनेतवि ०-वम्‌ ०, 7. 50.४. (ला७ °स्ज ०). श्या ०६०्बा ०. @ 8. फ. 20. इ. 59. पृ, 7. (चा० प. (९) कमा गशू्नने; स्मयः खर्जने ए. ९.२. २. 8. एध. नारोजने सूर्मता; विहम्नने चालयम्‌ ए, 26.०४. ए, ए, 7, (६ कणौ) ४० °व्वा० ^ चा ०). कान्ताजने सुतैता. प, (ठ) चै ०; सै ०. र. ८6., तेष्वेव; तेषां हि. 8, २, ‡. ए०,४, °; °के, प, गतिः; न्तः, द.

{७}. जाडं धियो इरति सिद्धवि वाचि सव्यं मानोलतिं दिशवि पाप्मपाकसेति चेतः प्रसादयति दिक्षु वनेवि कीतिं सत्संगतिः कथय कि करोति पुंसाम्‌ २६॥ ` जयन्ति वे सरतिने रतसिद्धाः करीश्वराः। ` नास्वि येषां यशःकाये अरामरणजं मयम्‌ २४ सूनुः सरितः सती प्रियतमा खामी प्रसदोन्मुखः. लिग्धं मितनमवच्छुकः. परिजनो निदधेशङेदौ मनः। आकारो रुचिरः स्थिरश्च विमवो. विद्यावदातं मुखं . वषट विष्टपहारिणीष्टददहरौ संप्राप्यते देहिना २५. प्राणाघावाक्निवृत्तिः परधनहरणे संयमः सत्यवाक्यं कारे शाक्या प्रदाने युवतिजनकथामूकमावः परेषाम्‌ तृष्णास्ोवोविभङ्खो गुरुषु विनयः सवेमृतानुकम्पा सामान्यः स्वंशाल्धेष्वनुपहवविधिः नरेयसमेषं पन्याः २६ # प्रारभ्यते विद्नमयेन नीकैः प्रारभ्य विश्रविहता विरमन्ति मध्याः

"~~ - + "~-----~----नण

सप्र, (2). केतः; वित्तम्‌ १. +

ए, (०) सिद्धाः; वयाः इ. 56.०. (@) येषाम्‌ ¦ तेषाम्‌ 8, फ, 2. प. ०ज्नभयम्‌ ; जन्मभिः ‰. 7. 20.92. जन्मभोः ४. 2. ४,

४. (४) नि ०१ नि० 8. (9) विष्टपहारिणीषटद; विष्टपकष्टहारिणि 8, विषदा - रिणेगप्रद फ. विहारिणि सति 59. उ. (जथ ९० 0 ९वि ०). प्रप्य ०वाद्य ०.8. शपद्य०, ङ. ०ना; ९नम्‌ $

सदए, (4) ०णा०; °ब्या०. ए. २. ° तनि ०; वेनि ०, ०.४. (०) शयः ०तिः ०.०. णता ०६ ०ते,० ए, . (2). विधिः; मतिः ०.४. गतिः ए. °; ०, ©. भ. 89. 56, ©. +

सर्पा, (५) प्रर भर. त, (8) विह ०; निह ०. प. ०इ ०६०६०. 1. प. 8.

{ 1

वितनैः पुनःपुनरपि प्रविहन्यमानाः प्रारभ्य चोत्तमजना परित्यजन्ति ^ २७

त्रिया न्याय्या वृत्तिमङिनमस्नमङ्गेष्यसुकरं स्वसन्तो नाभ्य्याः सुहृदपि याच्यः रुशषनः। विपदुच्ैः स्थेयं पदमनुविधेयं महां सवां केनोदिष्टं विषममसिधाराव्रवमिदम्‌ २८ इति विद्रसखशंसा

अथ मानसीयप्ररंसा

ुष्छामोपि जरारश्तोषि हिथिरप्रायोपि कष्टां दशा- मापन््ोपि विपन्दीधितिरपि प्राणिषु नर्यत्लपि मत्तमेन्दविभिननकुम्भकवलग्रातैकवदस्पृदः किं जीर्णे तृणमत्ति मानमहतामग्रेसरः केसरी २९

(०) वितः सदसगुभितेरव हन्यमानाः, ‡५ ०.४. वि्ुदुमहरपि प्रतिहन्यमानाः. १४ छ. (ॐ) °भ्यी ०६०्ब छ०. उ. 8, क, अ. °जयसु ०, प. °न्धड ०, 7, ०न्ध मु.

50. 8९. प, भना; गुणा. 3०.४. प. ` उद्या, (@) षर; भण, 2०. 858. ए, ४. उ. 2. 16 8 णं ४686 808 ६6 8600४ 1196 ०? ४8 इट ४8६ &०त ध्ो= 8४४४ - 860००, ॐ. 2, ४876 ६06 चमम्त 978६, प्छ 86000त्‌, श्यत्‌ 8660 पप्त्‌ (०) स्थेयम्‌ ; स्यैवम्‌ , प. (2) ०या०; ०२०.

सप, (0) शििकप्रयोपि; शिविखग्रागोवि. 3. 3९. 20. ¶,. 10. विगतप्रा- योषि. 89.9. दिथि्ःगराभो (क?) ति. ए. कष्टम्‌ ; दीनाम्‌. 7. (2) °्येयिः ° जवि,

ग्य ०;०भि ०. ए. फ-नश्य °; गच्छ ०. ¶, ८, 2. 4. चास्य ०). (८) मत्तेमेन्द्र उन्मत्तेभ ए, 7, 86.09. इ, कवद्; दर्डन, 1, 8, ¶", पिलत 1 बद्ध; ऊम्भे, २),

( 1

स्वस्पं स्नायुवस्तावशेषमलिनं नि्मासमप्यसि गोः श्वा ङब्ध्वा परितोषमेति तु तत्तस्य क्षुधाशान्तये सिंहो जम्बुकमङ्कमागतमापे त्यक्वा निहन्ति द्विषं सर्वैः रृच्छृगतोपि वाजञ्छावे जनः सछानुरूपं फलम्‌ ६० छाङ्गलचाङ्नमधश्वरणावपातं # मूमौ निपत्य वदनोदरदशैनं श्वा पिण्डदस्य कुरते गजपुङ्गवस्तु धीरं विोकयति चाटुशतैश्च मृदु ३९ परिवर्तिनि संसारे मतः कोषान जायते। जातो येन जातेन याति वैशः समुलतिम्‌ ३२ कसुमस्तवकस्येव द्र गती स्तो मनसिनाम्‌ 1 म्र वा सर्वैरोकेस्य विदीर्येत वनेवा ६६. सन्त्यन्योपे बृहस्पतिप्रमृतयः संमाविवाः पञ्चुषा- स्तान््रत्येष विशेषविक्रमरुची राहुनं वैरायते स, (८) ग्यम्‌; ग्य. ४. प. वसवक्ञे०; कशादको ०. प. चाद ०. 86, ए, गोः; °कम्‌, 5. 5०. ए. 2. ४. ए. ए. (2) तु; 30. 29. ए. 7. 2. ४. (9) णैः; न्म्‌. 0.8. ,.

कश. (ध) (क (्या०, इका. (2) मृतः; मदैः. 2. ए. पल (० 10९5 कतकषह्ुठ 1८७8 ~+

10. ए, +. 0.0 सका. (५) द्वे यती स्तो मनिनाम्‌; हयी वृत्तर्मनषिणः. 8. 7. 7. 139. ८०. ए. ध. ए. ए. ए. (० भत 195६ न्क मनसखिनः {9 मनीविणः) देषा वृत्तिमैनखिनः. फ. दवे वृत्ती तु मनश्िनः एर. 86.०४. (2) मूध वा स्वैलोकस्यः मूं सवस्य लोकस, 1. सैोकस्य वा मूर्धि. ए. 56.०४. मूर्धि वा स्वलोक्रानाम्‌. 7. ` विद्ी्यैत वनेथवा; रीयते वन एव वा. 7. 7. ए, ४. प, विकि षनेणपि. ¶\ 4० 866 पिप्पल पामदहाः = इवक्रटॐ 104. 1 सर्द. (५) ण्यः; व्यो०, 8, क. तताः न्नः, ४, नवार व्श्०. 0, ` पए. ग, °का०. 7. (तिं

[ ९० ]

्रवेव ग्रसते दिनेश्वरनिशप्रागेश्वरौ मासुरौ भ्रावः परवैणि पर्य दानवपतिः शीर्षावरोषीकतः २४ वहति भुवनश्रेणीं षः फणाफलकस्थितां कमटपविना मष्येपृष्ठं सदा विधायते तमपि कुरुते क्रोडाधीनं पयोधिरनादर- दहे महां निःसीमानश्चरितरविभूतयः ९५ बरे पक्षच्छेदः समदमधघवन्मुक्तकुलिश- प्रदरिरुदरच्छदहरूदहनोद्रारगुरुभिः सुषारद्रः सूनोरहह पितरि के शविवशे चापौ संपावः पयति पयसां पद्युरुचिवः ३६ यदचेतनोपि पादैः स्पृष्टः प्रजरति सवितुरिनकान्तः तत्तेजस्वी पुरुषः पररूतविक्ति कथं सहते २.७ सिंहः शिदुरपि निपवति मदमल्निकपोरूमिततिषु गजेषु

(%) गनेश्र०; श्वङ०. प. °्सु० व्खण०. 1, त्‌, ए. 7. 7. 299. प. पसक. प्र, 8०. प. 1४, (दो) ततः} सन्वः, ए. ७९. ०. 6. ° न्तम्‌. €. ए. गवीकृतः; ०षाकृतिः. फ. ¶, 2, ध. ~ षष, (व) (छण) णण. 0. फ. उ. @, (ठ) यहम्‌; कटम्‌. 1४. वरि; च, 8, 8०. 280. ङ्‌. 2. 2, ४, प्न. (८) श्वी; ग्वार ९भ्रिरना ०; ९निभिरा^, 1, ०.४. °निधिरना ०, ए. 7. रराद ° 15 ०प्1४४व्त्‌ 3 1,

सका. (०) पक्ष; प्राण. 7. 5०.४. ४, . 2. क. @) इ; दु. 8. 8०. 56, ए. 0. 2. अ. धि. दहनो०; स्षिरो० 7. दजनोर गुरू; सवि. 1. 8. इ. (2) षम्य ०; भु १, ०.४

कपा. (@) गनुरिन; ततुरि, 1, 7. °तुरति, 2०. 56. नतुरिव. 7). पतुरतरि. ए. ©. तुसूर्य. ध. (2) विकृतिम्‌ ; निरृतिम्‌. 2. 2. ए, 14. न, ०. ४. निकनस, 80. 86. ए, °ते; °ताम्‌. ए. 5. 1.

*५.

¦ #- «4 धररतिरियं प्षखवतां खलु वयस्तेजसो हेतुः ३८ इति मान्ौयपरशंसा

जातिर्यातु रसावहं गुष्गणस्वस्या्यधो गच्छतु शीलं शौलतटात्पतलभिजनः संदह्यतां बहूना र्ये वैरिणि वज्नमाश निपत्र्येस्तु नः केबलं येनैकेन विना गुणास्वृणलवग्रायाः समस्ता इमे ६९ + वानीन्धिपाणि सकलानि तदेव कमं सा बुद्धरप्रतिहवा वचनं तदेवं अर्थोष्मणा विरहितः परुषः एव तलन्पः क्षणेन भवतीति बरिचित्रमेतत्‌ ४० ` यस्यास्ति वित्तं नरः कुीनः पण्डितः श्ुतवान्गुणज्ञः , एव वक्तास्त दशेनीयः ` सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति ४९ दौरम्याननुपतिर्विनरयवि यतिः सङ्गात्सुतो खालना- ्विपोनष्ययनाच्कुलं कुतनयाच्छीरं खलोपासनात्‌ उषा. @) °्सो; ण्लम्‌, प. शाद, (५) °स्याप्य °स्माद ०. २. ए. शत्रा. त. 'च्छतु; ९च्छतत्‌, 2. ४. 411 ४6 जान (ना 6जन ह. ोपं०छ 98 ०तु, 68 °ताम्‌, (8) तदा; वरा ° ¶^ (०) शोय वैरिणि वल्मनिरसमस्तु तथप्परथसु केवेछम्‌ ६, (शोर्थं वज्ञनिरस्लमस्तु तथा &०8{) °निपतव; ०पततुल. 8.४, °रयो ०; ०यै ०, 8९. 2०. (गण. ८०४.) (2) ०म ०} °मा० ०.४. 20, 86. . सण. (©) खन्यः वन्य. ¢. 1,. म. 20. चंन्यः §. उ. अन्यः (\, उ. (५) 1५०68 9, & ०. 1णप्ललोाक्य्ठ 19068 उप ह. (2) न्ति; ने. 7, सग7. (५) दौमैन्त्या ०१ दर्मन्ता ०, 86. यतिः; सती. &. -

९.1

समंद्यादनवेक्षणादपि रषिः स्नेहः प्रवास्ताश्नया- न्यत्र चप्रणयत्तमृद्धिरनपासागात्ममादादनम्‌ ४२ दानं भोगो नाद्चस्तिल्लो गतयो मवन्ति वित्तस्य ` योन ददाति मुद्के वस्य तृतीया मतिमैवति ४२. ` मणिः शाणोह्ीटः समरविजयी हेतिनिहतो मदक्षीणो नागः शरदि सरितः सपानपुलिनाः। कललाद्वोषश्चन्द्रः सुरतमृदिता बालवनिता तनित्ना शोमन्ते गङिवविमवाश्चार्धिषु जनाः ४४ परिक्षीणः कश्चित्स्पृहयति यवानां प्रसृतये पश्चात्तंपूणेः करूयति धरित्रीं वुण्तमाम्‌ अतश्वानेकान्त्यदररुखधुतयार्थेषु धनिना- मवस्था वस्तूनि प्रथयति संकोचयति ४५

"~~ -~---+-~--

0 सर्मयत्‌ ! स्तीगरवात्‌, 2. 70० एश्ाप्णःण्टठ ०६ 0 ध्व 1०७ वणप कृषिः 38 ५७ एश 9 © पप, [06 ३9 0. & ४6 एषड्वाप- पण पिप्प, ०० वजप ६० अनयात्‌ 35 ४५6 एष्ड्णणण्ड ४७९ भपप. (द) गगाय०; गप्र. 2. ए. का. (५) रमे ना; ०मेो विना०. 2. (गरा०्प्शङ ण्ड). उप्र. (५) शा ०; शौ ०, 5०. (ग्ध, ०.४.) ९णोत्री ०६ ८गा जी. ° 86. ए. यी ये, ए9. 8०. (ग्पष्ट. 8०.०४.) निहतो; दिती छ. प, 8०. (०४६. २०, ०.) (®) रतःरयान; °दा्यान, 2. उ. फ. ७. प. तःशयाम. 0. 89. 28०. 7. ए, नाना. 0. 2. पि. नी. ७. (धे शिषः केशः छ. मृ; न. ८०.०. वनिता कडना. 6... 1,. 1, वनिताः. %. (4) ०; न. 56. 8०. ध. ए. ©, ग्ना; ग्नाः. 8९. 9. श. ६, < धा ०; सा. 5०.०४. जनाः; नृषाः. 89. 7 1,. नराः. ए. प. , उ.प, @) रमैः; ग्णौम्‌. ए. ए. ग्नो 0. क. 2. ए. कड ०}. गण 8. ^. ` 7. ग, ए, इ. 8०.9, 2. 2. ए, (०) नैकान्त्याह् ०; ०ेकान्त्या गु °. 8. 7. क्नेकानय। गु ०. फ़, 50. ©. °नेकनन्ता गु ०.४०. ए. 8० ४. फ. °नेकनतं ग॒ गध,

[ ९३ 1

राजन्दुधुक्षति पदि क्षितिधेनुमेतां तेना्य वत्समिव लोकममुं पुषाण तस्मिश्च सम्यगनिशं परिपोष्यमाणे नानाफङैः फलति कल्परूतेव मूमिः ४६ सत्यानृता पर्षा प्रियवादिनी दिता दषाङ्रपि चाथंपरा वदान्या निष्यव्यया प्रचुरनित्यधनागमा वेदाङ्गनेव नृपनीवैरनेकरूपा ४७ आज्ञा कीर्तिः पालनं ब्राह्मणानां दानं मोगो मित्रसरक्षणं येषामिते षङ्गणा परवा , को्थस्तेषां पाथिवोपाश्रयेण ४८ यद्धात्रा निजभारपट्रलिखितं स्तोकं महद्य धनं तसप्ा्नोवि मरुस्यकेपि नितरां मेरौ ततो नाधिकम्‌

ाा्ययाणजिुुाोिुाुिननककनमन

---~--------~

इए. (५) तताम्‌ ; मनाम्‌, 0. इ. 5०. फ. 8. 1.1. 2. ए. तभ. @) रनाय; °नेव (१) 7. °नाय ए. <ममुम्‌; °मिमम्‌ 20. 29. ए. ए, (८). शश; ऽस्तु. कथ, पोष्य ०; रतुष्यं 1. व, ©. पोष ०. फा. वुष्य० पष. पन्य. 7, (2) नङ; ग्ला. 1.

सपा, (४) प्रिय; मदु, ८०.०४. प. वादिनी; भषिणै. प. (०) नित्य भूरि. . 50. ४. नित्यधना ०६ मित्रधना ° 7, वित्तसमा ०. 230.9. वेरया ०; वरा०. 1, ए. . 1. 86. 4. 8. 2. 7. ए०. (गणष. 8०..).

शा.प. (०) ब्राह्मणा ०; स॑न्नना०. 74. (०) ००; ०द०. ©.

गपनश्. (@) भनम्‌ फलम्‌ 56. ए. (8) ° ति; °वर. 9. 2. ०तराम्‌ ; °यतम्‌ , ८९. ए. तीना; नाती°. 8. उ. ह. 2, 29. ए. 2, 8. प, 80. (गण. 50.४.).

{ ९४ }

वद्धीरो भव वित्तवत्सु ठपणां वत्ति वथा मा रथाः

कूपे परय पयोनिधावपि घटो गुद्ाति तुल्यं जलम्‌ ४९ त्वमेव चातकाधासेसीति केषां गोचरः

किमम्भोदवरास्माकं कार्षण्योक्तिः प्रतीश्षयते ५०.॥ रे रे चातक सवधानमनता भित्र क्षणं श्रूयता-

मम्भोदा बहवो है सन्ति गगने सर्वेपे जैतादशा केचिदरष्टिमिराद्ेयन्ति वसुधां गज॑न्ति केचिद्ुधा

यं यं प्यति तस्य वस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः ५१९॥

अथ दुजनप्रशंसा अकरुणतवमकारणविग्रहः परधने परयोषिति स्पुहा

` सुजनमन्धजनेष्वसषिष्ण॒ता ` प्ररुतिसिद्धमिदं हि दुरात्मनाम्‌ ५.३॥

(¢) त०; य°. वमू. 89. ण्ट्वी ०} शद्ने०. ०.४. षो ०. 8०. (4) श्ये. गृण्हति; °या गृण्डन्ति 7. 89.४.

1. (५) °रौसी°; °र्इ०. श, °रस ०, फ. रस ०, 6. कमेव चातको धारां हति छोचनगोषराः. 80. (४) म्भोदवरास्माकम्‌ ; °स्मदमभ्भोदवरम्‌ . 50.. °म्भोद बदास्माकम्‌ त्‌, °भ्यते; ते. ¶\, °भ्यस, 8०, ¢. ज्र.

` एन. (८) न्न; व्वम्‌ 7.) हि णवे 8. फ. त, तता०; न्का०. इ, (८) कैचिष्ट०;रेके वृण 8. उ. वसुभाम्‌; धरणेम्‌ 8. केचिद्रया; रके मृषा 8. ड.

1411. (2) परषने सुहा परयोषिति. 89. प्रधनाय रतिः परयोषिति 86. 8. ह. 2. 5. 70.(को0 66 {07 पि) प्रधनोपकृतिः परयोषिवः 50.४. (०) सु ०; ०, &§. 7, ई. ए०.9. ४. ९. ए. जन; धनै 1.८9) °नाम्‌ °नः ए०.०.

[ ९५ 1

दुर्जनः परिदतेग्यो विद्यया मृषितोपि सन्‌

मणिनाङ्ङुतः संपैः किमसौ `मयंकरः ५३ जाडं दीमति गण्यते व्रतरुचौ दम्भः शुचौ कैववं

यरि निधणता मुनौ विमतिता दैन्यं प्रियाङापिनि। ` तेजस्विन्पवकिप्तता मुखरता वक्तयशक्तिः स्थिरे

तत्को नाम गुणो भवेत्त गुणिनां यो दुजनैर्नाङ्किवः ५४ रोमश्चेदगणेन कि पिद्धानता यद्यसि किं पातक्रै

सत्यं चेत्तपसा किं इचि मनो यद्यस्ति वीर्थेन किम्‌ सौजन्यं यदि किं गुणैः स्वमहिमा यद्यस्वि किं मण्डनैः

सद्रि्ा यदि किं जनैरपयसो यदस्ति किं मृत्युना ५५. शरी दिवसभतयो गलितयौवना कामिनी

सरो विगतवारिजं मुखमनक्षरं स्वारतेः। ्रमुध॑नपसयणः सततदुगंतः सज्जनो

नुपाङ्गणगतः खलो मनसि सप्तशल्यानि मे ५६

~~न

` (ना. (@) ग्वै० °न्त०. 8०.. ०मूषि; ण्ठंक०. 1.70. प, 86 8०. प, 80.. (ष्णौ6ा७ 07 °वर सन्‌ ; यदि) भूषतो सन्‌ :. °वर समनितः ए. ९.४. (®) ण्लेक्‌ ° भूष्रि° 8.1 प. 7. उ. 2. 5९. 5० 1. 2. ४. त.

नए. (५) ०; शुर. प. @) शै; श्यु°. 7. मुनौ; ध्व. 2. ४. सजौ 7. ऋजौ ०.2. 1. (च) स्स; ग्स्सु ०. 86. ८०. व, ©, ह. 7. ४.

1. पए. (५) ०भश्ेद ०भश्वास्ति. 1९. .89. (०, ०.०.) ° मेष्यस्ति. 56. 2. (५) गणैः; निजैः 6. ए. क. २. 1 जनैः 8.2. फ. 72. ८०. व. ध. परैः ८6९.०. कलेन प. सण; सु०. 26.. फ. 7. †. 0.०. २. ए. ४. & 1. (णनप्छ ता मा) ०रपन्ल्वि 30 कर, (५) धर 8. 1. भ. गर 89. 89. ए. ए. प. श्नैख ०; न्नैः पर ०. ©.

धा, @) कारि ०; पङ्क, ०.०. (2) न्तः; (मः, छ. नतिः. प, (र) शम्या ०; जल्ला ०, ए6.2.

{ \६ )

कश्चिचण्डकोपानामातीयो नाम मूभुजाम्‌ होतारमपि जन्ानं स्ुष्टो दहति पावकः ५७॥ मौनान्मूकः प्रवचनपटृश्वादुरो जल्पको वा - धष्टः पाशवं वसति तदा दूरतश्चप्रगल्मः क्षान्त्या भीर्ंदि सहते प्रायश्चो नाभिजातः सेवाधर्मः परमगहनो योगिनामप्यगम्यः ५८ उद्भातिताखिरखलस्य विदङ्खखस्य पराग्मातविस्तृतनिजाधमकमेवृततेः दैवादवा्तविभवस्य मुणद्विषोस्य नीचस्य गोचरगतैः सुखमास्यते करैः ५९ आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण रूध्वी पुरा वृद्धिमती पश्चात्‌ दिनस्य पूबोधेपरार्मिना छयेव मैरी सरसज्जनानाम्‌ ६०

एषा. (क) नम; तैव. ¶, °मुजा ०; रमृता ९. २, (2) दीवार; तोरण.(१) ऋ. गजवान; °द्न्तं ८9. 20. ए. (०४&. ०.४.) होतारं जक्कनमवि 18 ४6 818६

` षा 2.

ए. (4) भशवो; पतिक. 8.2.8. = गवातुो. 1, एर. ए. 1, 7, 89. 86. इ, ७. गर्वात्लो, #, ररकचको प. (©) वस्ति च; भवति च. 8. उ. 7. 2. ए. ए०.१. पष. प्रभवति. फ. ¶. ७. 1. भवति. ८6. 2०. ह. तदा; तया 7. 14. 2०.. 2. &. जनो, ए6. 8०. एए. षसन्‌. श. सतश्वा ०; ०तेप्य ०, कष. व४९ 8600० 89 चप्‌ 11968 006 18665 39 +,

11. (५) एद्राक्तिताखेजख ०; शद्वा्िताविकक 2. 8०.०८. (2) प्राम्जात; मरो द्ाढ प्त. °्सतृ०; °्स्मृ०. 8.1. व, 7. ए, इ. ०. ४. ८. ए. प. (सण. ©. ण्वु;चि०. 20. ८००. न्तः; न्वै. 8. (८) द°; दे. फ़. (न) ०स्येते; ण्प्यते. 8. पष. क, णर |

1.2. (च) ०पिणग्यर. 1. र. 2. ०१०. प.) च; ०३. ज. °चपन्वत्‌; मुैति, ए.

{ ९७ }. मगमीनसस्जनानां तणजलसंवोषविदितवत्तीनाम्‌

सड्धकथीवेरपिशुना निष्कारण्तरैरिणो जगापि ६९ इति दुननप्र शसा

अय सुजनप्रश॑सा

वाञ्छा सञ्जनसंममे परगणे प्रीतिगेरौ नभ्रता विद्यायां ग्यत्तनं स्वयोषिति रतिरकषिपवादयद्रयम्‌ | भक्तिः इाखिनि शक्िरालमदमने संसर्मभक्तिः खले षवेते येषु वसन्ति निर्मरुगुणास्तेभ्यो नरेभ्यो नमः ६२ विपदि वरैपंमथाम्यदये क्षमा सदसि वाक्यदूता युधि विक्रमः यशसि चाभिरतिव्यंसनं श्रुतौ प्ररुतिसिदिमिदं हि महामनाम्‌ ६२३ प्रदानं प्रच्छनं गृहमपगते संभ्रमविधिः प्रियं रष्वा मौनं सदसि कथनं चाप्यपङ्तेः। अनुत्सेको रक्षस्या निरमिमवपस्ताराः परकथाः सतां केनेर्िष्टं विषममसिधासव्रतमिदम्‌ ६४॥ 1.1. (द) ०णवे०; (णमेव वे०. 1, क. 1.7, (०) °्मे; रतो. पत. परस्‌ ०; गु्येग °. 1. 36४. (2) ०यम्‌; ण्या प्न (०) शुजिभि; चक्रिणि. ९.9. (९) ° लेष्वेते येषु येष्रेते नि०. 0.2, न्क येष्वेतेषु. फ़. 0. ०ऊे यते येषु, 7. °छ एते येषु. 8. इ. 2. 8. “के एते फ. 89. 89. ए. °कैरेते येषु, एप. वसन्ति; नरेश. फ. ७. वेमे नरेभ्यो नमः; तेष्व टोकस्थितिः 1). तेभ्यो महद्रयोनमः. प. 1,211.0) °रति; °सूप्वि. 8. 80. 8०. श्र, ए. ॐ, ¶\, &, णवी; न्ते. पृ 1.४. ) चार ना०. §. प्र, 8०. इ. 6, ८९.०७. {०} °्याम्‌ ०४ ए. ए. 82.2. निरामेभव्सयराः; निरभिभवसाराः; 8. फर, 2, 0. भञ्धुभवक्षारा गु विरतिर्हसाराः ए, विरविभवरसारः: 1;

{ ९८ ;

करे छष्यश्पागः रिरि गुरुपादप्रणयिता मखे सत्या वाणी विजयि युजयोरीर्यिमतुलम्‌ , हदि स्वस्या वृत्तिः श्रुतमधिगतं श्रषणयो- विनाप्यशर्यण प्रकतिमहतां मण्डनमिदम्‌ ६५ संपत महतां चित्तं मवत्युत्परुकोमलम्‌ आपत्सु महारौलशशिङासेघावककंशम्‌ ६६ सेवप्तायति संस्थितस्य पयसो नामापि ज्ञायते मुक्ताकारतणा तदेवं नखिनीपन्नस्थितं राजते रवात्यां सागरडक्तिमध्यपवितं तन्मौकिकं जायते प्रयेभायममष्यमोत्तमगुणः संस्ततो जायते ६५

एद. (५) अव्पस्यागः; वगः शध्यः, 0. गविता{ < यनम्‌ 1, 2. ए. ८2) . न्य; ०, ध. ह. 86 फ, 89. ({ ण्ण. 8०.2०. ) वीयैमनुचम्‌; वीरषमहो. .. ?. &. (८) खस्था; खच्छ, इ. प. ०.०, सेस्ल ए. ए6.1. °चिमतं अ. वणयोः; गवगतं श्रवणयोः 1, ०.४. ऽधिगकत्रतफकम्‌, ©. प. 8, ए. क. (ष्णा्ा6 कत्‌ 8. के 0 ऊम्‌),

दपा. (0) शसु; ग्य, 6.9. सवस्य ०; ०वैदु ०. 8, ह. 56.. ए. (2) क्रम्‌; कं यथा. 8. .

पर्णा (कोज्ञार त्रू°. 7, 0. प. 2) चर, श्वर, ए, 59. राज; दृईप०. पष. (८) खास्यम्‌ ¦ खाती, 2. %. ३०.०. खात्मा ०.४. भन्तः. 7. पष शुक्तिमध्यपतितम्‌ ; मुक्तिमध्यधतितम्‌, 580.1. शुक्तिकुक्षिपतितम्‌, 8०.9. (२.) श॒क्तिसंप- रगेतम्‌, 2, ए, चन्मौकिकं जायते; सन्मोक्तकं जायते. 7. गुक्ताफठं लायते, ०.४ ए. 2९, तन्ज्ञायते मौक्तिकम्‌, 8०.४. (?.)& 2. 2. 8. (०८७ ज्जा मध) (9) °गः} °गाः. ©. 8०, . 2. 8. गावममध्यमोत्तमगुणः; ° गोत्तममध्यमाप- मगुणः ०.४. ण्त्‌ एणबणाक 980 पफ. 48 भए6क्ाड पठा पील (णन [०6 एण गणकन्त्‌ 10 ४6 परः गणः; भजुत्राम्‌. संसर्मतोजायते; संगसतौ जायते (, 9.४, सखंवासकरी देहिनाम्‌. 0, २. ए. शएवंविभा व॑नयः

(54.

