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` ध (फपल : तदा सप्रत्ययो राजा षरं विषादमापन्न हदमुग्रच | भरौ स्तैणां निभचरितं चन $नधी जायने | भिभेनोमेनयरतन्ं मां चेति || न वैराग्यादयरं भाग्य न बषादपरः सरा || न हरेरपरखाता न संसारायसे रिगुः || इत्यादि पठिला वरिका राञ्येभिपिच्य सयमव्यन्तं मिरिक्तः सन्नेतेचरौकनयं { छतत्रयं १ ) च करोति |
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0 (नपण इ, खक्यौ बार १७१९७ ०४४७;
10 ठगो प, भजिगन कात् भभ्भोजिनी १७०६७ प्रपान ¦ इनः सपरिति ६८ $ रेशभस्य ९. ; केयरा १४ ; छिन्नोपि ८० ; जयन्ति १९; दद्विण्ये ख १७; निन्दन्तु ७५५; बन्हस्तस्यः ७९} विद्या नाम १५ ; विपदि मह °. ९०} शक्यो ११; सृजति ८७,
1 पव्नणप 8. स्लैर्महं १७६४७ आप्रपषलः ; संतप्तायसि ६६.
प व्नपपणर पु, अज्ञः ¦ नैवराकुततिः९3 ; पातितो ८४; मङ्जय १००; यां चिन्तयामि. १; रलनै ७९.
1४ (णपरम इ. दद्धिण्य ख २२१ व्यक वाङ ६.
19 (मपा) 7. भज्ञः सुख. १.
1 (्णोपणाप्र ‰. नेत्त यस्य ५५९.
1४ क्णप्णणण 4. अम्भैजिनी ४४; केयुरा १०७; कविद्धुमौ १८; दर्जन: ३०.
प वकर ० प्र, वनन॑र क्णागत [१० प्रियक धय यदा िंचिन्.
६९1
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॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ अथ नीतिशतकम् ॥
दिक्काहादयनवच्छिकानन्तचिन्मात्रमतये । स्वानमत्येकसाराय नमः शान्ताय तेजते ॥ १॥ यां चिन्तयामि सततं मयिस्ता विरक्ता साप्यन्यमिच्छति जनं स जनोन्यसक्तः। अस्मरहते च परितुष्यति काचिदन्या धिक्तांचतंच मदनचडइमांचमां॥२॥) अन्नः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः । ज्ञानरवदुर्विदग्धं ब्रह्मापि नरं न रञ्जयति ॥ \॥ प्रसद्य मणिमुदरेन्मकरव्कदष्टा ङण. त्तमद्रमापि संतरपप्रचरदेमिमाङाकलम् । मुजङ्कमपि कोपितं हिरि पुष्पवदधारये नन तु प्रतिनिविष्टमृखंजनवचित्तमाराधयेव् ॥ ४॥ 7. (9) दिकासनवच्छिननाय चिन्मात्रान्तमूर्तये, 50. (2) भूतये ०; भभू ०. 189. 29. 8. फ. 1. 7. ॐ. ©. साराय; मानाय, 7. 29.2४, प; ` 7, (५) पि ०; न २. 2. (2) श्य ० चार. ०. 8०, 2. ४. सक्तः} रक्तः 89.0. (०) च; °. ९. ए, 56.०, 50.9. रतु °} शशु. इ. (ध) धिक्तं च तेच; भिक्त च तांच. छ पा, (8) विद्ये ०; ०4०. ह. 9.2. (2) उवदु्विद ० अषठेश्द ° 72. (2). श्परेन०; ग्वितैन० 0. व. 8. 1 भ. ड. 2. ए. 6. ए. (०) शङ्क °; दन्त ° ए. प. (8) °रेचछ्द् ० °रेचपकद् ० 80. 25. °रेत्चुरदू. ° प. ©. (ग्ल च शणः चु). °रेचपडम् ०. एए, °रेखसरद् ~ 2. 896 पथः ०.०, (क) न्ख; षवे,
{4९
रूमेत सिकृतासु वैरूमपि यत्नतः पीडयन्
पिके मृगवुष्णकासु सखिलं पिपासार्दितः । कदाचिदपि पयैठञ्डाशविषाणमास्तादये-
न्न तु प्रतिनिविष्टमूखैजनवित्तमाराधयेत् ॥ ५ ॥
न्याङं बालमृणाखकन्तुभिरसौ येद्ं समुज्जुम्भते
छेतुं वजमणीड्शिेषकुसुमप्रान्तेन संनद्यते ।
। माधुर्य मधुबिन्दुना रचयितुं क्षाराम्बुेरीइते
नेतुं वाञ्छति यः खलान्पयि पततां सूक्तैः सुधास्यन्दिभिः ॥ ६ ॥ स्वायत्तमेकान्तगुर्णं विधन्ना
विनिपिते छादनमज्ञतायाः । विक्षतः सविद समजे
विभूषणं मौनमपण्डितानाम् ॥ ७ ॥ यदा किड्खज्जञोदं द्विप इवे मदान्धः सममव
तदा सरवज्ञेस्मीत्यभकदवलिप्तं मम मनः । | यदय किच्िक्िच्िहूधजनसकाश्ादवगतं
तदा मूरख्मिति ज्वर इव मदो मे व्यपगतः ॥ ८ ॥
ए, (4) °मैत} °भेच. 2. ५. 8. 1. प्र. ©. (४) °का सकिलिम् ; ० काजल- मयम्. 8. (¢) ण्ये °; व्य ०. 1. भ. (द) श्र; ्व०. फ.
प्, (2) न्या०; बा 1. ब्कर°; ° (°ज्ज०?) ©. (8) के०;मे०. ए0.9. , . ४. प्र. 2. 8.- ° नीज्सि °; “णि शि. ह, ०.०. फ. णी. ० ॐ.-- णद्मते; °द्यति. 8०. 2०. ए. 7. फ. (०). क्या ०. क्षी ०. 50. (९) खला- न्यथि सताम्; सतां पथि शान्, 2०. 56 ए. 7. #. ए, 2.- ४० ण019 {पप 110९ 8 मूखीन्यः प्रविनेतुमच्छति वाससः सुधास्यन्दिभिः ३ पि.
ए. (५) °यत्च ०; ० यन्त ०, 89. मुणम् .; दितम्. 86. 80. ह. 2. २. ए. प. (४). °ज्ञ.० न्ञा०. 8. “क्ष. ए. 0र्6 खद, सषि 28 का 9 ©.
ए. (०) हि; गन. प्त. (4. ए. 2.) (०) ( णदुष; ९ डर; 4. ए.) °दश्र ०६ ०दधि ०, 7, ८०, 8०. (2) जर; वन §. ए०.४.
[३ 1]
' ङमिकुर्चितं लारू्किनं विगन्धि जुगुप्तितं निरुपमरसप्रीत्या खादनरास्थि निरामिषम् । सुरपतिमपि श्वा पानस्य विोक्य न शङृते न हि गणयति कषद्रो जन्तुः परिग्रहफस्मुवाम् 1 ९ ॥ शिरः शा स्वगात्पवति श्िरसरस्तर्कितिधरं ` -महीघ्रदुतुङ्गादवनिमवनेश्चापि जर्धिम् । अधो गङ्गा सेवं पदमुपमता स्तोकमथवा ` विवेकभ्रष्टानां मवि विनिपातः शतमुखः ॥ ९० ॥ शक्यो वारयितुं जलेन हुतमुक्छत्रेण सूर्यातपो नगेन्द्रो निशिताङ्कुशेन समदो दण्डन. गोगर्दभौ । व्याधिर्ेषजसेग्रेश्य विविधेमन्रपयेगेरिष सर्वस्यौषधमस्ति शाखविदितं मूस नारूयोषभम् ॥ ९९ ॥ साहित्यसतंमीतकराविदीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः ।
72. (५) °कचितम् ;- ° ऊशंतम्, 7. “न्धि; शर्ितम्. 0. फ. °हित. 1, 6. 0) रस. रसम् 0. 8. 1५. भ, 59. 29. ड. खादन्न ० स्वादन्न ०. 2. . °खन्यन ०. ०.०. खादन्ख ०. प. (2) न; वि ^. ह. 2. ४8. ए. 16 र०्6 [४5 38 सुरपतिमिव पारस्य शा सशा्कतमीकषते. ० 6.४. (2) न हि गणयते ्षद्रो जन्तुः; गणयति न हि क्षुद्रो जोकः. 5९.०, जन्तुः; मैत्री. 8. ए.
ॐ, (५) °गौत्; °गैम्, 7,. प. 59. ©. पति दिरसम्तन्क ०} पर्ुपतिनिरस्तः क्षि.° 7. 80.. ८. 8. पष..पतति शिर सीतः क्षि ०, 80. 86. (8) मशेघ्ा ०; मिते- न्द्रा, ०7. ‰. (०) अधो ग्ग सेयम् ; भवो गङ्गक्ेपम्, ©. 1. 289.9. भषोधो गङ्गेय- म्. 1 89. 86. ८. ४. अथो गज् सेयम्, क्ष. पद ०; मद ०; ए, °मयवा; म. भना. 7. (4) ^खः; ° खैः. 59. 8,
ड्. (०) ०क्छत्रेण; ०व्खुर्येय. प. (2) मेरो; गोदभः. प्र. (©) संग्रहे वि- , विम ०; संग्रहेण विधिना म ०, 8. इ, °न््र; नन्तः, 1, भ, 0. न, प
.{ ४]
तृणं न दादनपि जीवप्रान- स्तद्रामषेपं प्रमं पशूनाम् ॥ ९२॥ येषां नव्द्यनवपोन दानं ज्ञानं नश्चीलं न गुणो न धर्मः। ते मव्॑रोके मुवि मारमूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ॥ ९३॥ वर पकवदुर्गेषु भान्वं वन चरैः सह । न मृखंजनसंपकः सूरेनद्रभवनेष्वपि ॥ ९४ ॥ इति अज्ञनिन्दप्रकरणम् ॥ .
अथ विद्रत्प्रशसा । दाघ्लोपस्रवश्चब्दसन्दरगिरः दिष्यप्रदेयागमा , विख्याताः कवयो वत्तन्ति विषये यस्प प्रमोर्मिर्धेनाः । वज्जाडययं वसुधाधिपस्य केवयो इथं विनापीश्वराः कुत्स्याः स्युः कुपरीक्षका न मणयो पैरघैतः पातिताः ॥ ९५ ॥ उवा. {५ ००; श्वव०. का. (५) यैर; ९०, प. 89. ©. (2) जानेन; न चापि. 8. इ. ज्ञान च. 8०. ७. (०) मर्य; मृचु, 1,. फ. 8. ग, ह. ©, भुवि; मव. ए. 2०. उ, ७. स्य, (५) पवेत; गहन. ए. 6.४. न्तम् $ कान्तम्, फ़. (@) न मू्०; नो म् ०. 8. इ. 8.9. सपक; संसर्गैः 50. 8०. इ. | ए. (०) °श्यप्रदेया ०६ °ध्योपदेशा ०, 86. 5०.४. °ध्याः प्रदेया 280. (०) कवयो श ०; सुधिये द्य ° ८0. 86. 7. ए. उ. 14. 2. 2. स्धियसूक ०. प. (द) शस्स्याः; गन्साः. 8०. ए, फ. 2. 56. श^स्छा. 1. सस्स्या. ए. स्युः; तै. ए. "कान; ण्क्रेमे. त, 10. 8०.४. 7. प. ग्वा हि. 1, प्र, उ. 7. ©. °क्रेदि. 8. 29. 5९. ए. ००; ०्य॑०. 8. 1५ 8९. ०. इ, ए, 6, ग्य ° प्र, ए. 6.४. २, पे.
[५ 1
इत्वाति न गोरं किमपि शं पुष्णावि यत्वैदा , हर्विभ्यः प्रतिपाद्यमानमनिशं प्राप्नोति वृद पराम् । ` कल्पान्तेष्वपि न प्रयाति निधने विद्ाख्यमन्तधेन् येषां दान्धरवि मानमुज््व नृपाः कस्तैः सह स्पथैते ॥ ६६ ॥ . अथिगत्रपरभायौन्पण्डिवान्मावमंस्था- स्तणमिव छधलक्ष्मीरनैषि वान्संरूणदि 4 अभिनवमदङ्खाइयामरगण्डस्थलानां न म्॒ववि विस्वन्तुवौरणं वारणानाम् ॥ १९७ ॥ भम्भोजिनीवननिवासविासंमेव हंसस्य इन्ति नितरां कुपिवो विधाता । न ववस्य दुग्धजलमेदविथी प्रतिं वैदण्ध्यकीर्षिमपदहतमसौ समथः ॥ ९८ ॥ केयूरा न विभूषयन्ति पुरषं हारा न चन्रोन्नल् ने स्नानं न विलेपन न कमं नालैरूता मृधेजाः।
ए. (9) ००; °न्तु ०, ‰. छम् } सम्. 50.56. ए. यत्सवेदा; सकीतमना 1, (2) हय ०; °ष्व०, 80. ए, 86. 7. ४. प. वै ०, ०.9. गा ०; ०१९. ०६ र ० ॐ. प्राप्नोति बृद्धि पराम् ¦ वद्धिं परां गच्छति. 24, (९) °खय ०; ०ख ०. र 86.४. (2) ° मुज्छतनुपाः; °मुच्छतिनृपः ए. 56.2. सह; समम्, 56४.
उषा. (८.) इयाम; श्याव, ॐ०.४. ° आ ०; छी ९, 1, 56. 89. ©,
पा (५) निवासविदासमेव; निकरससविकासहेतुम . इ, 0.2, विहारविठासमेव
(8.) इंस्य इन्तुमषरामपि तां विघता. 7६, 26.०४. (०२००४ विधवा ¢ विधाता) (® नघ ०} नोव ०, ए. 9.2. नन्व ०. 11. सिद्धाम् ; शस्ताम्, ए. 6.४ {व} षेदश्ध्य; वैदोष्य, 2०,४. वैदग्ब 89. 89. 7. फ. 9. भु ०; शन्तु ०, 80. 28९. ए. समर्थः; विषाद 7. ॥
डा (०) न वरि रथिन. प. °य; °. 2. "ड; जो 2. (@) न कुसुमम् ; सुकुमुमम् ए, 56.४, न च भनम्. 2.
[६ 1.
वाण्येका समङंकरोति पुरुषं या संस्छता धाते कषीयन्ते खल मूषणनि सततं वाग्भूषणं भूषणम् ॥ १९ ॥ विदा नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छनगुप्तं धनं विद्या मोगरकरी यदशाःसुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः । विदा बन्धुजनो षिदेशगमने विद्या परं दैवतं विद्या राजस पूजिता न हि धनं व्रिदयाविदहीनः पशुः ॥२०॥ क्षान्तिश्रेद्रचनेन किं किमरिभेः करोधोस्ति चेदेदिनां ज्ञातिश्चेदनलेन किं यदि सुहुदिव्यौषपैः किं फलम् । रकि सर्पि दुर्जनाः किमु धननैर्वयानवद्या यदि व्रीडा चेत्किमु मृषः सुकविता यद्यस्ति राज्येन किम् ॥ २९ ॥ दाक्षिण्यं स्वजने दया परजने शाठयं सदा दुज॑ने प्रीविः साधुजने नयो नृपजने विदरन्जनेप्याजैवम् । शनो शनुजने क्षमा गुरुजने नारीजने धृवैता ये चेवं पुरुषाः करासन कशङास्तेष्वेव लोकस्थितिः ॥.२२९ ॥ (2) “ण्ये ००. ०.२. पुरूषम् ; कृतिनम्, इ. 2०. ८०. (2) सङ; “चिक. 8, फ. उ. 80. 8९. 9. ष, भूषणम् ; न कवित्. 2. २.
2. (2) परं देवतम् } परा देवता, 8. 1, ड. प. परं देवता फ़. (2) निता; इयते 6.9. 10. 5. २. प. नहि;नतु 1. फ़, ए शुचि 9. ए. °नम् ; ग्नी. फ. ` °ही०; ०हा०. ए,
सा. (2) क्षार; शा ०. गृ, णद्ववने ०; °त्कवचे ०, 80, 29. पि, (2) शरै ०ेः. ड. {0 श्वं ००३०. ¶, ०नाः६०न्ः ०.४ (4) °यै स ०; गेन 6.४.
मषा, (४) °र ०; °रि०. 80. 5०. इ. २. सदा; जने #, (2) मर °; नी ०. ध. नयो ०-~०वम् ; मा गुरुजने नरौजने भृता. ए. 29.०. 2, ए. ४, रमयः खजजनेतवि ०-वम् ०, 7. 50.४. (ला७ °स्ज ० २ ० ०). श्या ०६०्बा ०. @ 8. फ. 20. इ. 59. पृ, 7. (चा० प. (९) कमा गशू्नने; स्मयः खर्जने ए. ९.२. २. 8. एध. नारोजने सूर्मता; विहम्नने चालयम् ए, 26.०४. ए, ए, 7, (६ कणौ) ४० °व्वा० व ^ चा ०). कान्ताजने सुतैता. प, (ठ) चै ०; सै ०. र. ८6., तेष्वेव; तेषां हि. 8, २, ‡. ए०,४, °; ० °के, प, गतिः; न्तः, द.