यः प्रीणयेत्सुचरितैः पितरं पुओो यद्तुरेव हितमिच्छति तत्कर्म . तन्मित्रमापदि सुखे समक्रियं य. देवक्तपं जगति पुण्यरूतो रमन्ते ६८ नमभ्रतेनोजनमन्तः परगुणकयनैः स्वान्गुणान्ड्पापयन्तः स्र्यान्तंपादयन्तो विततपुथुवरारम्भत्नाः परार्थे सान्तैव्तपरक्षाक्रमुखरमखान्ु्ंलान्दूषयन्वः मन्तः साश्चयंचयां जगाते बहुमताः कस्य नाम्य्च॑नीयाः ॥६९॥

इति सुजनग्रशंसा 1

अथ परोपकारपद्धतिः।

मन्ति नघ्रास्तएवः फरोद्रमै- नेवाम्बुभिभूरिविङूम्बिनो घनाः

` उषा. (५) यः ब्रीणयेत्‌; बीणाति यः 99 29. इ. 8. 7. 2. 2. (८) स- मक्रियं यत्‌ ; यदेकरूपम्‌. ?. ‰. समं प्रयाति ए. 9.४. 80.. (ग्व. ०.४.) समानवृत्ति ( कै०.१) 7. (4) °च ०. °च ०. ¢.

1, 2ा, (4) °नज्ञ ०} ° ०... कथनैः; नुतिभिः, 89. ए, ख्याप ०; छाद ०,

8. ॐ. व्याव. प्र. (2) रथान्‌; न्यम्‌. 2. ए. ए. शतन; °नत. 89 ८9. (ण्मष्ट. ०.४.) पृथुतरा प्रियतरा ०. फ़, वृथुमहय° 0. ग्नाः; ण्ठः. 86. 0. न्तः, ए. 86.9. न्ये. णयः. ०.४, (०) णन््ै; भन्ते, ए. 6, १, ०वष्ेप; °वे. 2. ४. 2). (८९ णवे). णमुखा ०; जना. ©. द, प. 8. प, दृष ०; दुःख ९. 0, 239.2. प. दुरुखान्दुषयन्व दूभथन्तःसमन्दत. ` ७. (%) भन्तःसा ०; °न्तोष्या०, 8. ०; व०. 0. 2. 8, 1. फ़. @& ००४० ह. नच ००, ए. 89. (गणड. ए०.9.).

2, (®) गमिरहरि; °मिमरमि, ए, 56.०. °भिरदूर. ०.2. प,

९१५

अनृदताः पुरुशः समृद्धिभिः

स्वमत एवैष परोपकारिणाम्‌ ७* श्रोत्रे श्रुतेनैव कुण्डछेन

दानेन पाणिनं तु कङ्कणेन विभाति कायः कर्णापराणां

परोपकरिने तु चन्देनन ७९॥

पापाश्निवारपति योजयते हिताय

गयं गृहति गुणान्प्रकटीकरेति अपद्ते जहाति ददाति काले

सन्मित्रखक्तणमिर्द प्रबदन्ति सन्तः ७२ पद्माकरं दिनकरो विकचीकरोति

चन्द्रो विकारयति कैरव चक्रवालम्‌ नाभ्यर्थितो अलधसेषि जरं ददाति

सन्तः स्वयं परह्तेषु रताभियोगाः ७४

1.1. (५) णम्‌ ; श्रि, 1 ©) दु; च. ए. २. ए. ए6.०. (९) बिन. भा०. ह, 56४. ९०६ ०. 7. पराणाम्‌ ; कुखानेम्‌, प. (9) श्नु; °रेण 1. 8०. 5० ह, £. 8. प. °रेणतु. ४.

दा. (५) गपजि०;व्पं नि०. 2. 0. (४) ष्क च; श्ंनि० 8.३. न. प. णद्मानि 5०. 286. ए. °य; °य्म्‌ क, (@) हि ॐ०..

1.1. (०) ०्ची०; «चम्‌ 0.2. 2. ‰. २, ण्न्रीर 8. + (४) ° °सण],, म. र. फ. वाजम्‌ ; °जाखम्‌. 1, °बाान्‌. 8. (८) जठधरोपरि जलम्‌ जेजदः सछिकम्‌.. ए. २, ८6.०, 5. (द) ०तेतु कुताभियोगाः; °तेश कृताधियोग

०तेषु कृतातियोगः ¶. °तमिरितामियोगाः. ©, ए, ०ते सुकेवामिंयागराः 7, णते पिहित्ताभियोमाः,

{२९}

एके सुरूपाः परार्थघटकाः स्वाथ परिष्प पे सामान्यास्तु परारथमु्ममृतः स्वायाविरोपेन ये तेमी मानुषराक्षसाः पराहिवं स्वाथोय निघ्नन्ति षे ये निघ्नन्ति निर्यैकं परद्विवं ते के जानीमहे ७४ क्षीरेणात्मगसोदकाय हि गुणा दत्ताः पुरा तेखित्मः क्षीरे वापमेकष्य तेन पयता ह्यात्मा रानी इतः। गन्तुं पाक्कमुन्मनस्वदमवदृष्ट तु मित्रापदं युक्तं तेन जलेन शाम्यति सवां मैत्री पुनस्वीटशी ७५॥ दतः स्वपिति केशवः कुरूमितस्तदीयद्धिषा- मितश्च शरणार्थिनः शिखरिणां गणाः शेरते इतोपि वडवानलः सह समस्तसंवतके- रहो विततमूर्जितं मरसदं सिन्धोर्वपुः ७६ तृष्णां छिन्धि मज क्षमां जहि मदं रवि मा रयाः सत्यं बूद्यनुयाहि सधुपदवीं सेक्स विद्वज्जनम्‌

काप, (०) एके; पैक. 8. 2, एते 5०. 2९. प. 2. 8. तेते ए, सभ म्‌; सार्थान्‌. ए. ये तै. २. 8. ग, 7. (®) मध्यस्थाः खड्‌ ते पस्ेषटकाः सापीनि- रौषेन वे 8. 2. ये; तु ०.9. (५) °नुष; °नव ध.-ण्यौय ०; र्ये वि.° 2, नि ०६ , वि० 8०. ह. र. (2) निरः तु. ज. ए. द. 8. 2. ए. ष. 1.2 प, ८०) हि गुणा दचाः परा सेषिजाः; सङकडा दत्ता.निबा ये गुणाः २. 2) ण्रेता०; °रोत्ता० प. ्ा०; खा 7. ए. हु०; इण फ. (०) ०्नस्त०; णद ०, ए5.2. (2)° क्तम्‌ { शक्ता ए. ए9.४. शाम्य ०; सम्प ०. ए, 6.४. पुन- ` स्वी०; पुनस्ता० 8. 2. 1. गुणस्वी ०.०. (दृः). 12. @) ग्नः; नाम्‌. क. ९णां मणाः; रिपिः ४. ह. 8. उ, ८९. 8०. 7, 7. 7. (कल ° नां ५०) (थे शतेष; रतश्च 56.2. (2) विततभभितम्‌ ; , विभवमूर्छितम्‌, ००४७ 9 ह. @ठफणहणौशणक, ठप, (४) °र०; ०्य०-&, कृथाः; कुद. 7, (2) सत्यम्‌ } खल्यम्‌. &. णनम्‌ ;श्नान्‌ 8, उ, ^ ऋ. >, 7. 29, (गई, 20.9.).

1 २६ 1

मान्यान्मानय विद्विषोप्यनुनय प्रच्छादय स्वाग्गुणान्‌ कीर्तिं पारय दुःखिते कुरु दयामेवत्सतां चेष्टितम्‌ ७७ मनसि वचसि काये पुण्यपीयुषपणौ- चिमृवनमुपकारश्रेणिमिः पूरयन्तः परगुणपरमाणुन्पवतीरतय नित्यं निजहुदि विकसन्तः सन्ति सन्तः कियन्तः ७८ रि वेन हेमगिरिणा रजवद्विणा वा. , . यत्राभ्रिताश्च वरवस्वरवेस्तं एब मन्पामहे मरूयमेव ्रदाश्रयेण ` कंङ्कमेरनिम्बकूटजान्यपि चन्दनानि ७९ इति परोपकारः

| अथ वीर्प्र्॑सा रलैरमरदैस्ततषनं देवा

~ 0 1 भेजिरे भीमविषेण भीतिम्‌ सुधां विना प्रययु्विराम निन्धिवायोद्विरमन्वि धीरः ८०

.-~~~---------*--------+~-~-~-----"~-~-----~---~-~-- - °) °नु; ०. 8. ° च्छद ०; °स्याप ०. 0. फा. 1,. फ. खान्मुणान्‌ प्रश्रयम्‌ परि, (2) चैष्टितम्‌ ; ऊद्चणम्‌ ; 0. फ. 1. 86. प्‌, (जनह. 56.9.). ` रकण, ¢) ग्पूर०ः प्प्रग०, 2. फ; 8. ४6 1९ (०) ०शूल्य ०.६ श्ण ०. 86. 29. { ०. ०.०. }* 1. 2) श्रा० गस्य, 8. ॐ, त्र, ०. रिरश ०, 8०. (व) ण्कृदु ०; कटु ०, 1. °न्य०भग. 6, 7, 8. य. नानि; ननाःस्यः £. ९, 8. {द (4) गहर व्व 1. 2. 2. 8. ननन. म, (9) न; दि० (1). ०. ए. णद्भि०; दि ०.४. ३०. 4,

[ २९] कचिदधमौ शायी कचिदापे पयंङ्शानः कचिच्छाकादहारी कचिदपि शास्योदनरुभिः कचित्कन्याधारी कवचिदपि दिव्याम्बरधरो मनस्ती कायर गणयति दुःखं सखम्‌ ८९ रेश्वयंस्य विभूषणं सुजनता शौवंस्य वाक्संयमो ज्ञानस्थोपदामः शरुतस्थ विनयो वित्तस्य पत्रे भ्ययः। अक्रोधस्तपसः क्षमा प्रभवितुर्धम॑स् निव्यौजता सर्वेषामपि स्वेकारणमिदं शीरं पर्‌ भूषणम्‌ ८२ निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्‌ अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्वरे वा न्याय्यात्पथः प्रविचङन्ति पदं धीराः ८३ म्नाश्चस्य करण्डपीडिववनोम्लौनेन्द्रियस्पं कुथा कलासुर्विवरे स्वयं निपवितो नक्त मुखे मोमिनः

2. (५) भूमी; भूमी ८९.०४. पृथी, प, यायी; शव्या. ©. उ, 8. फ, 1. 7. ए. ०. 8०. @. प. ए, ए. शयः 6०. फ. रनः; ग्नम्‌, €, 2. ध. 8. फ. 1 इ. 88. 23०.०. ए. ए. ण्यतै. 6, (४) °का०; °जा०. २, इ. ण्यी; °रः 7. 0.0. 2. 8.7. फ. 8९ ०. 2. ए. ररि, ©, (2) ग्क;० °क्ा० 80, (गद्वु, ०.०.) ०घारो; °माकी. ?. ए. (ण)'०२७ छा १) दिव्या ०} चित्रा०, ७. (द) गणयति; गृणयति न. ध. 2. 8.

कदन्या. (4) गक्लम्‌ ०; भक्यम्‌ ( क्ये). 2, (2) त°; शम ०, 86. , ०. ए. कुकर. ए. ए, (०) निव्याज ०. निः काम ०. 2. (4) कारगमिदम्‌ ; का. ` छनियमम्‌. 1. 86.29.

रपा, (०) गतु न्ति, 1, नति; गोक०. श. (8). ०१; ०्छ०. 7. 1. (०) °मसतुः; °अेव. 68, (2) ण्यक ०; श्या ०, ^. 7. 2. तवर शति०, द,

रए. (५) फिर; विण्डि० छ. ण्म्लौ ०; री ° ध, ३०४.

{ २४ }

तुपस्तत्पिशितेन सत्वरमसौ तेनैव यातः षया रोका परयत दैवमेव दि नृणां वधौ क्षये कारणम्‌ ८४ ॥. पतितोपि कराधातैरुत्पतस्येष कन्दुकः 1. | प्रायेण साभवृ्ठानामस्यायिन्यो विपत्तयः ८५ आखस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान्पिपुः। नास्पुद्यमतसंमो बन्धुः रत्वा यं नावसीदति ८६ छिनोपि रोति वर क्षीणोप्युपचीयते पुनश्चन्द्रः इति विभृरान्तः सन्तः संतप्यन्ते विषुव रोके ८७ इति धर्यप्रशंसा

अथ दैवप्ररासा नेता यस्य वृदस्पतिः प्रहरणं वं सुराः तैनिकाः स्यो दुगैमनुभ्रहः किर हरेरैरावतो वारणः

(4) छेका: प्र्फ्त; खस्यास्विठति 8. उ, ०.४. 74. (66 ति.) ` सखस्थास्विठत. ए० द. प. 2. 1. 2. 50.) [ सुस्था, ॐ०.४. (8.)] कारणम्‌ भ्चाकुजम्‌. ध. ?, 7

एकप. (&) प्र० १०, इ, 6.9, 50. 8, (जगण. ०.४. ) ७) साभु०; हि सु०. 2. °चा०. गती. 2०. 8०. ए, °मम; मा ©. फ. ॐ, (2) ०नाम ०} °नां न°, ०.४.

दका. (०) सन्रि० रि० ए, 9.४. (2) कृलायम्‌ ; दुबीणो 0. 8. प्र. 1५. >. 7, ८6. 8०; (नल. ०.४.)

1. हए. ८) क्षीणेप्ययप्लृते रोक 0. प. क्षीणोपि वते चन्द्रः 8. 2. चन्द्रः कषोणोपि वर्भते जोके †. (०) °या °; ०श्य ® 1). सन्तः 0ष४6त फ. & ॐ, (क) विष्ठ़ता छेके; नैव विधुरेषु 8. उ. ते त्रिपदो 7,. ए. 86. 8०. व्रः ०.४. 7. ए. (1४ ग्यपंनो धकरण परि 8 पु) विचुते खेके प्र, रोकेषु ए.न .. सैकेस्मिन्‌ 7. विश्येषु छोकेषु

दकए. (५) नस्य; ण्व. 1 फ, ए, 59 5०. @) क्लि; खु 8. 8०. 7. ए. इ. न. नतो; ग्गो. ए. 2. प. ९रणः; हनः 5०, (जक ०.४.) ° इनम्‌. ए. 9.४.

{ २५ }

इध्यैश्ववंवखान्वितोपि बकूमिद्धभ्रः परैः संगरे

तद्यक्तं वरमेव देवशर धिग्धिग्वृथा पौरुषम्‌ ८८ क्मीयत्तं फलं पुंसां वृद्धिः कमीनुसारिणी

तथापि सुधिया मान्ये सुनिचरयैव कुवैता ८९ खल्वाटो दिवेश्वरस्य किरणैः संतापितो मस्तके

वाञ्छन्देशमनातपं विधिवद्ात्तारस्य मूलं मवः तत्राप्यस्य महाफलेन पतता भग्नं सशब्दं शिरः

प्रायो गच्छति यत्र भाग्यरहितस्त्रैव यान्त्यापदः ९० दािदिवाकरयोप्रहपीडनं

गजमुजंगमयोरपि बन्धनम्‌ मतिमतां विरोक्य दरिद्रतां

विधिरहो बरूवानिति मे मविः॥ ९९॥ सृजति तावदशेषगुणाकरं

पुरुषरत्नमङकरणं मुवः

~~~ --- ~+

2) श्वयश्च० श्वयश्च° फ़. ए, प्र. 2. ए. गवा ०; ०सम ०. ए, ०.०. ०ब व्ये 8०.४.{) बलमिद्र ०; मथवा ०. 7. विभि ०.९, ए. ग, 26. मकवाम्भ° ०.४. (द) °द्च;° °च ०. 8. ४6. ए. इ. 9. त, 2०, (जह. ०.४.) वरमेव देष०; नन्‌ देवमेव्‌ 8. ब. 289. उ. 7. 5०, (णण. ०.१.) 1, 2. 2. क.

30. (४) स्त्र; न््री° फ. तो ०ते. 56.. प, @) कञ्छ ०} गच्छ ०, फ. विधिवत्‌ ; दतिः प. ताङस्यः बिल्वस्य ए. 26. 280. ए. 2. ए, 1,. (19 कङ्का ताड) (९) णत्रापयस्य; शतराप्याशु 1, फः शक्रैः ग, °दा०; गहना, पृ. (व) माग्यराहेतः; देवहवकः )३. तत्रैव यन्त्यापदः; तत्रायदां भाजनम्‌. प्र. ध, (ष्णान-6 ०६ प्ञताणड 18 ००४७) ए: 7.

ध. (मो तठ 988४ एण 11968 कषण 18665 ३० 8. ५, व, 7, 2०. र. 86. पि. ८8) °मयोरपि; विहगम एर. |

शला. (४) हि०; यर, ^]

[ २६ ]

तदपि तत्षणमङ्गि करोति चे- दहह कष्टमपण्डितता विधेः ९२ पतरं नैव यदा करीरविटपे दोषो वसन्तस्य कि नोलूकोण्यवलोकते यदि दिवा सूयंस्य किं दूषणम्‌ थारा नैव पतन्वि चावकमृखे मेषस्य किं दूषणं यत्पुवं विधिना राटङ्खितं तन्मार्जितुं कः क्षमः ९३ इति दैवप्रशंसा

----- -

अथ कर्म॑प्रशंसा नमस्यामो देवान हतविधस्तोपि वशगा विधिर्वन्यः सोपि प्रतिनियतकरैकेफरदः फर कर्मायत्तं किममरगणैः किं विधिना नमस्तत्कर्मभ्यो विधिरपि येभ्यः ध्रमवति ९४ ब्रा येन कुलारवनियमितो ब्रह्माण्डमाण्डोदरे ` विष्णुर्येन दज्ञावतारगहने क्षिप्तो महासंकटे 1 रुद्रो येन कपारूपाणिपुटके भिक्षाटनं कारितः सरो भाम्यति नित्यमेव गमने तस्मै नमः करमेण ९५ ` @ (रके ग्व ए. 9] (9) [रवेषप भ० श] शा. (2) ९को; का. 8. परवछोकते यदे; विशोकयन्ति 8. ए. शप्य्र- छोक्यते यदि 7, फ. 2०. (2) तन्मार्जितुं कः क्षमः; दैवस्य कनि दूषणम्‌. 8. ॐ. (प्र, () ह०; ब्‌ ०५९.४. (0616 8180 86 20६8 इन्त, हित ०7 इत)

{9 किममरगनैः; यदि किममरैः 86. 89. 7. ए. ४, 2. 2. पभ. (कप्टा८ <मध० 9 मम.)

0. (9) प्रो महा ०; न्यस्तो महा ° 86.9४. छिपरः सदा 7. 2. (८) ° यनम्‌ ¦ ०यरणम्‌ 89.४. कारितः; सेवते क.

{ २७ |

नैवारुतिः फलति नैव कुरुं शीरं

विद्यापि नैव यत्नरुतापि सेवा भाग्यानि पूषैतपता खलु स्ंचितानि

काले फलन्ति पुरुषस्य यथैव वृक्षाः ९६ बने रणे शतरूनलान्निमध्ये

महा्भवे पर्वतमस्तके वा सुप्तं प्रमत्तं विषमस्थितवा

रस्षन्ति पुण्यानि पुरा र्तानि ॥९७॥ या साधूंश्च खलान्करोति विदुषो मू्खानिहितान्देपिणः

परयक्षं कुरुते परोक्षममृतं हाखादरं तस््षणात्‌ तामाराधय सक्रियां भगवतीं भोक्तुं फलं वाञ्छित

हे सथो व्यस्तनैगणषु विपुरेष्वास्यां वृथा मा कथाः ९८ गुणवदगुणवद्वा कुवेता कायैमादौ

परिणतिरवधार्यां यत्नतः पण्डितेन अतिरमसङतानां कमंणामाविपत्ते.

मवति त्टदयदादही शल्यतुल्यो विपाकः ९९

(ष्य. (2) ०्वा००्का०. 1 (2) °्पि नैव; चापि 7, 2. 1. (०) सा; . ०साम्‌. 1,. खलु; किल. 2, ए. २. ए. 6.2. संचि ०; सेवे र. सेवि ° ¢.

रछा. @) मस्तके; संकटे 8. फ. प. उ. (०) सपम्‌ ; शुभम्‌. 7. वा; च}.

स(य. (५) शरव; °सुन्हि. 56. ए. (८) सक्ियाम्‌ ; चण्डिकाम्‌. 7. शंकरीम्‌ ए, 88.71. चक्रिकाम्‌ 2. ए. २०४९ 88 एक्ष०्रइ 7९कतूफद्ठ 17 1. वक्रिकराम्‌ 11016 9 & एश ४४ ३० 8. °तीम्‌ ; °तो. त्‌ भीक्तम्‌ ; दानीम्‌. ए, 6.2. (द) हे सावी; मोदष्रौ (भ्यो ?). ०.४. व्यसनैः; व्यसने 30.71. वमलम्‌, 7. वमतो ह्व. 29.०. 2. ‰. ०4०; ०क० 56. 0. ए. मे (१) 2. ९स्थम्‌; ण्स्था० ए. 7. . उशा. (५) गुणवद्युणवद्ध; सगुणमपगुणे वा २. 2. ° मादौ; जानम्‌. 8. २, ए. 2. 2. ह, ९.7. दर.

च.

सथ्य वैड्व॑मथ्यां पचति तिरुखलीमिन्धनैश्चन्दनश्चिः सौवर्णीरौङ्गलात्विलिखति वसुधामकमृलस्य हेतोः किला कपूरखण्डान्वृतिमिह कुरुते कोद्रवाणां समन्तात्‌ प्राप्येमां कमभू चराति मनुजो यस्तपो मन्दमाग्यः॥ १०० मज्जवम्भाति यातु मेरुशिखरं श्र यत्वाहवे वाणिज्यं रुषिप्तेवनादि सकला विद्याः कलाः शिक्षतु आकाशं विपुलं प्रयातु खगवक्कत्वा प्रयतनं परं नाभाव्यं मवतीड माग्यवशतो मान्यस्य नाशः कुतः \०९॥ ममे वर्ने मवति तस्य पुरं प्रधानं सर्वो जनः सुजनतामुपयाति तस्य शृव्सना मूर्वति सन्निधिरनपूणां यस्यास्ति पूर्ेसुत्रं विपु नरस्य ९०९

इति कमेपरशंसा |

6, (०) ° ०; ०दू ०. 39. 5०. ए. तिल्खलम्‌ ; तिरखजिम्‌. 8. 2. प्र, ए. 2०.. तिरुखकम. 2. ४, प. विककणान्‌. ¶, ठ्युनम्‌.0 इन्यनैशन्दनव्रैः; चन्दमैरिन्धनोयैः 8. ‡. 89. फ. (क)1७ नो नौ) २. ए. प. (५९ चा ष्च) जङ्जऊानिन्नीषैः. 70. चन्दनैरिन्यनश्रिः 0. 5०., (2) विकिख ०; निखन ०; ०थामकैम्‌ ९; धां करमैम्‌ ^. फ. ९घां कर्मन्‌ ०. 0. ९भामर्कत्‌ ०, ?. ३, (५) ०न्व्‌ ०६ णन्भर. ¶, ००, 8. ९०; ०व्‌ ०. 0.2. (ठ) चरति; प्रचरति 8. चरति न. 1, भजति. पर.

ध. (2) °रम्‌०; °रे. 7. °तूक्न ^, ° ज०. 80. (ण्ट. 2०.9.) (8) श्यम्‌, °ज्या०. 807. प्राः क०; धद्याक०. 4. “साशद्चि०; ग्ल शि०. २, इ, णक्षतु ०} श्तु ०. भ, °कतुम्‌. इ. (९) साग्य °; कमै. 2. ए. प.

(शा. (४) तण} य° फ. (2) ° जनः; वे नना: 1. 2. 2०,. सु० ९. ४, 2. °ति; °न्ति. 1. ०.०. तस्यः. सद्यः. 1. (¢) कुल्ला; कला. 8, बाञ्छः, प. प०; १०. ४.

[ ९९ 1

अथ प्रत्यन्तरे छोकाः

को लामो गुणिक्तंगमः किमसुखं प्रज्ञितरैः संगतिः

का हानिः समयच्युतिर्निपुणता का धर्मतस्ते रतिः कः शूरो विजिवेन्दरियः प्रियतमा कानुव्रता क्रि धनं

विद्या किं सुखमप्रवासगमनं राज्यं किमीज्ञाफ़लम्‌ ६०६. मालतीकुसुमस्येव दवे गती मनसिनः।

मूध का सर्वेरोकस्य शीयेते वन एव वा॥ ९४ अप्रियवचनदरिद्ैः प्रियवरचनाढ्चैः खदारपरितुष्टैः।

परपरिवादनिवत्तैः कचिक्कचिन्मण्डिता वुधा ९०५. कदर्वितस्यापि हि पैय॑वतत

नँ इाक्यते धैयगुणः प्रमाष्टम्‌ सधोमुखस्यापि रुतस्य वन्दे-

नाधिः शिखा याति कदाचिदेव ६०६ कान्ताकटाक्षिविरिखा खनन्ति यस्य

चित्ते निदंदति कोपरशानुवापः। कर्षीन्त मूरिमिषयाश्च रोमपाज्ि

र।कत्रयं जयति रुत्स्नमिदं धीरः ९०७

शा. (2) °य ०; °ये.-1,. 80, “च्यु ९; च्ब्यु०. 8.

लाप. (५) °ह. पए. मनसि ०; महाम ०. ०.2. जोयते; दीयत. 20.

तए. ®) गलैः; णस्यैः, 1,. परे ०; सम्‌. २.

त्रा. @) वैदक्ना्ो हि शङ्कनीयः ए, 26.. (९ कतस्य ब्देन ९} ननूनपानो ना० ए. 8९.2. (2) °ति; °न्ति. ष. (ण्ण. (५) खन ९} दह ° 81} €>०९}४ 9. ए. ८9. (०.४. 1४8 दह ०); ` कुन ९. ष. (४) ानूतापः; €तानुतपः 8. 1५. ठू, ०.४. °्ानुधातः 2. (०) ०; व° 2०, (०, 89.2.) व° प. न्यः; श्या 88. ए, ए, 2०. 7. ४. त. (ध) भी °} शै ° ०. (ग्ट. ८०.०.).

{३०

एकेनापि हि शरेण पादाक्रान्तं महीवतम्‌। क्रियते भास्करेणेव स्फारस्फुरिततेजस्ता ९०८ वङ्धिस्दस्य जलायते जरूनिधिः कुल्यायते तत्तणा- नमेरुः खल्पशिलायते मृगपतिः सद्यः कुरङ्गायते ग्यालो मान्यगुणायते विषरसः पीयूषवर्षायते यस्याङ्घेखिललोकवल्लमतमं शीरं समृन्पीरति ५०९ रज्जागुणोघजनननीं जननोमिव खा- मव्यन्तदुदधहृदयामनुवतेमानाम्‌ तेजस्िनः सुखमसूनपि संत्यजन्ति सत्यव्रतव्यसनिनो पुमः प्रतिज्ञाम्‌ ९५०

.81,94107-8,0.8191

अग्राय ष्दयं पथेव वदनं .यदपंणान्वमैतं

मावः परैतसृक्षममागेविषमः खीणां विज्ञायते ¦ चित्तं पुष्करपत्रतोयतरछं विद्रद्धिराशा्तित

नारी नाम विषाङगुेरेव रता दोषैः समं बाता ९॥

(0णाा. (०) णवे हि; ववेद 1. ¶्र०; पर 7, ॐ. मही; क्षमा. (2) ररे °; र्रस्ये° र. °रेषै०. 2. ४, सारसर्फरेत ०; स्फुरत्फारिते 1. परं सरति ए. स्फारं स्फुरित ए. परिस्फुरवि. 0.

काद. (2) कृत्या ०; कूपा ०९.४.८णात्‌ ; ०णम्‌ 5०.४. ४) का ण्खा० ए. गतिः सदयः; ण्तेः सङः ए. (2 वव श्वय 0, फ. (व) "्क० शप्र ०.8. ॐ.

02. (५) ° ज्जा ८; °ब्जाम्‌. २. 2. 56.2. जननीमिव स्ताम्‌ ; रव उतैमानाम्‌, 8, उननीमिवाद्याम्‌. 7. 2. ह. (19 ४० याम्‌ णठ द्रम्‌ ) (2) ° मनुवतै- मानाम्‌ $ ०मनुवर्वमानाः 89. 8०. ए. 2. ॐ. < मनिकतैमानाः 7.

1, (०) भग्रा०; दुर. 2. २. ए. दयम्‌ ¦ क्दनम. ॐ. ०; तण. . ए. वदनम्‌; हृदयम्‌. 7, यड ०. सद ०. ?. †. (८) शद्रंसि ९; °शङ्कि°. 7. ए.

>)

अभिमुखनिहतस्य सतस्तिष्ठतु वावन्जयोथवा सवमः उमयबलप्ताधुवादः श्रबणसखस्येव ताप्पयम्‌ २॥ इथत्येतस्मिन्वा निरवधि चमर्छत्यतिशये वराहो वा राहुः परमवाति चमत्कारविषयः महीमेको मभ्रां यदयमवहदन्तस्ंलिक्लिः शिरःशेषः शत्रर्निगिखति प्रं संत्यजति उदन्वच्छना मूः निधिरपां योजनरातं सदा पान्थः पूषा गगनपरिमाणं कलयति इति प्रायो मावः स्ुर्दवधिमुद्रामुकुलिताः सतां प्रज्ञोन्मेषः पुनरयमसीमा विजयते £ एकी दवः केशवो वा रिवो वा एकं मित्रं मृपातिषां यतिवां एको वास्त: पत्तनेवावनेवा एका मायां सुन्दरी वादरीवा॥५॥ कमठकुलाचङदिग्गजफणिपतिविधृतापि चरति वुधेयम्‌ प्रतिपन्नममलमनसां फलति पंसा युगन्तेषि कि कूमेस्य भरव्यथा वपुषि क्षमां क्षिपत्येष यत्‌ कि वा नास्ति परिश्रमो दिनपवेरास्ते यनिश्चलः।

71. (°) ण्त्र 0. (घ) सु०; मु ०. ]). श्रवणसुखोसौ क्छत्यर्यम. ४.

ए. ( नाः कक० ना जा ). श्रवणमुखस्यैनास्यतर्ः (ऽस्यैव नास्ययैः?) 7).

प्र. (५) ०च्छ ०} °च्छि०. र, (तम्‌; नतेः. ए. २. (2) प्रर प्रा०. 2. प. “मा; °मो. ए. र्ते; तताम्‌ ए.

छ, 7० ए. © पद्‌ कत्‌ ण्ण 11४९8 1णथक्तकणडर 18०66. 7 फ. ४४© प्ण 18 86609, 86609 चात ४6 पमप्व एप्प,

फा. (ॐ) ण्ेष यत्‌ व्येव यः. श. (४) °रा०; <र्‌०. 86.०४, यन्नि० योनि ०. 14. ‹छः; °छत्‌, 7.

[ ९२ ]

किचाङ्गीरुतभुत्सृजन मनसा शाध्यो जनो रम्जते निर्वाहः प्रतिपलवस्तुषु सतामेवद्धि गोत्रम्‌ कोन याति वडो रोके मृखे पिण्डेन परितः मृदङ्गो मुखङपेन करोति मधुरध्वनिम्‌ भद्राः सन्ति सदसरशः खभरणव्यापारमात्रोदयताः स्वार्थो यस्य पदाथ एव परमो नैकः सतामग्रणीः। दुःपुरोदरप्रणाय पिबति स्रोतःपतिं वाडवो जीमूतस्तु निदाघसंभृतजगत्ंताप्विच्छित्तपे द्‌रद्थं घटयति नवं दृर्तश्चापशब्दं व्यक्ला मयो भवति निरतः सत्तमारद््ननेषु 1 मन्दमन्दं रचयति पदं सोकचिचानुवसा कामं मन्त्री कविरिव सदा खेदमारेरमु तः ९० दैवेन प्रमृणा खयं जगति यद्यस्य प्रमाणीरं तत्तस्योपनमेन्भनागपि महान्नेकाश्नयः कारणम्‌ सवीद्ापरिपूरके जरूधरे वर्षत्यपि प्र्हं सृक्ष्मा एव पतन्ति चातकमुखे द्वितः पयोबिन्दवः ९१ परिचरितव्याः सन्तो यद्यपि कथयन्ति सुदु पदेशम्‌ यास्त्ेषां स्वैरकेथास्ता एव मवन्ति शाच्लाणि ६२ (५) चा०} 8०. 8०. ए. 7. मनसा; °न्खमनखा. 7. °ञ्जन ईव. २. 1. °न्न महसा (78 800 ° न्न सहसा 86०08 1980४) २0 80.०४. & 88.४. (द) णषु; णनि ४, 2. 8. ०.०. वि (नि ?) 7 2, (2) ° रतः; °यतम्‌. ए. °त्तमार जनेषु; स्तभधादमैषु क. शक्कथापरादनेषु १, 1२. (०) °वृ °; °र० 0. (छो खे०; खे 7) स, (4) °स्य; सि 8०. (०. 2०..) (8) “मे ०४ न्ये ह. 809. 86९. 81. (०) °रकै; °रिते 8०. (०. 5०.४.) 56.प ° ९वः, ०.9. २11. (2) फयवि कथयन्ति सदुपदेम्‌ ; यदप्यपदिदान्ति 8. यद्यापि कथयन्ति बा सदुषरेद्म्‌. 8०. (८) रस्ते ०; ° से 8

{२२ }

।: कन्दुकपातेनोत्पतत्यायैः पतनपि

तथा लनार्यः पतति मृषिण्डपतनं यथा ९६९ यदि नाम दैवगत्या जगदस्तरोजं कदाचिदपि जावम्‌।

अवकरनिकरं विकिरति तत्कि कृकवाकुरिव दंसः ९४॥ यनागा मदभिनगण्डकरटाध्तिष्ठन्ति निद्रासा

यरे हेमविमूषणाश्च तुरगा वस्गन्ति यदर्षिताः। वीणवेणमृद ङ्शङ्खपटदैः सुपस्वु यद्रोदयते |

तत्सर्व सुररोकदेवसदशं धरमेस्य वस्ूरितम्‌ १५ ये संतोषसुखप्रमोदमुदिवास्वेषां मिना मुदो

ये न्ये धनलोम्तकुरूधियस्तेषां तृष्णा इता इत्थं कस्य कते ङतः विधिना तादृक्पदं संपदां

सवालन्येव समाप्देममदिमा मेरुनं मे रोच॑ते १६ रक्तत. कमलानां सत्पुरुषाणां परोपकारित्वम्‌

असतां निदंयलं समावासिदधं त्रिषु त्िवेयम्‌ ९७

ववो हि सत्यं परम विभूषणं

गजाङ्गनाया ईशता त्च द्विजस्य विद्धेव पुनस्तया क्षमा

शीरं हि सर्व॑स्य नरस्य मृषणम्‌ ९८

ङा. (०) मायः; यया पष, °य ०; °न१० ए, 1४4. (5) वतनम्‌ ; गुटिका ए. प, (०) भिनेगण्ड; वरिमिनन ° 2. ए. (४) हेम; सर्ण; २. ए. ०वणा ०, १वि- ता० 2. 8. 80.. (मधं, 80.) वन्ग ०; न्दम ° ए०.४. (1, ) दष ०80.2. (ए .) (०ंद्क. 8०.) ०) °यै ०गवेः 2. ए" ०.०. (०४. 39.) रसु; ° 80.४, (गद्क. 5०.) (2) देव; विद्धि, 7", 8. रान्य. ए6.४. (छप. 50). =.

एय. (४) सृखप्रमोदः; निरन्तरम्र ०. फ, °बां न; °षाम ०. 7. @) सोभ जन्भ. 7. 1. प. (2) सोन्मन्येव समाप्त; खामिम्यैव समसैन ०. 1). (खामिन्येवं समान ) ए्ा, ®) सयु °; सुक्‌ ° ए, (सप्‌)

[ ३8 1

वरं तुङ्गाच्छङ्गदरुरशिखारेणः कापि पुखिने पतिलायं कायः कठिनटृषदन्तर्विंदलितः वर्‌ न्यस्तो हस्तः फणिपतिमृखे वीव्रदशने वरं वदी पातस्वदापि कवः शीखवखुयः ६९ विरम व्िरसायासादस्मादुरध्यवस्तायतो विषादे महतां पैय्व॑सं यदीक्षितुमीदपे अपि जडमते कल्पापाये व्यपेतनिअक्रमाः कृलनज्ञेखरेणः कषुरा नैते वा जलराशयः २० सपृयति मुजगरोरन्वरमायतकरवालकररुदविदीणम्‌ विजयश्रीर्वीरणां व्युत्पनप्रौढवनितेव २९ अयममृतनिधानं नायकोप्योषधीनां शतभिषगनुयातः शम्भुमूपेःवतंसः विरहयति चैनं राजयक्ष्मा राशाङ्क इवविधिपरिपाकः केन वा रद्कुनीयः २२ शुभ्रं सदम सविभ्रमा युवतयः श्वेतातपत्रोज्ज्वला रक्ष्मीरिय नुमूयते चिरमनुस्यूते शमे कमणि विच्छिन्ने निवरामनङ्गकटदकीडा्ुटत्न्तुकं .

मुक्ताजालमिव प्रयाति इटिति भरयदिशोटर्यताम्‌ २३

15. (०) तुञ्गच्छङ्ा ०; सुश्रीनुज्ग ०; 14. 2. 2. 80.४..2). (ष॥ल७ तु नु ) शश्गीत्संगा०. प. °द्भर; < द्र. ४. णः; रणाम्‌. 7. वृजिने; विष्रदे 7. ०.४. पि. व. परिषये. 2, ए. (2) ° न्तविंद ०; °न्तर्विग ०. 7. ०.०. नन्त विगि० कष. (८) त्र; ०१०; 7). ९. ` ६. ध. प. 86. {० 86९.१. ) ए80.४.

(०५8. 59.)

क. (४) °साया०; ०माया०. }. प. °तो ०; ९तः. र, कणत 119७8 ०४० ॐत प्9 लाक 19068. (९) ००; ग्वे 2. 2. प. मते; विधे. ए. 2. ए.

ह. व्य०;्य०, प्न. मा; मः 7. (2 ) जरादयः; ०चापि जरायाः ए. सा. (2) वि णणाप्॑डव्‌ 19 ६. (2) व्युयज्न; मत्त, 7६,

श्रीगेाय नमः अथ वैराग्यशतकम्‌.

, दिक्कालाद्यनवच्छिनानन्तचिन्माजमरतये | सवानुभूत्येकमानाय नमः शान्ताय तेजसे अथ तुष्णादूषणम्‌ बोद्धारो मपर्रस्ताः प्रमवः स्मयदूषिताः अवोधोपहताश्चान्ये जीर्णमङ्गे सुभाषितम्‌ संसारोत्पन्नं चरितमनुषरयामि कृशरं विपाकः पुण्यानां जनयति मयं मे विमृद्वः महद्धिः पुण्यौवैश्विरपरिमुशीताश्च बिषया महान्तो .जायन्ते व्यसनमिव दां विषयिणाम्‌ ३, उत्वावं निधिशङ्कया क्षितिवरं ध्माता गिरिधाववो निस्तीणैः सरितां पतिनंपतयो यत्नेन संतोषिताः मन्त्राराधनतत्परेण मनसा नीताः इमश्ाने निशाः प्राप्तः काणवराटकोपि मया तृष्णेधुना मृच्च माम्‌

1. (५) चिन्मात्र; विक्ञान. #¶. (2) शत्य ०; श्ये ° 8. ‰#. °माना ०; नाथा०, 2,

7. (@) गोष ९; °न्नानो ° #. 2. 2. °ा०;०म०,

गा, (©) प्रिगृहीताश्च; °मपि गुहीताव. ए. 6. 50 (०&, 80.9 ) परिगरी- ताहि.

ए. (@) शकोषि ०; °केति ०, 4. सेवि र. ४. (०) निदः क्षपाः 4. 14. (व) णना मओ मम ; सकामा भव. ७. 2. ५, 2, त, 89.

{ ६६ 1

भ्रान्तं देशमनेकदुर्मविषमं प्राप्तं रकिचिकङं

त्यक्ला जातिकुङामिमानमुचिवं सेवा कता निष्फला , मुक्तं. मानविवर्जितं परगृहेष्वाशङ्कया काकव-

तृष्णे जुम्मस्ि पापकमेनिरते नाद्यापि संतुष्यसि `

खङोष्ठापाः सोढाः कथमपि तदाराधनपरैः

निमुद्यान्तौष्पं हसितमपि शून्येन मनसा तश्ित्तस्तम्भः प्रविहतधियमच््नेङिरपि

त्वमाक्षे मोधारे किम परमतो न्वयि माम्‌ ॥६॥ आदित्यस्य गतागतैरहरहः संक्षीपते जीविवं

न्यापरिवंहुकायैभारगुरुभिः कारी विज्ञायते दृष्ट जन्मजरामिपत्तिमरणं तरास्श्च नोत्पद्यते

पीला मोदमर्थी प्रमादमदिरामुन्मत्तमृतं जगत्‌ दीना दीनमुखैः सदेव शिद्कैरारुष्टजीणौम्बरा

क्रोशद्भिः कषधितैभरेनं विधुरा दुर्येव चेद्रेिनी

ए. (५) °न्वम्‌.; °न्वा, 2, ए, ए. न्त्या. #. “कजम्‌ ; ° दनम्‌. ४. {2} जाति; कीज, ए. ए. 7. °तमू; °ता, ४. (८) शा; क्ल ©. च. ए. 4. ए०.१. प. ५०त ©. (ण पशष्णि; सह. 70 ६९) श्रा, 8. ए. ९या; °या, 9.४. (2) ल॒म्भसि; दुमैति. 8०.२८. ७. ©, छृम्मिणि 14. वैरिणि 2. ए. 2. (फल ००१ 1४ श्द्ा9) निरते; पिञ्युमे. ए, भ, ९खि; ति. 2

प, (०) °जोन्रा ०} ° ° 4. प्र. °लोका° 8. तदा; नुग ° 2. (०) °. शिण॑ग्तौ वि० 2... न्तो वरि 4. ०. ए. 2. प, 8०.०४. ०्मः प्र०; श्भप्र 2 2, ° तिह ०} °दत्ति ०. 0. एए. (4) मप ०; ०मुष ०. ८०. (०, 3०.9४.) ए. ¶!

एना. (४) गगिततम्‌ $ ०वनम्‌ 80. (०४६. 5०.१०.) ह. (2). नति ०३ श्न. कष ()) ॥,.17- 9 ०योभृ० ॥,1॥ नशु °स्तु

पा. (५) तना; ०्नाम्‌, ¶\ अ. सदैव; तयेव द, खकीय. 8. ©. 280. (जपं, ए०.०.) <राः णेः ^, °राम्‌ व, 80. ए. (६) न्नर; °निरेन. 8 ्मिरन्न ¶, ए. ए०. 7. प. गर्मरैने ©. पि षु विधुराम्‌. 7. जठरास, एए, जट.

हः. 9. दुर्येत; ग्द्॑यत. ०. दशया न. ए, दैव. 80.४, (ताम. 01 चेन्‌ ,). नी; नीम, ¶, \, 80

{1 २७ }]

याञ्जामङ्गमयेन गद्रदगखतुटयद्िलीनारं

को देहीति वदेतछदग्धजटर्स्पार्थे मनखी जनः मिवृत्ता भोगेच्छा पुरुषवहुमानो विगछित

समानाः सखयाताः सपदि सुहृदो जीवितसमाः शनै॑षटयुत्यानं घनतिमिररुद्धे नयने

अहो धृष्टः कावस्तदपे मरणापायचकितः

दिंसाश॒न्यमयत्नलभ्यमशनं धातरा मरुत्कल्पितं

व्याङानां पररवस्तणाङ्रभजः सष्टाः स्थीदहायिनः।

सस्ाराणवलद्घुनक्षमधियां वृत्तिः कता सा नृणां . यामन्वेषयतां प्रयान्ति सततं सवे समाधिं गणाः ९०॥

ध्यातं पदमीश्वरस्य विधिवत्संसारविच्छिक्षपे

स्वगद्रारकपाटपाटनपदु्धरमोपि नोपार्जितः नारीपीनपयोधरेरूयुगु स्वभेषि नालिङ्गितं

मातुः केवलमेव यौवनवनच्छेदे कुठारा वयम्‌ ९९.

(५) °जचुणयद्ि ०; °लोङ्कच्छद्वि ०. ए. ०ऊसद्रद्ि ०. 80. ° लनुगरदवि ° 1०.. (®) °०स्या०; °खा०. 4. ननः; पुमान्‌, 4. 8. ६. 8०. 6. ४. २.४.

12. (५) पृरूषक्हु; बहुरूप. ¶. °नो व°; भनेर्धे०. ए. श्नोपि. ए. णतः; न्ती. 4, (2) न्समाः; सतमाः. 4. (2) ग्य °; नु ०; ©, यस्य ° 4, गयस्य ०. 1. °रभ्यु०, 1. (क) वृष्टः; दुष्टः. 7. ०. ए. 50. शष्ट ए, (88) दृटः, 2. मूढः. पष. ण्णा०; श्णो०, ए. ०पाय०; °याष०, 4. ©. प्रात, 50.7४

क. (०) धात्रा महत्कन्यितम्‌; वायुः कतो वेभसा. ए, 89. (०1. .8०,2.) ९त~ म्‌; ०ती. ^. 2. (2). पशव; पवन, ०.०. °सृ० °°. क, 8०. ( णम ०.) मस्तु ०. प. (८) न°; ग्ने. 8. (ध) यार; वार. द. सततम्‌ ; सहसा, र, 89. (नण. ए०.४)

शा. (र), नन्ति; रामा. 2. 7२. ग्ग°; °१्गर' ए. प. 50.

[ २८ }

भोगा मुक्ता वयमेव भुक्ता

स्तपो वप्तं वयमेव तप्ताः कालो यातो वपमेवे यावा-

स्तृष्णा जीर्णां वयमेव जीर्णाः ९२ कान्तं क्षमया गृहोचितसुखं व्यक्तं संतोषतः

सोढा दुःसइशीतबादतपनाः हेशान तक्ष तपः। ध्यातं वित्तमहर्निशं नियमिवप्रागैनं शम्भोः पदं

तत्तत्कमे रतं यदेव मुनिभिस्तैस्तै फङैव्िताः ९३ वङिभिर्मलमक्रान्तं पङितैरङ्कितं शिरः

गात्राणि शिथिलायन्ते वृष्ैक वरुणायते ९४ येनैवाम्बरखण्डेन संवीतो निशि चन्द्रमाः।

तेनैव दिवा भानुर दौर्मत्यमेतयोः ९५॥ अवरयं यातारश्िरतरमुषितवापि विषया

वियोगे को मेदसत्यजवि जनो यत्सयममून्‌ व्रजन्तः स्वातन्त्यादतुलूपरितापाय' मनसः

स्वयं त्यक्ता देते शमसुखमनन्तं विदधति ९६

छा. (०) °क्तास्त ०; णक्तं त०. ण, (2त्‌ 2680598 ) (2) शप्ताः; पतम्‌, प, (2 ५९9४४) (2) नताः; तस्‌. व, (2० -न्व्कण्ड) (%) गणः; र्णम्‌, १. (16 - 1/11.3।

शवा. (५)सु०ः मु ए. (४) °बः; वटो. 8. शीतवति; वातज्लीत. ए. °नाः; न, 4. ए. २. प. 8०.४, नः. ४. नखान्न; व्यो ए.न्डान. ^. 2, ४. तष. ०.४. (©) वि; चि 8. (द) य०; त°. ©. ध. °ताः सतम्‌. 5. °तः. ©. 4.

सष, (०) "क्ि०; ण्की०, 2. ०तेर तेना०

उष. (०) श्नेवा०; ण्न चा० ०.४. (2) चः ०.४. °नुरद्य; नुः पश्य. 7.

, उण. (५) ण्वे; 4.-(०) ०जन्तः; जेत 4. (4) शह्ये०; श्यो० ^. स्यै० ए. 20. (गाह, 20.71.) श्रे 8. नतिः न्ते. 2, ए.

[ ६९] तृष्णाधिकारमाह्‌ |

विवेकत्याकोंरो विकसति शमे शम्यति तुषा

परिष्यङ्के तुङ्गे प्र्तरतितरां सा परिणतिः। जराजीरभैशव्ग्रस्तनगहनाक्षेपरूपण-

स्तषापात्रं यस्यां मवति मरूतामप्यधिपतिः १७

मदनविडम्बनमाह्‌

रुशः काणः खञ्जः श्रवणरदितः पुच्छषिकठो व्रणी पूति्ठिनः रुमिकुलश्त पवृवतनुः क्षधाक्षामो जीणे: पिटरजकपालार्पितगलः दानीमन्वेति श्वा इतमपि हन्त्येव मर्दनः ९८

विषयाणामधिकारमाह्‌

भिन्ञाङनं तदपि नीरसमेककरं राच्या भूः परिजनो निजदेहमात्रम्‌ व्रं जणेशतखण्डमरीनकन्था हाहाः तथापि विषया परित्यजन्ति ९९

उषा. (०) °कस °} "दब ०. 74. शमे; शनैः 8. (8) परिषङ्े तुङ्गे; भृशे या- त्ता तस्याम्‌. ए. (५) गहना ०; महता 8. ०; ° ऋ, °गस्तृषरार} णः कुप 8. ए.

ष्णा. (८) रहि °; गलि० 4. (2) °ति; °य, 4. 8. ए. २. 8. (०) वर- उरजकपालार्पित; परिठरककणाजेषरित 4. पिठरककपाछार्दिते 8. परिवरनृक्पाजार्दित ए, पिररककपित 8. पिठरकपालार्वित. 2. (थ) चं; हि 4. ०व; श. 8. 2. ए,

स्यद्. (५) चन, 4. सुर ए. 8०. ए. प. 2. 8. जैीर्ण्यतखण्ड मलीन; लै- गैखतखण्डमयो 1४. ¶. 8०. ©. प. शीर्णदतखण्डमयो 8. रीर्णपटखण्डमयी च. ए. . 1. (&) न; ज. ¶", परित्यजन्ति; जह्यति चेत; ग,

[ ४० 1

रूपतिरस्कारम।ह

स्तनौ मांपग्रन्थो कनककलद्राविल्युपमितौ

मुखं श्लेष्मागारं तदपि शशाङ्केन तुकितम्‌ सवन्मूनष्किसं करिवरकरस्पर्धि जघन- महो निन्द सूपं कव्रिजनविरेषैर कुतम्‌ ९० अजनन्माहात्मयं पततु शरूमो दीपदहने `

भीनोप्यज्नानाद्वडिदायुतमश्नातु पिशितम्‌ बिजानम्तोप्येते वयमिह विप्ज्जालजटिखा-

मुद्धामः कामानहह गहनो मोहमहिमा २९॥

अथं दुर्जनमुद्ि्याह

विसमलमशानाय स्वादु प्रानाथ तोयं

शयनमवनिपृष्े वल्कङे वासत्ती |

नवधनमथुपानभ्रान्तसर्वनद्रियाणा- मविनयमनुमन्तु नोत्सहे दुर्जनानाम्‌ २९

ड, (५) कर; चिरः व्‌, प. कट 14, (2) नमह नि ०; ०नं मुहुरनि° 8. 7 ए. 89. पच. ए. ©. २. जन; वर. 7. 8०. (गह. 5०.9.) ४."

इ. (५) °न्मादाग्यम्‌ ; °न्नप्येषः 4. °न्दाहात्म्यम्‌ २. 2. फ, पततु; ¶त- ति. 8. ए. 2०. विद्यति. ण. ०भो दीप; गभस्तीव्र. ^, 8. ¶, , प, 2. 2. 0. 8०. 14, (४) °व्व .^पि. ४, ° ज्ञानष्ध ०; ° ज्ञानद्धि° ॐ. 2. 8. ° ज्ञावाव, ¶. ०श्नातु; °भन्ति. 2०. °ननाति, ग. ए. ७. ०.४. (०) ण्वये०; शक्षे०, इ, 80०, (भष. ०.४.) ©. नटि ०; पट ९, ए. 0. (०४. ०.४.) ©.

ॐ. (4). विस; फल. 4. ए. 7, 2. ८०, ॐ. २, (2?) हे °इम. ए. ‰. शयनमवनिठ; कषितिरपि कायनारथम्‌. प. वल्के वाससी; वाससी वल्कले. &. ग. ए. 5०. वाक्षसी वत्कठम्‌. प. च; तु. ए. नु. 2. (८) नवघन; भव्छ. 4... भनलख्व., %. गु ए. 89. ° नननान्त; °नं जन्त. 4. 2. °नन्नामि, ए, (थ) . ° मनुमन्तुम्‌ ;

५१

०मनुवुम्‌. ¶\ युपगन्तुम्‌ 4. ने को ०, 4,

[ ४९] `

मानितामुद्िष्याहं

मिपुरहुदवैधन्यैः कैश्रिन्नगन्जनितं पुरा विधुतमपरर्द्तं चान्यैर्विजित्य तृणं यया

इह दि भुवनान्यन्ये धीराश्चतुर्दश भुञ्जते कतिपयपुरस्वाम्ये पुतं एष मदज्वरः २६.

निस्पृहाणामधिकारमाह

तवै राजा वेयमप्युपासितगुरुपरल्ञाभिमानोलताः

ख्यातस्खं विभवेर्यशासि कवयो दिक् प्रतन्वन्ति नः। इत्ये मानद नातिदूरमुभयोरप्यावयोरन्तरं

यद्यस्मास॒ पराङ्खग्लोति वयमप्येकान्ततो निस्पृहाः २४

, अभुक्तायां यस्यां क्षणमपि यातं नुपशते-

भृवस्तस्या रामे इषे बहुमानः कितिमुजम्‌ ` तदंशस्याप्यंशे तदवयवङशेपि पतयो

विषादे कतव्ये विदधति जडाः प्रयुव मुदम्‌ २५

सा. (५) इदवैः; मतिभिः, 8०.४. °बेन्पैः; ररीकैः. ए, 89. (कैर ०.४.) ©. ए. केचि ०; एत ०. (भ्येत ०.४.) (४) णणं यथा; °णमन्यथा. ए, ` ण्ण पुरा. @. (८) भी०; शै. 4. (०) रर; रः. ॐ. 4. 6. 8०. (गह. ०.४.) र. ©, °पर; ७.

श्प, (८) प्रर प्रर. 4. @) नः; च. & (५) ण्ट; °वर. 4. 8.7, ६. प्र. ध. &, 2०. (गह. 8०.०.) °सुभवो ०; ०मनयो ०. 8. गतयो ° @ =.

शप. (५) ण्यम्‌; तनाम्‌ ४. न; चः ०.2. या० जा 6. नीर ^. (2) ला०; छो ° ०.४. इव; दह. ग, ए. 89. (०ण&, ०.४.) ©. °भृजाम्‌; °मृताम्‌, ए, 80. ` (गणक. 0.2.) 9. प. (९) वदेद्स्या ०, तदष्यस्या १. 4. (4) ° ण्डः, 4. ण्नाः ए.

[ ४२ }

मृत्पिण्डो जलरेखया वरूयितः सर्वोप्ययं नन्वणु

ङ्खोरुत्य सं एव संयुगरतै राज्ञां गणेर्मज्य॒ते तददुदेदतेयवा किमपि क्षुद्रा दरिद्रा मृशं " यिग्धिक्तानपुरुषाधमान्धनकणं वाञ्छन्ति तेभ्योपि पे २६॥

दर्भगसेवकस्य वाक्यमाह | नटन विटा गायका परद्रोहानिवद्बद्यः।

मपस्षद्मनि नाम के बयं कुचभारानमिता योषितः २५७॥

-------~---"-------------+~ उशा, (५) मृषो; नित्यं यो. ए. वल्यि ०; परिव ०. ए. 8, ०.०. -च- परि०. 4, ण्न्व०ल, ¢. 4. (2) °रङ्खो०; श्व्तशची०. ध. 2, 0.१. स्वांशो ०. प. खारी 5०. °स्वङ्गी. 2. ०स्तं सी ०. "1, स्त्धी ०. 2. °येंखी ०, 4 ° सशी. ए, एव; सदैव. द, तमेव, 4. ए. प. ०युग; °भर. प, गनेमु- ख्यते; शतैर्मूब्यते. ए. ए. गणा भुजते ^. प. ¶, ए. 29. (०) वषुः; नो ददुः. 4. वर. 80.४. ते दनुः, प. 2, 8. ए. #¶. रद्मन्ते, ह. 89. ददतेयवा किमपि; ददते- तन्किमपि तै. 4. ददेय किमपि वे, ¶, ०.४. ए. & पत. (ण म० प्रे पण पिते) ` 59. (ष्णाष्टः० & 7 ए. दतो 7 दते.) दरिद्रा भृद्यम्‌ ; भृशं याचकाः 4. (द) भिश्धिर; ये. नि०. क. तीन्यु० कषु ०. ए, 89. (गप. 50..) कणम्‌ ; क~ , णान्‌. 4, ए०.४. क्वम्‌. ए. ह, 59. प. ककन्‌. 7. वाञ्डन्ति तेभ्योपि ये; तेभ्योपि गरार्छन्ति ये, ए. 89. (ला० छव 107 जक ,) दच्छन्ति तेभ्योपि ये ०.४. उकप्या., (४) विण भ०, 4. (वि पक्ष) गार; विगा०. ह. ०का; णना. ©. 2. 2. (2) परद्रोदनिवद्धबुद्धयः; षरद्रोदविषण्णयानसाः, 4. परद्रोहक- ` , तैकरबुद्यः. 7. 2. सभ्येतरवदिवग्ववः ¶, 80. [ ग~ ०.०. (विर्द्ध निवद्र.)] ८. प, (क४थ७ चु 0 }च तथ्येतरवादवयराः. ह. (०) नूृपमीद्ितुमनत्र कै वयम. 4. (पपक््टाप) ¶. 0. त. सद्मनि; संसदि. ए, 80. सद्मसु. 2. नाम; तेत्र, 80, (ग. 80.४.) ०यम_; °लम. ¢. (2) कष; स्तन. &. ¶. ए, म. ए, ॐ. ०रान ०; °रोन्न ०, "^. ¶1\6 198६ ४० 17०९8 #क्णसू०8न्त्‌ 3.4 ६२.

{ ४२ |

पुरा विद्रत्तासीदुषशामववां हे शहतये गता कलिना विषयसखसिद्धैय विषयिणाम्‌ इदानीं तु प्रेष्य हितितरूमुजः शाखविमुखा- नहो कष्टं सापि प्रतिदिनमधोधः प्रविशति ॥२८॥ साकारं पुरूषमुद्िद्याह 1. जातः कोप्यात्ीन्मदनरिपुणा मूर्धि धवलं कपाङं यस्योचैर्विनिदितमलंकारवधये नृभिः प्राणत्राणप्रबणमंतिभिः कैश्चिदधुना नमद्विः कः पुसामयमतुरूदरपन्वरभरः २९ अर्थानामीशिषे लै वयमापे गिरामीद्मदे यदित्थं शरस्व वादिदपंज्वर शमन विधावक्षयं पाटवं नः। सेवन्ते लां धनाढया मतिमलहतये मामपि श्रोतुकामा मय्यप्यास्था वेत्तस्यि मम सुतरामेष राजन्गतोसिमि ॥६१॥ यदा किञ्िर्जोहं द्विप इव मदान्धः समभवं तदा स्ेजञोस्मीत्यमवदवलिप्तं मम मनः। उणा. (५) 2दृपश्लमधियाम्‌ $ गदुषश्यमह्ुश्ाम्‌. दश्चाम्‌ १.) ए. °दमनि- मनियाम्‌. 7. 9. (४) गद्ये; ण्ड्व. ए. 80. ण्डे ४. (रतु; सम्‌, ए, 9 सा, #. तरः; उव. 20 सदा, (८) सण; सु०. 80.. (2 } °स्वेन्र्वि ०६ स्यास्ति पि ०, ०.१ ००; °षण०. @. {८} प्रवण; प्रवल. 5. के१; कण०. ^ दक, (५) शद्धिषे लम्‌ ०श्वरस्वम. &. ° इमहे ०; शरा. ^. ° दित्यम ; '्म्‌. गू, र, ©. 2०. (ग, ए०.४.) प. (ट) गदि; नमि, ध. 2. फ. सर; भ्युप. फ. ०८० °र०. छ. नमे. ह. ते. ©. (2) 2) षमाद्या; मदाना. 2. ए. भनन्ध्ा. 4. 3. 14. ०.८. मतिमलहतये; शतिविमरधियी. ^. °कामा; °कमो. ©. (द) मय्यप्यास्था चेत्तत्‌ $ मामप्यास्थानमेतन्‌, ‰. मय्या स्यानैवरेते, ` छ. चेत्वयि; स्यत. ग, ते चेत्चपि ए. प्र. ©. चेते वयि. 4. सु; नि. ग, एर, ८०. (० 80.11.) ©. फ, °ब; ण्व. 7, ह. 8०. (गह. ए०.०.) 6, प. न्मतोस्मि °; न्ग- तज्घात्‌. ए, 39. (णड. ०.2. ) 6. °न्गतोसि, ४, ° ननास्था, प,

[४४]

यदा करिञिषिच्चिहधजनसक्राञ्ादवगतं ` तदा भृरखेस्मीति ज्वर इव मदो मे भ्यपगतः॥ ६९॥

निर्ममतास्वरूपमाह

अतिक्रान्तः कालो लटमरूलनामोगसुरूमो भरमन्तः श्रान्ताः स्मः सचिरमिह संप्तारसरणौ इदानीं स्वःसिन्धोस्तटमुवि समाक्रन्दनगिरः सुतारैः फएूत्कारेः शिव द्विव दिवेति प्रतनुमः ६२ भाने म्ापिनि खण्डिते वसुनि व्यर्थ प्रयतिर्थिनि ्षोणे बन्धुजने गते परिजने नष्टे इनैर्यौबने। ` . युक्तं केवरूमेवदेवं सुधिपां यज्ज कुकन्याप्यः पूतम्रावगितैन्द्रकन्दरदरीकुञ्जे निषासः कचित्‌ २६ परेषां चेतांि प्रतिदिवसमाराध्य बहु हा प्रसादं किं नेतुं निशि हदय शकरितम्‌ परतन ल्यन्तः स्वयभृदितचिन्तामणिगुणे ` विमुक्तः संकल्पः किमभिरूबितं पुष्यवि ते ३४

+र, 866 2408४ 8६, 8.

दक्पा. (५) गयम गलित. ए. ध, °भगो; ९खदो. 7. (2) श्रान्ताः स्मः सुषबान्ताः 8. °; °णिम्‌ ; ए. ¶. भीम्‌. 2. (2) सु ०; ०, 0, °तनुमः °छपतेः, 8. यनृमः पर

सा. (४) म्डपिनिः; स्खायति. 4. शापिनि, ए, 280. (०18. 2०.४.) मा- यिनि. ए. °सुनि; गयि. 4. °यै; ग्यैम्‌ ^. ए. 2. ४. 8. ०.०. नवै. ए. 80. प. (%) दरी; चथे, प. नि ०; °. ०.०.

सदए, (%) गवसमाराध्य; °नि क्षमायम्य. (१) 8. ; ° थ. ^. 7 ए. 59. 6.२. 2, प. ०्षाह. ४. @) ण्दम्‌ } °दे 4, विद्या०; वहं० 2. °य °ये, ©. गफद्व 39 ©. °यम्‌. 8. कडितम्‌ ; कङ्कम्‌, &. 5. 2. 80.71. विफलम्‌. ग, ०सफलम्‌. ह. त्रिकम्‌, ©. (£) °य्यन्तः; °य्येव, 4. ०.४. गुणे; मणौ. 4. गणो, प, ०.१. (2) न्मु० ववै 6. व्र, ए. 8०. ©. प. ३. 8०.५४. शक्तः; ण्क्त, ए, कः, 89,४. श्यः ग्य, ए, यम्‌. 6.१०; तु° 4. कै; स, 4.

४५ 1 अथ भोगपद्धतिः |

मोगे रोगमयं कुले च्युतिभयं वित्ते नृपालाद्भयं :

मौने दैन्यभपं बले रिपुभयं रूपे जराया मयम्‌ शाल्चे वादभयं गृणे खरूमयं काये कतान्वाद्रयं

सव॑ वस्तु भयान्वितं मृवि नृणां वैराग्यमेवाभयम्‌ ३५॥ अमीषां प्राणानां तुहितवित्तिनीपन्न पयता

कते किं नस्मामिर्विगङितविवेकैन्यवसितम्‌ यदाढ्यानामग्रे इविणमदनिःसंज्ञमनतसां

रुतं वीतत्रीडैर्निजगुणकथापातकमपि २६ भ्रातः कष्टमहो महान्त नृपतिः सामन्तचक्रं

त्पार्वे तस्य सापि राजपरिषत्ताश्वन्द्रविम्बाननाः उद्रिक्तः राजपुत्रनिवहस्ते बन्दिनस्ताः कथाः

सर्वं यस्य वशादगाससमृतिपथं कालाय वसै नमः ३७

कए, (2) मी०; मा०, ए. 50. ©. जराया; तरुण्या, ग, ए, 2०. ७. 2) °्द; °दि. ए. 5०. 6. न.

अद्रा. (0) ग्दादचा०; ग्दन्धा०. #, गन्ना ©. रदाधा. 80.1. ०स- ज्ञ; °शङ्क. 0. (थ) शेत; म्डान. 7. 59. 6. क, मन, &. पति ०} शस्यत ०, 8. °द्यान 2०.०. ,

ङा. (०) खातःकषटमदे; सा रम्या नगरी. ह. 7, 29. (गाह. 80.1.} ©. फ. (®) चस्य; यस्य. 5०.४. चं सापि राजप॑रिषत्‌ ; सा विदग्धवीनिते, 4. वशा बिदग्भ- परिषत्‌ 8. सा विदम्नपरिषत्‌, ए, 7, 89. प. (५) शद्रिक्तः; उत्सिक्तः 4. सद्रत्तः. 8. उन्मत्तः ए. 7, 59. उद्रः ए. ०.४. उद्धिः #, (द्वि ०१) ०व ०} °ता ०. ८०.०. (ध) °दगान्स्मृतिपदम्‌; °दगन्समृनियथम्‌, ए. ¶, ए, ७. गच्छतः पद - मयात्‌. ¢. ` |

| { ४६ ]

पनः कालमुद्िश्याह्‌

वृयं येभ्यो जावाश्रिरपरिगवा एव खक्‌ ते

सम पैः संवृद्धः स्मृतिविषयतां वेपि गमिवाः इदानीमेते स्मः प्रतिदिवस्मासनपतना-

द्रतास्तुल्पावस्यां पिकतिख्नदीतीरतरुभिः २८ यत्रानेकः कचिदपि गृहे वत्र तिष्ठत्यथेको

यत्राप्येकस्तदनु बहवस्तत्र चान्ते चैकः इत्यं चेमौ रजनिदिवसौ दोखूयन्द्राविवाकतो

कालः कास्या सह बहुकङः क्रीडति प्रागिसरः ९.९ तपस्यन्तः सन्वः किमधिनिवसामः सुरनदीं

गुणोदारान्दारानुत परिचरामः सविनयम्‌ पिबामः शाद्चौघानुत विविधकान्यामृतरसा-

विद्मः किं कुमः कंविपयनिमेषायुषि जने ४*

उषा. (५) परिगता; <मपि गता, 6. ` °मपमरता, 2. 8. मरणगा. ए. परिचिता. प्र. (2) समं चैः सम्‌ ०; समा येषाम्‌, ए. 2०. (०४. 2०.०.) समे ये ते. 6, स्मतिविषयताम्‌ ; स्मरणेषदवीम्‌, 8. (०) स्मः; स्म. ©. ©. 8. प्र, 8०. स्मत्‌, ए. 4. °मसि ०; ०माप०. ¶, ए, 5०. ©. (व) (डरः गर. 4. 7. ए. २. ४. ७. (2) रस्थाम्‌ ०; स्था. (१) 7. 29, प, सिकतिक; ९मिष कि, 4. सिकतिनि, 89. (जप. 0.2.) सिक्रतसम. 9,

उका, (2) र्कः काः, 4. 2. ए, (9) चान्नेन चैकः; नैकोपि चान्तः 4. नैकोपि चन्त. ए. ए. 80. 7. कोपि चान्ते ©. {०} चेमोऽनेवे. प्र. दो०; जो °. प, गन्द्राविकासतौ; °न्तराविवाक्षी. 4. ०न वरिवाश्चीः०. (१). ©. °न्वापि वाक्षौ. 0. (व) कान्या; कतमैः, ^. कन्थो. प. सह हकः; भुवनफठके, 7. ए. 139. (८०,. इम्‌ {णड }. ©. प. सद बहुबछः. 4. ०्णि; न्य. €. सा; शार. कष. `

1. (2) ग्णोडारान्‌ $ ०गोदर्मान्‌ 0. सविनयम्‌ ; सुव्रिनयम्‌ 8. सव्रिषयान्‌. ग, एर, 6. सविनयान्‌, 20, (0, ८०.०४, ) (% शली ०; सयौ ०, 50.४. ०नुन ०, न्दत. 0. #.

॥॥

44

गङ्गातीरे हिमगिरिरिखानबदददपवास्नस्य वरह्मध्यानाभ्यसतनविधिना योगनिश्चं यतस्य 1 किं त्यं मम सुदिवसैर्यत्र ते निर्विशङ्कः संप्राप्स्यन्ते जरटदहरिणाः शुङ्गकण्डूविनोदम्‌ ४९ सुरवसफारज्योल््नाधवकिवतके कापि पुलिन सुखासीनाः शान्तध्वनिषु रजनीषु दुप्तारेतः। भवामोमोद्धिमराः शिव शिव रिवेस्पातैवचता कदा स्यामानन्दोद्रतबहुलवाष्पाष्ुतटृशः ४२ महादेवो देषः सरिदपि सैवामरक्रि- दुहा एवागारं वस्नमपि ता एब हरितः सुहद्रा काढोयं व्रतमिदमदैन्यत्रतेमिदं कियद्वा वक्ष्यामो वटविटप एवास्तु दयिता 8२ हिरः शार स्वगत्पदुपविद्षिरस्तः क्ित्निधरं मदीध्रादुत ङादवनिमवनेश्चापि जलधिम्‌} .

भम

उ. (4) °नस्य; °नस्थम्‌. 4. (९) ध्या०. ज्ञा ०, ^. 8. (2) ग्य; न्यु. पू, गङ्ाः; ण्ङ्कम., 4, °ङ्कः, क. (2) कण्डूयन्ते खड दरिणाः शृङ्गमङ्क मदीये. 8. (दी 18 ९५९9 प). कण्डूयन्ते जरठहरिणाः शृ ङ्गमङ्गे मदीये, ¶८ ८. 2. कण्डू- यन्ते जर्डरिणाः खङ्खमङ्क मदीये. प. श्द्य०; न्य०, 4. आ. व्दम; ग्दाः, ध.

ग्ना. (2) सुव्रा०} समा०. ए. गनाः; गनः. क, (०) गवयार्तवचसा; ०वयस्तव- चसा. 4. ग्टयु्वचसा. ए. ©. °सयुद्रि चसः. 28०. ग्ययातेवचसः. 8. 20.11. " ०्यात्तवरचसः. ?. शव्यु्वचनः. प. (थ) स्यामानन्दोद्कतबहु; यस्यामान्तरमनेवहक्. गु यास्पामोन्तर्गतवहल. ए. 30. (०गंड- ०.2.) ©. ए. स्यामामोदो तवहज. 4. ` + ०ग्यद्ुतदररः; <ष्यकरलदृ्यः. 4. प, °ष्याकुरदू- शाम्‌. प. ९श्बहृतदृद्याम्‌, 23.

सवना. (५) सैवामर; दैवासुर. ©. सेव्यामर. 8. (5) ९०; चे०. छ. ०; सं° 4, (८) °मिदम्‌०; मित्ते. 8. (2) °फ़; ०. 8. -

[ ४८ ]

अधो गङ्गा सेयं पदमृपगता स्तोकमथवा

विवेकम्र्टानां मवति विनिपातः शतमुखः ४४॥ आशा नाम नदी मनोरथजला वुष्णातर ङ्गकुख

रागग्राहवती विवेकँविहगा पैयेदूमध्वंसिनी मोहयवैसूदुस्व रातिग्हना प्रोुङ्गचिन्वावदी

तस्याः पारगता विशुद्धमनसो नन्दन्वि योगीश्वराः ॥४५॥ आ्तंसारं त्रिमृवनमिदं चिन्वतां वात तादट-

्रैवास्माकं नयनपदवीं श्रो्रवत्मौगतो वा यो यं धत्ते विषयकरिणीगादगृढामिमान-

सीवस्यान्तःकरणकरिणः संयमारानललिम्‌ ४६

साम्प्रतं निरवेदतायाः स्वरूपमाह ये बध॑न्ते धनपवियुरःप्रायैनादुःखभाजो ये चल्पत्वं दधति विषयक्षिपप्॑स्तबुदधः तेषामन्तःस्फुरिवहसितं कसराणां स्मरेयं ध्यानच्छेदे रिखरिकुदरप्रावशय्यानिषण्णः ४७

उण. 866 करध४8 8६. 10. पए. (2) पेये; भर्म. ए. ७. ¶\, (©) ्रो०; उ०, ग, तदी; सश. ए. (9) ९सो;°सा, 2. ०साम्‌. 80.४. नन्ति; शन्तु. श. शगीश्ररा०; नगेश्वर ०.४. सा.षा. (५) ०रम्‌ ; °रात्‌. प. चिन्वतां ताते तादृक्‌ ¦ विधुतान्तास्ततो दिक्‌, ^. तात; चाम. 5. कच ©. (2) कत्मी ०; मार्गम्‌, ¶, ए, 89. (मरने 8०.४.) &. म. (०) °णी; °णीम्‌. 8. गू ०; ₹<०. 4. 7. 2, 8. ° नक्षोब ०; °नं जीव ०. 8, ९नः क्षीव. ¶, ए. 9. ४४. 0. नं कव ०.४, (2) नम्‌ } क्षन्तः शान्तः करणकरिणीसंयमा- लनजीमाम्‌ ¢. °स्थन्तः; सान्त ° ०.४. °गः; °णम्‌. ०.४. °जान; °नाढ. ए, ` छम्‌; नम्‌. 2०.79. “का. ग, 9 ` उषा. (ष) व्द्धः०; नवर. 4. 2. ए. प्र. ०.9. मानो; शेषीः ४. २. 8. 2) श्य °न्य ०.1४. ग्यस्त; रयौ. प. (2 न्तं का ०} ततेव ०. ए. नणाम्‌ णनि. प. (2) शवै°; पदैः. 8. (खण०; ०१०. क.

[ ४९ |

बिदा नाधिगता कलङ्करहिता वित्तं नोपार्थित ` इश्रूषापि समाहितेन मभस पितरो संपादिता आलोलायतरोचना युवतयः स्वमपि नालिङ्गिताः कालोयं परपिण्डलोरुपवया काकैरिव प्ररिवः ४८ ` वितीर्णे स्वैखे तरूणकरुणापूर्हुदयाः स्मरन्तः संसारे विगुणपरेणामा विधिगतीः वये पुण्यारण्ये परिणतंशर्चन्द्रकिरणै- चियामां नेष्यामो इर्चरणचिक्तैकशरणाः ४९ ` ` वयमिह परितुष्टा वल्करैस्लं च॑ ल्पा. | सम इह परितोपो निर्विशेषो विरेषः 1 सतु मवतु दरिद्रो यस्य तुष्णा विशाला मनसि परितुष्ट -कोर्थवान्को दरिद्रः ५०

1.9. (८) °ना यवेतयः; नाः प्रियतमाः. चि. (@) ०व प्रेरितः; ०व परते पि. °वे प्रेषितः 2, ४. 8. ¶. ए, गवोत्तीयते, ¶. (2५ भव्छ्वाण्) वा प्रोषितः 89. (नध, ०.१.) 6, (षकला6 0 तः).

सद. (०) °ती णस्ती ° 0.14. 2. ©, @)°स्म ०; ण्स ०.१, ए, 29. (०. ०.४.) °त ०. ©. ^र; °रम्‌. &. ¶. 89. (°र ०.४.) गुण ०; रस ° ए. ध. 2०. (नइ. ०.०.) ७. °मा वरि? °मां वि ०, 1.० मव ०. 0.70. 1 ©. 4. 8. ए. 89. णवी; °्ताः&. ए. ध. °तम्‌. 7. ए. 80. °्तिम्‌. 6७. प्र. (०) वयम्‌ { कद्रा. व. ए. 80. ©. °ण्या० °्ये०. ए. ‰, ०णत ०; ०गत०, पुर र. 2०9. (०, 5०..) ©. ०गति०. 0... ग्नैस्ति०; ण्ण त्नि० ए. ण्णे त्रि ०. ₹. ए, ०.०. °गस्वि०. ग. ए. 8०. 6, ए. भैः त्रि०, ह. (द) ०माम्‌ ; ०्मा 80. (न्म. ए0.71.) >. ए.

1५. (च) कम्य; दुकरेः. 7. ए. 50. (०. 507 ) ८... ®) ८; ०्मेर. 4. ण्षोवि० श्राव ०1८. शश्व ०, ए6.9. (०. 70.) (2) शवनु; गवति, © 4. 7. 2, 6.1 द्द्रो; दद्र, 4. 7, ©. (द) ण्द्र. दद्व. 4, 7.

[५० 1.

यदेतत्साच्छन्दयं विहरणमकापेण्यमङानं

सदर्थः संवासः श्रुतमृपरामैकत्रतफलम्‌ मनो. मन्दस्पन्दं बहिरपि चिरस्यापि विम.

न्न जाने कस्यैषा परिणतिरुदारस्य तपसः ५९ पाणिः पात्रं पवित्रे भ्रमणपरिगतं भेक्ष्यमक्षय्यमनं

विस्तीर्णं वखरम{शासुद शकममलं तल्पमस्वल्पमूर्वी येषां निःसङ्गता ङ्गीकरणपरिणतिः स्वासस्ंतोषिणस्ते

धन्याः संन्पस्तदन्यभ्यतिकरनिकराः कम निभूलयन्ति ५२ दुराध्यः स्वामी तुरगचखचित्ताः क्षितिमुजो

वयं तु स्थुटेच्छा महति पदे वद्धमनततः। जया दहं मत्यहरवि सकें जीवितमिद

सखे नान्यच्छरंया जगति विदषोन्यत्र तप्तः ५३. भोगा मेघवितानमभ्यविरसत्सौदामिनीचञ्ुला

आयुवायुविघट्टिताभ्रषटलीलीनमस्बवद्‌ ङ्गरम्‌

11. (०) गखाच्छन्यम्‌ ; °व्लच्छन्दम्‌. 4. ए. प्त. (४) रवैः; श्वैः 8.0५. (०8 50.) (९) °न्दस नदं ° ¢, शन्दस्य (१) ०.०. चिरस्यापि विमुखान्‌ ; विमृहयन्नविरतम्‌. ^. .

कला. (५) °भ्य० नक्ष €. (2) रमाखश््रद्राकममलम्‌ ; °मश्िदकमपि विम- छम्‌. ^. ° माद्यादश्चकमपमलम्‌. 8. ४. 2. ३. ° म्चादशकमचपलम्‌. प्र. °मख- ०} °मल्यसख ° 5. (० शब्गौ ०; शन्तः 4. ` रविः खत्म ०; ०तस्वान्त०, पष. ०तिखान्त °. 7.

ता. (भोग्धयः खारः र्प्याशार ए. पितुर; द° (१) ^. °मुजौ भुनी (४) तु; च, ए. 89 (ग. 5०.9.) ©. क. महति च; सुमहति ^. ए. क. ए. ४९ ©. ए. प. ०} दत्त ०, 8.2. (९) ° हम्‌ ; ° हे ए. सककम्‌ ; यदिदम्‌ ^. दयितम्‌ गर, ए. 8०. (ण्ट. 5°.1.) 2.5. प. (त) रपोन्य ०; °प्राम ए, 59 (13 ०.४.) © °षो 4

ए. (@) ०६०म्ब ° प. च्डीना र; "हिज ° ए, 8०. 80.. (ण्ट की ०८९१६) ०छभ्व्य०

लो यौवनल्ालना तजुमृतामिव्याकलय्य दत

योगे पेयंसमाधितिदिसुलभे बुद्धिं विधदं बुधाः ५४ पुण्ये ग्रामे वने वा महति.सिवपटच्छलपारीं कपली- `

मादाय न्यायगमद्भिजहुतडतमुग्धूमभूभ्रौपकण्ठम्‌ द्वारं द्वारं प्रवृत्तो वरमुदरदरीपूरणाय क्षुधार्तो

मानी प्राणी धन्यो पुनरनुदिनं वुल्यकुस्पेषु दीनः ॥५५५॥ वाण्डाङः किमयं द्विजातिरथवा शुद्रोथ किं तापत्तः

निवा तसनिवैशपेशलमति्गीश्वरः कोपि किम्‌ इवयुप्पनविकेल्पजल्पमुखरैः संमाष्यमाणा जनैः

नै कदधाः पयि नैक वुष्टमनसो यान्ति स्वयं योगिनः ५६