{७}. जाडं धियो इरति सिद्धवि वाचि सव्यं मानोलतिं दिशवि पाप्मपाकसेति । चेतः प्रसादयति दिक्षु वनेवि कीतिं सत्संगतिः कथय कि न करोति पुंसाम् ॥ २६॥ ` जयन्ति वे सरतिने रतसिद्धाः करीश्वराः। ` नास्वि येषां यशःकाये अरामरणजं मयम् ॥ २४ ॥ सूनुः सरितः सती प्रियतमा खामी प्रसदोन्मुखः. लिग्धं मितनमवच्छुकः. परिजनो निदधेशङेदौ मनः। आकारो रुचिरः स्थिरश्च विमवो. विद्यावदातं मुखं . वषट विष्टपहारिणीष्टददहरौ संप्राप्यते देहिना ॥ २५. ॥ प्राणाघावाक्निवृत्तिः परधनहरणे संयमः सत्यवाक्यं कारे शाक्या प्रदाने युवतिजनकथामूकमावः परेषाम् । तृष्णास्ोवोविभङ्खो गुरुषु च विनयः सवेमृतानुकम्पा सामान्यः स्वंशाल्धेष्वनुपहवविधिः नरेयसमेषं पन्याः ॥ २६ # प्रारभ्यते न ख विद्नमयेन नीकैः “ प्रारभ्य विश्रविहता विरमन्ति मध्याः ।
"~~ - + "~-----~----नण
सप्र, (2). केतः; वित्तम् १. +
ए, (०) सिद्धाः; वयाः इ. 56.०. (@) येषाम् ¦ तेषाम् 8, फ, 2. प. ०ज्नभयम् ; जन्मभिः ‰. 7. 20.92. जन्मभोः ४. 2. ४,
ऊ ४. (४) नि ०१ नि० 8. (9) विष्टपहारिणीषटद; विष्टपकष्टहारिणि 8, विषदा - रिणेगप्रद फ. विहारिणि सति 59. उ. (जथ ७ ९० 0 ९वि ०). प्रप्य ० ०वाद्य ०.8. शपद्य०, ङ. ०ना; ९नम् $
सदए, (4) ०णा०; °ब्या०. ए. २. ° तनि ०; वेनि ०, ०.४. (०) शयः ०तिः ०.०. णता ०६ ०ते,० ए, . (2). विधिः; मतिः ०.४. गतिः ए. °; ०, ©. भ. 89. 56, ©. । +
सर्पा, (५) प्रर भर. त, (8) विह ०; निह ०. प. ०इ ०६०६०. 1. प. 8.
{ ८ 1
वितनैः पुनःपुनरपि प्रविहन्यमानाः प्रारभ्य चोत्तमजना न परित्यजन्ति ^ २७ ॥
त्रिया न्याय्या वृत्तिमङिनमस्नमङ्गेष्यसुकरं स्वसन्तो नाभ्य्याः सुहृदपि न याच्यः रुशषनः। विपदुच्ैः स्थेयं पदमनुविधेयं च महां सवां केनोदिष्टं विषममसिधाराव्रवमिदम् ॥ २८ ॥ इति विद्रसखशंसा ।
अथ मानसीयप्ररंसा ।
ुष्छामोपि जरारश्तोषि हिथिरप्रायोपि कष्टां दशा- मापन््ोपि विपन्दीधितिरपि प्राणिषु नर्यत्लपि । मत्तमेन्दविभिननकुम्भकवलग्रातैकवदस्पृदः किं जीर्णे तृणमत्ति मानमहतामग्रेसरः केसरी ॥ २९ ॥
(०) वितः सदसगुभितेरव हन्यमानाः, ‡५ ०.४. वि्ुदुमहरपि प्रतिहन्यमानाः. १४ छ. (ॐ) °भ्यी ०६०्ब छ०. उ. 8, क, अ. °जयसु ०, प. °न्धड ०, 7, ०न्ध मु.
50. 8९. प, भना; गुणा. 3०.४. प. ` उद्या, (@) षर; भण, 2०. 858. ए, ४. उ. 2. 16 8 भ णं ४686 808 ६6 8600४ 1196 ०? ४8 इट ४8६ &०त ध्ो= 8४४४ - 860००, ॐ. 2, ४876 ६06 चमम्त 978६, प्छ 86000त्, श्यत् 8660 पप्त् (०) स्थेयम् ; स्यैवम् , प. (2) ०या०; ०२०. ‡
सप, (0) शििकप्रयोपि; शिविखग्रागोवि. 3. 3९. 20. ¶,. ए 10. विगतप्रा- योषि. 89.9. दिथि्ःगराभो (क?) ति. ए. कष्टम् ; दीनाम्. 7. (2) °्येयिः ° जवि,
ग्य ०;०भि ०. ए. फ-नश्य °; गच्छ ०. ¶, ८, 2. 4. चास्य ०). (८) मत्तेमेन्द्र उन्मत्तेभ ए, 7, 86.09. इ, कवद्; दर्डन, 1, 8, ¶", पिलत 1 बद्ध; ऊम्भे, २),
( ९ 1
स्वस्पं स्नायुवस्तावशेषमलिनं नि्मासमप्यसि गोः श्वा ङब्ध्वा परितोषमेति न तु तत्तस्य क्षुधाशान्तये । सिंहो जम्बुकमङ्कमागतमापे त्यक्वा निहन्ति द्विषं सर्वैः रृच्छृगतोपि वाजञ्छावे जनः सछानुरूपं फलम् ॥ ६० ॥ छाङ्गलचाङ्नमधश्वरणावपातं । # मूमौ निपत्य वदनोदरदशैनं च । श्वा पिण्डदस्य कुरते गजपुङ्गवस्तु धीरं विोकयति चाटुशतैश्च मृदु ॥ ३९ ॥ परिवर्तिनि संसारे मतः कोषान जायते। स जातो येन जातेन याति वैशः समुलतिम् ॥ ३२ ॥ कसुमस्तवकस्येव द्र गती स्तो मनसिनाम् 1 म्र वा सर्वैरोकेस्य विदीर्येत वनेवा ॥ ६६. ॥ सन्त्यन्योपे बृहस्पतिप्रमृतयः संमाविवाः पञ्चुषा- स्तान््रत्येष विशेषविक्रमरुची राहुनं वैरायते । स, (८) ग्यम्; ग्य. ४. प. वसवक्ञे०; कशादको ०. प. चाद ०. 86, ए, गोः; °कम्, 5. 5०. ए. 2. ४. ए. ए. (2) तु; च 30. 29. ए. 7. 2. ४. (9) णैः; न्म्. 0.8. ,.
कश. (ध) (क (्या०, द इका. (2) मृतः; मदैः. 2. ए. पल (० 10९5 कतकषह्ुठ 1८७8 ~+
10. ए, +. 0.0 सका. (५) द्वे यती स्तो मनिनाम्; हयी वृत्तर्मनषिणः. 8. 7. 7. 139. ८०. ए. ध. ए. ए. ए. (० भत 195६ न्क मनसखिनः {9 मनीविणः) देषा वृत्तिमैनखिनः. फ. दवे वृत्ती तु मनश्िनः एर. 86.०४. (2) मूध वा स्वैलोकस्यः मूं सवस्य लोकस, 1. सैोकस्य वा मूर्धि. ए. 56.०४. मूर्धि वा स्वलोक्रानाम्. 7. ` विद्ी्यैत वनेथवा; रीयते वन एव वा. 7. 7. ए, ४. प, विकि षनेणपि. ¶\ 4० 866 पिप्पल पामदहाः = इवक्रटॐ 104. 1 सर्द. (५) ण्यः; व्यो०, 8, क. तताः न्नः, ४, नवार व्श्०. 0, ` पए. ग, °का०. 7. । (तिं
[ ९० ]
्रवेव ग्रसते दिनेश्वरनिशप्रागेश्वरौ मासुरौ भ्रावः परवैणि पर्य दानवपतिः शीर्षावरोषीकतः ॥ २४ ॥ वहति भुवनश्रेणीं षः फणाफलकस्थितां कमटपविना मष्येपृष्ठं सदा स विधायते । तमपि कुरुते क्रोडाधीनं पयोधिरनादर- दहे महां निःसीमानश्चरितरविभूतयः ॥ ९५ ॥ बरे पक्षच्छेदः समदमधघवन्मुक्तकुलिश- प्रदरिरुदरच्छदहरूदहनोद्रारगुरुभिः । सुषारद्रः सूनोरहह पितरि के शविवशे न चापौ संपावः पयति पयसां पद्युरुचिवः ॥ ३६ ॥ यदचेतनोपि पादैः स्पृष्टः प्रजरति सवितुरिनकान्तः । तत्तेजस्वी पुरुषः पररूतविक्ति कथं सहते ॥ २.७ ॥ सिंहः शिदुरपि निपवति मदमल्निकपोरूमिततिषु गजेषु ।
(%) गनेश्र०; श्वङ०. प. °्सु० व्खण०. 1, त्, ए. 7. 7. 299. प. पसक. प्र, 8०. प. 1४, (दो) ततः} सन्वः, ए. ७९. ०. 6. ° न्तम्. €. ए. गवीकृतः; ०षाकृतिः. फ. ¶, 2, ध. फ ~ षष, (व) (छण) णण. 0. फ. उ. @, (ठ) यहम्; कटम्. 1४. वरि; च, 8, 8०. 280. ङ्. 2. 2, ४, प्न. (८) श्वी; ग्वार ९भ्रिरना ०; ९निभिरा^, 1, ०.४. °निधिरना ०, ए. 7. रराद ° 15 ०प्1४४व्त् 3 1,
सका. (०) पक्ष; प्राण. 7. 5०.४. ४, . 2. क. @) इ; दु. 8. 8०. 56, ए. 0. 2. अ. धि. दहनो०; स्षिरो० 7. दजनोर गुरू; सवि. 1. 8. इ. (2) षम्य ०; भु १, ०.४
कपा. (@) गनुरिन; ततुरि, 1, 7. °तुरति, 2०. 56. नतुरिव. 7). पतुरतरि. ए. ©. तुसूर्य. ध. (2) विकृतिम् ; निरृतिम्. 2. 2. ए, 14. न, ०. ४. निकनस, 80. 86. ए, °ते; °ताम्. ए. 5. 1.
*५.
¦ #- «4 धररतिरियं प्षखवतां न खलु वयस्तेजसो हेतुः ॥ ३८ ॥ इति मान्ौयपरशंसा ।
जातिर्यातु रसावहं गुष्गणस्वस्या्यधो गच्छतु शीलं शौलतटात्पतलभिजनः संदह्यतां बहूना । र्ये वैरिणि वज्नमाश निपत्र्येस्तु नः केबलं येनैकेन विना गुणास्वृणलवग्रायाः समस्ता इमे ॥ ६९ + वानीन्धिपाणि सकलानि तदेव कमं सा बुद्धरप्रतिहवा वचनं तदेवं । अर्थोष्मणा विरहितः परुषः स एव तलन्पः क्षणेन भवतीति बरिचित्रमेतत् ॥ ४० ॥ ` यस्यास्ति वित्तं स नरः कुीनः । स पण्डितः स श्ुतवान्गुणज्ञः । , स एव वक्तास्त च दशेनीयः ` सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति ॥ ४९ ॥ दौरम्याननुपतिर्विनरयवि यतिः सङ्गात्सुतो खालना- ्विपोनष्ययनाच्कुलं कुतनयाच्छीरं खलोपासनात् । उषा. @) °्सो; ण्लम्, प. शाद, (५) °स्याप्य ० °स्माद ०. २. ए. शत्रा. ९ त. 'च्छतु; ९च्छतत्, 2. ४. 411 ४6 जान (ना 6जन ह. ोपं०छ 98 ०तु, 68 °ताम्, (8) तदा; वरा ° ¶^ (०) शोय वैरिणि वल्मनिरसमस्तु च तथप्परथसु न केवेछम् ६, (शोर्थं वज्ञनिरस्लमस्तु च तथा &०8{) °निपतव; ०पततुल. 8.४, °रयो ०; ०यै ०, 8९. 2०. (गण. ८०४.) (2) ०म ०} °मा० ०.४. 20, 86. . सण. (©) खन्यः वन्य. ¢. 1,. म. 20. चंन्यः §. उ. अन्यः (\, उ. (५) 1५०68 9, & ०. 1णप्ललोाक्य्ठ 19068 उप ह. (2) न्ति; ने. 7, सग7. (५) दौमैन्त्या ०१ दर्मन्ता ०, 86. यतिः; सती. &. -
९.1
समंद्यादनवेक्षणादपि रषिः स्नेहः प्रवास्ताश्नया- न्यत्र चप्रणयत्तमृद्धिरनपासागात्ममादादनम् ॥ ४२ ॥ दानं भोगो नाद्चस्तिल्लो गतयो मवन्ति वित्तस्य । ` योन ददाति न मुद्के वस्य तृतीया मतिमैवति ॥ ४२. ॥ ` मणिः शाणोह्ीटः समरविजयी हेतिनिहतो मदक्षीणो नागः शरदि सरितः सपानपुलिनाः। कललाद्वोषश्चन्द्रः सुरतमृदिता बालवनिता तनित्ना शोमन्ते गङिवविमवाश्चार्धिषु जनाः ॥ ४४ ॥ परिक्षीणः कश्चित्स्पृहयति यवानां प्रसृतये स पश्चात्तंपूणेः करूयति धरित्रीं वुण्तमाम् । अतश्वानेकान्त्यदररुखधुतयार्थेषु धनिना- मवस्था वस्तूनि प्रथयति च संकोचयति च ॥ ४५ ॥
"~~ -~---+-~--
0 सर्मयत् ! स्तीगरवात्, 2. 70० एश्ाप्णःण्टठ ०६ 0 ध्व 1०७ वणप ४ कृषिः 38 ५७ एश 9 © पप, [06 ३9 0. & ४6 एषड्वाप- पण ग ल पिप्प, ०० वजप ६० अनयात् 35 ४५6 एष्ड्णणण्ड म ४७९ भपप. (द) गगाय०; गप्र. 2. ए. का. (५) रमे ना; ०मेो विना०. 2. (गरा०्प्शङ ए ण्ड). उप्र. (५) शा ०; शौ ०, 5०. (ग्ध, ०.४.) ९णोत्री ०६ ८गा जी. ° 86. ए. यी ये, ए9. 8०. (ग्पष्ट. 8०.०४.) निहतो; दिती छ. प, 8०. (०४६. २०, ०.) (®) रतःरयान; °दा्यान, 2. उ. फ. ७. प. तःशयाम. 0. 89. 28०. 7. ए, नाना. 0. 2. पि. नी. ७. (धे शिषः केशः छ. मृ; न. ८०.०. वनिता कडना. 6... 1,. 1, वनिताः. %. (4) त ०; न. 56. 8०. ध. ए. ©, ग्ना; ग्नाः. 8९. 9. श. ६, < धा ०; सा. 5०.०४. जनाः; नृषाः. 89. 7 1,. नराः. ए. प. , उ.प, @) रमैः; ग्णौम्. ए. ए. ग्नो 0. क. 2. ए. कड ०}. गण ० 8. ^. ` 7. ग, ए, इ. 8०.9, 2. 2. ए, (०) नैकान्त्याह् ०; ०ेकान्त्या गु °. 8. 7. क्नेकानय। गु ०. फ़, 50. ©. °नेकनन्ता गु ०.४०. ए. 8० ४. फ. °नेकनतं ग॒ गध,
[ ९३ 1
राजन्दुधुक्षति पदि क्षितिधेनुमेतां तेना्य वत्समिव लोकममुं पुषाण । तस्मिश्च सम्यगनिशं परिपोष्यमाणे नानाफङैः फलति कल्परूतेव मूमिः ॥ ४६ ॥ सत्यानृता च पर्षा प्रियवादिनी च दिता दषाङ्रपि चाथंपरा वदान्या । निष्यव्यया प्रचुरनित्यधनागमा च वेदाङ्गनेव नृपनीवैरनेकरूपा ॥ ४७ ॥ आज्ञा कीर्तिः पालनं ब्राह्मणानां दानं मोगो मित्रसरक्षणं च । येषामिते षङ्गणा न परवा , को्थस्तेषां पाथिवोपाश्रयेण ॥ ४८ ॥ यद्धात्रा निजभारपट्रलिखितं स्तोकं महद्य धनं तसप्ा्नोवि मरुस्यकेपि नितरां मेरौ ततो नाधिकम् ।
ाा्ययाणजिुुाोिुाुिननककनमन
---~--------~
इए. (५) तताम् ; मनाम्, 0. इ. 5०. फ. 8. 1.1. 2. ए. तभ. @) रनाय; °नेव (१) 7. °नाय ए. <ममुम्; °मिमम् 20. 29. ए. ए, (८). शश; ऽस्तु. कथ, पोष्य ०; रतुष्यं 1. व, ©. पोष ०. फा. वुष्य० पष. पन्य. 7, (2) नङ; ग्ला. 1. फ प
सपा, (४) प्रिय; मदु, ८०.०४. प. वादिनी; भषिणै. प. (०) नित्य भूरि. . 50. ४. नित्यधना ०६ मित्रधना ° 7, वित्तसमा ०. 230.9. वेरया ०; वरा०. 1, ए. . 1. 86. 4. 8. 2. 7. ए०. (गणष. 8०..).
शा.प. (०) ब्राह्मणा ०; स॑न्नना०. 74. (०) ००; ०द०. ©.
गपनश्. (@) भनम् फलम् 56. ए. (8) ° ति; °वर. 9. 2. ०तराम् ; °यतम् , ८९. ए. तीना; च नाती°. 8. उ. ह. 2, 29. ए. 2, 8. प, 80. (गण. 50.४.).