~~~

(2) ०ना ०; सस्त ° 4. ए, ०. प. ° सा ध. °साहण० 0.9. ९स- मभूतामि °; जकरयचचे ° . ९य्य द्रुतम्‌ °; व्याहतम्‌ ०.४, (2) योगे षै ०}. येगिध्य- य० 4. 9.9 (गी एिप्गि) गमे; °भाम्‌ ; 4. शद्ध प्रिर पद्व दद फ, ०द्धिर्विद १", णद्धि विद 9] 6२००६ प, 2. त,

प्र. (च) श्ये; ०्य०, 4. ए. 89. प, (गण. ०.४.) म०} 4. सि;० श० 4. शि० ए. ०स्छन्ने ०; °च्छेद ०. एए. °खिन्न 4. ९च्छत्र ०. ©. ण्ठींक) न्खीक 4, 8०. ©. कतिक प. (@) °नेमा ०३० द्या प्र. मादय न्यायगर्भ मासिादानां त्‌ वस्म ^. न्णय० जतन ०. ह. 2. ०मैर; °्मम्‌ ए. ७. 1४, इन; सुख. 0. कप्णत्‌ 7 0. ०० ००. ©. ०म० ° °ण्दम्‌; बडे प्र. (०) गवतो; णवि. 4. ए, 89. (णप. 5०.1.) &. द. ०; 4, क्षरते; प्रत्त, 4. (2) प्राणी; माने 4. अन्यो; नयो 4. 4, ए, फ, 6. नपर चषु० ७. म्न सु०; °तेतु०. ध्र. °्कु०;°क० 4.

एए. (०) चा०;च०¶. 2. ए. 2०. म्‌ का 4. (2) °निकेदा०; ०विवेक ०. 8. करिम्‌ ¦ वा. ए. ¶, (2) °; सम्‌०;ग्टेरा० 4. प. र्येर; श्य 8. व. 2. ए. ०्णा; न्णो, 4. ग्ना. 2. ए. 2. 2. रेन ०;०नीनो° 4.०. नो 0.9. (९) यन्ति स्वयम्‌ ; °यस्यन्ति ते, ध.

44486

„7

सले धन्याः केचेचयुटितमवरवन्धव्यतिकण वनान्ते चित्तान्तर्विषमविषयाश्षीविषगताः शरव्च नरज्यो्नाधवलगमनामोगसभगां नयन्ते ये रिं सुरुतवचयवित्तिकशरणाः ५७ एतस्माद्धिसमेन्द्रिया्ेगहनादायाक्तकादाश्रया- च्छेयोमार्गमदेषदुःखशमनन्यापारदलं क्षणात्‌ शान्तं मावमुपैषहि संत्यज निजां कोललोलां गर्ति मा मयो मज भङ्गसं मवरति चेतः प्रसीदाधुना ५८

पुण्य मलफलेः प्रिये प्रणयिनि. वृत्ति कुरू्वाधुना मृरय्या नववल्ककेरकरुणैरुततष्ठ यामो बनम्‌

सुद्राणामविवेकमूढमनतां यत्रेश्चणां सदा चित्तन्पाध्यवरिवेकविद्रूगिसां नामापि श्रूयते ५९

1.ए्ाा. (८) सखे; भहो. 7. (¢) चिनताम्तविं ०; चिन्वन्तो त°. ए. ° क्षीविषरगताः; श्ीषिगलिताः १०८९ †7 ऋ, दिगपाल. °ताः; रतिम्‌, ए. (०) यम्‌ ; °मा, ` (2) श्न्ते °न्तैण० ए. 7.9. (५) °सकादाश्रयात्‌ ; °स्तिकादाश्रय ए. 7. °द्धकादाश्रय. 1. 89. &. २. 0मकरदारश्रयः 7. (8) °णात्‌ ; ^णम्‌_ 8०.४. (४) शान्तम्‌ ; सतम ° ^, ८०.०४. भस्मी °. एए. 20. समी &..गं०;म० द. ^. (ध) भे; र९सृाम्‌ 8 भव; नवे धु नड. ण्ण; ग्ने 4. ए, 2०. प्रिये; पिः 4. 2. एण, ए. र, ए. प्िय० ७. तथा. फ. ग्रिवः शृ, प्रगविनि; सनिः; द. गनि; ग्नीम्‌. प्‌, 8, 2. 80. 4. 8. ©. वृत्तिम्‌ ; प्रीतिम्‌. ©. प. (४) ध्यया नव; °्य्यां नव ¶, इ. 89. ©. श्या तृण०. ४. प. प्य्यातृणम 7. 7. 5०४. गवत्ककै०; कै ए, 8०. ©, (ग्ट, 5०.४.) °रकस्चै ०; ०र कृले ° ^, 5०. ए. (ला 07-प) ०रकरणै ०. ८. ४. °रकरस्चै. ¶, रर्ितनुताम्‌ ६. यामो वनम्‌; (?) मीरि- तः #. यामो वने (4. (९) य° ०. (गह. ०.४.) (4) चिनमग्यध्यविवैक ०; वित्तयाधितिवैक ^. ©. 1. वित्म्याधिविकार०, ए. एष. वित्तव्याध्यकिवेक० गुर. वित्तव्याधितिकार.° ए. ८०. 2. ह, वन्ध; °व्याङृऊ° 7, ©. °गिराम्‌ ; स्धियम्‌ . 4. गिरो. 2०. +

{ 1

मोदं माजेयतामुपजेय रतिं चन्द्रा्चूडामण. चेतः स्वगत रङ्किणीवटमृवामासङ्गमङ्गीकुर्‌ को वा वीचिषु वुहुदेषु चच तचिद्ेखातु सरीषु ज्वालगप्रेषु पनमेषु सरिद्वेगेषु प्रतययः ६० भम्र गीतं सरसकवयः पाश्वैतो दक्षिणायाः ` पृष्टे लीखावरूयरणितं चामरग्राहिणीनाम्‌ ययस्पेवं कुर भवरप्तास्वादने लम्पटसं नोचेजेवः प्रवि सदसा निर्विकल्ये समाधौ ६९.॥ विरमते बुधा योषित्सङ्गास्सुखान्षयमङ्गस-

कुरुत करणामेचरप्रज्ञावधूजनस्‌ ङ्गम्‌ खङ््‌ नरके हाराक्रान्तं घनस्तनमण्डलं दारणमथवा श्रौणीविम्बं रणन्मणिमेखलम्‌ ६२ णा्ातान्निव्तिः परधनहरणे संयमः सत्यवाक्यं काले दकता प्रदानं यवतिजनकथामृकमावः परेषाम्‌ वृष्णास्ोतोनिभङ्गो गुरुषु विनः सर्वभूतानुकम्पा सामान्यः सवद्राक्तेष्वन॒पहतविपिः श्रेयस्फ्रेष पन्थाः ६२३

7. (9) गाजे ०; ग्श्र° द, ए, 80. (गड. 20.9.) शश्र ° 0. (2) रकामा०) श्वि व्या ह, 89. (जप. ०.४.) (०) को; नो. 0. शेखा०; गनी ए. सी°ःश्रो० ^... प. (2) व्वा; जा० ए. सरिदवेगे०; सह दरगे ०(1) ७. प. सरिद ° ष. ए. 8०. सरिदुरी ° 20. ४.

1.21. (५) °रस ०} ररक ° 4. ऽतौ दा ०; यदी ° ग्‌, इद. 8०. (0. 6.2.) ©. पि. 2) (ष्ठे की °; पाहो ०. ए. 2०. (ग. ०.2.) फ. (कयरणितं चा ° गवह्छपरिणतिश्य ° 0. (£) °स्पे ०; °स्वे द. ^. 20., °सा०; स० 4. भने + ॐ.

पा. (@) ज्जात्‌; ° ङगः० 0.2. (2) करूणा .०५५९त ३४ 4. (2) खल; कुर, ^. हा} मा° ०.१. का०; ज्ञा 4. 20.71. °्नस्त ०; °नं ०. त.

शा. ९० कदीतराकः$. 3४. 26 कलार स्वत्‌ (2) गक्य; क्यम्‌ 4. ८८) विनयः; नियमः 8.

[ ५४].

मातरक्षिि भजस्व कञ्िदपरं मकद्खिणी मास्ममू-

भेगिभ्यः स्पृयार्वो हि वयं का निस्ृहाणामत्ि सद्यःस्यूवपराशपत्रपुटिकापाते पवि्रीरुते

भिक्षाकतकुभिरेव सम्प्रति वयं वृत्ति समीहामहे ६४ ययं वयं वयं यूथमित्यास्ीन्मतिरावयोः।

विः जातमधुना येन-य॒यं ययं वथं वयम्‌ ६५ बाङे ऊीलामुकुकितममी मन्थरा इष्टिपाताः

फं किष्यन्ते विरम विरम व्यथं एष श्रमस्ते सम्प्रतयन्ये वयमुपरतं बाल्यमास्था वनान्ते

क्षीणो मोदस्तृणमिवं जगज्जारमालोकयामः ६६

इयं बाङा मां प्र्यनवरतमिन्दीवरदल-

प्रमाचोरं चक्षुः ल्िपातै किमभिप्रेवमनया गतो मोहोस्माकं स्मस्कुसुमवाणग्यतिकर-

ज्वरजाला शान्ता तदपि वराकी विरमति ६७॥ रम्यं हम्येतलं नं कि वस्ते श्राव्यं गेयादिकं ` किं षा प्राणतमासमागमसखं नैवाधिकं प्रीतये

पए. (०) कण; कि०. 4. (2) शम्यः; व्वु. 4. प, व्वोनहि वयं का; ०. स्नव वो करिम्‌. ^. प. ०.१. 2. ए. (7 रणोपन एप्प का 0प्किम्‌ ) (०) स्रः; यद्र. ^. स्य्‌०; १०८. °श्रू° क. ¶\, ण्टिका;० टके ०, ग्‌ ए०.प. व्व; श्वैः ^. न्ते; नतेः प. सक्त०; वस्तु० प. ` रए, (2) जा०; या 2०.. येन यूयम्‌ ; मित्र येन. ¢.

र्‌. (®) तरिरमन्य ०; यतोभ्य० ¢.

दण. ४} °के०; श्चौ०. व. व्या; नसा. ध.

र्णा. (५) त्र त्र. 2. 8, प. ८०४. (2) मास, ०मं स०, 4. ०्कम्‌ ; ०कण. ए. ए.

{ ५५ ] |

किं तृद्घन्तपततपवङ्गपवनन्पारोलदीपाङ्र- च्छायाचञ्चुलमाकरष्य सकं सन्ता वनान्तं गताः ॥६८ किं कन्दाः कन्दरेभ्यः प्रखयमुषगता निङ्ञेरा वा गिरिभ्यः ` प्रभ्वस्वा वा तरुभ्यः सरसषफलमुतो कस्करिन्यश्च शाखाः 1 वीक्ष्यन्ते यन्मुखानि प्रतममपगतप्रश्रपाणी खानां दुःखोपात्ताल्पवित्तस्मयवशपवनानर्वितभरृरुतानि ६९ गङ्खतरङ्गकणद्ीकर शीतलानि विद्याधराध्युषित चारुशिखातलानि स्थानानि किं दिम्ववः प्रख्यं मतानि यत्तावमानपरपिण्डरता मनुष्याः ७०॥ यदा मेरुः श्रीमाजिंपतति युगान्ताभ्निनि्हतः समुद्राः शुष्यन्ति प्रचुरनिकरम्राहनिरयाः धसा गच्छत्यन्तं धरणिधरपदिरपि धृता शेरे का वात्तां करिकलमकणोग्रचपडे ७९ (०) त॒द्ध; ` सु ०. 1. ए. प. 68. 89. तृ, ऋ. तन्ना ०. 4. रतदय- तज्ज °; ०्तङ्गयक ०. एए, 0. प. (द) सकछम्‌ { संततम्‌ 8०. (गह. 2०..) द्र. °तताः; न्तम्‌. ध. | 1.1. (५) निरा वा गिरिभ्यः; पादपाः कि विद्री्णाः, 4. (8) किं वा शोषं गतास्ते गिरिकुहरगता निवरा वारिपूणीः. ^. °स्ता वा तरुभ्यः; स्वाः किं महीजाः. ए, 80.(०४ ०.१.) °किन्य ०६ न्लेभ्य ०. 0. जिग्य. ध. (०) यन्मु किं मु०. ह. 2०.(ग्ह (०.४. °म°; °मु ०, ॐ. 1. ©. ४. ए. (4) ^ खोपात्तन्य ९; °खात्तखनय ९. पष वद्छपवनान °; पत्रनवशान ° ग. ए. 80. (मष्ट. 2०.०.) 9. (ज्णोनछ पिः ज) विषपवनान °. ऋ. 10 4. कणाः रट्धताणड 18 तद्ैरम्ययुक्तं सृचरितनिखिनो ज्ञानखङ्गः प्रनष्टो | येनं दवारे नू्पणां यनमदमछिनां सगतिं यन्ति धीराः || ` 1 क. (2) यत्सा ०; येना ०. ^. यत्स्या ०. क. रका; गता. 4. दा, (५) यदा; सदा. कव. यतो. फ. निहतः} दलितो 4. वलितः 1६. (2) नि- कर; मकर. 2. ए. प. सलिक. 4. (९) 1४० ्रणम्ते कयत्‌ 8न्छ०त्‌ 1१68 प्रधम ०४९६०६० 12668 २४ 4. (द) कड ०; कर ° 4, कणां ०; कारा० ¢. `

{ ५६ 1

एकाकी निस्पृहः शन्तः पाणिपात्रो दिगम्बरः कदा डम्भो भविष्यामि कम॑निमृखनक्षमः ७२ प्राप्ताः त्रिपः सकङकामदुघास्ततः किं दत्तं पदं श्िरत्ति विद्विषां ततः किम्‌ सन्मानिताः प्रणपिनो विमपरैस्ततः किं कल्पं स्थितं वनमतां तनमिस्ततः किम्‌ ७३ जीणा कन्था तेवः किं स्ितममरपट पट्रसूत्रं वतः किः मेका भाय तवः कि हयकररेप॒गणेणवतो वा ततः किम्‌ ` भृक्तं मुक्तं ववः किं कदशनमयवा वासरान्ते ततः किं व्यक्तज्योतिने वान्तमथितमवभयं वैभवं वा ततः. क्रम्‌ ७४ भाक्तैमेवे मरणजन्मभयं हृदिस्यं सेहो बन्धुषु मन्मयजा विकारः संसगेदोषरहिवा विजन वनान्ता वैरम्यमस्ति किमतः परमर्थनीयम्‌ ७५.

1.72. ©) दत्तम्‌ ; न्यसम्‌, ¶, ए. 1. ह, ए. 8०. (णस. ८०.०४) ७. 4. (०) सन्मानिताः; संन्मानिनाम्‌ 4. संप्रदिताः ¶. ए. 80. &. प. संमानितः ६.7. ०.४. ०; ०्नाम्‌. 4. १्वे०; ग्वा ¶, ए, 89. (छ. 5०.) &. (९) °य

म्‌; (लर. 4. (2०, प्र, ९तम्‌ ; ®ताम्‌. ^, शताः 1, ८0. (गप. 5०.४.) ©. एर, प, ताति ०} ®तस्तं ° ¶\, 1०. (०. 0.9.) 6. °नुमिः; नवः

(ण्ह. ७०४.) 6, ए. प, 1० 2. & 2, ४6 ष्पी) 1106 18 866००, 86९०0 कप्त & पणते पकी |

11४. (©) जी ०; न्नी? ०.1 श्वटम्‌ ; ०वरम्‌, ४०. सुत्रम्‌ $ ०वस्रम्‌ 0.9. (१) 0 इयकररि &५. कंहुगृणगुणिता कोटिरेका ततः करिम्‌, ए०.४. (८) भक्तिं भुक्त ततः किं बदद्वनमथव्म वासरी तै तकः किम्‌. प0;8 11७ 35 एषण 9 ०.०. (र) एकः. श्रान्त (भवान्त ००८) स्ततः क्रि करिनुर ञ्वरैरवितो वा ततः क्रिम्‌ 80..

1.3४. (8) ण्ये; ९हे, पत. बन्धु०; वसु० ^. नम०;चम० ^. 8०. &. (१) मतः; °मितः य, ०मर्थ॑०; ०मयै° फ. 6. \, ©. किमतः परमर्थनीयम्‌; इदि चेखरमर्थयन्ति 4.

{ ५७

तस्मादननम्तमजर परमं विकासि

तद्भह्म चिन्तय क्िमेमिरसद्रिकस्यैः। यस्यानुषङ्गिण इमे मुवनाधिपत्य-

मोगादयः रुपणलोकमता मवन्ति ७६ पावालमाविद्सि याति नमो विलङ्खु्च

दिङ्गण्डलं भरमत्ति मानस्तचापङेन शरान्त्यापि जातु विमङं कथमात्मनीनं

तद्भह्म स्मरति नि्विमेषि येन ७७ रजिः तैव पुनः एव दिवस्नो मत्वावुधा जन्तवो

धावन्द्युद्यमिनस्तथेव निमृवप्रारञ्धवत्तक्रियः . व्यापरिः पुनरुक्तमृक्तविषयेरेवंविधेनामुना

संसारेण कदर्थिताः कथमहो मोहन रज्जामहे ७८ मदी रम्या इाण्या विपुखमुपधानं मृजखता

विवानं खाकाह व्यजनमनुकूलोयमनिलः } `

12 पा, (५) ०मम्‌ ; °मा 7. 6. ९कासि, णकेकम्‌, 0, °काशि ^. ?,. ०.८0. काञ्ची, 1. (2) तह्य वाञ्छत जना यदि चेतनस्थाः ४, (५) भु ०६ भर. शू ए. %0. 2. 8. पष. मता; रता; ध. तमा &

1.2 र्णा, (०) सङक्घंच; ०म्न्य 2०.2. (८) रनीनम्‌ ; कीनम्‌ 4. पू, 2०. & नीतम्‌ 0. 1. (2) व्द्रह्मन स्म०; ब्रह्म संस्म० ^ ह, 80. (ग. ८०.४. ) ©. सब्रह्म सैस्मण० ४. ये०; के० ¶. ए. 2०, (०६. ०.०.) ©.

णा. (०) बर; मु०. 4. ए, 25०. 6. ए. (8) ग्न०; न्त०. ©. ग्तप्रा०; भवाः प्रा०, व्‌. आ. 59. °तं ्रा० ए. ०.४. °तः प्रा ०. ©. ©. म्त्‌- न्क ०; ०तुस्ततक्गि ०. ¶.. (५) भक्त; मुक्त 80. (०४४. 5०-2,) भूत. ©. पष. ०्रेवम्‌ ; शरित्यम्‌, ए. ¶\ ०.6. प, ग्य. ०.४. °मु ०; ण्बु०. 4. (व) र्ता; कथ ०; ण्तावयण०. ह. , 6. अ, 280, (०. ८०.२४.) °दान्न; रहं न, 9 {० ६. ८०...) ©. ठज्जा ०; जानी ०. ए. 7. |

द, (0) व्ही; व्या. प, रम्य; मही, 4. रय्या. ¶. ए, 2०.69. - प, &. शक्ता 2, रय्या एश, प. शक्ता. 2. शप °; °तव ०. 4.

[ ५८

सछरदीपश्चन्द्ो विरतिवनिवान्ङ्गमुदितः सुखं शान्वः देते मुनिरतनुमूविनैपर श्व ७९ ैलोक्याधिपतिलमेव विरसं यस्मिन्महाशासने तल्कव्ध्वास्नवद्नमानघठने भोगे रतिं मा ङुयाः। भोगः कोपि एकः एव प्रमो नित्योदितो जृम्भते यत्स्वादाद्विरसा भवन्ि विषयाच्वेलोक्यराज्यादयः ८०॥ किं वेदैः स्मृतिभिः पुराणपठनैः शाचैमहाविस्तरैः स्वगग्रामकुटीनिवासफलदैः कमं क्रियाविभरमैः मु्णोक मववन्धदुःखरचनाविध्वं कालानलं स्वात्मानन्द पदप्रवेशकरूनं रेषा वणिग्वृत्तयः ८९ आयुः कलोखलोरं कतिपयदिवसस्थायिनी यौवनश्री- रथाः संकल्पकल्पा घनसमयतडिद्धिभ्रमा मोगपृराः

©) "्कुरदीप शन्दरो; शरचन्द्रो दीपो. पष, (2) °्खम्‌ ; °सरी.. पति, °न्तः °स्तेम्‌ २.

1.2, (4) शासने! शोभनम्‌, 4. (8) °स °; श्द्ा०. 2. ^. वत्र; मस्तु. 4. ९सनवस्रमानपय्ने; परितीषमेत्रे मनो. 0.9. (2) तरिपरया ०; भवतत ०, 4. वि. भवार, 2. &. 7० 80. ©. प. ए. क. ४06 ग्ड [106 18 ब्रहिन्द्रदिमर्द्णां (गा, 7.) स्तृणगणान्य (य. ¶. ) त्र स्थितौ मन्य (डज. 7.) तै. 7४७५ 86004 ‡8 6 पपी" 900९९ 88 7) २. & &. 6७९0४ यच्छपात्‌ 07 यत्सादात्‌ 1" 89. छ, धर ए, कन भापपत्‌ 38 पठ 8806 38 200ए७९ क्ूरथुभ बोधः 0 मोम; 3४ 80, ©. प, ए. एष परक 1० प. काल कष्ण [०6 10 भा ३8 भो (भीः 289. & ए. ) साबो क्णभङ्कुटे तदितरे भोगे रतिं मा कृथाः.

दा. (५) °व्नै; °न्तिः. 7, (८) मुक्तकम्‌ ; मुक्तैः किम्‌. ७, बन्ध; सा. 4. भर. 7. ए. ए. दुःखं ए. 2०. 6. प, दुःख; भार. ¶\, ए, ८०. ७. प. °स; °. 4. (क) ००; 0का०. ¶, ए. ©. कनम्‌ ; °नमिदम्‌, 4. गाः नवैः 4. 3०.४, प. रयः; 0 तिभिः 4. क, 5०.9४.

एरका. @) रमाः मो, 4. 5००. गराः; °रः. 4. ०.४. नगाः ए, 20. ©. द.

{ ५९ 1

कण्टाक्छेषोपगुढं तदपि चिरं .यद्पियामिः प्रणीतं

त्रहमण्यासक्तचित्ता मवत मवमयाम्भोधिपारं तरीतुम्‌ ८२ त्रह्माण्डमण्डङोमातं किं मोगाय मनसिनः।

शफरीस्ुरितेनानग्धेः क्षुब्धत। जातु जायते ८३ यदासीदज्ञानं स्मरतिमिरसंस्कारजनितं

तदा दष्टं नारीमयमिदमशेषं जगदपि इदानीमस्माकं पटु तरविवेकाञ्चनज्षां

समीभूता दृष्टि्िमृवनमपि ब्रह्म मनुते ८४ रम्पाश्चन्द्रमरीचयस्तुणवती रम्था. वनान्तस्थरी

रम्यः साधुतसमगमः इामसखं कान्येषु रम्याः कथाः कोपोपाहितवाष्पविन्दुतरलं रम्यं प्रियाया मखं

सर्वं रम्यमनित्यवामुषगते चित्ते किच्चुदुनः ८५ भिन्ञास्षी जनमध्यसङ्क दितः स्वायत्तचेष्टः सदा

दानादानविरक्तमागंनिरतः कश्िचपस्वी स्थितः

(५) °ण्ठा० ०००, 1, ०ङ्खु०, फ. चनः; नहि 2. ए. (9)°रीनम्‌; °रन्तु ¶१, ©. 59. (०. 80..) ०रन्तः ए,

1.2 शा. (^). “न्द; “ण्डो, 2890. ए. किम्‌ ¦ को. 20. (01. 0.1.) एर. जोभायः; जभाय, ₹. ए. ऊभोयम्‌, 5०. 7, भौयाय. ^. ०.०. (४) जानु; नृ प्र० 4. गन्धैः कषग्धवा जानु जायते; “न्धिः भुभ्भौ खकु जयते. 2,

1 पए. ®) ग्दपि; गिति, 4. ह. (द) मनु०; तनु, ©.

1/2 ए. (2) गयस्तणवती; ०यः कुसुमिता 4. ८००. (8) °म्यः;. य्यम्‌ 6, &, 59. दैप ¶, &. ?. साधघसमागमः शम ०, सषसमागमोदव 80.0, 4. त- समनमगम ८, ©. सापुसभसिमागम ए. 86, सनुसुहन्समामम. . 8. सुसमः गमागत. प. °ब्ये ०६ नके], 6, (५) बिन्दु; वृत्तिं व, (क) °नित्य ९} °रम्य० क. पमष ०;०मय०, ०.४. मधि ° इ. नतैः भतम्‌, 4. ह. 5०. (०. 70 1\.}.

[दए (५) मध्यसङ्ग; सङ्कमध्य. 2. ए. चेटः वेशः. 6. वेषः ४०.२४. @) दाना ०; हनि °. 80. (गहु. ०.9.) प, ०रक्त ०; तविक्त ०, ^. ए. २, ०भिन्न °. ष, 29. क्त. ए०.४.) ०मार्मनिरनः; ग्वर्णरहितः ए, 59, (ग. 8०.४.).

[ ६० |

रध्याक्षणविश्षीगेजीर्णवसनेः संप्राप्रकन्थासखो

निमौनो निरहङतिः शामसुखामोगेकवद्धस्पुहः ८६ मातर्मेदिनि वातत मारुत सखे तेजः सुबन्धो जक

म्ात्पोम निबद्ध एकं भववम्रेष प्रणामाञ्जलिः युष्पत्स ङ्गवंशोपजातसुषवेदेकसुरनिमेल-

ज्ञानापास्तस्रमस्तमोदमदिमा रीये परे ब्रक्मगि ८७॥ यावत्छस्थमिदं कठेवरगृहं यव्च दूरे जय॒

यावच्वेन्द्ियशक्तिरपरतिहता यावत्यो नायुषः भालनश्रेपत्ति तावदेव विदुषा कायैः प्रयत्नो महा-

न्रोदीते मवने तु कूपखननं प्रत्युद्यमः कीटशः ८८ नाभ्यस्ता मुवि वादिवृन्ददमनी विद्या विनीतोचिता

सद्गात्रैः करिकुम्भपीठदल्मैनाकं नीतं यञ्चः कान्ताकोमरूपहलवाघररसः पीतो चन्ड्ोदभे

तारुण्यं गतमेवं निष्फलमहो दन्यारये दीपवत्‌ ८९

(५) केण; कीर्ण. 7. ८०. प. जीर्णं; चीर. 4. 80.71. कीणै ‰. ए. °्नैः; ०: न. 2. ए. °संपरप्र; °रास्यत. ए. °रस्यूत; 89. (०४४. ०.४.) 'प्रान्तेस्थ. ए. 2. सखो;ईषनो. 4. ०घरो. ए, 89. °सनो. पर, -(ढ) ननो °गो. ए. 809. (०ण&. 50.०.) रामसुखा ०} समसुधा ०, 80. (०४), 5०.१.}

72 श्एया. (०) सेनः}, ज्योतिः 4. ए, 29. 2. ए. सु०; ०. 7. ए०. (ग्ट. 5०.च.) ०; श्र, 4. ए. 29. क. २. ए. ०मेषर ०; ०मग्र. 4. ह. 50 ०मन्स्य. 10, °मन्प्यः 2. ए. पष. (८) °तेद्रेक; तंखार. प्र, (@) तराना लाड. ए. 8०. (ग्ट. 5०.४.) ^ ०र. 8०. (०. 80.9.) ध.

1. णा, (४) कलवरगृहम्‌ ; शरोरमस्जम्‌, ^. 7. ए. ८०. म. 6. 2 ‰. °च दरे जरा; °अ्जरा दूरतो, 4. ¶. ए. ८० 6. ए. . ए. (८) ण्षा कथि ण््रोकायै ध. (द) गन्यरो०} गन्तम्‌ 4. ¶, ए. 8०. भ. ४, 6. ए. श्नू० तु; 0. मत. @ न्नम्‌; नने ^. 2, वयर) (्द्र० ^,

1.21. (थ) भवि; प्रति० फ. दादि; बाद. 4, 0. वृन्द; दन्ति, ४. मम

१० 4. (2) १8; दन्त. ४. कूट; ए, 7. °ऊ ०; मर ६, -©, ०. (गण ०.1.) (५) पै ९; परै ०, 0.४. (९) निष्क ०; निः ए,

[६९1

ज्ञानं सतां मानमदादिना शनं केषाद्छिदेवन्मदमानकारणम्‌ स्थानं विविक्तं यमिनां विमुक्तये कामतुसणामविकामकारणम्‌ ९० जीणौ एव मनोरथाः खहुदपे यातं जरां यौवनं हन्ताङ्गेषु गुणाश्च वन्ध्यफलतां याता गुणतर्विना विः युक्तं सदसभ्युपैति बकवान्कालः रुतान्वोक्षमी द्यज्ञावं स्मरदयासनाद्धुयुगलं मुक्त्वास्ति नान्या गतिः॥ ९९ तषा डष्यत्यास्ये पिबति सक्र खादु सुरभि ्षेषादैः सञ्शाङीन्कवर्यवि शकादिरवछिवान्‌ प्रदीप्ते रागाप्नौ सुदृढवरमाङ्किष्यति वेधं प्रतीकारे व्याधेः सुखमिति विपर्यस्यति जनः॥ ९२ लत्वा गङ्गे पयोभिः शुचिकुमुमफलैरर्चयिला विमो लां ध्येये ध्याने नियोज्य क्षिविधरकुदरत्रावपवैङकुनृरे सधा. (५) न्याः सण व्यश्च. 80 ष. ७. ०्यः 6.2. जर- य°; चतथ 4. प. र. ए. 8०, ७. (@) न्ध्य ०; ण्य, 6. (९) रकाः कना

न्तोक्ठमीः कालो रि सर्गीन्तकत्‌. 4. ८०. (2) द्या ०; हा. र. कर ०. ©. ए. त्रा; ध्या०. 4, स्मरब्यासनाङ्कियुगलम्‌ भदनान्तकह्कियगुलम्‌, ए. 5०. ©. मदनान्तकरियुगलम्‌ ¶. सभुसूदनाङ्किकिमजम्‌, 2. 5. 4. ०.४. (3 णोत ४० युगलम्‌ तण कमलम्‌ ) त्िपुरान्तकाङ्कूयुमलम्‌ ध, मुक्तस; मुक्तस्तु श, ए, 89, (मपह, ८०.४.) नान्यास्ति. 4. नान्या; सृक्ला. 4.

सधा. (८) शुष्यत्यास्ये; °तैः सन्पराणी ^. ए०.४. खदु सुरमि; वीतम्रम्‌, कप. रीतसरभि. ¶. (2) सञ्ाक्तीन्‌ ; शान्यज्ञम्‌, प, सञ्दाछिम्‌, 8०.४. शाकादिव. कितान्‌ ; सस्यादिकङितान्‌. 4. मासिाञ्यकवलान्‌, ग. मांसादिकलितम्‌, प. 5०.०४. (९) रागा ०; कामा ०. 4. ¶, 8०.9. शङ्किष्यति; जिङ्गति, प, (९) ° से; ०रम्‌. भ. °्मि- ति; ९निव. ए. 80.0. °ति जनः; त्यनृबः. 50.

भा. (2) प्येष ध्यानं नियोञ्य; ध्यायन्नििरय पयन्‌, २, 7. नियोज्य; निवेश्य 4 श, ए. 89. 6. ध. प. व््कमूके; राय्यानिषण्मः ¶\, ए, 89. (०7. 29.2.) ©

[ ६२ 1

भात्मारामः फलम्षी गुरुवचनरतस्वव्मस्ादात्समरर

दुःखान्मोषमे कदाहं तव चरणरतो ष्यानमर्गिकप्रश्नः ९३ दाय्था रौलशिला गृहं भिरिगुहा वख तरूणां वचः

सारङ्गाः सहुदो ननु कितिरुहां वृत्तिः फलैः कोमलैः येषो निञ्चैरमम्बुपानमुचितं रवयेव विद्याङ्गना,

मन्ये ते परमेश्वराः हिरि यैवंदो सेवाञ्चटिः ९९ सत्यामेव भरिरोकीसरिति हररिरश्युम्बिनीविच्छटायां

सदि कस्पयन्त्यां वटविट पभवैवैल्करैः सकटैश्च कें विद्रानिविपत्तिज्वरजानेवरुजातीव दुःस्वा्िकानां

वक्रं वीक्षेत दुःस्थे यदि हिन विमृयत्से कुटुम्बेनुकम्पाम्‌ ॥९५॥ उद्यानेषु विचित्रभोजनविधिस्तीव्रातितीत्रं तपः

कौपीनावरणं सवरममितं भिक्षाटनं मण्डनम्‌ आसन्नं मरणं मङ्गलसमं यस्यां समृत्पद्यते

तां काशीं परिहुय हन्त विबुधैरन्यत्र किं स्थीपते ९६ नायं ते समयो रहस्यमधुना निद्राति नाथो यदि

स्थिता द्रक्ष्यति कुप्यति प्रमुरिति द्वारेषु येषां वचः

^~

(४) °मः फलाशो; ०गेपीनो. 4. ०मोपि कीरो ०.४. ०मोफछारी. 0. (2) ०खन्मो ०६०खं मो०. 4. ग. ए. ए. ४. 5०. 6. पर. तत्रे चरणरतो ध्यानमर्ग. कप्रशषः; समकरचरणे पुंसि सेव्सयत्यम्‌, 7. 7, 20. ©. प. 2. >. समचर गकर पसि सेवासमुत्थम्‌ ^. 0.४, प्रभः; पतैः ४.

सला. €) "बण व्कं० 6. व्वेरःण्यै० क, (दोमन मार. ©. |

30. (५) जच्छ ०; ०वच्छ ०. 0. (2) सटत्तिम्‌ ; सतृत्तम्‌, छ. र्सां वट्रिट- प०\ °न्स्यत्ततद (शन्त्यान्तद? ) विये ए. ¶, ‡. ४, (५) °खासि ०; ° खलति ९. 11, (2) ०; °भ्ये० ¢. ग्व्खे ०; न्चेकु० अध. म्‌ गणपञ्च 9 कध.

3८. (2) °ग्डनम्‌ ¦ ण्म. ४.

चेतस्तानपदाय याहि मवनं दैवस्य विश्वेशितु- निदौवारिकनि्दैोक्यपरूषं निःसीमशमेप्रदम्‌ ९७ प्रियसखि विपदण्डव्रातप्रतापपरम्पसा | परिचयचज्ञे चिन्ताचक्रे निधाय विधिः खरः मृदामिव बङात्पिण्डीरत्य प्रमस्मकुखाखव- द्रमयति मनो नो जानीमः किमत्र विधास्यति } ९८ महेश्वरे वा जगतामधीश्वरे ` जनादेने वा जगदन्तरात्मनि तयोने भेदप्रतिपत्तिरस्ति मे तथापि भक्तिस्तरुणेन्दुशेखरे ९९.॥ रे कन्दपं करं कद्ययसि किं कोदण्डटङ्मसै रे रे कोकिरु कोमकैः कलैः किं.लं वृया जल्पसि मुग्धे लिग्धविदग्धमुग्धमधुरैलेिः कटाकषैरलं चेतश्वुम्वितचन्द्रचूडचरणध्यानामृतं वतेते ९६००

0. (2) नो दौवारिकनिर्योक्तिपरूषम्‌ ०. 20.71.

दण. (9) °्वि; ८ख ०. त, (1 काक ). 30.प. ° ०उत्रति; ०ण्डप्रान्त. 4, ०.०, °ण्डाधत, पष. प्रतापः प्रपात. 4. 80.. प्रवात. प्र. (2). ° चयचके ०; ° चङे, 0. ° चये. फ. ° चयवते. 4. ° चयवत्ते 80.2. नि ०; वि०. ए. (2) ण्ववे०; ण्व व०. ८. (च) नो जानीमः क्रिमत्र; जो जीर्णानां कि- स) 4.

260. (4) ०तामषी ०; नतां मरे; क. 2. 8. (2) वस्तुभेद प्रतिपत्तिर- स्तिमे प. वस्तुतो मे प्रतिपत्तिरस्ति ए. 80. ©. भेदेहेतु प्रतिपत्तिरस्ति 1, ए. ६. (9 फनी। ४० न्तुः प्र }. मेः नी. ^.

५. (५) किम. ^. करिम्‌ रे. 4. ङ्स; पटासतिः(1) 4. (2) णेः; ण्म. ‰. ण्वः; ०वम्‌, 4. जन्यः वन्यत, 4. 2. 8 (०) गग्बे; °म्बेः, 4. विदग्धम्‌. ग्घमधुरैलः; मुषारैरमधेतरालविः. 4. विदग्धमुग्धमपुरषैः, 2. ठ. ए07 मग्ध ए. 196 केव, वर्वतै; सम्प्रति, ए. 8,

{ ६४ }

कौपौनं शातखण्डजजैरतरं कन्था पुनस्तादृशी निश्चिन्वं सुखसध्यभरकष्यम शनं शय्या इमश्चाने वन मित्रामित्रतमानतारिविमखा चिन्तातिशयून्पारूये घ्वस्ताशेषमदपमादमुदितो योगी सुखं तिष्ठति १५०९ भोगा मङ्गरवृत्तयो बहुविधास्वैरेव चे भव स्तत्कस्यैव ते परिभ्रमत रे रोकाः रवं चेष्टितैः आहापाशशरोपशन्तिविशदं चेतः समाधीयतां कामोच्छिततिवरे स्वधामनि यदि श्रद्धेयमस्मद्वचः ९०२ धन्यानां भिरिकन्दरे निवस्तवां ज्योतिः परं ध्यायता- मानन्दाश्रुजलं पिबन्ति शकुना निःशङ्क ङूशयाः

0. (५) ^तरा; °तरम्‌, 4. 7, 89. पै. °जरम्‌ ©, (2) निशिन्तम्‌ ; नै- वित्तम्‌. . मैिन्त्यम्‌, 7. 9. प. ए. नोतय, ©. निित्तम्‌. 2०.४. निवीतम्‌, ४. सुखसाध्य; सुखस्बु, ^. 28०.2. निखेक्ष. ©. पि. क, ए, 89. ( फफन) ४० ए४ण्छभ्य (र), शय्या; निद्रा ध, ए. ©. 2. 39. (छन, ०.9. ) (५) ०्वा- तिविम ०; ०कारििरजा. 4. 5०.४८. ०ति शू? श्य शू०. 4. #¶. 20.४. (त्ता 0 स्ता) (2) मदप्रमाद} तमग्रमोद. 4. 20.9४. ( मः प्र मप्र }. 1, इ. 89. ©, प. ५४९8० धण9 188६ 11965 &8 86 10110 5: खातन्त्पेण निरङ्कशं' विहरणं ` दान्तं (खाम्तं ए. ०. फ.) प्रान्तं मनः (सदा, ७०. ©. ए. प.) योगमषससरेमे यदि त्रैजोक्यराब्येन किम्‌ |

(ता. (2) शस्ये; °स्येह. 4. ¶\. ४. ए. प. 2०. ©. ४. ह, ०मत; मम श. 4. ८००. रे} ह. ¶. ए. ७. °तं चे गतैश्च ०. 4. “हितैः; °छितम्‌ . ए, ए. & 0. (जस. 5०४.) {द} ९मै ०; नम्ये ०. 50. (गणष. ०.2.) 6, गच्छि ०. ` ण्ठ. षृ, ए. ३, 2०. 6, शले ख; “यत्व, फ. °दस ०, ०.०. श्र ०३ सल ° ०.४, (०४&. 0.9.)