{ ९४ }
वद्धीरो भव वित्तवत्सु ठपणां वत्ति वथा मा रथाः
कूपे परय पयोनिधावपि घटो गुद्ाति तुल्यं जलम् ॥ ४९ ॥ त्वमेव चातकाधासेसीति केषां न गोचरः ।
किमम्भोदवरास्माकं कार्षण्योक्तिः प्रतीश्षयते ॥ ५०.॥ रे रे चातक सवधानमनता भित्र क्षणं श्रूयता-
मम्भोदा बहवो है सन्ति गगने सर्वेपे जैतादशा केचिदरष्टिमिराद्ेयन्ति वसुधां गज॑न्ति केचिद्ुधा
यं यं प्यति तस्य वस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः ॥ ५१९॥
अथ दुजनप्रशंसा । अकरुणतवमकारणविग्रहः परधने परयोषिति च स्पुहा ।
` सुजनमन्धजनेष्वसषिष्ण॒ता ` प्ररुतिसिद्धमिदं हि दुरात्मनाम् ॥ ५.३॥
(¢) त०; य°. व वमू. 89. ण्ट्वी ०} शद्ने०. ०.४. षो ०. 8०. (4) श्ये. गृण्हति; °या गृण्डन्ति 7. 89.४.
1. (५) °रौसी°; °र्इ०. श, °रस ०, फ. रस ०, 6. कमेव चातको धारां हति छोचनगोषराः. 80. (४) म्भोदवरास्माकम् ; °स्मदमभ्भोदवरम् . 50.. °म्भोद बदास्माकम् त्, °भ्यते; ते. ¶\, °भ्यस, 8०, ¢. ज्र.
` एन. (८) न्न; व्वम् 7.) हि णवे 8. फ. त, तता०; न्का०. इ, (८) कैचिष्ट०;रेके वृण 8. उ. वसुभाम्; धरणेम् 8. केचिद्रया; रके मृषा 8. ड.
1411. (2) परषने च सुहा परयोषिति. 89. प्रधनाय रतिः परयोषिति 86. 8. ह. 2. 5. 70.(को0 66 त {07 पि) प्रधनोपकृतिः परयोषिवः 50.४. (०) सु ०; ख ०, &§. 7, ई. ए०.9. ४. ९. ए. जन; धनै 1.८9) °नाम् °नः ए०.०.
[ ९५ 1
दुर्जनः परिदतेग्यो विद्यया मृषितोपि सन् ।
मणिनाङ्ङुतः संपैः किमसौ न `मयंकरः ॥ ५३ ॥ जाडं दीमति गण्यते व्रतरुचौ दम्भः शुचौ कैववं
यरि निधणता मुनौ विमतिता दैन्यं प्रियाङापिनि। ` तेजस्विन्पवकिप्तता मुखरता वक्तयशक्तिः स्थिरे
तत्को नाम गुणो भवेत्त गुणिनां यो दुजनैर्नाङ्किवः ॥ ५४ ॥ रोमश्चेदगणेन कि पिद्धानता यद्यसि किं पातक्रै
सत्यं चेत्तपसा च किं इचि मनो यद्यस्ति वीर्थेन किम् । सौजन्यं यदि किं गुणैः स्वमहिमा यद्यस्वि किं मण्डनैः
सद्रि्ा यदि किं जनैरपयसो यदस्ति किं मृत्युना ॥ ५५. ॥ शरी दिवसभतयो गलितयौवना कामिनी
सरो विगतवारिजं मुखमनक्षरं स्वारतेः। ्रमुध॑नपसयणः सततदुगंतः सज्जनो
नुपाङ्गणगतः खलो मनसि सप्तशल्यानि मे ॥ ५६ ॥
~~न
` (ना. (@) ग्वै० °न्त०. 8०.. ०मूषि; ण्ठंक०. 1.70. प, 86 8०. प, 80.. (ष्णौ6ा७ 07 °वर सन् ; यदि) भूषतो सन् :. °वर समनितः ए. ९.४. (®) ण्लेक् ° भूष्रि° 8.1 प. 7. उ. 2. 5९. 5० 1. 2. ४. त.
नए. (५) ०; शुर. प. @) शै; श्यु°. 7. मुनौ; ध्व. 2. ४. सजौ 7. ऋजौ ०.2. 1. (च) स्स; ग्स्सु ०. 86. ८०. व, ©, ह. 7. ४.
1. पए. (५) ०भश्ेद ९ ०भश्वास्ति. 1९. .89. (०, ०.०.) ° मेष्यस्ति. 56. 2. (५) गणैः; निजैः 6. ए. क. २. 1 जनैः 8.2. फ. 72. ८०. व. ध. परैः ८6९.०. कलेन प. सण; सु०. 26.. फ. 7. †. 0.०. २. ए. ४. & 1. (णनप्छ ता ण मा) ०रपन्ल्वि 30 कर, (५) ज ० धर 8. 1. भ. गर 89. 89. ए. ए. प. श्नैख ०; न्नैः पर ०. ©. ।
धा, @) कारि ०; पङ्क, ०.०. (2) न्तः; (मः, छ. नतिः. प, (र) शम्या ०; जल्ला ०, ए6.2. ध
भ
॥
{ \६ )
न कश्चिचण्डकोपानामातीयो नाम मूभुजाम् । होतारमपि जन्ानं स्ुष्टो दहति पावकः ॥ ५७॥ मौनान्मूकः प्रवचनपटृश्वादुरो जल्पको वा - धष्टः पाशवं वसति च तदा दूरतश्चप्रगल्मः । क्षान्त्या भीर्ंदि न सहते प्रायश्चो नाभिजातः सेवाधर्मः परमगहनो योगिनामप्यगम्यः ॥ ५८ ॥ उद्भातिताखिरखलस्य विदङ्खखस्य पराग्मातविस्तृतनिजाधमकमेवृततेः । दैवादवा्तविभवस्य मुणद्विषोस्य । नीचस्य गोचरगतैः सुखमास्यते करैः ॥ ५९ ॥ आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण रूध्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात् । दिनस्य पूबोधेपरार्मिना छयेव मैरी सरसज्जनानाम् ॥ ६० ॥
एषा. (क) नम; तैव. ¶, °मुजा ०; रमृता ९. २, (2) दीवार; तोरण.(१) ऋ. गजवान; °द्न्तं ८9. 20. ए. (०४&. ०.४.) होतारं जक्कनमवि 18 ४6 818६
` षा 2.
ए. (4) भशवो; पतिक. 8.2.8. = गवातुो. 1, एर. ए. 1, 7, 89. 86. इ, ७. गर्वात्लो, #, ररकचको प. (©) वस्ति च; भवति च. 8. उ. 7. 2. ए. ए०.१. पष. प्रभवति. फ. ¶. ७. 1. स भवति. ८6. 2०. ह. तदा; तया 7. 14. 2०.. 2. &. जनो, ए6. 8०. एए. षसन्. श. सतश्वा ०; ०तेप्य ०, कष. व४९ 8600० 89 चप् 11968 006 18665 39 +,
11. (५) एद्राक्तिताखेजख ०; शद्वा्िताविकक 2. 8०.०८. (2) प्राम्जात; मरो द्ाढ प्त. °्सतृ०; °्स्मृ०. 8.1. व, 7. ए, इ. ०. ४. ८. ए. प. (सण. ©. ण्वु;चि०. 20. ८००. न्तः; न्वै. 8. (८) द°; दे. फ़. (न) ०स्येते; ण्प्यते. 8. पष. क, णर |
1.2. (च) ०पिणग्यर. 1. र. 2. ०१०. प.) च; ०३. ज. °चपन्वत्; मुैति, ए. क
{ ९७ }. मगमीनसस्जनानां तणजलसंवोषविदितवत्तीनाम् ।
सड्धकथीवेरपिशुना निष्कारण्तरैरिणो जगापि ॥ ६९ ॥ इति दुननप्र शसा ।
अय सुजनप्रश॑सा ।
वाञ्छा सञ्जनसंममे परगणे प्रीतिगेरौ नभ्रता विद्यायां ग्यत्तनं स्वयोषिति रतिरकषिपवादयद्रयम् | भक्तिः इाखिनि शक्िरालमदमने संसर्मभक्तिः खले षवेते येषु वसन्ति निर्मरुगुणास्तेभ्यो नरेभ्यो नमः ॥ ६२ ॥ विपदि वरैपंमथाम्यदये क्षमा सदसि वाक्यदूता युधि विक्रमः यशसि चाभिरतिव्यंसनं श्रुतौ प्ररुतिसिदिमिदं हि महामनाम् ॥ ६२३ ॥ प्रदानं प्रच्छनं गृहमपगते संभ्रमविधिः प्रियं रष्वा मौनं सदसि कथनं चाप्यपङ्तेः। अनुत्सेको रक्षस्या निरमिमवपस्ताराः परकथाः सतां केनेर्िष्टं विषममसिधासव्रतमिदम् ॥ ६४॥ 1.1. (द) ०णवे०; (णमेव वे०. 1, क. क 1.7, (०) °्मे; रतो. पत. परस् ०; गु्येग °. 1. 36४. (2) ०यम्; ण्या प्न (०) शुजिभि; चक्रिणि. ९.9. (९) ° लेष्वेते येषु ० येष्रेते नि०. 0.2, न्क येष्वेतेषु. फ़. 0. ०ऊे यते येषु, 7. °छ एते येषु. 8. इ. 2. 8. “के एते फ. 89. 89. ए. °कैरेते येषु, एप. वसन्ति; नरेश. फ. ७. वेमे नरेभ्यो नमः; तेष्व टोकस्थितिः 1). तेभ्यो महद्रयोनमः. प. । 1,211.0) °रति; °सूप्वि. 8. 80. 8०. श्र, ए. ॐ, ¶\, &, णवी; न्ते. पृ 1.४. ) चार ना०. §. प्र, 8०. इ. 6, ८९.०७. {०} °्याम् ‡ ०४ ए. ए. 82.2. निरामेभव्सयराः; निरभिभवसाराः; 8. फर, 2, 0. भञ्धुभवक्षारा गु विरतिर्हसाराः ए, विरविभवरसारः: 1;
{ ९८ ;
करे छष्यश्पागः रिरि गुरुपादप्रणयिता मखे सत्या वाणी विजयि युजयोरीर्यिमतुलम् । , हदि स्वस्या वृत्तिः श्रुतमधिगतं च श्रषणयो- विनाप्यशर्यण प्रकतिमहतां मण्डनमिदम् ॥ ६५ ॥ संपत महतां चित्तं मवत्युत्परुकोमलम् । आपत्सु च महारौलशशिङासेघावककंशम् ॥ ६६ ॥ सेवप्तायति संस्थितस्य पयसो नामापि न ज्ञायते मुक्ताकारतणा तदेवं नखिनीपन्नस्थितं राजते । रवात्यां सागरडक्तिमध्यपवितं तन्मौकिकं जायते प्रयेभायममष्यमोत्तमगुणः संस्ततो जायते ॥ ६५ ॥
एद. (५) अव्पस्यागः; वगः शध्यः, 0. गविता{ < यनम् 1, 2. ए. ८2) . न्य; ०, ध. ह. 86 फ, 89. ({ ण्ण. 8०.2०. ) वीयैमनुचम्; वीरषमहो. .. ?. &. (८) खस्था; खच्छ, इ. प. ०.०, सेस्ल ए. ए6.1. °चिमतं च अ. वणयोः; गवगतं च श्रवणयोः 1, ०.४. ऽधिगकत्रतफकम्, ©. प. 8, ए. क. (ष्णा्ा6 कत् प 8. के 0 ऊम्),
दपा. (0) शसु; ग्य, 6.9. सवस्य ०; ०वैदु ०. 8, ह. 56.. ए. (2) क्रम्; कं यथा. 8. .
पर्णा (कोज्ञार त्रू°. 7, 0. प. 2) चर, श्वर, ए, 59. राज; दृईप०. पष. (८) खास्यम् ¦ खाती, 2. %. ३०.०. खात्मा ०.४. भन्तः. 7. पष शुक्तिमध्यपतितम् ; मुक्तिमध्यधतितम्, 580.1. शुक्तिकुक्षिपतितम्, 8०.9. (२.) श॒क्तिसंप- रगेतम्, 2, ए, चन्मौकिकं जायते; सन्मोक्तकं जायते. 7. गुक्ताफठं लायते, ०.४ ए. 2९, तन्ज्ञायते मौक्तिकम्, 8०.४. (?.)& 2. 2. 8. (०८७ ज्जा मध) (9) °गः} °गाः. ©. 8०, . 2. 8. ० गावममध्यमोत्तमगुणः; ° गोत्तममध्यमाप- मगुणः ०.४. ण्त् एणबणाक 980 पफ. 48 भए6क्ाड पठा पील (णन क प [०6 एण गणकन्त् 10 ४6 परः गणः; भजुत्राम्. द संसर्मतोजायते; संगसतौ जायते (, 9.४, सखंवासकरी देहिनाम्. 0, २. ए. शएवंविभा व॑नयः द
(54.
यः प्रीणयेत्सुचरितैः पितरं स पुओो यद्तुरेव हितमिच्छति तत्कर्म । . तन्मित्रमापदि सुखे च समक्रियं य. देवक्तपं जगति पुण्यरूतो रमन्ते ॥ ६८ ॥ नमभ्रतेनोजनमन्तः परगुणकयनैः स्वान्गुणान्ड्पापयन्तः स्र्यान्तंपादयन्तो विततपुथुवरारम्भत्नाः परार्थे । सान्तैव्तपरक्षाक्रमुखरमखान्ु्ंलान्दूषयन्वः मन्तः साश्चयंचयां जगाते बहुमताः कस्य नाम्य्च॑नीयाः ॥६९॥
इति सुजनग्रशंसा 1
अथ परोपकारपद्धतिः।
मन्ति नघ्रास्तएवः फरोद्रमै- नेवाम्बुभिभूरिविङूम्बिनो घनाः ।
` उषा. (५) यः ब्रीणयेत्; बीणाति यः 99 29. इ. 8. 7. 2. 2. (८) स- मक्रियं यत् ; यदेकरूपम्. ?. ‰. समं प्रयाति ए. 9.४. 80.. (ग्व. ०.४.) समानवृत्ति ( कै०.१) 7. (4) °च ०. °च ०. ¢.
1, 2ा, (4) °नज्ञ ०} ° ०... कथनैः; नुतिभिः, 89. ए, ख्याप ०; छाद ०,
8. ॐ. व्याव. प्र. (2) रथान्; न्यम्. 2. ए. ए. शतन; °नत. 89 ८9. (ण्मष्ट. ०.४.) पृथुतरा ० प्रियतरा ०. फ़, ¶ वृथुमहय° 0. ग्नाः; ण्ठः. 86. 0. न्तः, ए. 86.9. न्ये. णयः. ०.४, (०) णन््ै; भन्ते, ए. 6, १, ०वष्ेप; °वे. 2. ४. 2). (८९ ९ णवे). णमुखा ०; जना. ©. द, प. 8. प, दृष ०; दुःख ९. 0, 239.2. प. दुरुखान्दुषयन्व दूभथन्तःसमन्दत. ` ७. (%) भन्तःसा ०; °न्तोष्या०, 8. च ०; व०. 0. 2. 8, 1. फ़. @& ००४० ‡ ह. नच ००, ए. 89. (गणड. ए०.9.). ।
2, (®) गमिरहरि; °मिमरमि, ए, 56.०. °भिरदूर. ०.2. प,
५ ९१५
अनृदताः पुरुशः समृद्धिभिः
स्वमत एवैष परोपकारिणाम् ॥ ७* ॥ श्रोत्रे श्रुतेनैव न कुण्डछेन
दानेन पाणिनं तु कङ्कणेन । विभाति कायः कर्णापराणां ।
परोपकरिने तु चन्देनन ॥ ७९॥
पापाश्निवारपति योजयते हिताय
गयं च गृहति गुणान्प्रकटीकरेति । अपद्ते च न जहाति ददाति काले
सन्मित्रखक्तणमिर्द प्रबदन्ति सन्तः ॥ ७२ ॥ पद्माकरं दिनकरो विकचीकरोति
चन्द्रो विकारयति कैरव चक्रवालम् । नाभ्यर्थितो अलधसेषि जरं ददाति
सन्तः स्वयं परह्तेषु रताभियोगाः ॥ ७४ ॥
1.1. (५) णम् ; श्रि, 1 ©) दु; च. ए. २. ए. ए6.०. (९) बिन. भा०. ह, 56४. ९०६ क ०. 7. पराणाम् ; कुखानेम्, प. (9) श्नु; °रेण 1. 8०. 5० ह, £. 8. प. °रेणतु. ४. ।
दा. (५) गपजि०;व्पं नि०. 2. 0. (४) ष्क च; श्ंनि० 8.३. न. प. णद्मानि 5०. 286. ए. °य; °य्म् क, (@) अ हि ॐ०..