ला. (५) नि ०; श्वु. ए. 59. (गण. ०.०.) 9. ¶, प. @) ज्ञ; के< णाम्‌; ¶, ए. 5०. (०६, 89.०.) 6.

अस्पाकं तु मनोरयोपराच्चेतप्रास्रादवापीतट- कीडाकाननकङ्कौतुकजुषामायुः परिक्षीयते ९०३ भध्रातं मरणेन जन्म जरयां विदुरं यौवने संतोषो षनलिप्सया शमसुखं प्रौढाङ्गनाविभरषैः ।. ` छेकर्म॑ःतरिभिगैणा वनमुवो व्थाैनपा दुजैने रस्र्येण विभूतिरप्यपहृता प्रस्तं किं केन वा॥ ९०४॥ -भाधिभ्याधिकतेजनस्य विविधेरारोग्पमुन्मूल्यते | क्ष्मीयंन् पतन्ति तत्र विवृतद्वारा श्व व्यापदः ` जातं जावमवर्यमाश्ु विवशं मृच्युः करोव्यात्मसता- त्तस्कि नाम निरङ्कुशेन विधिना यानर्मितं सुस्थितम्‌ १०५॥ शच्छेणामेभ्यमध्ये नियमितवनुभिः स्थीयते गर्ममध्ये कान्ताविश्टेषदुःखग्य॑तिकरविषमे यौवने विप्रयोगः

(¢) गथीप॑र ०६ ण्यः परि ०. 4. 1. (4) परि०; परम्‌ , 4. फ. ४. 8०. ए. ७. 2. &. प्र. ए.

(वट. (०) शप्रतम्‌; ° क्रान्तम्‌ प. ए. ए. 6. 80. (०&ः 5००. ) तफ ०्सा प. ए. 5०. 6. (ज्म. ०.2.) त्रिदयुज्ररम्‌ ; प्रयुतम्‌. 4. 80.४. च्यु ङ्ल्वलम्‌ प. °प्यतयुङुलकम्‌ २. 8.1. यास्युनमम्‌, ए. 89. 9. य्युल्वणम्‌. 1 (०) वके ०; ०्के ०, ‰. वनभुवो; °स्तु पठणे. 4. °्सनु पवनो. ०.2. शपा नैः. 4. , (4) °मूतिरष्यपहूता; ° भूतयेपयुपहता. कष, 3०. (ण्ण. ८००. एण णिन्‌) 6. ए. °पत्तयेप्युपहता. ¶,. केन वा; के जनाः ध. तेन का. 4,

(ष. (५) °जैनस्य प्रिषिमैः; ०र्वयस्यतितराम्‌, 11. (४) पतन्ति तत्र; पतव्रिषच. 34. ०ृत; °विध. ०.४. द्वारा} वाख. व. म्या ९} ह्या ०. ए. पा०, ¶\, 80. ०ण&. 59. (2) जातंजातम्‌ ; भरायु्यीतम्‌ एए. जाताजातम्‌ ©. (2) नामः केन. ¶. ए, 50. (ग्ट. 8०.२४.) तेन. प्र. °स्थिवम्‌ ; ^स्थिस्म्‌ . 4. ए. 80. (०, 5०.2.) 6. _

८. (५) नियननिततनु नियमितच्तु °. &. निपतति तनु °. ^ सतिधतति ° तनु ०: 0. °र्ममध्ये; गमास. &. ¶\, इ. 8०. ( ०र्मषवसो ०.४, ) &. `. मग. 2. >. ®) ०ख; °्खम्‌. ^. मे ०; °मो. ०. फ. ०, ए, 6. वपर यो०; चोभो०. ग, ए, ८०. (ग. 5००.) प. |

{ ६६ }

नारौषणामप्यवत्ता विरति नियतं वृद मावोप्यसधुः संसार रे मनुष्या वदत यदि मूलं सल्पमप्यस्ति किंचित्‌ ॥\०६॥ मयुवष॑शवं नृणां परिभित रत्रौ तदर्धं गवं तस्यास्य परस्य चीधेमपरं बारलवृद्तयोः ओष व्याधिदियोगद्ःखसदितं तेवादिभिर्मीयते , . जीवे वारितरङ्गचच्चखवरे सौख्यं कुतः प्राणिनाम्‌ ९०७ ्रहमज्ञानविवेकिनोमरूधियः कुन्दो दुष्करं यन्मु धन्सुपमोगक च्खनधनान्पेकान्वतो निस्पृहाः प्राप्तानि पुरा सम्प्रतिन प्राप्तौ दृढप्रत्ययो वाञ्छामात्रपरिप्रदाण्यवि परं ध्यक्तु इाक्ता वयम्‌ ॥९०८ ष्याध्रीव विष्ठतति जय परितजयन्ती रोगाश्च शत्रव इब प्रहरन्ति देदम्‌ भयुः परिस्रवति भिन्नघटादिवाम्भो ोकस्वयाप्यदिवमाचरतीति चित्रम्‌ ९०९ ,

{०) नारीणामष्व वामाद्चीणाम०. धृ, ए, 280. (गह. ०.४.) ©, °छस °; °हस ०, &. °इसि ०. ¶, ए, 2०. ©. प. ° कसि ०.०. नियतम्‌ वसतो. 4. वसतिः 1 ह. 89. 9. प. न्वोप्य ०; वेष्य०. 2. ए.

(प्रा. ४) ०छ°; °न्य०. ४. (०) योगः; गदे. ४. सवा; इद्ा०., 2. ए. (थ) चजहतर; बृहूदसमे. 4. ०.४.

(ष्या. (५) सकनम °; कनिमै०.¶. ह... ७. दुष्कण दुःक०. (2) यन्मु ९; ये म०. 4. शन्द्युप० शन्व्यवि. काञ्चन ०; भान्ब्यवि, 4. ति. ए, 8०. ©. 2. 2. माद्यवि. क. भीय, ४. नि ०; नि: ०. ०. 2. 2. (०4&. ८०.४.) (£) नप्रा०ः संप्रा 4, ध. प. (ककलछ छः नि फणन्वा्न्लङ्‌ वगारन्यणड) चव (का?) ©" °दप्र० °दः प्र०, 2. ६. ०.४. श्यो; क. ‰#. ए, °यन्‌, पष. (9) वाञ्छा; गस्य. 0, °्फे$ °नपि; प. परम्‌ ; वयम्‌. ¶\ परि, ह, 20 ©" (भप. 3०.४.} शक्ता वयम्‌ ; तानि क्षमाः भृ!

@) °हर ०; °विशं ०]. डम्‌ ; °हे. ^. ह. 8०. अ. (2) °य पर०६ °यै सम्‌ &. शवराम्मो; वच्च ¢

[{ ६० 1

सृजति तावदरोषगृणाकरे पुरुषरत्नमरुकरणं भुवः तदपि सत््षणमङ्गि करोति चे- दहं कंष्टमपण्डिवता विधेः ९९० मात्रं संकुचितं गतिर्विगलिता भ्रष्टा दन्वाव्ि- दष्टिनैरयति वर्ते बधिरता बकल सकायते | . भाक्यं नाद्विपते बान्धूवजनो मायां दुषरूषते ` हा ष्टं पुरुषस्य जीणैवयसः पुमरोप्यमिन्नायते ९६६. क्षणं बाहो मूता क्षणमपि युवा कामरतिकः क्षणं विततरधनः कषणमपि संपु्णविमवः 1 जरजीर्णुरङनैट इवं व॑रीमंडिवतनु- नैः सप्तारान्वे विशति यमधानीजवनिकाम्‌ ६६२ अहौ क्रहरे वा बरुवति रिपौ का सुहृदि का मणौवारूष्टेवा कुसुमशयने बा दृषदि वा तृणे बाद्धिणे वा मम समदृशो यान्ति दिवसतः कचि सपुण्यारण्ये दिवं शिव शिेति प्रपतः ५९३. इति श्रीमतुहरिकतवेरग्यशतकं संपणंमू

0, 865 पाधड०।१४५. रां

छा. (४) शकं ण्ठी द°, ह. ८9. & 0, ण्नौभा० श्तेमीण

तशा. (9) म्म; ०, ©. (>) मन्दि०ः ष्ण्डि० ©. (अ) °न्तै;, कै 4. 2. 2. ए५,४. पि; दि श्नीज्ख ०; नीय ०. 89. (०६. 8०.०४.) शनी जण). 1. 6,

(द्मा. (०) नन्ति; शन्तु. 4. 2. 8. 20.४. (2) ण्या र; ००्दे०. ¶ृ\, 39. (०४६. 8०.9.) ©. २. 2

[६८]

` अण ^ पि्०ण$.

अकिंचनस्य दान्तस्य शान्वस्य समचेतसः सदा संतुष्टमनसः सौः सुखमया दिशः भरनावरतीं कालो व्रजति पस वृया तनन गणितं दशास्वास्ताः सोढा व्यस्तनश्तप्तंपातविधुरः कियद्भा वक्ष्यामः किमिव बत नात्मन्यपरतं त्वया यावेत्तवेत्पुनरपि तदेव व्यवसितम्‌ २॥ ` अमिमवमहामानग्रन्थिप्रमेदपटीयसी गृरुतरगुणम्रामाभ्भोजस्कुटोज्ज्वलचन्दिका विपुखविरसह्ठज्जवह्टौविदारकृटारिका जठरपिठरी दुःपृरेयं करोति विडम्बनम्‌ ३॥ रनीमदहि वयं भिक्षामाशावासो वसीमहि इायीमहि महीपृषे कुर्वीमहि किमीश्वरैः उत्तिष्ठ क्षणमेकमुदरह गुरुं दारि्यभारं सखे श्रान्तस्तावदहं चिरं मरणजं सेवे त्वदीयं सुखम्‌ इतयक्तो धनवर्जितेन सहसा गतवा इमह्ाने शवो दारि्रान्मरणं वरं वरमिति ज्ञातैव तृष्णीं स्थितः .

7. (०) वृ% तेर. ¶. (2) ९कात;° ताप. 2. 8. (९) वत ना ०; तदा ०. ए. शत्मन्य०; ०माभ्य०. द. शर ०व०. न. (९) खया; वयम्‌ ॐ. 8. ¶. , प.) “रूः °य. ©. क. (५) विसं; °चरस ०. ^. °्दार ०; ०तान ०. 9. 9. क. °खरि ° ०.४, (छं. 8०.) (द) °नम्‌_; गाम्‌. ए. 4. 8०. म. ए. 8. &. (४४ क्न ना गणा).

प. (५) श्वरः शन्नो०, 2. 5. ^. ध. प. व, ८००, (गहु. ०.) भि- श्यम्‌ ; भक्षम्‌ ६०.४.

[{ ६९ }

उदन्वच्छना भूः निधिरपां योजनशतं सदा पान्थः पूषा गमनपरिमाणृं करयति इति प्रापो मवृ स्कुरदवधिमूत्रामुकुलिताः संवा प्रकोन्मेषः पुनरपमसीभा विजयते एको देवः केडवोवाङिको वा एकं मित्रं मूपविवौ यतिं एको वासः पने वावनेवा एका मायां सुन्दरौ बा दरी वा॥ ७॥ एको रागिषु राज्ञते प्रियतमादेहारथहारी हरो नीरागेषु जनो विमुक्तरुलनासङ्गो यस्मात्परः दुवारस्मरबाणपन्नगविषन्पाविद्धमुग्धो जनः रोषः. कामविडम्बिताल विषयान्भोक्ं मोक्तु क्षमः.॥ ` एता दन्ति रुदन्ति का्हेतो- विश्वापस्तयान्तिः खं पर विनश्वसन्ि। वस्मा्नरेण सुशीरुसमन्वितेन नायः इमशानघटिका इव बजेनीयाः कदा काराण्ाममरतटिनीरोधलि वस- न्वसानः कौपीनं रिराति निदधानोख्लिपुम्‌ भये गौरीनायं त्रिपुर डम्भो चिनयन प्रसीदेत्यकोाननिमिषमिव नेष्यामि दिवसान्‌ ५० काकेदयं स्तनयोटैशोस्तरलूतारीकं मखे श्वाध्यते कौटिल्यं कचसंचये वदने मान्यं त्रिके स्थूलता

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~~~.

ए. 866 ५.४४ ६४& 211866119960प्§ 802६ $, ०2१ ३११ ४० 4 ००४68 प6ा6 0.7" श्रथ प्रत ए” कल्क ४8 1श्भठ३ *९०माई नको. ` णा. 896 वाधि ना 5न्नाकप९०ऽ 8408 5.

ॐ. @) णनम्‌; नै, &, 59 (9) शत्य; १ति०प. ए,

[ ]

भरं हृदये सदेव कथितं मायप्रपोगप्रिप

यासां दोषगणो मृगदृशां वाः स्युः पशुनां प्रियाः ९९ कचि द्रीणावां कचिदपि हाहेति रुदितं

कचिद्वददरष्ठी कवचिदपि सृरामत्तकरडः कविद्रामा रम्याः कवचिदपि गलक्कुष्टवपुषो

जाने सेसारः किममृतमयः क्रि विषमयः ९२ गननरगिर मिकलश्ुटुमीश्चरणां |

कुर्वलयं प्रहसनस्य मठः -कुतोत्ति . वं त्वां पुमः प्रक्िविक्णेकमाजमेनं

टेन केन नटयिष्यति दीर्धमायुः ९६

# ६. # \४॥ नेका रक्षमीश्वखाः प्राणाश्चकं जीवितयौवनम्‌

्राचले संसारे धम एको हि निश्चलः ९५ चुडोत्तपित चारुचन्द्रकलिकाचञ्चुच्छलाभासुरे

कीलादग्धविलोरकामशखमः श्रेयोदश्चाप्रे स्फुरन्‌ -अन्तःस्कूजेदपारमोहतिमिरपाग्मारमुच्ाटयं-

श्चेतेःसद्मनि यौगिनां विजयते ज्ञानप्रदीपो दरः ९६ चखेतश्रिन्तय मा रमां सरूदिमामस्थायिनीमास्यया

मृपालभरकरटीकुटौरविहरव्यापारपण्यङ्गनाम्‌ कन्थाक्ञुक्रिताः प्रविहय भवनद्वाराणि बासणती-

रथ्यापाङ्कुषु पाणिपात्रपतितां भिक्ञामपेक्षामहे १७ ११११... 7. 3... 1 11 प्प्प्म्य जन् ---- कए. (4) चास्वन्द्र; चन्द्रचार, प, ^स्‌°; ००. प. 50.४. (९) नन्तः

णन्त. ए. °मुजाट ०; °मुच्छेड १. ‰०.. (2) °रः‡ ° रैः. 8०.४. | सफ, (८) रमस्था० ०मास्या०. @. (2) °रविहरध्या विडरणेब्या ०, पि, (2) °किताः; ०किनः प, क्तिः 59. ग, 9, गि ०; ००. शर,

1 |

जतः कूमः एकः पुथुमुवनमरायपितं येन पृष्ठ शाग्यं जन्म भवस्य भ्रमति नियमितं यत तेजस्विचक्रम्‌ ` संजातव्वर्थपक्षाः परहितकरणे नोपरिष्टिन चाधो ब्रहमाण्डोदुम्बरान्तर्मदाकवदपरे जन्तवो जावनष्टाः ९८ तुङ्गं वेदम सुताः सवामभिमवाः संख्यातिगाः संपदः ` केल्याणी दयिवा वयश्च नवमिदन्ञानम्‌ढो जनः मतवा विश्वमनश्वरं निविरवे संसारकारागृदे सहर्य प्षणभङ्गर तदल धन्यस्तु संन्यस्यति ९९

ददतु ददत्‌ मारीमालिमन्तो मवन्तो

वयमपि तदमावाद्वालिदनिष्षमथीौः जगति विदितमेतदीयते बिमान

हि शशकविषाणे कोपि करै ददाति २० दू दर्थं घटयति नवं दूरतश्चापशब्दं

त्यक्तवा मुयो भवति निरतः सत्सभारञ्जनेषु मन्दं मन्दं रचयति पदं छोकवित्तानवृध्या

कामं मन्त्री कविरिव सदा खेदमरैरमुक्तः॥ २१॥ भिक्षा दुष्प्रापा पथि मम महारामरचिते

फलः संपृणा मृदिपमृगसुचमौपि वसनम्‌

सए. (०) भरावार्ितम्‌ ; °मथ स्थापितम्‌, 4. -°म्‌ ; °. 4. (०) सेमात- श्यर्थ; व्ये संनत. 4. °द्छाः; शश्राः. 4. करणे नोषरिछन्न चाके; करणं नो कारे च्यन्न कार्थ, 4. (4) नः; निष्ाः

उ. (०) मण; ००, छ. @) गक्ष; श्महि (ह?) 8. समर्था ण्ध्स (श ?) क्राः. 8. (2) ददतु शद्धविषाणं पे भहात्यागिनपि. 8.

ऋ, 866 कपा४8.०४०८४ 207 8न्नाक्षान्छप$ 8442028 10,

ऋका. (५) मम महारामरचिते; परथि मरामसरितः 8, #. (2) गर्िषमृग- सु८; °मुगविटपर ०, 8. र्यव्िमृग° घ.

०.

सुखेगां दुःसैवां सदुशपरिपाकः सदु वदा त्रिनेत्रं कसयत धनरुवमदान्धं प्रणमति ॥२२॥ मो खङ्क्रविदारिवा; करटिनो नोद्रेजिता वैरिणः स्तन्वङ्गधा विपुर निवृद्धफरूके कीडितं लीकया ने जुष्टं िरिराजनिभ्चरस्षणज्जञांकारकारं वयः कालोयं परपिण्डलोलुपतया काकैरिव प्रेरितः २३. परिभमसि किं वृथा कचन चित्त विश्राम्यतां स्वयं भेवति यद्या मवति वत्तथां नान्यथा अतीतमपि स्मरनपि मान्यस्ंकल्पय- चतर्कितगमागमाननुमवस्व मोगानिह २४ पाणिं पात्रयतां नि्ैडुचिना पकषेण संतुष्यतां यंत्र क्कापि निषीदतां बहुतृणं विश्वं मुहुः पर्यताम्‌ अत्यागेपि तनोरखण्डपरमानन्दावनेधस्पृहां मस्य॑ः कोपि शिवप्रसादसुलमां संपत्स्यते योगिनाम्‌ २५ पातालानन 'विमोचितो वत वरी नीती मृदयुक्तयं गो मृष्टं शशिलाञ्छनं मछिनं नोन्मूकिवा व्याधयः ,. शेषस्यापि धरां विधृत्य छतो भाराववारः क्षणं चेतः सतपुरुषामिमानमणनां मिथ्या वहनं रञ्जते २६

(0) सुखै दुःदेकी; सके वा दुःखे वा. 8. 1. °कः} °कै.

ए. (४) तत्तथा नान्यया; तेयथा नान्यया. ग. नान्यथा तत्तया. ए. 89. (०) °मपि °मननु °. फ. °ब्यसम्‌ ०} °व्यसम्‌ ०. ए. °्यं सम्‌. ©. ०वि रुम्‌०. शः (@) °यन्नतं ०; °यन्‌ ०, ए. &, 8०. ०यन्‌_ अत ०, ¶\. ° तगमा ०६ °तस्षमा ९. फ. तवस ०; तवामि ०. ए. ° निह; °नहम्‌ . क.

उष, (4) ग्े०; ०७ ०. ७. ग. ए. (५) सुदाम्‌ ; सृद्ाम्‌. 2३. (2) मव्यैः; मध्वा. फ. त्मम्‌ ; °भोम्‌, 2०. भः प. भाः &. सन्स °स्य०. ©. {४ वणफय00 इपह्त्पप्न०प 1० धऽ 8. ).

{ ५९ |

पररणन्तशाख्लायोविचार चापलं

निवृत्चनानारस्तका्यकोतुकम्‌ निरस्तनिःशेषविकल्पविस्तरं

प्रपत्तमन्विच्छति शंकरं मनः २७॥ फंड स्वेच्छालभ्यं प्रतिवनमखेदं क्षितिरुहां

, परयः स्याने स्याने शिशिरमधुरं पुण्यसरिताम्‌

मृदुस्पश श्या सृरुलितरतापल्ववमयी

सहन्ते संतापे तदपि धनिनां दारि रुपणाः २८ मभ्यं भक्तं ततः किं कदशितमथवा वासरान्ते तंवः किं

कौपीने वा ततः किं किमथ सितमहइच्वाम्बरं वा ततः किमू | एका भायां ततः किः शवेगुणगुणिता कोटिरेका ततः कि

लेको भान्तस्वतः कि करितुरगरशतैरवषटेतो वा ततः निम्‌ ॥२९॥ ` भिल्ला कामदुधा घेनुः कन्था द्ीवनिवारिणी ` , . अचला तु शिषे भक्तर्विमवैः किं प्रयोजनम्‌ ३० मिक्षाहारमदेन्यमंप्रतिहतं भीतिच्छदं सर्वदा

दुमात्सयंमदाभिमप्नमयनं दुःखौघविष्वंस्नम्‌ सैत्रान्वहमप्रयत्नसृलमं साधुप्रियं पावनं

शम्भोः सत्रमवा्य॑मक्षयनिर्धि शंसन्ति योगीश्वणः ६९

~---^~--“----------

उक्णा. सरण; यरी.

उ. (०) भक्तम्‌ ; मुक्तम्‌, ४. शित; °्न०. क. (2) कौधनेक नेतः किं सिनममलयर्‌ धद्ृकूलं तरतं किम्‌. क. (५) °का; °का. कवि. मणिता; मणिक. ए. (ढ) 6 काडरदा9 छलः भा 8कल8 10 6 ला७४6ते 1४ हि.

ढा. (०) गह्तम्‌ ; °सुखम्‌. त, ०5०; श्वि, इ, 89. ह. ण्य; न्ती. प.

{ ७8 ]

मूः पर्ङून निजमुजर्ता कन्दुकं खं विताने -दीपश्चन्द्रो विरतिवनिताङब्धतङ्कप्रमोदः दिक्कीन्ताभिः पवनचमीन्पमानः समन्ता- ` दविक्षः शेवे नृप इव मुवि त्यक्तसवैस्पुहोपि ३२ मोभास्तङ्गतरङ्गभङ्गचपलाः प्राणाः क्षणष्व्॑तिन- ` स्तोकान्येव दिनानि -यौवनसुखं प्रीतिः परियेष्वस्थिरा तत्संसारमसारमेव निखिं बुद्ध बुधा बोधका रोकानुग्रपेशखेन मनप्ता यत्नः समाधीयताम्‌ ` यद्रक्तं मुहुरीक्षसे धनिनां ब्रूषे चादुं मृषा नैषां गवैगिरः शुणोषि पुनः प्रत्यादाया धावसि ` काङे वक्तृणानि खादति सुखं निद्रासि निद्रागमे तन्मे ब्रूहि कुरङ्ग कुतर भवता किं नाम तप्नं तपः ३४ यनागा मदभिनगण्डकरटस्ि्ठन्ति निद्रालसा द्रि हेमवरिमूषणाश्च तुरमा वल्गन्ति यदर्षिताः वीणावेणुमृद ङ्ग शङ्खपटहैः सुस्त यद्रोदयते सेत्तर्वं सरलोकदेवसदश धमंस्य विस्फूर्जितम्‌ यां चिन्तयामि सततं मयिस्ान रक्ता साचान्मिच्छति -जनं जनोन्धसक्तः

~~-~-------~--

सदा. (4) गन्द; ०ञ्चु ०. 4. ०कम्‌ }; कः ए. ^. @) नन्द्रौ विर ण; न्द्रः सुम. 7. (८) "ङ्गान्ता ०; °इन्या ०. &. °नः समन्तात्‌ ; °नोनुवेकम्‌. ^.

(९) भृति; नन्‌ 4. ५ैसृहो; °वे्रणो 4,

दका. (९) भङ्जचवङाः; भोगचपखाः. ए, तुल्यतरक्ाः. ए. भङ्गतरलाः प, (2) सुखम्‌ ; मखम. ¶. सुख पष. प्रीतिः प्रिये्रस्थिरा; ग्फूरतिः क्रियासु स्थिता ७. ६, गू, 89. (ष्णाषलह तिं णि तिः) प, (लर प्रि णिक्रि) (०) °न्संसा °; °नरला० ^. ०.४. नि ०; ०म ०. 6. ८०.१..बद्धा; मला. ए. ?. वैषा बोधका; बषन्नोधपे,

` 20. बुधान्वोधने 4. ए0.2. वृधा यौवने २. 1. प. 96 भा. 0180गाो9पन्छणः ऽप 18.

[ ०५ 1

अस्मक्कतेपे परितुष्यति काचिदन्या धिक्तांचतं चमदनंचडमांचमांच॥६॥ पे सं्तेपसुखप्रमोदमुदिवास्तेषां भिना मुदो ये लन्पे धनलोभसंकुरुधियस्तेषां तृष्णा इता | इत्यै कस्य रते कतः व्रिधिना ताद्क्पदं संपदां स्वात्मन्येव समाप्तरममहिमा मेसन मे रोचते ३७ वर्णं तितं शिराति वीक्ष्य हियेरुहाणां | स्थानं जरापरिभवस्य वदेव पुम्‌ मरोपितास्थिक्ृररां परिहूत्य यान्ति चाण्डाङकूपमिव दूरतरं तरुण्यः २८ समारम्मा मपाः कति कतिवारांस्तव पशो पिपासोस्तुच्छेसिमन्द्रविणमृगतष्णा्णवजले तथापि प्रत्याशा विरमति तेदयापि शतधा दीं यञ्चेतो नियतमशनिग्रावघटिवम्‌ ६.९ संमोहयन्ति मदयन्ति विडम्बयन्ति निर्भत्सैयन्तिं रमयन्ति विषादयन्ति एताः प्रविरय सदयं हदवं नराणां निं नाम वामनयना समाचरन्ति ४०

४1. 8९6 का 8.४्भ०8 8६929 2, 106 ए. & 1, 1 ४४6 20165 9 भ€ 8)00पात्‌ 6 पणद्ल 98 करलाि्णड ४0 च6 §वण्टड 19 06 एलाह

8218178,

णा, 866 काध8"& क15९ना 9४७०७ ६६९0729 16 २0516 त्‌ (2) जीभ; इन्ध. 89. (¢) °क्दम्‌ { ° कतिः 8०, (ग्य. 8०.9.)}; उषा. (५) श्विरसि; इदिति, द. ०००४४९१ ©. व, ¶,. सम ०. ६, @) °देव साम्‌ ; ग्द गुमासम्‌, प्र. (५) कर्म ; उाततकम्‌ पष. उकम्‌ १. किकलम्‌. ए, (2) चा०; ०. प.

कवर, (4) वारस्त०; नागस्त भुणृएश्रश्णक् २.

{ ७६ 1

सिंहो बलौ द्विरदशूकरमांसभोजी संवत्सरेण रतिमेति किठैकबारम्‌ .. पारावतः; खरशिलाकणमात्रमोजी कामी मवत्यनदिनं वद कोत्र हेतः ४९॥ स्थितिः पुण्येरण्ये सह परिचयो इन्त इरिणे फकर्मेष्या वृत्तिः प्रविनादे तल्पानि दृषदः ; . इतीयं साम्नी भक्ति हरमक्ति स्पुहयतां वनं या गेहं सहश्षमुपशान्यैकमनसाम्‌ ४२॥ स्वादिष्ट मधुना धृतच्वे रसवद्यस्रसवत्यक्षरं दैवी कागमतातमनो रसवतस्तेमैव तेप्ता वयम्‌ कृषौ मावदिमे भवन्ति धृतये भिकषाहूताः सक्तव स्तावदास्यरुतारजनैनं हि धनैवैत्ति समीहामहे ४६ इ, (०) ण्तिः; न्तः त, (वे; °्ण्क. 2, (®) ण्नदि च; विरिति. 8, 20. (%) °ताम्‌ $ °ती. ¶. °ति. #. (९) °न्येकः; °न्तेक. 7. 3. उना. (५) ण्ड; °दि. क. व्यदण; व्यप्र० 1५. (2) ३०; २०8. ४. ८९) णदिमे; °्दमी, 8. ४, (4) ° हि भनेः; °तरेव (न ?) वसुभिः 1४, वचिम. ; भोगन्‌. 8. #,

0788.