1.1. (०) ०्ची०; «चम् 0.2. 2. ‰. २, ण्न्रीर 8. + (४) ° °सण],, म. र. फ. वाजम् ; °जाखम्. 1, °बाान्. 8. (८) जठधरोपरि जलम् ० जेजदः सछिकम्.. ए. २, ८6.०, 5. (द) ०तेतु कुताभियोगाः; °तेश कृताधियोग
०तेषु कृतातियोगः ¶. °तमिरितामियोगाः. ©, ए, ०ते सुकेवामिंयागराः 7, णते पिहित्ताभियोमाः, त
{२९}
एके सुरूपाः परार्थघटकाः स्वाथ परिष्प पे सामान्यास्तु परारथमु्ममृतः स्वायाविरोपेन ये । तेमी मानुषराक्षसाः पराहिवं स्वाथोय निघ्नन्ति षे ये निघ्नन्ति निर्यैकं परद्विवं ते के न जानीमहे ॥ ७४ ॥ क्षीरेणात्मगसोदकाय हि गुणा दत्ताः पुरा तेखित्मः क्षीरे वापमेकष्य तेन पयता ह्यात्मा रानी इतः। गन्तुं पाक्कमुन्मनस्वदमवदृष्ट तु मित्रापदं युक्तं तेन जलेन शाम्यति सवां मैत्री पुनस्वीटशी ॥ ७५॥ दतः स्वपिति केशवः कुरूमितस्तदीयद्धिषा- मितश्च शरणार्थिनः शिखरिणां गणाः शेरते । इतोपि वडवानलः सह समस्तसंवतके- रहो विततमूर्जितं मरसदं च सिन्धोर्वपुः ॥ ७६ ॥ तृष्णां छिन्धि मज क्षमां जहि मदं प रवि मा रयाः सत्यं बूद्यनुयाहि सधुपदवीं सेक्स विद्वज्जनम् ।
काप, (०) एके; पैक. 8. 2, एते 5०. 2९. प. 2. 8. तेते ए, सभ म्; सार्थान्. ए. ये तै. २. 8. ग, 7. (®) मध्यस्थाः खड् ते पस्ेषटकाः सापीनि- रौषेन वे 8. 2. ये; तु ०.9. (५) °नुष; °नव ध.-ण्यौय ०; र्ये वि.° 2, नि ०६ , वि० 8०. ह. र. (2) निरः तु. ज. ए. द. 8. 2. ए. ष. । 1.2 प, ८०) हि गुणा दचाः परा सेषिजाः; सङकडा दत्ता.निबा ये गुणाः २. 2) ण्रेता०; °रोत्ता० प. ्ा०; खा 7. ए. हु०; इण फ. (०) ०्नस्त०; णद ०, ए5.2. (2)° क्तम् { शक्ता ए. ए9.४. शाम्य ०; सम्प ०. ए, 6.४. पुन- ` स्वी०; पुनस्ता० 8. 2. 1. गुणस्वी ० ०.०. (दृः). 12. @) ग्नः; नाम्. क. ९णां मणाः; रिपिः ४. ह. 8. उ, ८९. 8०. 7, 7. 7. (कल ° नां ५०) (थे शतेष; रतश्च 56.2. (2) विततभभितम् ; , विभवमूर्छितम्, ००४७ 9 ह. @ठफणहणौशणक, । ठप, (४) °र०; ०्य०-&, कृथाः; कुद. 7, (2) सत्यम् } खल्यम्. &. णनम् ;श्नान् 8, उ, ^ ऋ. >, 7. 29, (गई, 20.9.).
1 २६ 1
मान्यान्मानय विद्विषोप्यनुनय प्रच्छादय स्वाग्गुणान् कीर्तिं पारय दुःखिते कुरु दयामेवत्सतां चेष्टितम् ॥ ७७ ॥ मनसि वचसि काये पुण्यपीयुषपणौ- चिमृवनमुपकारश्रेणिमिः पूरयन्तः । परगुणपरमाणुन्पवतीरतय नित्यं निजहुदि विकसन्तः सन्ति सन्तः कियन्तः ॥ ७८ ॥ रि वेन हेमगिरिणा रजवद्विणा वा. , . यत्राभ्रिताश्च वरवस्वरवेस्तं एब । मन्पामहे मरूयमेव ्रदाश्रयेण ` कंङ्कमेरनिम्बकूटजान्यपि चन्दनानि ॥ ७९ ॥ इति परोपकारः ।
| अथ वीर्प्र्॑सा । रलैरमरदैस्ततषनं देवा
~ 0 1 न भेजिरे भीमविषेण भीतिम् । सुधां विना म प्रययु्विराम न निन्धिवायोद्विरमन्वि धीरः ॥ ८० ॥
.-~~~---------*--------+~-~-~-----"~-~-----~---~-~-- - °) °नु; ० ० ०. 8. ° च्छद ०; °स्याप ०. 0. फा. 1,. फ. खान्मुणान् प्रश्रयम् परि, (2) चैष्टितम् ; ऊद्चणम् ; 0. फ. 1. 86. प्, (जनह. 56.9.). ` रकण, ¢) ग्पूर०ः प्प्रग०, 2. फ; प 8. ० ४6 1९ (०) ०शूल्य ०.६ श्ण व ०. 86. 29. { ०. ०.०. }* । 1. 2) श्रा० गस्य, 8. ॐ, त्र, ग ०. रिरश ०, 8०. (व) ण्कृदु ०; कटु ०, 1. °न्य०भग. 6, 7, 8. य. नानि; ननाःस्यः £. ९, 8. । {द (4) गहर व्व 1. 2. 2. 8. ननन. म, (9) न; दि० (1). ०. ए. णद्भि०; दि ०.४. ३०. 4,
[ २९] कचिदधमौ शायी कचिदापे च पयंङ्शानः कचिच्छाकादहारी कचिदपि च शास्योदनरुभिः । कचित्कन्याधारी कवचिदपि च दिव्याम्बरधरो मनस्ती कायर न गणयति दुःखं न च सखम् ॥ ८९ ¶ रेश्वयंस्य विभूषणं सुजनता शौवंस्य वाक्संयमो ज्ञानस्थोपदामः शरुतस्थ विनयो वित्तस्य पत्रे भ्ययः। अक्रोधस्तपसः क्षमा प्रभवितुर्धम॑स् निव्यौजता सर्वेषामपि स्वेकारणमिदं शीरं पर् भूषणम् ॥ ८२ ॥ निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् । अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्वरे वा न्याय्यात्पथः प्रविचङन्ति पदं न धीराः ॥ ८३ ॥ म्नाश्चस्य करण्डपीडिववनोम्लौनेन्द्रियस्पं कुथा कलासुर्विवरे स्वयं निपवितो नक्त मुखे मोमिनः ।
2. (५) भूमी; भूमी ८९.०४. पृथी, प, यायी; शव्या. ©. उ, 8. फ, 1. 7. ए. ०. 8०. @. प. ए, ए. शयः 6०. फ. रनः; ग्नम्, €, 2. ध. 8. फ. 1 इ. 88. 23०.०. ए. ए. ण्यतै. 6, (४) °का०; °जा०. २, इ. ण्यी; °रः 7. 0.0. 2. 8.7. फ. 8९ ०. 2. ए. ररि, ©, (2) ग्क;० °क्ा० 80, (गद्वु, ०.०.) ०घारो; °माकी. ?. ए. (ण)'०२७ छा १) दिव्या ०} चित्रा०, ७. (द) न गणयति; गृणयति न. ध. 2. 8.
कदन्या. (4) गक्लम् ०; भक्यम् ( क्ये). 2, (2) त°; शम ०, 86. , ०. ए. कुकर. ए. ए, (०) निव्याज ०. निः काम ०. 2. (4) कारगमिदम् ; का. ` छनियमम्. 1. 86.29.
रपा, (०) गतु ग न्ति, 1, नति; गोक०. श. (8). ०१; ०्छ०. 7. 1. (०) °मसतुः; °अेव. 68, (2) ण्यक ०; श्या ०, ^. 7. 2. तवर ० शति०, द,
रए. (५) फिर; विण्डि० छ. ण्म्लौ ०; री ° ध, ३०४.
{ २४ }
तुपस्तत्पिशितेन सत्वरमसौ तेनैव यातः षया रोका परयत दैवमेव दि नृणां वधौ क्षये कारणम् ॥ ८४ ॥. पतितोपि कराधातैरुत्पतस्येष कन्दुकः 1. | प्रायेण साभवृ्ठानामस्यायिन्यो विपत्तयः ॥ ८५ ॥ आखस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान्पिपुः। नास्पुद्यमतसंमो बन्धुः रत्वा यं नावसीदति ॥ ८६ ॥ छिनोपि रोति वर क्षीणोप्युपचीयते पुनश्चन्द्रः । इति विभृरान्तः सन्तः संतप्यन्ते न विषुव रोके ॥ ८७ ॥ इति धर्यप्रशंसा ।
अथ दैवप्ररासा । नेता यस्य वृदस्पतिः प्रहरणं वं सुराः तैनिकाः स्यो दुगैमनुभ्रहः किर हरेरैरावतो वारणः ।
“ (4) छेका: प्र्फ्त; खस्यास्विठति 8. उ, ०.४. 74. (66 त फ ति.) ` सखस्थास्विठत. ए० द. प. 2. 1. 2. 50.) [ सुस्था, ॐ०.४. (8.)] कारणम् भ्चाकुजम्. ध. ?, 7
एकप. (&) प्र० १०, इ, 6.9, 50. 8, (जगण. ०.४. ) ७) साभु०; हि सु०. 2. ‰ °चा०. गती. 2०. 8०. ए, °मम; मा ©. फ. ॐ, (2) ०नाम ०} °नां न°, ०.४.
दका. (०) सन्रि० रि० ए, 9.४. (2) कृलायम् ; दुबीणो 0. 8. प्र. 1५. >. 7, ८6. 8०; (नल. ०.४.)
1. हए. ८) क्षीणेप्ययप्लृते रोक 0. प. क्षीणोपि वते चन्द्रः 8. 2. चन्द्रः कषोणोपि वर्भते जोके †. (०) °या °; ०श्य ® 1). सन्तः 0ष४6त प फ. & ॐ, (क) न विष्ठ़ता छेके; नैव विधुरेषु 8. उ. न ते त्रिपदो 7,. ए. 86. 8०. न व्रः ०.४. 7. ए. (1४ ग्यपंनो धकरण परि 8 पु) न विचुते खेके प्र, रोकेषु ए.न .. सैकेस्मिन् 7. न विश्येषु छोकेषु फ
दकए. (५) नस्य; ण्व. 1 फ, ए, 59 5०. @) क्लि; खु 8. 8०. 7. ए. इ. न. नतो; ग्गो. ए. 2. प. ९रणः; हनः 5०, (जक ०.४.) ° इनम्. ए. 9.४.
{ २५ }
इध्यैश्ववंवखान्वितोपि बकूमिद्धभ्रः परैः संगरे
तद्यक्तं वरमेव देवशर धिग्धिग्वृथा पौरुषम् ॥ ८८ ॥ क्मीयत्तं फलं पुंसां वृद्धिः कमीनुसारिणी ।
तथापि सुधिया मान्ये सुनिचरयैव कुवैता ॥ ८९ ॥ खल्वाटो दिवेश्वरस्य किरणैः संतापितो मस्तके
वाञ्छन्देशमनातपं विधिवद्ात्तारस्य मूलं मवः । तत्राप्यस्य महाफलेन पतता भग्नं सशब्दं शिरः
प्रायो गच्छति यत्र भाग्यरहितस्त्रैव यान्त्यापदः ॥ ९० ॥ दािदिवाकरयोप्रहपीडनं
गजमुजंगमयोरपि बन्धनम् । मतिमतां च विरोक्य दरिद्रतां
विधिरहो बरूवानिति मे मविः॥ ९९॥ सृजति तावदशेषगुणाकरं
पुरुषरत्नमङकरणं मुवः ।
~~~ --- ~+
2) श्वयश्च० श्वयश्च° फ़. ए, प्र. 2. ए. गवा ०; ०सम ०. ए, ०.०. ०ब व्ये 8०.४.{) बलमिद्र ०; मथवा म ०. 7. विभि ०.९, ए. ग, 26. मकवाम्भ° ०.४. (द) °द्च;° °च ०. 8. ४6. ए. इ. 9. त, 2०, (जह. ०.४.) वरमेव देष०; नन् देवमेव् 8. ब. 289. उ. 7. 5०, (णण. ०.१.) 1, 2. 2. क.
30. (४) स्त्र; न््री° फ. तो ०ते. 56.. प, @) कञ्छ ०} गच्छ ०, फ. विधिवत् ; दतिः प. ताङस्यः बिल्वस्य ए. 26. 280. ए. 2. ए, 1,. (19 कङ्का ताड) (९) णत्रापयस्य; शतराप्याशु 1, फः शक्रैः ग, °दा०; गहना, पृ. (व) माग्यराहेतः; देवहवकः )३. तत्रैव यन्त्यापदः; तत्रायदां भाजनम्. प्र. ध, (ष्णान-6 ध ०६ प्ञताणड 18 ००४७) ए: 7.
ध. (मो तठ 988४ एण 11968 कषण 18665 ३० 8. ५, व, 7, 2०. र. 86. पि. ८8) °मयोरपि; विहगम एर. |
शला. (४) हि०; यर, ^]
[ २६ ]
तदपि तत्षणमङ्गि करोति चे- दहह कष्टमपण्डितता विधेः ॥ ९२ ॥ पतरं नैव यदा करीरविटपे दोषो वसन्तस्य कि नोलूकोण्यवलोकते यदि दिवा सूयंस्य किं दूषणम् । थारा नैव पतन्वि चावकमृखे मेषस्य किं दूषणं यत्पुवं विधिना राटङ्खितं तन्मार्जितुं कः क्षमः ॥ ९३ ॥ इति दैवप्रशंसा ।
----- -
अथ कर्म॑प्रशंसा । नमस्यामो देवान हतविधस्तोपि वशगा विधिर्वन्यः सोपि प्रतिनियतकरैकेफरदः । फर कर्मायत्तं किममरगणैः किं च विधिना नमस्तत्कर्मभ्यो विधिरपि न येभ्यः ध्रमवति ॥ ९४ ॥ ब्रा येन कुलारवनियमितो ब्रह्माण्डमाण्डोदरे ` विष्णुर्येन दज्ञावतारगहने क्षिप्तो महासंकटे 1 रुद्रो येन कपारूपाणिपुटके भिक्षाटनं कारितः सरो भाम्यति नित्यमेव गमने तस्मै नमः करमेण ॥ ९५ ॥ ` @ (रके ग्व ए. 9] (9) [रवेषप भ० श] शा. (2) ९को; का. 8. परवछोकते यदे; न विशोकयन्ति च 8. ए. शप्य्र- छोक्यते यदि 7, फ. 2०. (2) तन्मार्जितुं कः क्षमः; दैवस्य कनि दूषणम्. 8. ॐ. (प्र, () ह०; ब् ०५९.४. (0616 8180 86 20६8 इन्त, हित ०7 इत)
{9 किममरगनैः; यदि किममरैः 86. 89. 7. ए. ४, 2. 2. पभ. (कप्टा८ <मध० 9 मम.)
0. (9) प्रो महा ०; न्यस्तो महा ° 86.9४. छिपरः सदा 7. 2. (८) ° यनम् ¦ ०यरणम् 89.४. कारितः; सेवते क. ।
{ २७ |
नैवारुतिः फलति नैव कुरुं न शीरं
विद्यापि नैव न च यत्नरुतापि सेवा । भाग्यानि पूषैतपता खलु स्ंचितानि
काले फलन्ति पुरुषस्य यथैव वृक्षाः ॥ ९६ ॥ बने रणे शतरूनलान्निमध्ये
महा्भवे पर्वतमस्तके वा । सुप्तं प्रमत्तं विषमस्थितवा ।
रस्षन्ति पुण्यानि पुरा र्तानि ॥९७॥ या साधूंश्च खलान्करोति विदुषो मू्खानिहितान्देपिणः
परयक्षं कुरुते परोक्षममृतं हाखादरं तस््षणात् ॥ तामाराधय सक्रियां भगवतीं भोक्तुं फलं वाञ्छित
हे सथो व्यस्तनैगणषु विपुरेष्वास्यां वृथा मा कथाः ॥ ९८ ॥ गुणवदगुणवद्वा कुवेता कायैमादौ
परिणतिरवधार्यां यत्नतः पण्डितेन । अतिरमसङतानां कमंणामाविपत्ते.
मवति त्टदयदादही शल्यतुल्यो विपाकः ॥ ९९ ॥
(ष्य. (2) ०्वा००्का०. 1 (2) °्पि नैव; न चापि 7, 2. 1. (०) सा; . ०साम्. 1,. खलु; किल. 2, ए. २. ए. 6.2. संचि ०; सेवे र. सेवि ° ¢.
रछा. @) मस्तके; संकटे 8. फ. प. उ. (०) सपम् ; शुभम्. 7. वा; च}.
स(य. (५) शरव; °सुन्हि. 56. ए. (८) सक्ियाम् ; चण्डिकाम्. 7. शंकरीम् ए, 88.71. चक्रिकाम् 2. ए. २०४९ 88 ॐ एक्ष०्रइ 7९कतूफद्ठ 17 1. वक्रिकराम् 11016 9 & एश ४४ ३० 8. °तीम् ; °तो. त् भीक्तम् ; दानीम्. ए, 6.2. (द) हे सावी; मोदष्रौ (भ्यो ?). ०.४. व्यसनैः; व्यसने 30.71. वमलम्, 7. वमतो ह्व. 29.०. 2. ‰. ०4०; ०क० 56. 0. ए. मे (१) 2. ९स्थम्; ण्स्था० ए. 7. . उशा. (५) गुणवद्युणवद्ध; सगुणमपगुणे वा २. 2. ° मादौ; जानम्. 8. २, ए. 2. 2. ह, ९.7. दर.
च.
सथ्य वैड्व॑मथ्यां पचति तिरुखलीमिन्धनैश्चन्दनश्चिः सौवर्णीरौङ्गलात्विलिखति वसुधामकमृलस्य हेतोः । किला कपूरखण्डान्वृतिमिह कुरुते कोद्रवाणां समन्तात् प्राप्येमां कमभू न चराति मनुजो यस्तपो मन्दमाग्यः॥ १०० मज्जवम्भाति यातु मेरुशिखरं श्र यत्वाहवे वाणिज्यं रुषिप्तेवनादि सकला विद्याः कलाः शिक्षतु । आकाशं विपुलं प्रयातु खगवक्कत्वा प्रयतनं परं नाभाव्यं मवतीड माग्यवशतो मान्यस्य नाशः कुतः ॥ \०९॥ ममे वर्ने मवति तस्य पुरं प्रधानं सर्वो जनः सुजनतामुपयाति तस्य । शृव्सना च मूर्वति सन्निधिरनपूणां यस्यास्ति पूर्ेसुत्रं विपु नरस्य ॥ ९०९ ॥
इति कमेपरशंसा |
6, (०) ° ०; ०दू ०. 39. 5०. ए. तिल्खलम् ; तिरखजिम्. 8. 2. प्र, ए. 2०.. तिरुखकम. 2. ४, प. विककणान्. ¶, च ठ्युनम्.0 इन्यनैशन्दनव्रैः; चन्दमैरिन्धनोयैः 8. ‡. 89. फ. (क)1७ नो ० नौ) २. ए. प. (५९ चा ष्च) जङ्जऊानिन्नीषैः. 70. चन्दनैरिन्यनश्रिः 0. ¶ 5०., (2) विकिख ०; निखन ०; ०थामकैम् ९; धां करमैम् ^. फ. ९घां कर्मन् ०. 0. ९भामर्कत् ०, ?. ३, (५) ०न्व् ०६ णन्भर. ¶, ००, 8. ९०; ०व् ०. 0.2. (ठ) न चरति; प्रचरति 8. चरति न. 1, न भजति. पर.
ध. (2) °रम्०; °रे. 7. °तूक्न ^, ° ज०. 80. (ण्ट. 2०.9.) (8) श्यम्, °ज्या०. 807. प्राः क०; धद्याक०. 4. “साशद्चि०; ग्ल शि०. २, इ, णक्षतु ०} श्तु ०. भ, °कतुम्. इ. (९) साग्य °; कमै. 2. ए. प.
(शा. (४) तण} य° फ. (2) ° जनः; वे नना: 1. 2. 2०,. सु० ख ९. ४, 2. °ति; °न्ति. 1. ०.०. तस्यः. सद्यः. 1. (¢) कुल्ला; कला. 8, बाञ्छः, प. प०; १०. ४.
[ ९९ 1
अथ प्रत्यन्तरे छोकाः ।
को लामो गुणिक्तंगमः किमसुखं प्रज्ञितरैः संगतिः
का हानिः समयच्युतिर्निपुणता का धर्मतस्ते रतिः कः शूरो विजिवेन्दरियः प्रियतमा कानुव्रता क्रि धनं
विद्या किं सुखमप्रवासगमनं राज्यं किमीज्ञाफ़लम् ॥ ६०६. ॥ मालतीकुसुमस्येव दवे गती ह मनसिनः।
मूध का सर्वेरोकस्य शीयेते वन एव वा॥ ९४ ॥ अप्रियवचनदरिद्ैः प्रियवरचनाढ्चैः खदारपरितुष्टैः।
परपरिवादनिवत्तैः कचिक्कचिन्मण्डिता वुधा ॥ ९०५. ॥ कदर्वितस्यापि हि पैय॑वतत
नँ इाक्यते धैयगुणः प्रमाष्टम् । सधोमुखस्यापि रुतस्य वन्दे-
नाधिः शिखा याति कदाचिदेव ॥ ६०६ ॥ कान्ताकटाक्षिविरिखा न खनन्ति यस्य
चित्ते न निदंदति कोपरशानुवापः। कर्षीन्त मूरिमिषयाश्च न रोमपाज्ि
र।कत्रयं जयति रुत्स्नमिदं स धीरः ॥ ९०७ ॥
शा. (2) °य ०; °ये.-1,. 80, “च्यु ९; च्ब्यु०. 8.
लाप. (५) ० °ह. पए. मनसि ०; महाम ०. ०.2. जोयते; दीयत. 20.
तए. ®) गलैः; णस्यैः, 1,. परे ०; सम्. २.
त्रा. @) वैदक्ना्ो न हि शङ्कनीयः ए, 26.. (९ कतस्य ब्देन ९} ननूनपानो ना० ए. 8९.2. (2) °ति; °न्ति. ष. त (ण्ण. (५) खन ९} दह ° 81} €>०९}४ 9. ए. ८9. (०.४. 1४8 दह ०); ` कुन ९. ष. (४) श ानूतापः; €तानुतपः 8. 1५. ठू, ०.४. °्ानुधातः 2. (०) क ०; व° 2०, (०, 89.2.) व° प. न्यः; श्या 88. ए, ए, 2०. 7. ४. त. (ध) भी °} शै ° ०. (ग्ट. ८०.०.).
{३०
एकेनापि हि शरेण पादाक्रान्तं महीवतम्। क्रियते भास्करेणेव स्फारस्फुरिततेजस्ता ॥ ९०८ ॥ वङ्धिस्दस्य जलायते जरूनिधिः कुल्यायते तत्तणा- नमेरुः खल्पशिलायते मृगपतिः सद्यः कुरङ्गायते । ग्यालो मान्यगुणायते विषरसः पीयूषवर्षायते यस्याङ्घेखिललोकवल्लमतमं शीरं समृन्पीरति ॥ ५०९ ॥ रज्जागुणोघजनननीं जननोमिव खा- मव्यन्तदुदधहृदयामनुवतेमानाम् । तेजस्िनः सुखमसूनपि संत्यजन्ति सत्यव्रतव्यसनिनो न पुमः प्रतिज्ञाम् ॥ ९५० ॥
.81,94107-8,0.8191
अग्राय ष्दयं पथेव वदनं .यदपंणान्वमैतं
मावः परैतसृक्षममागेविषमः खीणां न विज्ञायते ¦ चित्तं पुष्करपत्रतोयतरछं विद्रद्धिराशा्तित
नारी नाम विषाङगुेरेव रता दोषैः समं बाता ॥ ९॥
(0णाा. (०) णवे हि; ववेद 1. ¶्र०; पर 7, ॐ. मही; क्षमा. (2) ररे °; र्रस्ये° र. °रेषै०. 2. ४, सारसर्फरेत ०; स्फुरत्फारिते 1. परं सरति ए. स्फारं स्फुरित ए. परिस्फुरवि. 0. ।
काद. (2) कृत्या ०; कूपा ०९.४.८णात् ; ०णम् 5०.४. ४) का ० ण्खा० ए. गतिः सदयः; ण्तेः सङः ए. (2 वव श श्वय 0, फ. (व) "्क० शप्र ०.8. ॐ.
02. (५) ° ज्जा ८; °ब्जाम्. २. 2. 56.2. जननीमिव स्ताम् ; रव उतैमानाम्, 8, उननीमिवाद्याम्. 7. 2. ह. (19 फ ४० याम् णठ द्रम् ) (2) ° मनुवतै- मानाम् $ ०मनुवर्वमानाः 89. 8०. ए. 2. ॐ. < मनिकतैमानाः 7.
1, (०) भग्रा०; दुर. 2. २. ए. दयम् ¦ क्दनम. ॐ. य ०; तण. . ए. वदनम्; हृदयम्. 7, यड ०. सद ०. ?. †. (८) शद्रंसि ९; °शङ्कि°. 7. ए.
>)
अभिमुखनिहतस्य सतस्तिष्ठतु वावन्जयोथवा सवमः । उमयबलप्ताधुवादः श्रबणसखस्येव ताप्पयम् ॥ २॥ इथत्येतस्मिन्वा निरवधि चमर्छत्यतिशये वराहो वा राहुः परमवाति चमत्कारविषयः । महीमेको मभ्रां यदयमवहदन्तस्ंलिक्लिः शिरःशेषः शत्रर्निगिखति प्रं संत्यजति च ॥ २ ॥ उदन्वच्छना मूः स च निधिरपां योजनरातं सदा पान्थः पूषा गगनपरिमाणं कलयति । इति प्रायो मावः स्ुर्दवधिमुद्रामुकुलिताः सतां प्रज्ञोन्मेषः पुनरयमसीमा विजयते ॥ £ ॥ एकी दवः केशवो वा रिवो वा एकं मित्रं मृपातिषां यतिवां । एको वास्त: पत्तनेवावनेवा एका मायां सुन्दरी वादरीवा॥५॥ कमठकुलाचङदिग्गजफणिपतिविधृतापि चरति वुधेयम् । प्रतिपन्नममलमनसां न फलति पंसा युगन्तेषि ॥ ६ ॥ कि कूमेस्य भरव्यथा न वपुषि क्षमां न क्षिपत्येष यत् कि वा नास्ति परिश्रमो दिनपवेरास्ते न यनिश्चलः।
71. (°) व ण्त्र 0. (घ) सु०; मु ०. ]). श्रवणसुखोसौ क्छत्यर्यम. ४. र
ए. ( प नाः कक० ना ई जा ). श्रवणमुखस्यैनास्यतर्ः (ऽस्यैव नास्ययैः?) 7).
प्र. (५) ०च्छ ०} °च्छि०. र, (तम्; नतेः. ए. २. (2) प्रर प्रा०. 2. प. “मा; °मो. ए. र्ते; तताम् ए. ।
छ, 7० ए. © पद् कत् ण्ण 11४९8 1णथक्तकणडर 18०66. 7 फ. ४४© प्ण 18 86609, प 86609 चात त ४6 पमप्व एप्प,
फा. (ॐ) ण्ेष यत् व्येव यः. श. (४) °रा०; <र्०. 86.०४, यन्नि० योनि ०. 14. ‹छः; °छत्, 7. । ।
[ ९२ ]
किचाङ्गीरुतभुत्सृजन मनसा शाध्यो जनो रम्जते निर्वाहः प्रतिपलवस्तुषु सतामेवद्धि गोत्रम् ॥ ७ ॥ कोन याति वडो रोके मृखे पिण्डेन परितः मृदङ्गो मुखङपेन करोति मधुरध्वनिम् ॥ ८ ॥ भद्राः सन्ति सदसरशः खभरणव्यापारमात्रोदयताः स्वार्थो यस्य पदाथ एव परमो नैकः सतामग्रणीः। दुःपुरोदरप्रणाय पिबति स्रोतःपतिं वाडवो जीमूतस्तु निदाघसंभृतजगत्ंताप्विच्छित्तपे ॥ ९ ॥ द्रद्थं घटयति नवं दृर्तश्चापशब्दं व्यक्ला मयो भवति निरतः सत्तमारद््ननेषु 1 मन्दमन्दं रचयति पदं सोकचिचानुवसा कामं मन्त्री कविरिव सदा खेदमारेरमु तः ॥ ९० ॥ दैवेन प्रमृणा खयं जगति यद्यस्य प्रमाणीरं तत्तस्योपनमेन्भनागपि महान्नेकाश्नयः कारणम् । सवीद्ापरिपूरके जरूधरे वर्षत्यपि प्र्हं सृक्ष्मा एव पतन्ति चातकमुखे द्वितः पयोबिन्दवः ॥ ९१ ॥ परिचरितव्याः सन्तो यद्यपि कथयन्ति न सुदु पदेशम् । यास्त्ेषां स्वैरकेथास्ता एव मवन्ति शाच्लाणि ॥ ६२ ॥ क (५) चा०} व ० 8०. 8०. ए. 7. ज मनसा; °न्खमनखा. 7. °ञ्जन ईव. २. 1. °न्न महसा (78 800 ° न्न सहसा 86०08 1980४) २0 80.०४. & 88.४. (द) णषु; णनि ४, 2. 8. ०.०. वि (नि ?) 7 2, (2) ° रतः; °यतम्. ए. °त्तमार जनेषु; स्तभधादमैषु क. शक्कथापरादनेषु १, 1२. (०) °वृ °; °र० 0. (छो खे०; खे 7) स, (4) °स्य; सि 8०. (०. 2०..) (8) “मे ०४ न्ये ह. 809. 86९. 81. (०) °रकै; °रिते 8०. (०. 5०.४.) 56.प ° ९वः, ०.9. २11. (2) फयवि कथयन्ति न सदुपदेम् ; यदप्यपदिदान्ति न 8. यद्यापि कथयन्ति बा सदुषरेद्म्. 8०. (८) रस्ते ०; ° से 8
{२२ }
।: कन्दुकपातेनोत्पतत्यायैः पतनपि ।
तथा लनार्यः पतति मृषिण्डपतनं यथा ॥ ९६९ ॥ यदि नाम दैवगत्या जगदस्तरोजं कदाचिदपि जावम्।
अवकरनिकरं विकिरति तत्कि कृकवाकुरिव दंसः ॥ ९४॥ यनागा मदभिनगण्डकरटाध्तिष्ठन्ति निद्रासा
यरे हेमविमूषणाश्च तुरगा वस्गन्ति यदर्षिताः। वीणवेणमृद ङ्शङ्खपटदैः सुपस्वु यद्रोदयते |
तत्सर्व सुररोकदेवसदशं धरमेस्य वस्ूरितम् ॥ १५ ॥ ये संतोषसुखप्रमोदमुदिवास्वेषां न मिना मुदो
ये न्ये धनलोम्तकुरूधियस्तेषां न तृष्णा इता । इत्थं कस्य कते ङतः स विधिना तादृक्पदं संपदां
सवालन्येव समाप्देममदिमा मेरुनं मे रोच॑ते ॥ १६ ॥ रक्तत. कमलानां सत्पुरुषाणां परोपकारित्वम् ।
असतां च निदंयलं समावासिदधं त्रिषु त्िवेयम् ॥ ९७ ॥
ववो हि सत्यं परम विभूषणं
गजाङ्गनाया ईशता त्च । द्विजस्य विद्धेव पुनस्तया क्षमा
शीरं हि सर्व॑स्य नरस्य मृषणम् ॥ ९८ ॥
ङा. (०) मायः; यया पष, °य ०; °न१० ए, 1४4. (5) वतनम् ; गुटिका ए. प, (०) भिनेगण्ड; वरिमिनन ° 2. ए. (४) हेम; सर्ण; २. ए. ०वणा ०, १वि- ता० 2. 8. 80.. (मधं, 80.) वन्ग ०; न्दम ° ए०.४. (1, ) दष ०80.2. (ए .) (०ंद्क. 8०.) ०) °यै ०गवेः 2. ए" ०.०. (०४. 39.) रसु; ° 80.४, (गद्क. 5०.) (2) देव; विद्धि, 7", 8. रान्य. ए6.४. (छप. 50). =.
इ एय. (४) सृखप्रमोदः; निरन्तरम्र ०. फ, °बां न; °षाम ०. 7. @) सोभ जन्भ. 7. 1. प. (2) सोन्मन्येव समाप्त; खामिम्यैव समसैन ०. 1). (खामिन्येवं समान ) ङ ए्ा, ®) सयु °; सुक् ° ए, (सप्)
[ ३8 1
वरं तुङ्गाच्छङ्गदरुरशिखारेणः कापि पुखिने पतिलायं कायः कठिनटृषदन्तर्विंदलितः । वर् न्यस्तो हस्तः फणिपतिमृखे वीव्रदशने वरं वदी पातस्वदापि न कवः शीखवखुयः ॥ ६९ ॥ विरम व्िरसायासादस्मादुरध्यवस्तायतो ‹ विषादे महतां पैय्व॑सं यदीक्षितुमीदपे । अपि जडमते कल्पापाये व्यपेतनिअक्रमाः कृलनज्ञेखरेणः कषुरा नैते न वा जलराशयः ॥ २० ॥ सपृयति मुजगरोरन्वरमायतकरवालकररुदविदीणम् । विजयश्रीर्वीरणां व्युत्पनप्रौढवनितेव ॥ २९ ॥ अयममृतनिधानं नायकोप्योषधीनां शतभिषगनुयातः शम्भुमूपेःवतंसः । विरहयति न चैनं राजयक्ष्मा राशाङ्क इवविधिपरिपाकः केन वा रद्कुनीयः ॥ २२ ॥ शुभ्रं सदम सविभ्रमा युवतयः श्वेतातपत्रोज्ज्वला रक्ष्मीरिय नुमूयते चिरमनुस्यूते शमे कमणि । विच्छिन्ने निवरामनङ्गकटदकीडा्ुटत्न्तुकं .
मुक्ताजालमिव प्रयाति इटिति भरयदिशोटर्यताम् ॥ २३ ॥
15. (०) तुञ्गच्छङ्ा ०; सुश्रीनुज्ग ०; 14. 2. 2. 80.४..2). (ष॥ल७ तु ण नु ) शश्गीत्संगा०. प. °द्भर; < द्र. ४. णः; रणाम्. 7. वृजिने; विष्रदे 7. ०.४. पि. व. परिषये. 2, ए. (2) ° न्तविंद ०; °न्तर्विग ०. 7. ०.०. नन्त विगि० कष. (८) त्र; ०१०; 7). ९. ` ६. ध. प. 86. {० 86९.१. ) ए80.४.
(०५8. 59.)
क. (४) °साया०; ०माया०. }. प. °तो ०; ९तः. र, कणत 119७8 ०४० ॐत प्9 लाक 19068. (९) ००; ग्वे 2. 2. प. मते; विधे. ए. 2. ए.