९५५४2५ 1.--6 88६ 1106 {0८08 8 0000 स्णभमी पष ए8 क्‌९३९त्‌ 10 ए्तण स8+ (०) 98 00785 ण६ह ०६ ४166 १त] ७८६१४७३ दिका- खाचनवच्छन्न, अनन्त १४१ चिन्मात्नमूर्ति, ०८ (ठ) 358 29 परर कि मूर्ति ३४5 इ९०्०त्‌ पलप्फएल, &४त्‌ भ्‌] 1९५९१९5 मूर्तिं ४5 ध\ल 8781, ४18 116. ०व्वाण्द्ट प्यपनः एलणड 1४861? & उगणफूरप्णत पः66 १त्‌]ककण्छ, ` व्र 5प्ृद्याम्‌ पठन ०६ 18 06 5906 10 000 6४8९5. = शठ ००० - णभ इहशण§ 10 वदच6 4116 णलः ०116 ४१० ०५०९8.५ दिका 87806 प6. अदि 6886013 0 ४619 {0 गुण, भमीषम &०. 0०७ 8/9 [पन्‌ 00098059 (ए४. 1०व. व.) ए. 64 धयत्‌ का०३8 ०६ जण ण्त्‌ कणत धलः600 (1). 68), ४0४. 9 ना का ९४८७यू४6त 00०७, = भनवच्छिनन = पण०१९५।९्‌, पणत्‌6पर6त्‌, 0 + मकण्त्‌नः 1“ व्वृष्न्रू #षा०्डएपन्म ला, प७0०ताप्नमाहत्‌, गचत (०्याणडणद्णः 885 दज्ञदिद्ासु तथा भूतभवि- प्यदतेमानत्रिकालेषु भनवच्छिज्नः भत एव अनन्तः. भवच््छिन्न 86608 11676 0 9 प्पतला5+0०त्‌ 95 पपश्वपणह ^ तणत९द, एष च्ल फल्मपणह व्वगृूध्छत्‌ 15 न०डडाः ४0 ६6 11/19 11 -8006}0६8{100, 8त्‌ का 28 8 7688० 0 8० णड 1६ 19 इप्लो। $ 23888 88 ५४६ 6076 प, = पाप्ड ५6 002888७ (0 8 दण ४0०९७ भापते6त्‌ ४0, 1४ 18 इमभत्‌ यत्रे धमी- धर्मौ सह कैरयेणं कजत्रयं नोषाकतते ४० द०शःणत्‌ पदत8 ०0०४8 78 तण ` प९६ 00 1४ पण्ड कजिनच्छिनवबित्याह कति, 01 16 १९९ 09 8 (०) 96 ©श्ट० फ8590१8 १९३०६०४ ` ४४6 0106 सपा १०४६१ ४6 146 71५. 1499861 {प 1035 एपा०ह०ृ ६४6 दणपदात्तमाल्त्‌ 0. 16). ^“ 1४ 15 पशकछथः 9 1866 ००१1४ ९, एप एकणि6 ४1966 ४मत्‌ ९१०९७ 886 1 ४. - प्०6]68}६80916 प्पदणणडा, 0०४६्७णको%6्व्‌ ऽध 1४8९्‌{, पष्प सिः ४०००, पनमा क6२5१6६त्‌ भदु९6, ४० 007४८

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810 पात ६1०९३." = सानुभूसेकसाराय 8९608 इ्ञठरुधण्‌6 ०६ & ६५०. {०1 प्लुतम्‌ पाल्वर्पणड्ध लध्रलः (५) ४० 1150 फ]0 8 8016 68861098 0? 86०], ०२९ (2) १० प्रण क]1086 8019 (०२, १, एक अषणपोत्‌ 6 पभत्ला {० क्लमाः कृषरलएणे लयो ९७३९०५९ 38 उनम 161९6, कृष€ 1व४€: 18 ४०१६७ नाल व्नणक्लााैढणा, ऋए्ठष पि- प्रि दमफकपद्तंण) तष 80 89215828 ०1 प्र ल०्ण्फूकतव्‌. एठणाद इले 0 १९6 ५6 तण्डु 9 ५16 छव्साद नष्ट एषठ [नक16द्९. एम. 8८ पापो 2. 808, क्व्‌ एष्रावदषकृ परम एएष्णञपत्त्‌ (छाए. 1४. 4.) 77. 198, 05. ब्र€ (गन णच्यरनकप्रम, 0160 भाणो एललप्णर फकण्यात्‌ करणकः ४० क6 बरन्नण९ भल एप्रक #6 रिप्कृष्लणल कत्‌ [पवो प्रपपम्‌ इ०प्‌, 91066 णा ए6 [पाठर पणन) फल 0 88४७8 धपा 38 {16 07910108. 0णणएभ७ रन्नोदतक्काध्ुष, > इलतेद्प्र- ४० प्रणाः दरतुन्त्‌ ६0 कवोकप्तोपणठम धत सह्व्लणपतङक एप्रणःश6व (गणपत. वणय 264 : शरुत्या युक्तया सानुभूत्या जावा सवौर्यमान्मनः | कविदभ(्सतः प्रप्साभयसञपनयं कुर्‌ || 0078७ 0० देवदन्तौय (? ०६. तोऽपि) भिरीर वरेकता परिरुदढधभमीशंमपास्य कथ्यते |[ यथा तय। तत्तमसेति व्ये विरुद्भर्मानभयत् दिवा | संछभ्य चिन्मात्रतफ सदात्मनोर खण्डभीविः परिषीयते वृधेः || एवं महावाक्यद्यतेन कथ्यते ्रह्मत्मनेरिक्यमखण्डभावः खानुभूनि, सान॒भव, भात्मानुभव &७, # 00701001 शदएछडामा8 19 ५6 एतवृ्षण्ध० एणागणृद, ब्रह्म 38 ०6० व्भाल्त वेनस्‌, 8००8८ ४५]9 2085078]. 597, 799 &०. का6 भ्र १७२४३]४ (ष्गा9९, ४60०तफह #0 80णार ९68, पऽ इद्ध 2150 0तनपार) भत्‌ 80196 ०९798 ०7 ५6 प. 168 मानाय 0 साद्य, 8५6 &8 10 ४18 19)6 1016, एश ९ः४७"व8 9६, 1. , एन 6998 =^ 270. सराय 1४ ©. ४. 9९ मनाय शव्पुएणण 6३४. एप &९८्गवाण्ड ४1९ दपम्‌ 111 रऽ ००४68 ६0 एभपहु४8/21 दद 1106 ^ पठ पक 6 वलणपा९त्‌ ४0. --.49 ४50 {१४.

६५. 1.6 व्णणपला्णः उन०॑68 ४6 जामण १०७०१०४७ भऽ 8. 0008 पण प्र, तपषु 1 एभन्ण९त्‌ ४0 ५०० 10६0 05865810 07 2 नशा कपल प्थातलल्व उ्णणतम्‌ [1/1 0७ (णौ० ६6 ३६. प्त हक6 ६0 8 पदा, ॥16 एप

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६७ ^ पण दनक, धल [०६6९0 कार 060071९." = आीषधकष्+ श्वा ह४९6 ४0 ४18 (168) 516 ६७ थः एक्ाम०प् ; भात्‌ ४6 40 018 धष) ६० & ऽप (शोषरहष ४, 7 (१1०56 [भ्त्‌ऽ 0 0ध्पपूना्षपं $ 96 शिप, वृषु प्ल 0व्व्पाप्ला०6 प्ल" ।श्‌१८त्‌ पह इण्ट, ग16 श्नः क्णपालपणः वणकडपे पवाद्ठ प्यतिमे जै एुक्कणि धऽ 6०ण्ठलसकप, एष्ट उलुक्डला8 वप 35 दरण 6 एदा, 16 ४18 1९, वणते 56० प्क, मवि त्रिरक्ता 18 पणपर्व्वण6 $ , 38 व्पृप्पण्थ्रना+ ४० मद्विपयक्विरागवती एभण६ 2 १४५१९००७ 6 वेषि कस्मा (8वता. एकप, 19६४, एव, 1. 807). भस्मरतकृते परि तुभ्यति 18 २०४ पप+९ णुन्माः, 6 वनपालक शदु8 मदर्येपि काचन्‌ स्तौ मया सह सङ्गो भवितस्य दति मनसि संतुष्टि मानयिष्यति. फरथ्यशप्र (ए, 8, 105) इग्$ भस्म- कृषि भस्मदर्थेषि परितुष्यति समानन्दति भस्मासेव भनुरक्ता भस्मानेर भमिरषतीव्य्ः. एप ४656 कसक 6. [क्षता [11 48 > 8†81त्‌5, 1६ नी" 9्‌)8 पाक 16 पश6ण, ४० पालक) ^ 38 तृष्ट्छत्‌ पध क्रा 1 1०. एणं पव्ववाण्ठ ०६ इ, 5 लकु पपन एलः, गु भण 8६ इमाम्‌ 15 प0ाङ ०००8. (ाकणाप्रनाड ४० 1 पवमल, (8०७ इवत, कापर 22) 1४ 38 वाडभृकपणरछ्त फ़ भपलह ०9 लत. 8९ पन ` १४५४७८४ (101. 1०व. एप्‌.) . 430 णत्‌ एर 161:48/2 155, - 0111 तका 8४. 1. वणम लया दुरविदमडे यवि भह, पि्ाणीाङ्‌ } व्णणणका० हू वेवभ्याफवय 2. तव. (वपपण्डैतः8 एव्‌.) 98० 8018 ह्वर 2331919 2. 16 (91५. एत्‌, 1812) जाध०ः8 -पिैष्भ्‌४, उभा ए४त्‌ पर} 0 898 16 १०९७ ००४ ए. कतिययग्रामाटकापरयैटनदुकिद म्भ. पमं भफुाभ०३ 260 दुशवतुरः भेल इत्यध शनः 18 880 धवााः- अण {न्न (४, एववा) नन्र्धः, 6०९. उवपयक्षश)र8 ०६ नदाभप््णय 18 ज्ञानख्ेनापि दरिद्रः फणजी\ 38 १०४ नान्न, भणते 07 प्रणमः धणति 35 उव्वृप्प९त्‌. (००. ^ [नध्चन भ्वर्‌ 28 8 तवपदकः०पड धपण्डु-" [४ फश्तु 6 छठपत००्त्‌ कमह 6 ऽकपद0 85 श०भा रप 6० + हव्र० छभपक्षणह पर6 तम्‌ जभल, प्प ६७६ 145 जपा ्९.-- 434.

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पजनम" [66 ४8 19 (पातफृवृनवपऽ^ाछ ए. 89 (षा, एत्‌.) छप 7 पक्न्णपदाणयलभय नि. 62. कह क्म्‌ ार्णड ^ शो" 98 7 दभीङ्करेमं चरणः क्षेत इत्यकाण्डे 1४ #< डच वरपपडाद, पतिका दनतला$ 1४ ४४ भप, . भरकर ऋणप्ात्‌ 6 कंश" 169ता ष्ट, एप भङ्कर 0त0ना१8 180 9 २४4 क्षा कहाषदर8 . 21 20 ४16 1088826 पृ्म० 0 098, 1०1४ ४. 121. (पभा. त्‌.) 8० = कधकपषदषर 2. 92 भाते दद्भप ए. 100. (ण्ण. दीषाङ्कर उप, भाद 25/8101८8 84१४४ 68. 01 शिरसि पुष्पवत्‌, 666 1078 ०0०१७१० 8, 68. प्रतिनिविष्ट = एन रना86, 16850 णाषट 30 2 कण्ण गधपे०्य, 009. निषिच्यते 39 ९०४०५६१ १३.४।९}२8 . 21180, 86, 19. 1111

8 ए.- पियन्‌ = क्मपणतकशगक्ट, द््ु- ए07 सिकतति ००१०]१४२७ 2४५४ 91118 विक 900048098 1., 1, 2 ए, 38. (एकप एत, ) कान .९ ३४ 18 88 ९का सिकता वेजदानेसमयां तस्समुदायश्च खारौदातमप्यसमथेम्‌, 0 श्द्राविषाणं ४० गानण्ड 8्कण०४ 708 16 १००६९ एष वन्ध्यासुनो याति खपुष्पक्न- शेखरः \ म्रगनुष्णाम्भसि स्नातः रादादुक्गधनु्मरः णज एषणः (णटपणः #9 €8102688008 08६ 1 ०३6 ४० शहा ङ्ग = #णह8 क)भनो॥ 4० १०४ शा8. एठा भी 1७४ 9 पप उदा 8006 फी वलाक्पधरु 6९५७३९१, 009, हप ए11४98 1., 98, 96.270,

8. श्ा.-भ्यठ., 11४6 0०णपलाद#०ा {नड 8 ४0 10680 इतना, | पात॥ पाथ ‰०व्‌ 6006 पडत 10 8४. 91. छार, [ककरण 28 9 र्म भण्‌त सछ्ण्वल णह 866 9. 91 फत्‌ 8४. 1¶. समुज्जृम्भते, गऽ 6०96०09 760 ४18 वाज्डति, 1 धा ०0६ भप्रधा6 भण ०प्लः अ86 0 6 0 प्18 86088. = 10066 7४ 7णकक् ^ 86६ ४0 कणो 16. गिण ४0 पाल उकण कलने, 2700668 9 क6०्मप्यलातनफलौ ०१ कणी €द्ाकषपाणः उज्जुम्भित 8 रल 88 व्व चे ‡४ ४6 त्वाप 08, 6 {पल्वे 86865४8 प्ल 16 ऋश्डर 26 70 ०16 ग्प्ापणडटु जेम्‌ न. ५0 शम्‌, फणत्‌ कमः 18 पाल शृणाकककणडट ०४६ शाल, ६. €, ण्णः, एष्ट 1 कण २५४ 8पा6 0 नताशा ९०१1 0. 8 [कशा पाह्छणोणद 1४8ना 86608 ६0 6 ०४ शद्पा6 7० , ४९ 86४86 ^ ककाणणड कोणला शफर 38 हारक 8 रविव, क्ण प्र. 57.--5.कापवशतत्‌,

प्रण , 9

8८. शा{.-एकान्तगुण. गूषै6 (नालापा 18 सणपलक्ोाक्ा ०08 6्वा९, ४. 888 एकान्तगुणरदस्यं तदैष नौनम्‌.-रएकन्तं 1066095 66919, रक्ना6. णण. पटपरा 71. 5. एय ४6 प56 ०८ गुण (वकण. हा षए., 42. 09 गुण फ$पकाशोभं 8१8 मैनिने निरपरीनिसात्‌ 1५न\ 33 ५०४ ५४७९ ०००५४.-- 4704.

३६. प्रा. भा आनुिन्त्‌ ४० व= यदा कि ° 88 स्वूप्म्‌ 1० यदा भक्ि 0 प्रक्षाः पऽ्प्लतङ्‌ धल व्ण भे धत पपत प्र, कष क्प गालपतु' 8098 किचिन्तोदमपि किंचिव्जानामोति द्विप इव.करीष मदान्धःसमभवम्‌ . एप किंविन्ज 1698, धर, 110४ १० ध6 806१16८8 €ऽ0म6 धाप- 867 ४६ #6 पाठ 9 718 ! एपका९७७,* एप © प्र 40 ०७ 16 86६8 £ भलि 1४8 (7101९४00 ४28 अ, प6 व्मकफलणाङ १०९७, [ पिणाप्, 806 0866 0 चर जक्ष. क06 वेणा पपकत मद -पण111.96 3०४6तै. ` ¶06 1४8४ [1४6 18 पप्रलै &00्रत्‌इ6ते कत्‌ रन्वृपा ९४ प०त8 {0 16 भप ०.--54्म +.

8४, {3.-- 1115 (१ ०९५४७ 9180 0 ४6 88४ 86९6 ९६१४६. 8 दटुग्धो 2. 801. शङ्कते = 048 धाक 160, 0 पशोणए्ट (2, ९. ४86 16 7

.वमणड पणा पठ) भस्मदोयोयमिति मन्यते 88 का075199. शृग18 १०९७ 710} इक 00पा९०४, = 00 पकतोणषट विक्ङ्कने, कप्णाश्‌१1 इञ, ने विश्वसिति एतद्धरीष्यतीति मन्यते इत्यवे, शरि प्रदः = 910 28 80९९४४60 ०४ 1. 8०७86. प.

8. उ.--भयता 28 शवुपपरद्लाः ४0 ^ 0 प०णतवेल. 7 पर8 86986 लपुभका० 18 तण्कपा०ण ०९, 00, क्का 2. 115. (8०४४ 8४०8, 01688108) एए; ४१००६०४ 11. 8४. 121, 80 ६० ०58 0 1, 0 एप्व्पराादलोक्पौ १. 142. = गपात 1468 28 5814029 ध- ककच्ण्‌ शो०नोरड 6 क०पाालणौकठा'ह गण्वठङ 9" ४6 §98 अये गज्गवृ्न्ती युक्तो नेष तथापि एकदेक्ी परतनाधैमुक्तः. एप 698४ ‡9 168०11०4 98 089६ 0९त्०पाल कषएदुकण ४6 णक (एदगोपते४ गाना. 6. 2079. 70.) विशाम्पदं हि प्रतारं सलौनसां गृद्ध शंकरम्‌ | तस्यत्केनं ताला कढस्तु भवन्हरः १६ &०, 76 व्णकरशणद्कणःह उद्ववाम 6 कत्‌

# (01 शण 8 णयत्‌ कण [प ४०6 ९० पर 0णव्यतकाप,

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1१८ 18 20 वृ स्डनणिण्यु. तपण 6००० वर्ण + जकभिम्‌ 16 110५6905 एं जरममरोभ्रः पदं स्थानं प्रापम्‌ || सा इयं गङ्गा सकं कद्र पटं दातमुखैः सःगरं प्रप्रा. || भघः धाण्णाव्‌ 6 व्णप्ञपन्त्‌ कीः उमता. ^ पृणापड ४6

© ४९४ 195 6006 त०४४ ६० & 10 0०४. = 16 क०ष्फ नल्व्‌/९ 0४ अवः परते पिनिपति 38 6 आ०ध्ल्व्‌. = पछ०फ श्हुकात ०४ 6

4 1. + 81१९७ 160, 16००6 ६० ४७ पापकम, धाला०७ © - €द141, &४त प्र ९९ ४0 ४116 आन्त 0, णप्‌ ४० [6 1618 11766 | ककण्््नत्‌ चर कीगृपणडु इषम, 15 एवा ण्ण्य्‌, एणः ०9 रकण्‌० 800 866 प्रितणुवक2 7०८ न, = 4०द्म ताह ४० कणः (३६. 75.) ४6 ७००४९ गगनच्छिकरशिरस्ततो भरगिमागता [| उतमुखं 1165 106वमोा$ ४७ \6 {भ ०? पर्छ) भत्‌ ४0 प्क पक्षा 0 38 108४ १० शा 86186 भदो भत्‌ 17 1४ 07168 19 ४16 86786 & रवप 0 एण 8.-- 61 का्. रः 8४. 1.--शास्त्रिहितम्‌ 8668 0 7269811 इपा6 66०६ #8 1? ०१. ९प ५७ 8891958. (09९ प्रठ 5त006णकभ काशत एण्ड &६- एक्छराण्ण$ ^ एतम (४, ९, ऋ्ण्ोमण कष्णपत्) पपत पप (वृक्ण (लल्णद्रूनणला 0१ एल०ाद) कपत्‌ ^ @उतमृन्‌ पप्प.- 944414०4 तः14 8. 1.1६ 18 ०० व्वड 0 59 ष्णोलपोल साहित्यसमीतकजा $धभात४ ५४ ४७० ०7 ध७७ भाण०६४8. 1 ००० ५०१ ‰8 ष्णाणप्रलातकफ 1 38 लए18४९त्‌ ४0 76 साहित्यस्य संमोतस्य कठा, .4व #/0णक्वा साहिव्य (11५४४. [11.) 000भप्णण) 18, 90908, 6 ०भा6वै 1८४४, १०७५७ ००४ शकः ९० १०११९, कुक्छाधङग करल एङ णफात्म०ा, ४6 5४ ०१ 1६१48 हार 9 6 ह1088 गा ४6 एकप दतका8/३ (7, 433). प्र आष, 00008, 91:66 6000 ४8 त्व्म ६0 ९6 )9&8, सादिय 901 सगीतकला. जोवमान 38 70४6०. 1 उपत्‌कछ्व्‌ णि ४७ करभ्णहप्रमा 1 7, थुकद्ा 8"दे8ं 80१88 0 10195 ६016 0101169, = 1४ क्वथ ^ 206प8{0०60 0 11४९. 866 एभ्प्ण वा, 2, 129.- ध. ` 8६ उ. मद्ये 6 005््य०त्‌ पः # चरन्ति 8 भुवि कध भारभूताः, (6 तयप्‌ 18 00 ११४० व्माचध- एदु

04. ^ ्ु

8. 1४.--ान्यम्‌. (मण्‌). मतम्‌ 3 वा 1, 2. एर्ापरव्य/8 . 18.-- 4.

8४, ए.-अपस्कृन = ए6016त्‌, कणा शालते, लक्ाल्व फ़ चट ल्म , ग्ासपथणः 98 वणक्ररणामिनानदिभिः शासतैस्पसकृनाः शिक्षिताः भणृभणो, &)१७8 1106 शपए्णधिश्‌ फल्छणपह्ु, 86९९ पदकणा प्रा, 1, 1817-9. = ्रप0क8प 188 उयस्करना भकना चे शेन्दाः--ग्रदेय भ6 0०प्णरपताणःः वसृामणऽ दत्त पूण गणक 09 पञ्‌ एप आ. 3, 118. (क्णद्यठ भात शोगा प्र6 ४९ [08 नि 7 प्राठ गानककठ ईद्यापि च6 िव्डवपपक्षपद्टकप9 क्षा 496 ए, 2. 79. 1४ २8 कणएठण एकपात

व्यं कौ्वमहीधरप्य शिखरं देथं भरत्रीतं

प्स्यग्रवितिखण्डदण्डनविभिक्रोउविधेयोग्बुधिः 1

जेयस्तारकसूदनो युभि करक्रीडाकुरस्य

च्छे यस्य बभूव हेहयपतेरदामदोःकननम्‌ |. दचपव्यठशाण ‰४8 दतुं योस्या भागमा वेदाः-त्‌, = ४06 {०४० णण} तस्य भप 6 इप6त्‌ #0 क05एथः †0 सस्व, रैश्वरा = जगन्मान्या एप, --8(वातकण ०.

8४. ए्.--शं पुष्णाति. ए० ६6 1008 पुष्‌ 75 86४8९. (णा), 8/4 धणे2 2459१, प्र कापट ९8/०४भ६४ 3६. 34, पाद्ण ०6 [19668 करन्ति ग्नाश्ाीण 16068 एए जन्मन्तिर, एप ४8 & ९000णत्‌ 1४ 25 हरण पाप 28 8 80 प्रकय. [६ पकक 8160 06 पकणवनयल्त्‌ [लभा ^ कणत 8 मा एन्मत्द ३४ च७ एप 9088. गू6 पष्क 0 एतद्र 07 656 186 वपलपशहप्०ा§ 38 ४6 58४06,-भासप्, भन्मसहगाभिचान्‌ 598 98191. 000. विद्वा कुडेजवभूरिव जरति नो जन्म. जन्मा | भात्‌ एप 1. 30. मान = एप१९, 86056 ०9९१8 छक १०१1७88. गोचरम्‌ = दिविषयम्‌ इ्ु8 वणम्‌ ^ फा प९ 860]6"* हश्णलभाङ, ४0क6रलाः) 28 38 पड] फलव प०क.--5 "वकवः

8४. दए 16 व्छ्णपाला ४0 ९0068 कषु तृण हषण दीनभेसनु मासेभो भवति | जघुनृधेने भवति तनुच्छम्‌ 1१ 80, फणपत २०६ ४06 ०७४ 9९७ 89त्‌ ठेएुतृणमिव &७. कषकः 128 पथिक 0य 38 ०0६ 118 ४6 ३90९९ पक्कणं पएतलाऽ8त8 रे रात्रन्‌ फा $ 8१०२४, परमे 16 26४००४8 ४5 भगवत्तचं संसरययायं 1.60 9.

8 07125.

8६. भप्त. एणयः धत इर्ल्छपत्‌ [१८ दनणृश6 एृ्ानोक्षैढण(क (नण). 808, 19४51०8) 1. क. 2 पणव दणा111911288 ., 12. वका6 1168 8 ९७४४ (000 0 छप [एकलक.-- 1 05कादवद[ढकद

8६४. 1.5. 4व्दपद.

8६, 2 द.-नाम 15 8 विकणे शवृप्रभेलप६ ४0 “००६, 9० 18 ण्थःए् (जणाा०र ०८७७, दमण नीक्रव्ोरय ४8 कनां [तारक शणात्‌ऽ ये नाम केचिदिह नः &०., व्पृपभा़ भनौनछणकय नाम शरासनम्‌ 9 ४16 ्विद्पाणा रदश, प्‌ एक्षा10प्8 0४116 18068 प्रच्छन्न गुप्तम्‌=प्रच्छन्नं यथा स्यात्तथा गुप्तम्‌. [4978101 188 प्रच्छन्नं तदु, च. 1४ 96805 087.600115/ ए70- ६९८५६७५. 0" गुरूणां गुरूः, #6 ०0फा्भष्वणो 138 च6 णिाणक्तण कद्र गुरवः समविद्यादूप्ां प्रटुमायन्ति अर्तो गुरूप्णमयपि गुरूः भयं गृणाति हितमुपदिशति इति गुरूरिति गुरूपरम्याख्यनमनौ हितकर््रौ विष. (१18 18 ६00 ह्वि-जिनलत्‌, ४४ ०४ {९6 {ठप पपिग्प्राध्र चछ. गुकूणां गुरूः 18 गणु] 160668६ 0६ ४1९ ०५४, गुरू 18 एणा ००७ (एणः ए, 1, 44). ` एणः ४, 6४ ९७ 6€9 वपां प्र, 8, 41. राजसु 18 १०१6६६०० पए {06 000ाला६४६०॥ 88 & 1.0. भ्रट, भणण ३8 कृष्नन्णु्क सह, एल 18 इन्त कक्िन्पा; ४० कतत २, णण वदु 60 एषण [1 3, 67. प्रण इष पणर ४016 राजसुतूजिता ग्ण ४6 क्षिक 88 2 00प्णु०प्प्त्‌ सु गण जपतत पृिता.---5/दवकवण 4.

8४. > .-7० व्ण 8£0 8858 देहिनां प्र णिनां यदि कन्तिः कषमा ववे तदा स्यन्खनवचनेन किं प्रयेजनम्‌ तथा क्रोधो तर्हि भरिभिः शनुभिः जिम्‌ ।। जतिशचिदनल्ेन करिम्‌ ! दायादाः सहनारय इते वैते (। ज्ञातयो यदा निन्दादिषरषरं वदन्ति तेनैव दाहय भवति भन्ने: मि प्रयोजनम्‌ | **००यदि नीडा छस्जा भसतम वैते तेदा तदेव भूषरणमितरभषणेः किम्‌ (ण्ण भाद 55 एलाणत, पर6 पापु ४९ व्ण 18--प्६ ०७ ह००त्‌ रणा (४ | ४४6 6888 6} &८6प७ {00 ६/6 026 पठ 0 ४6 0्थ 1016 84028 8150 00८8 128००१४ 2. 2.8. का कद्दण्न04

8६. शाका 18 भण 1 00४1) 5603868 0 6 पणत्‌. ^ 09 चलथ 16508 ४6 भ०]१.५४. ९, एए क्रकपः +686 वृष्शयुध्ड, इण्लल कण्णात्‌ 76 -काडणवनय, = फेणश्चधप पण्ण्व्यऽ रोके स्थितिः जीवनस्य. . (11141. 2

5. , 9

६६. 711. तिति स्वम्‌ 28 8 नापप कृ ४९, हणा कव व्णाकृभि० ६७ अग्नाः ए8 88. पहा एकव्ङ्‌ ०४त्‌ 866 ऋोप्प्पणत- 9118988 1. 119. प्र४ाकडाणं इपका55 हे सदे. ए८क्छपव्यकप,

8५ > शष.--जयन्ति, 866 4४४४ एप्प }. 1 (099. एत्‌. धिषाकडचकनप्तता> पिप) सयतययेन नमस्कार = भक्िषयते ण्थशेषं एलशातलड ३६ उन्कर्वेभ वर्तन्ते रससिद्ध = ७९४१९०४ प्रः 19828. 07 हता पनाध७, फला 0 अक, नकृष्ाठ सपाह ४6 २७७०8 ४१ हन्न 10४3 1०, काहे प७दय सिद्ध स्यन.--4951! ष्फ.

8४. ए.-06 नगृ ६16 क्णणणनात्ो पहणत्‌० विष्पहरिनि कषु समेकसिनि ४०६० सभमतोषकरिणि, एष्ट विप 18 ००६ 9 800 खगै एष 9 जयत्‌ (40७४ 7,, 6) त्रिविष्टप 18 स्म {८ [+ 6.) दषा ३६ 38 १०६ शाजक्0 10 इरिन्‌ 00405 निष्ासिन्‌,. संनोषकाटिम्‌ 18 0716 0060६, = व116 = क्णपकूतणयावै लडह कदल ४6 ४0 ६५ सण्त्‌8, ४108 पड 10 ऽक, 1०$ ०४6 "6५11३. 5/6 कण.

8५. कड एा.- रकतया 18 श्वृणाण्णाला४ ४0 ययद्क्ति, जणपणवनरभाक 18 0 06 श्म कष्णेष्णङ एफ धात एततः गरकृत्यदिभ्य उपयानम्‌ 8९6 ऽवेवा. (तपण. 1., 270. भनुवशविषिः = व्यक्तो विमिर्मर्रा एवंभूतः (००. गलाथ), 06 15६ कप स्कु, ७6 पष उशवनल्त, वाऽ 18 कृष्व ४0 ४109668 स्णुान], 18 60०७ ४0 भ्‌] ४06 ३45६६86 ४० पवय 1... 8.21 श. 7. ./. . 11 / , [#..1.1 45.57 4वा074.

8६. उर पा.--866 वप्ता 4०६ 711. 2. 79. एए 896 ६0० एड वदर्गम्‌प७ (प्मा8 एत.) 7. 62.- 7५901676.