ह. व्य०;्य०, प्न. मा; मः 7. (2 ) जरादयः; ०चापि जरायाः ए. सा. (2) वि णणाप्॑डव् 19 ६. (2) व्युयज्न; मत्त, 7६,
॥ श्रीगेाय नमः ॥ । अथ वैराग्यशतकम्. ।
, दिक्कालाद्यनवच्छिनानन्तचिन्माजमरतये | सवानुभूत्येकमानाय नमः शान्ताय तेजसे ॥ ९ ॥ अथ तुष्णादूषणम् । बोद्धारो मपर्रस्ताः प्रमवः स्मयदूषिताः । अवोधोपहताश्चान्ये जीर्णमङ्गे सुभाषितम् ॥ २ ॥ न संसारोत्पन्नं चरितमनुषरयामि कृशरं विपाकः पुण्यानां जनयति मयं मे विमृद्वः । महद्धिः पुण्यौवैश्विरपरिमुशीताश्च बिषया महान्तो .जायन्ते व्यसनमिव दां विषयिणाम् ॥ ३, ॥ उत्वावं निधिशङ्कया क्षितिवरं ध्माता गिरिधाववो निस्तीणैः सरितां पतिनंपतयो यत्नेन संतोषिताः । मन्त्राराधनतत्परेण मनसा नीताः इमश्ाने निशाः प्राप्तः काणवराटकोपि न मया तृष्णेधुना मृच्च माम् ॥ ४ ॥
1. (५) चिन्मात्र; विक्ञान. #¶. (2) शत्य ०; श्ये ° 8. ‰#. °माना ०; नाथा०, 2,
7. (@) गोष ९; °न्नानो ° #. 2. 2. °ा०;०म०, श
गा, (©) प्रिगृहीताश्च; °मपि गुहीताव. ए. 6. 50 (०&, 80.9 ) परिगरी- ताहि.
ए. (@) शकोषि ०; °केति ०, 4. सेवि र. ४. (०) निदः क्षपाः 4. 14. (व) णना मओ मम ; सकामा भव. ७. 2. ५, 2, त, 89.
{ ६६ 1
भ्रान्तं देशमनेकदुर्मविषमं प्राप्तं न रकिचिकङं
त्यक्ला जातिकुङामिमानमुचिवं सेवा कता निष्फला । , मुक्तं. मानविवर्जितं परगृहेष्वाशङ्कया काकव-
तृष्णे जुम्मस्ि पापकमेनिरते नाद्यापि संतुष्यसि ॥ ५ ॥ `
खङोष्ठापाः सोढाः कथमपि तदाराधनपरैः
निमुद्यान्तौष्पं हसितमपि शून्येन मनसा । ङ तश्ित्तस्तम्भः प्रविहतधियमच््नेङिरपि
त्वमाक्षे मोधारे किम परमतो न्वयि माम् ॥६॥ आदित्यस्य गतागतैरहरहः संक्षीपते जीविवं
न्यापरिवंहुकायैभारगुरुभिः कारी न विज्ञायते । दृष्ट जन्मजरामिपत्तिमरणं तरास्श्च नोत्पद्यते
पीला मोदमर्थी प्रमादमदिरामुन्मत्तमृतं जगत् ॥ ७ ॥ दीना दीनमुखैः सदेव शिद्कैरारुष्टजीणौम्बरा
क्रोशद्भिः कषधितैभरेनं विधुरा दुर्येव चेद्रेिनी ।
ए. (५) °न्वम्.; °न्वा, 2, ए, ए. न्त्या. #. “कजम् ; ° दनम्. ४. {2} जाति; कीज, ए. ए. 7. °तमू; °ता, ४. (८) शा; क्ल ©. च. ए. 4. ए०.१. प. ५०त ©. (ण पशष्णि; सह. 70 ६९) श्रा, 8. ए. ९या; °या, 9.४. (2) ल॒म्भसि; दुमैति. 8०.२८. ७. ©, छृम्मिणि 14. वैरिणि 2. ए. 2. (फल ० ००१ 1४ श्द्ा9) निरते; पिञ्युमे. ए, भ, ९खि; ति. 2
प, (०) °जोन्रा ०} ° ° 4. प्र. °लोका° 8. तदा; नुग ° 2. (०) °. शिण॑ग्तौ वि० 2... न्तो वरि 4. ०. ए. 2. प, 8०.०४. ०्मः प्र०; श्भप्र 2 2, ° तिह ०} °दत्ति ०. 0. एए. (4) ० मप ०; ०मुष ०. ८०. (०, 3०.9४.) ए. ¶!
एना. (४) गगिततम् $ ०वनम् 80. (०४६. 5०.१०.) ह. (2). नति ०३ श्न. कष ()) ॥,.17- 9 ०योभृ० ॥,1॥ नशु °स्तु फ
पा. (५) तना; ०्नाम्, ¶\ अ. सदैव; तयेव द, खकीय. 8. ©. 280. (जपं, ए०.०.) <राः णेः ^, °राम् व, 80. ए. (६) न्नर; °निरेन. 8 ्मिरन्न ¶, ए. ए०. 7. प. गर्मरैने ©. पि षु विधुराम्. 7. जठरास, एए, जट.
हः. 9. दुर्येत; ग्द्॑यत. ०. दशया न. ए, दैव. 80.४, (ताम. 01 चेन् ,). नी; नीम, ¶, \, 80 ।
{1 २७ }]
याञ्जामङ्गमयेन गद्रदगखतुटयद्िलीनारं
को देहीति वदेतछदग्धजटर्स्पार्थे मनखी जनः ॥ ८ ॥ मिवृत्ता भोगेच्छा पुरुषवहुमानो विगछित
समानाः सखयाताः सपदि सुहृदो जीवितसमाः । शनै॑षटयुत्यानं घनतिमिररुद्धे च नयने
अहो धृष्टः कावस्तदपे मरणापायचकितः ॥ ९ ॥
दिंसाश॒न्यमयत्नलभ्यमशनं धातरा मरुत्कल्पितं
व्याङानां पररवस्तणाङ्रभजः सष्टाः स्थीदहायिनः।
सस्ाराणवलद्घुनक्षमधियां वृत्तिः कता सा नृणां . यामन्वेषयतां प्रयान्ति सततं सवे समाधिं गणाः ॥ ९०॥
न ध्यातं पदमीश्वरस्य विधिवत्संसारविच्छिक्षपे
स्वगद्रारकपाटपाटनपदु्धरमोपि नोपार्जितः । नारीपीनपयोधरेरूयुगु स्वभेषि नालिङ्गितं
मातुः केवलमेव यौवनवनच्छेदे कुठारा वयम् ॥ ९९. ॥
(५) °जचुणयद्ि ०; °लोङ्कच्छद्वि ०. ए. ०ऊसद्रद्ि ०. 80. ° लनुगरदवि ° 1०.. (®) °०स्या०; °खा०. 4. ननः; पुमान्, 4. 8. ६. 8०. 6. ४. २.४. फ
12. (५) पृरूषक्हु; बहुरूप. ¶. °नो व°; भनेर्धे०. ए. श्नोपि. ए. प णतः; न्ती. 4, (2) न्समाः; सतमाः. 4. (2) ग्य °; नु ०; ©, यस्य ° 4, गयस्य ०. 1. °रभ्यु०, 1. (क) वृष्टः; दुष्टः. 7. ०. ए. 50. शष्ट ए, (88) दृटः, 2. मूढः. पष. ण्णा०; श्णो०, ए. ०पाय०; °याष०, 4. ©. प्रात, 50.7४
क. (०) धात्रा महत्कन्यितम्; वायुः कतो वेभसा. ए, 89. (०1. .8०,2.) ९त~ म्; ०ती. ^. 2. (2). पशव; पवन, ०.०. °सृ० °°. क, 8०. ( णम ०.) मस्तु ०. प. (८) न°; ग्ने. 8. (ध) यार; वार. द. सततम् ; सहसा, र, 89. (नण. ए०.४)
शा. (र), नन्ति; रामा. 2. 7२. ग्ग°; °१्गर' ए. प. 50.
[ २८ }
भोगा न मुक्ता वयमेव भुक्ता
स्तपो न वप्तं वयमेव तप्ताः । कालो न यातो वपमेवे यावा-
स्तृष्णा न जीर्णां वयमेव जीर्णाः ॥ ९२ ॥ कान्तं न क्षमया गृहोचितसुखं व्यक्तं न संतोषतः
सोढा दुःसइशीतबादतपनाः हेशान तक्ष तपः। ध्यातं वित्तमहर्निशं नियमिवप्रागैनं शम्भोः पदं
तत्तत्कमे रतं यदेव मुनिभिस्तैस्तै फङैव्िताः ॥ ९३ ॥ वङिभिर्मलमक्रान्तं पङितैरङ्कितं शिरः
गात्राणि शिथिलायन्ते वृष्ैक वरुणायते ॥ ९४ ॥ येनैवाम्बरखण्डेन संवीतो निशि चन्द्रमाः।
तेनैव च दिवा भानुर दौर्मत्यमेतयोः ॥ ९५॥ अवरयं यातारश्िरतरमुषितवापि विषया
वियोगे को मेदसत्यजवि न जनो यत्सयममून् । व्रजन्तः स्वातन्त्यादतुलूपरितापाय' मनसः
स्वयं त्यक्ता देते शमसुखमनन्तं विदधति ॥ ९६ ॥
छा. (०) °क्तास्त ०; णक्तं त०. ण, (2त् 2680598 ) (2) शप्ताः; पतम्, प, (2 ५९9४४) (2) नताः; तस्. व, (2० -न्व्कण्ड) (%) गणः; र्णम्, १. (16 - 1/11.3।
शवा. (५)सु०ः मु ए. (४) °बः; वटो. 8. शीतवति; वातज्लीत. ए. °नाः; न, 4. ए. २. प. 8०.४, नः. ४. नखान्न; व्यो न ए.न्डान. ^. 2, ४. तष. ०.४. (©) वि; चि ० 8. (द) य०; त°. ©. ध. °ताः सतम्. 5. °तः. ©. 4.
सष, (०) "क्ि०; ण्की०, 2. ०तेर ० तेना० प
उष. (०) श्नेवा०; ण्न चा० ०.४. (2) चः य ०.४. °नुरद्य; नुः पश्य. 7.
, उण. (५) ण्वे; च 4.-(०) ०जन्तः; जेत 4. (4) शह्ये०; श्यो० ^. स्यै० ए. 20. (गाह, 20.71.) श्रे 8. नतिः न्ते. 2, ए.
[ ६९] तृष्णाधिकारमाह् |
विवेकत्याकोंरो विकसति शमे शम्यति तुषा
परिष्यङ्के तुङ्गे प्र्तरतितरां सा परिणतिः। जराजीरभैशव्ग्रस्तनगहनाक्षेपरूपण-
स्तषापात्रं यस्यां मवति मरूतामप्यधिपतिः ॥ १७ ॥
मदनविडम्बनमाह् ।
रुशः काणः खञ्जः श्रवणरदितः पुच्छषिकठो व्रणी पूति्ठिनः रुमिकुलश्त पवृवतनुः । क्षधाक्षामो जीणे: पिटरजकपालार्पितगलः दानीमन्वेति श्वा इतमपि च हन्त्येव मर्दनः ॥ ९८ ॥
विषयाणामधिकारमाह् ।
भिन्ञाङनं तदपि नीरसमेककरं राच्या च भूः परिजनो निजदेहमात्रम् । व्रं च जणेशतखण्डमरीनकन्था हाहाः तथापि विषया न परित्यजन्ति ॥ ९९ ॥
उषा. (०) °कस °} "दब ०. 74. शमे; शनैः 8. (8) परिषङ्े तुङ्गे; भृशे या- त्ता तस्याम्. ए. (५) गहना ०; महता 8. क ०; क ° ऋ, °गस्तृषरार} णः कुप 8. ए.
ष्णा. (८) रहि °; गलि० 4. (2) °ति; °य, 4. 8. ए. २. 8. (०) वर- उरजकपालार्पित; परिठरककणाजेषरित 4. पिठरककपाछार्दिते 8. परिवरनृक्पाजार्दित ए, पिररककपित 8. पिठरकपालार्वित. 2. (थ) चं; हि 4. ०व; श. 8. 2. ए,
स्यद्. (५) चन, 4. सुर ए. 8०. ए. प. 2. 8. जैीर्ण्यतखण्ड मलीन; लै- गैखतखण्डमयो च 1४. ¶. 8०. ©. प. शीर्णदतखण्डमयो 8. रीर्णपटखण्डमयी च. ए. . 1. (&) न; ज. ¶", परित्यजन्ति; जह्यति चेत; ग,
[ ४० 1
रूपतिरस्कारम।ह ।
स्तनौ मांपग्रन्थो कनककलद्राविल्युपमितौ
मुखं श्लेष्मागारं तदपि च शशाङ्केन तुकितम् । सवन्मूनष्किसं करिवरकरस्पर्धि जघन- महो निन्द सूपं कव्रिजनविरेषैर कुतम् ॥ ९० ॥ अजनन्माहात्मयं पततु शरूमो दीपदहने `
स भीनोप्यज्नानाद्वडिदायुतमश्नातु पिशितम् । बिजानम्तोप्येते वयमिह विप्ज्जालजटिखा-
ख मुद्धामः कामानहह गहनो मोहमहिमा ॥ २९॥
अथं दुर्जनमुद्ि्याह ।
विसमलमशानाय स्वादु प्रानाथ तोयं
शयनमवनिपृष्े वल्कङे वासत्ती च |
नवधनमथुपानभ्रान्तसर्वनद्रियाणा- मविनयमनुमन्तु नोत्सहे दुर्जनानाम् ॥ २९ ॥
ड, (५) कर; चिरः व्, प. कट 14, (2) नमह नि ०; ०नं मुहुरनि° 8. 7 ए. 89. पच. ए. ©. २. जन; वर. 7. 8०. (गह. 5०.9.) ४."
इ. (५) °न्मादाग्यम् ; °न्नप्येषः 4. °न्दाहात्म्यम् २. 2. फ, पततु; ¶त- ति. 8. ए. 2०. विद्यति. ण. ०भो दीप; गभस्तीव्र. ^, 8. ¶, ए , प, 2. 2. 0. 8०. 14, (४) °व्व .^पि. ४, ° ज्ञानष्ध ०; ° ज्ञानद्धि° ॐ. 2. 8. ° ज्ञावाव, ¶. ०श्नातु; °भन्ति. 2०. °ननाति, ग. ए. ७. ०.४. (०) ण्वये०; शक्षे०, इ, 80०, (भष. ०.४.) ©. नटि ०; पट ९, ए. 0. (०४. ०.४.) ©.
ॐ. (4). विस; फल. 4. ए. 7, 2. ८०, ॐ. २, (2?) हे °इम. ए. ‰. शयनमवनिठ; कषितिरपि कायनारथम्. प. वल्के वाससी; वाससी वल्कले. &. ग. ए. 5०. वाक्षसी वत्कठम्. प. च; तु. ए. नु. 2. (८) नवघन; न भव्छ. 4... भनलख्व., %. गु ए. 89. ° नननान्त; °नं जन्त. 4. 2. °नन्नामि, ए, (थ) . ° मनुमन्तुम् ;
ॐ ५१
०मनुवुम्. ¶\ युपगन्तुम् 4. ने ० को ०, 4, । र
[ ४९] `
मानितामुद्िष्याहं ।
मिपुरहुदवैधन्यैः कैश्रिन्नगन्जनितं पुरा विधुतमपरर्द्तं चान्यैर्विजित्य तृणं यया ।
इह दि भुवनान्यन्ये धीराश्चतुर्दश भुञ्जते कतिपयपुरस्वाम्ये पुतं क एष मदज्वरः ॥ २६. ॥
निस्पृहाणामधिकारमाह ।
तवै राजा वेयमप्युपासितगुरुपरल्ञाभिमानोलताः
ख्यातस्खं विभवेर्यशासि कवयो दिक् प्रतन्वन्ति नः। इत्ये मानद नातिदूरमुभयोरप्यावयोरन्तरं
यद्यस्मास॒ पराङ्खग्लोति वयमप्येकान्ततो निस्पृहाः ॥ २४ ॥
, अभुक्तायां यस्यां क्षणमपि न यातं नुपशते-
भृवस्तस्या रामे क इषे बहुमानः कितिमुजम् । ` तदंशस्याप्यंशे तदवयवङशेपि पतयो
विषादे कतव्ये विदधति जडाः प्रयुव मुदम् ॥ २५ ॥
सा. (५) इदवैः; मतिभिः, 8०.४. °बेन्पैः; ररीकैः. ग ए, 89. (कैर ० ०.४.) ©. ए. केचि ०; एत ०. प (भ्येत ० ०.४.) (४) णणं यथा; °णमन्यथा. ए, ` ण्ण पुरा. @. (८) भी०; शै. 4. (०) रर; रः. ॐ. 4. 6. 8०. (गह. ०.४.) र. ©, °पर; ० ७.
श्प, (८) प्रर प्रर. 4. @) नः; च. & (५) ण्ट; °वर. 4. 8.7, ६. प्र. ध. &, 2०. (गह. 8०.०.) °सुभवो ०; ०मनयो ०. 8. गतयो ° @ =.
शप. (५) ण्यम्; तनाम् ४. न; चः ०.2. या० जा 6. नीर ^. (2) ला०; छो ° ०.४. इव; दह. ग, ए. 89. (०ण&, ०.४.) ©. °भृजाम्; °मृताम्, ए, 80. ` (गणक. 0.2.) 9. प. (९) वदेद्स्या ०, तदष्यस्या १. 4. (4) ° ण्डः, 4. ण्नाः ए. ।
[ ४२ }
मृत्पिण्डो जलरेखया वरूयितः सर्वोप्ययं नन्वणु
र ङ्खोरुत्य सं एव संयुगरतै राज्ञां गणेर्मज्य॒ते । तददुदेदतेयवा न किमपि क्षुद्रा दरिद्रा मृशं " यिग्धिक्तानपुरुषाधमान्धनकणं वाञ्छन्ति तेभ्योपि पे ॥ २६॥
दर्भगसेवकस्य वाक्यमाह | म नटन विटा न गायका न परद्रोहानिवद्बद्यः।
मपस्षद्मनि नाम के बयं कुचभारानमिता न योषितः ॥ २५७॥
-------~---"-------------+~ उशा, (५) मृषो; नित्यं यो. ए. वल्यि ०; परिव ०. ए. 8, ०.०. -च- परि०. 4, ण्न्व०ल, ¢. 4. (2) °रङ्खो०; श्व्तशची०. ध. 2, 0.१. स्वांशो ०. प. खारी ० 5०. °स्वङ्गी. 2. ०स्तं सी ०. "1, स्त्धी ०. 2. °येंखी ०, 4 ° सशी. ए, स एव; सदैव. द, तमेव, 4. ए. प. ०युग; °भर. प, गनेमु- ख्यते; शतैर्मूब्यते. ए. ए. गणा भुजते ^. प. ¶, ए. 29. (०) वषुः; नो ददुः. 4. वर. 80.४. ते दनुः, प. 2, 8. ए. #¶. रद्मन्ते, ह. 89. ददतेयवा न किमपि; ददते- थ तन्किमपि तै. 4. ददेय किमपि वे, ¶, ०.४. ए. & पत. (ण म० प्रे पण पिते) ` 59. (ष्णाष्टः० & 7 ए. दतो 7 दते.) दरिद्रा भृद्यम् ; भृशं याचकाः 4. (द) भिश्धिर; ये. नि०. क. तीन्यु० कषु ०. ए, 89. (गप. 50..) कणम् ; क~ , णान्. 4, ए०.४. क्वम्. ए. ह, 59. प. ककन्. 7. वाञ्डन्ति तेभ्योपि ये; तेभ्योपि गरार्छन्ति ये, ए. 89. (ला० छव 107 जक ,) दच्छन्ति तेभ्योपि ये ०.४. उकप्या., (४) विण भ०, 4. (वि प पक्ष) म गार; विगा०. ह. ०का; णना. ©. 2. 2. (2) परद्रोदनिवद्धबुद्धयः; षरद्रोदविषण्णयानसाः, 4. परद्रोहक- ` , तैकरबुद्यः. 7. 2. च सभ्येतरवदिवग्ववः ¶, 80. [ ग~ ०.०. (विर्द्ध निवद्र.)] ८. प, (क४थ७ चु 0 च }च तथ्येतरवादवयराः. ह. (०) नूृपमीद्ितुमनत्र कै वयम. 4. (पपक््टाप) ¶. 0. त. सद्मनि; संसदि. ए, 80. सद्मसु. 2. नाम; तेत्र, 80, (ग. 80.४.) ०यम_; °लम. ¢. (2) कष; स्तन. &. ¶. ए, म. ए, ॐ. ०रान ०; °रोन्न ०, "^. ¶1\6 198६ ४० 17०९8 #क्णसू०8न्त् ॐ 3.4 ६२.
{ ४२ |
पुरा विद्रत्तासीदुषशामववां हे शहतये गता कलिना विषयसखसिद्धैय विषयिणाम् । इदानीं तु प्रेष्य हितितरूमुजः शाखविमुखा- नहो कष्टं सापि प्रतिदिनमधोधः प्रविशति ॥२८॥ साकारं पुरूषमुद्िद्याह 1. स जातः कोप्यात्ीन्मदनरिपुणा मूर्धि धवलं कपाङं यस्योचैर्विनिदितमलंकारवधये । नृभिः प्राणत्राणप्रबणमंतिभिः कैश्चिदधुना नमद्विः कः पुसामयमतुरूदरपन्वरभरः ॥ २९ ॥ अर्थानामीशिषे लै वयमापे च गिरामीद्मदे यदित्थं शरस्व वादिदपंज्वर शमन विधावक्षयं पाटवं नः। सेवन्ते लां धनाढया मतिमलहतये मामपि श्रोतुकामा मय्यप्यास्था न वेत्तस्यि मम सुतरामेष राजन्गतोसिमि ॥६१॥ यदा किञ्िर्जोहं द्विप इव मदान्धः समभवं तदा स्ेजञोस्मीत्यमवदवलिप्तं मम मनः। उणा. (५) 2दृपश्लमधियाम् $ गदुषश्यमह्ुश्ाम्. दश्चाम् १.) ए. °दमनि- मनियाम्. 7. 9. (४) गद्ये; ण्ड्व. ए. 80. ण्डे ४. (रतु; सम्, ए, 9 सा, #. तरः; उव. 20 सदा, (८) सण; सु०. 80.. (2 } °स्वेन्र्वि ०६ स्यास्ति पि ०, ०.१ ००; °षण०. @. {८} प्रवण; प्रवल. 5. के१; कण०. ^ दक, (५) शद्धिषे लम् ०श्वरस्वम. &. ° इमहे ०; शरा. ^. ° दित्यम ; '्म्. गू, र, ©. 2०. (ग, ए०.४.) प. (ट) गदि; नमि, ध. 2. फ. सर; भ्युप. फ. ०८० °र०. छ. नमे. ह. ते. ©. (2) 2) षमाद्या; मदाना. 2. ए. भनन्ध्ा. 4. 3. 14. ०.८. मतिमलहतये; शतिविमरधियी. ^. °कामा; °कमो. ©. (द) मय्यप्यास्था न चेत्तत् $ मामप्यास्थानमेतन्, ‰. मय्या स्यानैवरेते, ` छ. चेत्वयि; स्यत. ग, ते चेत्चपि ए. प्र. ©. चेते वयि. 4. सु; नि. ग, एर, ८०. (० 80.11.) ©. फ, °ब; ण्व. 7, ह. 8०. (गह. ए०.०.) 6, प. न्मतोस्मि °; न्ग- तज्घात्. ए, 39. (णड. ०.2. ) 6. °न्गतोसि, ४, ° ननास्था, प,
[४४]
यदा करिञिषिच्चिहधजनसक्राञ्ादवगतं ` तदा भृरखेस्मीति ज्वर इव मदो मे भ्यपगतः॥ ६९॥
निर्ममतास्वरूपमाह ।
अतिक्रान्तः कालो लटमरूलनामोगसुरूमो भरमन्तः श्रान्ताः स्मः सचिरमिह संप्तारसरणौ । इदानीं स्वःसिन्धोस्तटमुवि समाक्रन्दनगिरः सुतारैः फएूत्कारेः शिव द्विव दिवेति प्रतनुमः ॥ ६२ ॥ भाने म्ापिनि खण्डिते च वसुनि व्यर्थ प्रयतिर्थिनि ्षोणे बन्धुजने गते परिजने नष्टे इनैर्यौबने। ` . युक्तं केवरूमेवदेवं सुधिपां यज्ज कुकन्याप्यः पूतम्रावगितैन्द्रकन्दरदरीकुञ्जे निषासः कचित् ॥ २६ ॥ परेषां चेतांि प्रतिदिवसमाराध्य बहु हा प्रसादं किं नेतुं निशि हदय ह शकरितम् । परतन ल्यन्तः स्वयभृदितचिन्तामणिगुणे ` विमुक्तः संकल्पः किमभिरूबितं पुष्यवि न ते ॥ ३४ ॥
+र, 866 2408४ 8६, 8.
स दक्पा. (५) गयम गलित. ए. ध, °भगो; ९खदो. 7. (2) श्रान्ताः स्मः सुषबान्ताः 8. °; °णिम् ; ए. ¶. भीम्. 2. (2) सु ०; स ०, 0, °तनुमः °छपतेः, 8. यनृमः पर
सा. (४) म्डपिनिः; स्खायति. 4. शापिनि, ए, 280. (०18. 2०.४.) मा- यिनि. ए. °सुनि; गयि. 4. °यै; ग्यैम् ^. ए. 2. ४. 8. ०.०. नवै. ए. 80. प. (%) दरी; चथे, प. नि ०; °. ०.०.
सदए, (%) गवसमाराध्य; °नि क्षमायम्य. (१) 8. ; ° थ. ^. 7 ए. 59. 6.२. 2, प. ०्षाह. ४. @) ण्दम् } °दे 4, विद्या०; वहं० 2. °य °ये, ©. गफद्व 39 ©. °यम्. 8. कडितम् ; कङ्कम्, &. 5. 2. 80.71. विफलम्. ग, ०सफलम्. ह. त्रिकम्, ©. (£) °य्यन्तः; °य्येव, 4. ०.४. गुणे; मणौ. 4. गणो, प, ०.१. (2) न्मु० ववै 6. व्र, ए. 8०. ©. प. ३. 8०.५४. शक्तः; ण्क्त, ए, कः, 89,४. श्यः ग्य, ए, यम्. 6.१०; तु° 4. कै; स, 4.
॥ ४५ 1 अथ भोगपद्धतिः |
मोगे रोगमयं कुले च्युतिभयं वित्ते नृपालाद्भयं :
मौने दैन्यभपं बले रिपुभयं रूपे जराया मयम् । शाल्चे वादभयं गृणे खरूमयं काये कतान्वाद्रयं
सव॑ वस्तु भयान्वितं मृवि नृणां वैराग्यमेवाभयम् ॥ ३५॥ अमीषां प्राणानां तुहितवित्तिनीपन्न पयता
कते किं नस्मामिर्विगङितविवेकैन्यवसितम् । यदाढ्यानामग्रे इविणमदनिःसंज्ञमनतसां
रुतं वीतत्रीडैर्निजगुणकथापातकमपि ॥ २६ ॥ भ्रातः कष्टमहो महान्त नृपतिः सामन्तचक्रं च त
त्पार्वे तस्य च सापि राजपरिषत्ताश्वन्द्रविम्बाननाः । उद्रिक्तः स च राजपुत्रनिवहस्ते बन्दिनस्ताः कथाः
सर्वं यस्य वशादगाससमृतिपथं कालाय वसै नमः ॥ ३७ ॥
कए, (2) मी०; मा०, ए. 50. ©. जराया; तरुण्या, ग, ए, 2०. ७. 2) °्द; °दि. ए. 5०. 6. न.
अद्रा. (0) ग्दादचा०; ग्दन्धा०. #, गन्ना ©. रदाधा. 80.1. ०स- ज्ञ; °शङ्क. 0. (थ) शेत; म्डान. 7. 59. 6. क, मन, &. पति ०} शस्यत ०, 8. °द्यान 2०.०. , ।
ङा. (०) खातःकषटमदे; सा रम्या नगरी. ह. 7, 29. (गाह. 80.1.} ©. फ. (®) चस्य; यस्य. 5०.४. चं सापि राजप॑रिषत् ; च सा विदग्धवीनिते, 4. वशा बिदग्भ- परिषत् 8. च सा विदम्नपरिषत्, ए, 7, 89. प. (५) शद्रिक्तः; उत्सिक्तः 4. सद्रत्तः. 8. उन्मत्तः ए. 7, 59. उद्रः ए. ०.४. उद्धिः #, (द्वि ०१) ०व ०} °ता ०. ८०.०. (ध) °दगान्स्मृतिपदम्; °दगन्समृनियथम्, ए. ¶, ए, ७. गच्छतः पद - मयात्. ¢. ` |
| { ४६ ]
पनः कालमुद्िश्याह् ।
वृयं येभ्यो जावाश्रिरपरिगवा एव खक् ते
सम पैः संवृद्धः स्मृतिविषयतां वेपि गमिवाः । इदानीमेते स्मः प्रतिदिवस्मासनपतना-
द्रतास्तुल्पावस्यां पिकतिख्नदीतीरतरुभिः ॥ २८ ॥ यत्रानेकः कचिदपि गृहे वत्र तिष्ठत्यथेको
यत्राप्येकस्तदनु बहवस्तत्र चान्ते न चैकः । इत्यं चेमौ रजनिदिवसौ दोखूयन्द्राविवाकतो
कालः कास्या सह बहुकङः क्रीडति प्रागिसरः ॥ ९.९ ॥ तपस्यन्तः सन्वः किमधिनिवसामः सुरनदीं
गुणोदारान्दारानुत परिचरामः सविनयम् । पिबामः शाद्चौघानुत विविधकान्यामृतरसा-
न विद्मः किं कुमः कंविपयनिमेषायुषि जने ॥ ४* ॥
उषा. (५) परिगता; <मपि गता, 6. ` °मपमरता, 2. 8. मरणगा. ए. परिचिता. प्र. (2) समं चैः सम् ०; समा येषाम्, ए. 2०. (०४. 2०.०.) समे ये ते. 6, स्मतिविषयताम् ; स्मरणेषदवीम्, 8. (०) स्मः; स्म. ©. ©. 8. प्र, 8०. स्मत्, ए. 4. °मसि ०; ०माप०. ¶, ए, 5०. ©. (व) (डरः गर. 4. 7. ए. २. ४. ७. (2) रस्थाम् ०; स्था. (१) 7. 29, प, सिकतिक; ९मिष कि, 4. सिकतिनि, 89. (जप. 0.2.) सिक्रतसम. 9,
उका, (2) र्कः काः, 4. 2. ए, (9) चान्नेन चैकः; नैकोपि चान्तः 4. नैकोपि चन्त. ए. ए. 80. 7. न कोपि चान्ते ©. {०} चेमोऽनेवे. प्र. दो०; जो °. प, गन्द्राविकासतौ; °न्तराविवाक्षी. 4. ०न वरिवाश्चीः०. (१). ©. °न्वापि वाक्षौ. 0. (व) कान्या; कतमैः, ^. कन्थो. प. सह हकः; भुवनफठके, 7. ए. 139. (८०,. इम् {णड }. ©. प. सद बहुबछः. 4. ०्णि; न्य. €. सा; शार. कष. `
1. (2) ग्णोडारान् $ ०गोदर्मान् 0. सविनयम् ; सुव्रिनयम् 8. सव्रिषयान्. ग, एर, 6. सविनयान्, 20, (0, ८०.०४, ) (% शली ०; सयौ ०, 50.४. ०नुन ०, न्दत. 0. #. ।
॥॥
44
गङ्गातीरे हिमगिरिरिखानबदददपवास्नस्य वरह्मध्यानाभ्यसतनविधिना योगनिश्चं यतस्य 1 किं त्यं मम सुदिवसैर्यत्र ते निर्विशङ्कः संप्राप्स्यन्ते जरटदहरिणाः शुङ्गकण्डूविनोदम् ॥ ४९ ॥ सुरवसफारज्योल््नाधवकिवतके कापि पुलिन सुखासीनाः शान्तध्वनिषु रजनीषु दुप्तारेतः। भवामोमोद्धिमराः शिव शिव रिवेस्पातैवचता कदा स्यामानन्दोद्रतबहुलवाष्पाष्ुतटृशः ॥ ४२ ॥ महादेवो देषः सरिदपि च सैवामरक्रि- दुहा एवागारं वस्नमपि ता एब हरितः । सुहद्रा काढोयं व्रतमिदमदैन्यत्रतेमिदं कियद्वा वक्ष्यामो वटविटप एवास्तु दयिता ॥ 8२ ॥ हिरः शार स्वगत्पदुपविद्षिरस्तः क्ित्निधरं मदीध्रादुत ङादवनिमवनेश्चापि जलधिम्} .