86. उर एाा.-विगुैः स्थेयम्‌ = पणरभफण्डु वादु 19 फऽणिपिपार सरगौरपे व्यजति 68 ४6 तणप्णलात्थण, 0गण्‌. ककिद्वा४ 1. 5. उदि 18 166 पत्‌ 70 © 8656 अपदिष्ट कत१९. (ण्ण. ककिश्पे- अपान ४, 188. भत्िक्रारात्रत.-- प्रथ {6 कछपतरलकठाः गकछतथाह ध! नैष्ठिकत्रन. एप्त 86028 64 ए1616 1४ ०९०पा8 कभ 1 125 अत्ति धरव््कठिनम्‌ णृ© 15 0७ ००86, भप्ग्पड्का, 0 कटिनम्‌ , नेत्र 0६17 , 6 शप्फकपरपा6ते, #5 धऽ [श्ल कू 1 पवा००४८७ ४5 अप्पा चत्‌ 3

१८ 1 11,

ककाक्व्‌ दिव्वूप्ठणतत 10 वन, 866 1306 (वृकाणां (वपष. एत्‌, 340). एकृष्पयलणदमे इष्न्छ्यत्‌ कत्‌ कूषणणत्‌ 6०४8 प१९ त्णप- एताव 35 अपूभष्णन्त्‌ 1 9 अद्ध वाल फक (866 ४४९ 10859168 9 ४८086 00६8 दव किक), 4 पत्‌ पोगष्टो - धल फलाः हषा शत०पड {0 06 जोण्डलाः, ४४6 वपक्ाठसक्र ९7 ाषवैनिम फक 6 कलते छः #6 प्ल, 866 पणवाः ष्डप्परकषा82 २11.) 67 = फ)0610 16 898 इदं चसिभाराचङमणनुन्यलादासिभारबनमिव्युनम्‌ एरभ8ा1) 1616 §्फ5 भसिनारा खन्गमारा दद्रहुःखक्यम्‌ ® -पण्तः 8४. 64 06198 भसिषारायां खड वारायां वतं दुषडरमित्पयेः. एणः एका ०पर पण 98 0६ वरत 866 पाप 16४18 ०]. ४. 18) 19 कपत कपा०य३ वपद्णकवप्रेठण ४6 (0 &१९त१ 1., 225, 281. 2.-5ताम,

8४. दवई.--प्राषठ पथिः कवक 2068508 8फूभा0रण्ु, व06 ४लता)ढु दन कवल [98 & एषाशान्‌ हप्र 8४. 59 (ण्ड #0णठाो9). मनमहताम्‌ = हरव्वैयै ३0 इन्‌र्ल्त वधपा व्ण्यणृभ9

मानिन्‌.--841470०117:0.

8४. इ.--सस = ९6460688, (010. भगावसस, पश्वो परशा'ऽ^2 प.) 21 वत्‌ .८मापलाककु कशाप्& ०३६. = द्क्षापक्शपं मलावन्प्ड 1 9 चितन, [८ ४७४18 पराक्रम. 866 एभ्य ००६९ &# ३६९५०४६ 2, 32. एप ४४७ [पछ ४6 §त्वणद न्ग), 0वषणणरा1850 1. 49, 54107010.

8४. > ‰1.-चरणवपते. एदा ००त8 ४073 पादप्रसारं करोति, गत कम त्मापजातणठः 8४3 चरणानां पतनम्‌, 1६ 86७०8 गलाः {0 गरमा शिण 2 [कप्ण्न8] 18०४. पिण्डद = कवार ०६ ००. (णम्‌). एकातीक्दव०ध४ 1. 76 कणत एकलक्षं %. 81, (@ष०. 24.) ऋ)०6७ 0015 ष्णवैप 35 ०भाल्त्‌ विण्डोवजीवी ०६ ९१३, वपुगतर (णण). 8ष००- 0का68 वृषभ, ऋषभ, भणादि प्ल्‌. ए४९१०।40०ध,

8४, दप. परिवलनि, एछ्मोणण्डठुः व्णण्ठ, वपर भाोएडामः 38 5 6षलः-पकतापण्डु प) 9० वन्त) 19 ४8 रणपत. दुनरपि जननं पुनरवि मरणं पुनर्य जंननीजकरे चयनम्‌ ध26 किप गला४65 {0 506 608०४. (पुः कत 08दप्‌०९द्‌ उदणद्कनध्य १. 866 जणो 38). -क का, 16 कृष्य का ‡3 [तोजणनल्माङक परतप 17 प्र कणु 11. वृचजञ्रमणः

1६016, 11

19 वत्‌ 066 ४0 धाना) क्त्‌ फश् 1€ प्लापत्‌कल्त्‌ ङ" त९९व्‌.' दण] दोक]. 7700 (1 ¶. 98 # (0 8६. 60, 1 18 ००६, 1 घरपर, 6 तुरण वा १6७, 1४ ४6 1०६५व्‌ ४४६ पध16 जणत्‌ दं 18 2130 50ए6स्णाद४ अप्राणो ०६९ ४३ दव बहुमानः 1 पभगवह्ठ४कः$ 8४. 25 ४0 1. 3 भत्‌ 1 18 प्रा कण ००६७ भीं वा 18 विक्रले 0 उवमायाम्‌, 8९6 ४९ ¶००- धष््गो 3 भावी वनपालक कः कष्टा उष्. 1 पपत भवकाः. पभा, 1. 55. 1 णहार, ००, प'6 {नारण्यं 6688० पर्ष 06 ०००९. ^ पण अपठ षष्ठ = (ङ्‌ पशाद वापा 01 06808 तप 16 &७.* 09 ४6 नक्िलः प्डणत्‌, कषक 201 प्ल पणत्‌ 19९6 8015. 00प्रपस०प (शत 06 वा 6 ववर 0 धर एन) ९8 ? काव 8४०१४ 16०४6 ९०901018 कात्‌ वा कला ४९606 र०७४व8 { ४08 पष्प एनोभ्‌)8 1०व्त्‌ ०06 अपृ०8० धकप वा 18 भनार & शप्ोऽैप९ इव्त (४७9 7 178६4066 8 परव 88108 }. 54 ६४ 1088 ०४१४), एप & 10१38926 [४ 16 [एढचशोप्ष्धत्‌ चछ्माकक्त्‌ कणीतइ पटुक ०६६ पण5 शंत, 86९ , 19. (४1. 1. 4.). 866 ०15० धऽ 45580 (00 ४6 ६८५४. एवे फप्पपाण्‌कै वप्ठाडव १४2 कणयऽ व6४5 358 (दिरप एव्‌.), 81१५९ भपप्राह ४6 ०००९6, ॥9र6 षणव ८. एनो 058 6द्ाक्षपस्त्‌ 19 पणत्‌ तललपणीङ्‌ ०पव &8 9 तूप ४९, 806 ए6पवकधाप्र 1, 1 श्र. 10168 (एण, 098०8) , ~~ 47४१1५४

8६. 11. ^ 09 मारि सर्वस्य डोकस्य. $ गणप 1:16 तित्‌ 9 पर्तत शपात्‌ 16 इषएाऽवे भणते च्6ण = चा€ (कऽ्ाजाेमा 06८००68 स, 701 द्वयीवृ्चिः 16 उ७्क्वाफहट 8०06 9 ४6 क्ण68 00096 प्र 8- नापा 81 (वपक्रिनउ पप.) कपाल 1468 ०६ काब्जणडछ 108 ४०१्‌ हक्पक्षवड 00 11693 18 पटः एभापप्मा 19 8िकारदु( [लभप्ा, 101. 8४०९०68 11660 80806नृग ९6 १००४९, छक, 110 ९श्लय, (ए्णाते 86 66- 1 न्मः इलो 9 चट 19 जपः व्क ७०८८०0४ 39 क6भ्णट 9 14त1९8.- 411317९४,

ददश ए-वेराफते. एवभणोपधर6 = वैरं करोनि 865 एप क. 1; 87, णः एकप अपाणि ६०पक्ष वऽ ४6 उपप पणत्‌ 000, भणत

42 (12

28 056 866 01948 एव एर कोभ. उ, 5, 13 भत 16. निः एन 28 पौ6 ४७ककैरदटु १त००४६९त दऽ 8 एषप्ताम्‌ 10 पक्षी 8 3६ 35, स्णषला० 50 10पक्जः धज 18 9 पवाक एण जाः कड कण्‌ १०6, = ऋन्तः ४6 (पाफलणादच्ठा = पपरतृडाशोते$ ४0 ऋका = 108618816, प्७ 598 कोपीवदोषीकृतः अती भ्नान्तः. ¶06 फश्धणोगद फा] चला ४6 ए४४, नक्न्ष्कृ) 195608818, {६३6६8 ०] पल ऽप ४०१ 21067. 00 त०ाड्लणः 0) 8 अवि 01: णात ऋ0प्त्‌ 9 6 रणकण पणपाप्‌ $ ४0 ४6 ०666886. = भ्नेान्तेः फट क80 06 ४979६ +6- ०1४७१. ` एष पभक्लः ०१ ४७६७ कमण णट5 18 वो ४6 88४58 ८णद. श्रीष्ण मस्तकेन अभवदयेषीकुतः अनवदयेषः अवदेषः कत इव्यवदोधीकृतः. (08 38 क~ अ98 कापकअंऽ ०६ ४6 198६ क0प00प्रपते. एप १०९३ १०६ इतन ४0 26 00१७०. श्षविजेष पऽ८ 915६ 96 दैषःल 28 8 तप्र ०त्‌ पल 116 कन श्पोत्‌ जणन्व्‌ जा पभ। १16 चि 802. विद्योषविक्रम 18 8006108४ वाकपःध16, = फकैणवापं सामण०8 1४ 28 विद्ोषे उककृटे विक्रमः 1066 विरोध १०९५ 811 -हवृप्ठाः6 गपा ०७५००. 1६ पक्त 96 6 गकाणव्यफु कराण (०5 पत्षण) फतठडणणड्ठ (सणडपकषे रनर, ठह अदा भु एत्प्मागे 1पडा०७ णि ४५8. प्प ओष 8 ७४० भष्पाकः 0तै 18 १३० 0धौ\ 8 86 भत्‌ णत्‌ एहट्काणाणह 0 6णणएणप्फदे8, 8९6 पफक्षा9. 1, 35 0 2/8. 91. ण्णफापासपण फपतवलशयतेऽ 716 पाठ दय ४0 ४6 कष धा दरण शात्‌ ०९ वकक्रङुर्वे २००४ कणत एकएव ॐत ०९६ छण एषभ्‌- क. एप ०य 8 6016 0 ४6 0तह ७७९व्‌ ४66 9णत्‌ 980 ४८ ४९ ्ृए०पपणड ३६००९६९, ४6 नण 866४8 {0 16 धक 62068864 19 ४16 1865४ 1106 9 $ 30.--8/4नद[ण् ८,

9४. ए.- फफक. (णण कष एषणक9 (लान, रिपवे 2. 95 फला6 १६ (न्नाा8 0 6 00 कणः कुक -मध्यपृषठम्‌. क118 गणा एष्लयह 29 806 01४6068 एप 38 20६ शलापु त्णणणा 16 जिाज्णण्ड प्प 06 8600 कण्ट 0 पडा ९९७ = एधण्मप्णाके5द 1. 69, 12. = एषठञक्याणक्षहा1 9१8 ‰. 11. (परितरङ्किणि) भ्त 7. 143. (मध्येसमुद्रम्‌ ). द्गते क, 177, 1४ 38 82 4 तेद-व्णणूणप्पव्‌ का 6 तच्पोद्6 ०७९, पणत्‌ भोगन्ये जणा

१४ 13

क्प प्ररे भणत मध्ये, 366 एप आ. 4 18. क्रोड पठ (लफपलाणः - १०८७6 ६0 70७ वराह, एफ 10 १०९७७ #6 प्रयति ऋ४]:6 ४6 कमडतरेत क्रोडाषति, क्रोड. 1076 7४605 भृज्न्तर (4 12., प. क[सिपप्लो$५- 918) 01 उत्सङ्ग (1९0७२ नध्न्व + 28४४84४, प्र ०118 ॐत. 2. 8४). गरा© फलप्मणडु इपोकाक्रनङ्ग ०06 वणल ५06 00688 €~ ४88. कजं तज्जल जातलाइ 1 मध्यभगिकदेदे. 70 धल शण 806 पि एपादएष भ9, (तवन. 267, फाभक)५ (एना, म्‌.) 1. 20 5९. =, (धिः तर्ञ्लपफ्ण्डु कह नापप, ४५ [9 11143818 710०6९08, ~~ परविवेशछाय वतां मन्थानः पर्वैनोरत्तमः %त्‌ पना इफ ठप धल कृषण्फुलयः ४0 एशिपय 1४ 865 ईति श्रुता इषीकाः कामं रूपमास्यिनः | पतं वषत; कृला चिषये तत्रोदभौ हरिः || ०7४ ४/७ $थ 8 तटं तवणा रण धाह लक कलयरणकदककः ऋकाक्तमातप्‌ १०९8 80716 एला्षप्रमील न॑) त्‌ 5१6ी\ 1४49 ००6 कपव०८ह स्वना 1/16- (नकष गा९. भुहहेत्यदुते सदे (कमम रदत वद्‌ पण), प्ला७ 1४ 1 भटूते. तणा), ण्व क०फफत्पत्प 7, 184. वृधि स्विस &५, एम) 38 7 1106 किपः? %. 9.-- ददं 8. इदप. एन्धा बहठ़ कत बहल 99९९ ‰००त्‌ 86195९6. {0 दद्नो- बरार व्ण). प्रोप्प्लोाक्र. (कक, एष्व ) 37. वरदः सुनुः = किप, 8070 ६1९ प्रा्िकुढः एप्रपपरभाकर8 [. 20. कल नान्य णा ४6 वद्रफरपकृष)१ 6द्ोम78 ४6 भाप्ञ०प ५6 -- ्रमयुवाचै -हनमन्तं वाक्यज्ञो वाद्यकोविदम्‌ | पक्ठवन्तः परा चरा भभषुः शीघ्रगा मिनः ४० || व्रजन्ति स्म दिद्यः सर्वा गरूडनिरुरदसः ¡ ततस्तेषर परयानेषु देवसङ्घा संसदः || ४१ मनानि भयं सग्भुसेषां धनमचङ्कया ` ततः कृद्धः सह॑लक्षं पर्मैननां सहखशः + ४२ || पक्षाविच्डिद वज्ञेण तेत्र तत्रे शानक्रतः | मामुपागतः करदधो वजमुद्भ्य देवराट्‌ | ४३॥।| तते सहसा लिप्तः एवनेन महत्मना असिमिररणनोयै -चे विक्षिपो वनरभम |! ४४|| गुपरपक्षः समर्थे तव पित्राभिरक्षितिः | तदा भिरीमां सवषं छिद्मानान्महात्मना || ४५ ।| पदचन्दृश्ुमहेद्रेण रिं सहाणम | सोह- मिन्द्रभयात्तात प्रिथ वरूणारयम्‌ ।। ४६ गूा6 610 व्ण चठ एजम्‌ उचते 28 प्०४रफगपु ९, 1 ४6 ल्णा$प्छ 0 9 वरम --न पनः अपठ) 2 कणत 35 10६ प्रभे, 168 शद्टपलद्0ः एलक्तद् प्पृभतत्‌ 7 6 वमाप रधो, एः भद्द

14 अण्ण, ,

8९8 . 16 71015 {० {16 188 8४०2६. ९६७ 1६ 15 प३6त्‌ 7१ 165 8९८०्‌ 80.50.604. | 8४. उर एा.--पत्‌- तत्‌ = 8006 0४ 869४ ४--ौी1ला. इन श्नात्‌ भरि

001 06 पकड ०६ पत इ. आ, दैकपदोर्न, पदिद विकृति 7 पलक ध) इधर 8686 28 निकृति पणन, रणे तल्ण्याः8 88 & एकाक 1676 प्र) 8०6 छक ९७, = ्हकणऽ 8ज्फश्राषहट चाक 18 पण, ६७१९७, पुपस- कणरः विकृति त्प. एपप्पपणक्नाय 184 तदपि खलु मे व्याहरस्नुर ङ्मरक्षिंणां || वरिकृतिंमखिरुक्षत्र्िपप्रचण्डतयाकरोत 0. निकूनि ००ण- 116. 1148 1. 43 ०८ पा. 44. 11616 18 1111 पकी 771 धाद, 100६४ 0: 04. कृण प० (णणडन्पटधमः सहते 8४90वण 0 सहेत्‌ व्ण]. कलारत ए. प्5-24. कग 6 9 6 2464 प्भोक्यक्रलेदा+# ])न 448. मयदैरश्रान्तं तपनि यदि दैवो दिनकरः किमान्नयग्राक निकून इष तेजा वमति. 424.

~ 8४. > रद एाा.--^ 00 ४6 = पाल्भाणष्ठ 9 कपोतभित्ति 806 112111.. 1011008 00प्रणथात्पक ष्ह्ठोणा. ., 43. १५ प्रकति (णण). 8धणदट 52. १6 पच ०१ ५७15६ १6 8748 पल्वे छकाण्डडाण 9 इशत 1५५७१४।५१०९ ; तैजसा सह जानान व्यः कुद्ोपयुन्यते (ए \1:4364.5 तेजसां हि वथः समीभ्यने, ए19१०0 ८/5 गुणाः पूजास्थानं गुणिप्र छिङ्गं चं वयः #6 ०४० एनान 108६१००१.--41-34.

४. उदार. गच्छनाम्‌ भतलेः 1148 १९60 ३६६६6त्‌ ४6 ४6 ८९०त्‌

ष्ण 708६ ४७ नमूं०छ न्माडपाल्ते 38 तन्या स्कानामप्रम ््भाकटभ्‌क, यम्‌ छम ४७ ०0४ एलणडट कल 70 नि6 दम्कणाफताड 9 ४६6 1 116 [्थकषपत९ ४8 ्प्ाक्षालूृतो 1001. भभिजन ॥6 कनप्ा- ` (80४ ७४प6 [फ़ सजन, एष; 88 21} ४6 कानः नपण शाोधाथ०6त्‌ &'९ पृष्मा@ः गल्डवाटु 7 पप प्वणववम्‌, धां पम्पा, सल 3६ भान्म- भगोर नहन्भ्याषला०, 13 0६ पताण8श6 [७ = पतलह 7 क16वा8 फ0्ा ०१ एप्प) 88 उ/पत्पाथो$ अभिजनवतो भैः शध्ये स्थिता मृहिणीपरे अतं उणशणयु ४1५08 ए08व९5.तरेरिणि = अनुषक्रासिषि 8वए8 [द्िप्ञ), कृष७ कतभपरठ ऋत्वा अट, 00 फन्रल, 18 ५०६ 1९.-6"47दव7दण दः, &

8६. इरा, भप्रतिहन = पण्कृपाऽ6त-9 ॥6९६्त्‌ ए्णोनाा 18 ६६ 10106 लल पाम, अरयोष्मन्‌ (णणृषर एपलष्म। 7, 95 (चोयेप्मन्‌-)

^

4.72 ¢ 15

काणो 1. = (मणा), (क्क) रो वित्त उष्मा (= ४,० पणत र्ट्मौ),) पद्मः अर्योष्मिणा परहित: कषणेन अन्यः भधति इति एनत्‌ विचित्रम्‌ -- 17८०१०८.

8६. र11.-- एष्य.

8६. उता. सङ्क ध० एणपपालयसणा कृाभंणः एफ छीसङ्गो वा दृएटसन्नो वा. एप्र४ { पपार ४० प्पर्भणद्कु 18 फठा० हच्णलःध्‌. 1४ 18 विषयसन्ग, 8118011 प्र€ा४ ४0 फणणताङ ९०8. 896 एारवर्व्तह्ा £ 9810. खक्लोयासन 35 सपान एफ षैषषनडोधः 8 दुर्जनसहचारः जन) 35 प्ल वलम पन्था ट. षु 8180 6९४ एल १९५०५४९ { समीकेपासन ०त्छपयड 7 कप्भनणाभतार 8. 6 (मत. एव.) 0 व्नृकु भाल व्ण पला हा ए७७ क8 इङ ९8 ०६२६ सत्रा ४४त्‌ संगति, 119 जलः 18 काथ) ह्ि्र०प8, अनय वणु पऽप्५७) पणि 19688, स्वामि चष दफन, 1 एतमु --9*47तद[व ण्व.

8४. उ. प्तनाल ण्ण प्ल [काप 8 फपल, 0्णात००६९त्‌ ; वित्तस्य 005४ 16 8प्एााकते पठण, ४९ 8९४ 1०6 ३0 ४6 8860यतै, कयत्‌ तस्य पाड , 06 णु ६6 क्डलः यो शत्‌ पतप (18.494,

8४. ए.- 0०6 6 ४16 न्णालयध्वफ 195 एते ग्ितविभा अवि गर्थिषु शोभन्ते 6 ववौ 1126. एण धाऽ 18 ०0६ तएण्पाष्ल, धरिष मिति. भवा जनाः एलंगह् ००-गपतपमह क्क ५16 उपल न५8868 ०१ €05गह रणत्‌ पपहए5 लप्णाालह॑6त्‌. जनाः 111४6 मणिः प्त प?© 168 386 2 इषापुजन ६७ र्ण) शोभन्ते. दत्तो भत्‌ ईयान स०पात्‌ इश्लण ४०१९ एलः ज्प्तीण्डुऽ षाः {11086 61४९९ रभू 0 ©, १8 आदु उप एल कपौ १6 [व७६ तनिम्ना. नि्हन 33 न्प१०९त्‌ [द्याक्ाशा 1४ प्र'8 86086 0६ दकिन ण, क्षत, 4110 566 [९१४६६ (ए. 6. एटा, प्धृलशा ^ सदसोण प्रा लका छोभते' गध 00 860) णा) रक्ट्ापतकय8^॥ ए, 28 8 ., 47. ^1०४४ आर्शाः§ 6 (मणाल 98808 ४16 1608070 चा धल 6५ महयपूरेण विष्याताः. ^+ 0प६ {196 १५००४. 866 कहाःप्ररद८६६ प्र, 16 भतक्ष, 80 भ्न [भ्यः क88ग्6 1९68, 140 सकर्लाः, हाप परल 8५ तण णण नह छाल, ` & पत्‌ तछ्‌, द्ननलपाशकन) . 19 (6५1५. एप4.).- 6.

16 [3

3६. प.--प्रसति = नुप्र प्र्ल्गदोणु पाल व्णप्ातपा 10 कपतजध् 15 हषलि. 1 पर्मःह 1190 ४न्<०काणटटु ६० 48 11. फदपाञदृक्ण्वद 88 पात्‌ (शिण्णभः 125 सदस्ताज्जलि, ए0 ४6 10941१९ ४०७ 74४ 1., 4, 56. 701 भनिकान्त्य 866 1108 00 ईव्थणठ, 7 818. 0४ #6 1886 110९8 © (णपा पइ ०8 गाररइ : अतः घनिनामनै- कान्त्यादेकस्थिनेरभावान्‌ भवस्मा अर्थेषु प्रयोजनेषु गुरुूलयुनया वस्तूनि प्रथयति संकोचयति यदी कालेन भवस्थाया मृरुलं भवति तदां गुरुवमेवच्छति यदा ऊषुखमेबाङ्गीक्ररोति तदा काङपरतेनवस्यमिदया भवति. 11118 35 ४७६ वृषा नर्क, एदल 088 ४9 णार अनश्च एनेस्मत्कारणान्‌ अनुमीयते अत्िकन्त्यात्‌, एकान्तस्य भवः भनेकान्प्यं तस्मात्‌ भनेकरपरकारात्‌ गुरुजमुनया गुरुधासी लपयुश्च गुखजबुसनस्य भावसत्ता तया बर्हलसेन धनिनां धनवतामर्थंषु पदार्थ स्वस्था निष्ठा व्तूनिं प्रदाथीन्परथयति करोति चाम्यत्‌ संकोचयति सव्ययति एतेन यस्य यदक्‌ वरिभकः तस्य वस्तुषु तादृ्येषा- न्वयः, 1१४ ४५३३ ४०० १०७६ १०४ शूएऽन्ः कमात इथड्न्म $, 7 सू०्पात्‌ पपराह ६6 ण्ठ षड ; व्ण प्० 6६४0688 9त. 810911* 11688 [३6८९०16] # चण = 19 6008 व्ृ ४७०९ धाऽ ` पप्रा, [1॥ 18 ४0 16 पप्लिपिन्वे पाम] 1४ 28 ४७ त्णतत्णप फला 9 फण्षाततः

1. त. 7 1. क. 81066 वप्री्याछणा 8१४68 ०१ 1788 ` 06 कण भएदुऽ.#७ उष्टष्ष्वन्त्‌ ९8 ९६४ इय], भरालर्मणः७ 1६ कड 2० (व्ण्यलोण्ठन्ते पड ३६ 18 84५40 ०¶ 1189 शणोप०, = ९0प्९6 5 पदषु 80 आव्य. करयति = ण्णञतला8, कण्ण). वरत्वं क. 7.5.

६४. 1.एा.-- मेन 18 छप प्रप्डपदष्‌ तणरनन्धरठ यादे. एदर्कपद्मद,

8४. इ. प्कनयन््मनद,

8६. 1. भन्ना 15 [96 त्वुण्ार्भूजणट ४0 0 0 क०फव्फद,

दध्म इफऽ येनोक्तं . स्वैः सपीर्विसोयते. 00707). 8६. 108 एग०प्न गुण = १००१ पपणर, ४००१8. (जणा 8०28 प. जह्मणानामिदयुपठक्णं स्मेल" कान परलनमित्ययैः दरतपवधेप,--8/ दत.

§६४ उबर भाक्पह (दमण. लकणम §वणट 42. वा6 © ए7्छडा०ा 38 कनपल तणण्ात 1 तूर एलाणक०्योक्षह 2180. पिक्तवस्सु-

वृत्तिम्‌. 0०". §“वणणषथा कुक प्रियसखीवृत्तिं सपलीजने. कुण = 29186141016,

[पपाउत्व्‌. (णम्‌. निश्च 8द्व्णयत 4. वषठ्‌ 185६ 1106 2069४9४

०7४६. 17

8. [क एज 866, 188३ कृत्णं वृणत ०६ सलः {णण 8 थ्‌ 89 {00 6 ०6८९०. --5कवाकद्वद्दद 8४. 1+.--गोचर = पपप चल ०6४० 0१ कुल) 6७०७ [णक चतिकधारोतीवि-- नार इति ०णात्‌ एवभू08 969 एन एच्छताणडट ; 1६ ्पठकणह ` ९४8 #6 आपृण ४७ क्थ. = 7० ९०४१७ ६6 1196 ४8 चात्का- - धार दति केषां गैचरो नाति, .प्०ष्ड, २४ फो 10नण ४6 पठ ४9 २९७.

णहु 9 फ. पा [छएरनर० व्यवहितान्वय.-41१४०{५.

६४. .--एवादृ्ाः = समानाः (०न्णाणलक्छाक.) 1४ 8०09 {040 ६५8 ४५९६ 6 क्णपपालछषथौमः २8 एणि6 भात रत्व्तण्ु एकादृक्लाः ५१ ` 6 20६ 116. 706 769कण्ट् एवदु लाः पक्क 00908 6 पत्थिकृ्लैश्प्‌ 4 ४69 6०} 98 १०६6८१९ #0 © 8010४860 ६७ दीनं वचः प्र, ४४७ गदाः प्यः 06 इप0०86त्‌ ६0 6 पठण कण प8 ४3 शणरशा, 11 8 1

8४. [्.--षने सुहा भप०्ालाः पशका०6 धह वेषयिकसप्रमी.-22*५८५य- (11 1. ¢

8५ 171. 18 कप्त # क्रमिक ण्व्य 1. 295.---401५2{५,

8४, (नए. व्रतसू्ची = ग6 क]0 [188 मह्कवि प्०८४, वत पदप 90} 260त०15 सदाचार्‌, विमतिता = {००11810988, फ४9/ ०६ 868 अद्भिः ध; निन्दितः 895 ४10 जपन, कजाङ्केतः 8०58 78196001. 1४ 618 [11 पक, फपर९त्‌, इथ 6 भत्‌ 16006 2960) फोन, 8८७05 ४0 96 ४6 8611856 #©6, 16 0008०४०0 18 ६५8 शोमति गे रुणः जाल्यमितिं गण्यने &०. ४४व्‌ धल 0९१०६ &०06€ पापठणड्ठो 80 गपशप &००त वषशा प्९ ॥18 8्व्ट9 पपतेऽ कच को नाम गुधिनां गणो भयो दु जनिनीङ्धित-ननिति निशवपे संवोभने वा 8478 दण978)01. पऽ 8१९8 दुनैनेरिति प्रतिक्रियं संवध्यते. (11111.

8५. 1१.-€० ४. 8६. ा., ४५१ ३68६ ००६6 #ोणला6 तपसा = महापवाक्ष ~ दिव्रनेन, पदकार, वाठ 39228 008 अदर कएञकणहुः४, 1. 3, सकवणर,

8४. 1.ए1.-दुर्गन = पणि ४४००, कुःड्०९३७द्‌ कात्य = भंड 18 9 ण्न (०9 ४६6 9 ४/6 ०४, @0, जि ०४6 1४180०6 9६४, [2 ., 7५

15 क्त्कयन,

भत्‌ 0७096 6 रषा भे छण ^ प्म ।9 6 8146." भनक्षर = अक्षर छले यिमिस्तत्तथा 898 88980, 16४२३, फण, ^ कछ कछ) भनयाछ४ै गल्भः $. ९, 8686 कत. दमय, " पण्य्कलछत' (ब्रह पये फाति ` एप पत नुपाङ्गगमृतेः खलः एश्थपभण 195 ४5 तथा गतक्ेततादिं स्वपराणिनां मूलान्यपि निङरन्तति नस्य मद्रपरूपलात्‌, 159 81४2४ ०००४३ ४४ , 7 णं 06 ४9887919. 710४, 8. ए्--नमोते संमाक्नायाम्‌ 88 प्ण.

४५ 1.१. मन० 9 षज आशधा66 छ्पृकष्मः'5 ०००३९०६० ९व भका (०४७ 3 तपण पत्णष्ठ क्वमन्णयप् (8, ९. ००७ 0 +91}8 1४९ 38 स्थराध्व्‌ वण्छण) } नहर्छ 8 अनल्ण), $ पिभैथालः 3 हभप्रभ्यर्ण्ड लाक (४. ५. ०७ 38 &० व्भाऽ्त्‌ ६१ = नल्य्छ 79 शृश्चाण्डु). अभप्रगन्भः १४०१९३६, धाते व्नणणु. ठी 1. 15. एणाः ४16 0 चादुज 869 ववा, ष्य. 1. 180. 7० 0९ कलप ४६९९ 9 योगिनाम्‌ 8686 9000, एमा. 1, 205. वातकी जमः 15 ००० फण बटुली 38 समभपन्त कि