भम
उ. (4) °नस्य; °नस्थम्. 4. (९) ध्या०. ज्ञा ०, ^. 8. (2) ग्य; न्यु. पू, गङ्ाः; ण्ङ्कम., 4, °ङ्कः, क. (2) कण्डूयन्ते न खड दरिणाः शृङ्गमङ्क मदीये. 8. (दी 18 ९५९9 प). कण्डूयन्ते जरठहरिणाः शृ ङ्गमङ्गे मदीये, ¶८ ८. 2. कण्डू- यन्ते जर्डरिणाः खङ्खमङ्क मदीये. प. श्द्य०; न्य०, 4. आ. व्दम; ग्दाः, ध. ।
ग्ना. (2) सुव्रा०} समा०. ए. गनाः; गनः. क, (०) गवयार्तवचसा; ०वयस्तव- चसा. 4. ग्टयु्वचसा. † ए. ©. °सयुद्रि चसः. 28०. ग्ययातेवचसः. 8. 20.11. " ०्यात्तवरचसः. ?. शव्यु्वचनः. प. (थ) स्यामानन्दोद्कतबहु; यस्यामान्तरमनेवहक्. गु यास्पामोन्तर्गतवहल. ए. 30. (०गंड- ०.2.) ©. ए. स्यामामोदो द तवहज. 4. ` + ०ग्यद्ुतदररः; <ष्यकरलदृ्यः. 4. प, °ष्याकुरदू- शाम्. प. ९श्बहृतदृद्याम्, 23. ।
सवना. (५) सैवामर; दैवासुर. ©. सेव्यामर. 8. (5) ९०; चे०. छ. इ ०; सं° 4, (८) °मिदम्०; मित्ते. 8. (2) °फ़; ०. 8. -
[ ४८ ]
अधो गङ्गा सेयं पदमृपगता स्तोकमथवा
विवेकम्र्टानां मवति विनिपातः शतमुखः ॥ ४४॥ आशा नाम नदी मनोरथजला वुष्णातर ङ्गकुख
रागग्राहवती विवेकँविहगा पैयेदूमध्वंसिनी । मोहयवैसूदुस्व रातिग्हना प्रोुङ्गचिन्वावदी
तस्याः पारगता विशुद्धमनसो नन्दन्वि योगीश्वराः ॥४५॥ आ्तंसारं त्रिमृवनमिदं चिन्वतां वात तादट-
्रैवास्माकं नयनपदवीं श्रो्रवत्मौगतो वा । यो यं धत्ते विषयकरिणीगादगृढामिमान-
सीवस्यान्तःकरणकरिणः संयमारानललिम् ॥ ४६ ॥
साम्प्रतं निरवेदतायाः स्वरूपमाह । ये बध॑न्ते धनपवियुरःप्रायैनादुःखभाजो ये चल्पत्वं दधति विषयक्षिपप्॑स्तबुदधः । तेषामन्तःस्फुरिवहसितं कसराणां स्मरेयं ध्यानच्छेदे रिखरिकुदरप्रावशय्यानिषण्णः ॥ ४७ ॥
उण. 866 करध४8 8६. 10. पए. (2) पेये; भर्म. ए. ७. ¶\, (©) ्रो०; उ०, ग, तदी; सश. ए. (9) ९सो;°सा, ¶ 2. ०साम्. 80.४. नन्ति; शन्तु. श. शगीश्ररा०; नगेश्वर ०.४. सा.षा. (५) ०रम् ; °रात्. प. चिन्वतां ताते तादृक् ¦ विधुतान्तास्ततो दिक्, ^. तात; चाम. 5. कच ©. (2) कत्मी ०; मार्गम्, ¶, ए, 89. (मरने 8०.४.) &. म. (०) °णी; °णीम्. 8. गू ०; ₹<०. 4. 7. 2, 8. ° नक्षोब ०; °नं जीव ०. 8, ९नः क्षीव. ¶, ए. 9. ४४. 0. नं कव ०.४, (2) नम् } क्षन्तः शान्तः करणकरिणीसंयमा- लनजीमाम् ¢. °स्थन्तः; सान्त ° ०.४. °गः; °णम्. ०.४. °जान; °नाढ. ए, ` छम्; नम्. 2०.79. “का. ग, 9 ` उषा. (ष) व्द्धः०; नवर. 4. 2. ए. प्र. ०.9. मानो; शेषीः ४. २. 8. 2) श्य ० °न्य ०.1४. ग्यस्त; रयौ. प. (2 न्तं का ०} ततेव ०. ए. नणाम् णनि. प. (2) शवै°; पदैः. 8. (खण०; ०१०. क. ५
[ ४९ |
बिदा नाधिगता कलङ्करहिता वित्तं च नोपार्थित ` इश्रूषापि समाहितेन मभस पितरो संपादिता । आलोलायतरोचना युवतयः स्वमपि नालिङ्गिताः कालोयं परपिण्डलोरुपवया काकैरिव प्ररिवः ॥ ४८ ॥ ` वितीर्णे स्वैखे तरूणकरुणापूर्हुदयाः स्मरन्तः संसारे विगुणपरेणामा विधिगतीः वये पुण्यारण्ये परिणतंशर्चन्द्रकिरणै- चियामां नेष्यामो इर्चरणचिक्तैकशरणाः ॥ ४९ ॥ ` ` वयमिह परितुष्टा वल्करैस्लं च॑ ल्पा. | सम इह परितोपो निर्विशेषो विरेषः 1 सतु मवतु दरिद्रो यस्य तुष्णा विशाला मनसि च परितुष्ट -कोर्थवान्को दरिद्रः ॥ ५० ॥
1.9. (८) °ना यवेतयः; नाः प्रियतमाः. चि. (@) ०व प्रेरितः; ०व परते पि. °वे प्रेषितः 2, ४. 8. ¶. ए, गवोत्तीयते, ¶. (2५ भव्छ्वाण्) वा प्रोषितः 89. (नध, ०.१.) 6, (षकला6 त 0 तः).
सद. (०) °ती ० णस्ती ° 0.14. 2. ©, @)°स्म ०; ण्स ०.१, ए, 29. (०. ०.४.) °त ०. ©. ^र; °रम्. &. ¶. 89. (°र ०.४.) गुण ०; रस ° ए. ध. 2०. (नइ. ०.०.) ७. °मा वरि? °मां वि ०, 1.० मव ०. 0.70. 1 ©. 4. 8. ए. 89. णवी; °्ताः&. ए. ध. °तम्. 7. ए. 80. °्तिम्. 6७. प्र. (०) वयम् { कद्रा. व. ए. 80. ©. °ण्या० °्ये०. ए. ‰, ०णत ०; ०गत०, पुर र. 2०9. (०, 5०..) ©. ०गति०. 0... ग्नैस्ति०; ण्ण त्नि० ए. ण्णे त्रि ०. ₹. ए, ०.०. °गस्वि०. ग. ए. 8०. 6, ए. भैः त्रि०, ह. (द) ०माम् ; ०्मा 80. (न्म. ए0.71.) >. ए. क
1५. (च) च कम्य; दुकरेः. 7. ए. 50. (०. 507 ) ८... ®) इ ८; ०्मेर. 4. ण्षोवि० श्राव ०1८. शश्व ०, ए6.9. (०. 70.) (2) शवनु; गवति, © 4. 7. 2, 6.1 द्द्रो; दद्र, 4. 7, ©. (द) ण्द्र. दद्व. 4, 7.
[५० 1.
यदेतत्साच्छन्दयं विहरणमकापेण्यमङानं
सदर्थः संवासः श्रुतमृपरामैकत्रतफलम् । मनो. मन्दस्पन्दं बहिरपि चिरस्यापि विम.
न्न जाने कस्यैषा परिणतिरुदारस्य तपसः ॥ ५९ ॥ पाणिः पात्रं पवित्रे भ्रमणपरिगतं भेक्ष्यमक्षय्यमनं
विस्तीर्णं वखरम{शासुद शकममलं तल्पमस्वल्पमूर्वी । येषां निःसङ्गता ङ्गीकरणपरिणतिः स्वासस्ंतोषिणस्ते
धन्याः संन्पस्तदन्यभ्यतिकरनिकराः कम निभूलयन्ति ॥ ५२ ॥ दुराध्यः स्वामी तुरगचखचित्ताः क्षितिमुजो
वयं तु स्थुटेच्छा महति च पदे वद्धमनततः। जया दहं मत्यहरवि सकें जीवितमिद
सखे नान्यच्छरंया जगति विदषोन्यत्र तप्तः ॥ ५३. ॥ भोगा मेघवितानमभ्यविरसत्सौदामिनीचञ्ुला
आयुवायुविघट्टिताभ्रषटलीलीनमस्बवद् ङ्गरम् ।
11. (०) गखाच्छन्यम् ; °व्लच्छन्दम्. 4. ए. प्त. (४) रवैः; श्वैः 8.0५. (०8 50.) (९) °न्दस ० नदं स ° ¢, शन्दस्य ० (१) ०.०. चिरस्यापि विमुखान् ; विमृहयन्नविरतम्. ^. .
कला. (५) °भ्य० नक्ष €. (2) रमाखश््रद्राकममलम् ; °मश्िदकमपि विम- छम्. ^. ° माद्यादश्चकमपमलम्. 8. ४. 2. ३. ° म्चादशकमचपलम्. प्र. °मख- स ०} °मल्यसख ° 5. (० शब्गौ ०; शन्तः 4. ` रविः खत्म ०; ०तस्वान्त०, पष. ०तिखान्त °. 7. ए
ता. (भोग्धयः खारः र्प्याशार ए. पितुर; द° (१) ^. °मुजौ भुनी (४) तु; च, ए. 89 (ग. 5०.9.) ©. क. महति च; सुमहति ^. ए. क. ए. ४९ ©. ए. प. ० ०} दत्त ०, 8.2. (९) ° हम् ; ° हे ए. सककम् ; यदिदम् ^. दयितम् गर, ए. 8०. (ण्ट. 5°.1.) 2.5. प. (त) रपोन्य ०; °प्राम ० ए, 59 (13 ०.४.) © °षो य 4
ए. (@) श ०६०म्ब ° प. च्डीना र; "हिज ° ए, 8०. 80.. (ण्ट स व की ०८९१६) ०छभ्व्य० ए ।
क
लो यौवनल्ालना तजुमृतामिव्याकलय्य दत
योगे पेयंसमाधितिदिसुलभे बुद्धिं विधदं बुधाः ॥ ५४ ॥ पुण्ये ग्रामे वने वा महति.सिवपटच्छलपारीं कपली- `
मादाय न्यायगमद्भिजहुतडतमुग्धूमभूभ्रौपकण्ठम् । द्वारं द्वारं प्रवृत्तो वरमुदरदरीपूरणाय क्षुधार्तो
मानी प्राणी स धन्यो न पुनरनुदिनं वुल्यकुस्पेषु दीनः ॥५५५॥ वाण्डाङः किमयं द्विजातिरथवा शुद्रोथ किं तापत्तः
निवा तसनिवैशपेशलमति्गीश्वरः कोपि किम् । इवयुप्पनविकेल्पजल्पमुखरैः संमाष्यमाणा जनैः
नै कदधाः पयि नैक वुष्टमनसो यान्ति स्वयं योगिनः ॥ ५६ ॥
~~~
(2) ०ना त ०; ० सस्त ° 4. ए, ०. प. ° सा त ० ध. °साहण० 0.9. ९स- मभूतामि °; जकरयचचे ° . ९य्य द्रुतम् °; व्याहतम् ०.४, (2) योगे षै ०}. येगिध्य- य० 4. 9.9 (गी एिप्गि) गमे; °भाम् ; 4. शद्ध प्रिर पद्व दद फ, ०द्धिर्विद ० १", णद्धि विद ० 9] 6२००६ प, 2. त,
प्र. (च) श्ये; ०्य०, 4. ए. 89. प, (गण. ०.४.) म०} व ० 4. सि;० श० 4. शि० ए. ०स्छन्ने ०; °च्छेद ०. एए. °खिन्न ० 4. ९च्छत्र ०. ©. ण्ठींक) न्खीक 4, 8०. ©. कतिक प. (@) °नेमा ०३० द्या प्र. मादय न्यायगर्भ मासिादानां त् वस्म ^. न्णय० जतन ०. ह. 2. ०मैर; °्मम् ए. ७. 1४, इन; सुख. 0. कप्णत् 7 0. ०० ००. ©. ०म० ° व °ण्दम्; बडे प्र. (०) गवतो; णवि. 4. ए, 89. (णप. 5०.1.) &. द. ब ०; द ९ 4, क्षरते; प्रत्त, 4. (2) प्राणी; माने 4. अन्यो; नयो 4. 4, ए, फ, 6. नपर चषु० ७. म्न सु०; °तेतु०. ध्र. °्कु०;°क० 4. ।
एए. (०) चा०;च०¶. 2. ए. 2०. ४ म् का 4. (2) °निकेदा०; ०विवेक ०. 8. करिम् ¦ वा. ए. ¶, (2) °; सम्०;ग्टेरा० 4. प. र्येर; श्य 8. व. 2. ए. ०्णा; न्णो, 4. ग्ना. 2. ए. 2. 2. रेन ०;०नीनो° 4.०. नो 0.9. (९) यन्ति स्वयम् ; °यस्यन्ति ते, ध.
44486
„7 ९
सले धन्याः केचेचयुटितमवरवन्धव्यतिकण वनान्ते चित्तान्तर्विषमविषयाश्षीविषगताः शरव्च नरज्यो्नाधवलगमनामोगसभगां नयन्ते ये रिं सुरुतवचयवित्तिकशरणाः ॥ ५७ ॥ एतस्माद्धिसमेन्द्रिया्ेगहनादायाक्तकादाश्रया- च्छेयोमार्गमदेषदुःखशमनन्यापारदलं क्षणात् । शान्तं मावमुपैषहि संत्यज निजां कोललोलां गर्ति मा मयो मज भङ्गसं मवरति चेतः प्रसीदाधुना ॥ ५८ ॥
पुण्य मलफलेः प्रिये प्रणयिनि. वृत्ति कुरू्वाधुना मृरय्या नववल्ककेरकरुणैरुततष्ठ यामो बनम् ।
सुद्राणामविवेकमूढमनतां यत्रेश्चणां सदा चित्तन्पाध्यवरिवेकविद्रूगिसां नामापि न श्रूयते ॥ ५९ ॥
1.ए्ाा. (८) सखे; भहो. 7. (¢) चिनताम्तविं ०; चिन्वन्तो त°. ए. ° क्षीविषरगताः; श्ीषिगलिताः १०८९ †7 ऋ, दिगपाल. °ताः; रतिम्, ए. (०) ० यम् ; °मा, ` ए (2) श्न्ते °न्तैण० ए. ५ 7.9. (५) °सकादाश्रयात् ; °स्तिकादाश्रय ए. 7. °द्धकादाश्रय. 1. 89. &. २. 0मकरदारश्रयः 7. (8) °णात् ; ^णम्_ 8०.४. (४) शान्तम् ; सतम ° ^, ध ८०.०४. भस्मी °. एए. 20. समी &..गं०;म० द. ^. (ध) भे; र९सृाम् 8 भव; नवे धु नड. ण्ण; ग्ने 4. ए, 2०. प प्रिये; पिः 4. 2. एण, ए. र, ए. प्िय० ७. तथा. फ. ग्रिवः शृ, प्रगविनि; च सनिः; द. गनि; ग्नीम्. प्, 8, 2. 80. 4. 8. ©. वृत्तिम् ; प्रीतिम्. ©. प. (४) ध्यया नव; °्य्यां नव ¶, इ. 89. ©. श्या तृण०. ४. प. प्य्यातृणम 7. 7. 5०४. गवत्ककै०; कै ए, 8०. ©, (ग्ट, 5०.४.) °रकस्चै ०; ०र कृले ° ^, 5०. ए. (ला प 07-प) ०रकरणै ०. ८. ४. °रकरस्चै. ¶, रर्ितनुताम् ६. यामो वनम्; फ (?) मीरि- तः #. यामो वने (4. (९) य° त ०. (गह. ०.४.) (4) चिनमग्यध्यविवैक ०; वित्तयाधितिवैक ० ^. ©. 1. वित्म्याधिविकार०, ए. एष. वित्तव्याध्यकिवेक० गुर. वित्तव्याधितिकार.° ए. ८०. 2. ह, ० वन्ध; °व्याङृऊ° 7, ©. °गिराम् ; स्धियम् . 4. गिरो. 2०. +
क
{ ५ 1
मोदं माजेयतामुपजेय रतिं चन्द्रा्चूडामण. चेतः स्वगत रङ्किणीवटमृवामासङ्गमङ्गीकुर् । को वा वीचिषु वुहुदेषु चच तचिद्ेखातु च सरीषु च ज्वालगप्रेषु च पनमेषु च सरिद्वेगेषु च प्रतययः ॥ ६० ॥ भम्र गीतं सरसकवयः पाश्वैतो दक्षिणायाः ` । पृष्टे लीखावरूयरणितं चामरग्राहिणीनाम् । ययस्पेवं कुर भवरप्तास्वादने लम्पटसं नोचेजेवः प्रवि सदसा निर्विकल्ये समाधौ ॥ ६९.॥ विरमते बुधा योषित्सङ्गास्सुखान्षयमङ्गस-
कुरुत करणामेचरप्रज्ञावधूजनस् ङ्गम् । न खङ्् नरके हाराक्रान्तं घनस्तनमण्डलं दारणमथवा श्रौणीविम्बं रणन्मणिमेखलम् ॥ ६२ ॥ णा्ातान्निव्तिः परधनहरणे संयमः सत्यवाक्यं काले दकता प्रदानं यवतिजनकथामृकमावः परेषाम् । वृष्णास्ोतोनिभङ्गो गुरुषु च विनः सर्वभूतानुकम्पा सामान्यः सवद्राक्तेष्वन॒पहतविपिः श्रेयस्फ्रेष पन्थाः ॥ ६२३ ॥
7. (9) गाजे ०; ग्श्र° द, ए, 80. (गड. 20.9.) शश्र ° 0. (2) रकामा०) श्वि व्या ह, 89. (जप. ०.४.) (०) को; नो. 0. शेखा०; गनी ए. सी°ःश्रो० ^... प. (2) व्वा; जा० ए. सरिदवेगे०; सह दरगे ०(1) ७. प. सरिद ° ष. ए. 8०. सरिदुरी ° 20. ४.
1.21. (५) °रस ०} ररक ° 4. ऽतौ दा ०; यदी ° ग्, इद. 8०. (0. 6.2.) ©. पि. 2) (ष्ठे की °; पाहो ०. ए. 2०. (ग. ०.2.) फ. (कयरणितं चा ° गवह्छपरिणतिश्य ° 0. (£) °स्पे ०; °स्वे ० द. ^. 20., °सा०; स० 4. भने ० + ॐ.
पा. (@) ० ज्जात्; ° ङगः० 0.2. (2) करूणा .०५५९त ३४ 4. (2) खल; कुर, ^. हा} मा° ०.१. का०; ज्ञा 4. 20.71. °्नस्त ०; °नं स ०. त.
शा. ९० कदीतराकः$. 3४. 26 कलार स्वत् (2) गक्य; क्यम् 4. ८८) विनयः; नियमः 8.
[ ५४].
मातरक्षिि भजस्व कञ्िदपरं मकद्खिणी मास्ममू-
भेगिभ्यः स्पृयार्वो न हि वयं का निस्ृहाणामत्ि । सद्यःस्यूवपराशपत्रपुटिकापाते पवि्रीरुते
भिक्षाकतकुभिरेव सम्प्रति वयं वृत्ति समीहामहे ॥ ६४ ॥ ययं वयं वयं यूथमित्यास्ीन्मतिरावयोः।
विः जातमधुना येन-य॒यं ययं वथं वयम् ॥ ६५ ॥ बाङे ऊीलामुकुकितममी मन्थरा इष्टिपाताः
फं किष्यन्ते विरम विरम व्यथं एष श्रमस्ते । सम्प्रतयन्ये वयमुपरतं बाल्यमास्था वनान्ते
क्षीणो मोदस्तृणमिवं जगज्जारमालोकयामः ॥ ६६ ॥
इयं बाङा मां प्र्यनवरतमिन्दीवरदल-
प्रमाचोरं चक्षुः ल्िपातै किमभिप्रेवमनया । गतो मोहोस्माकं स्मस्कुसुमवाणग्यतिकर-
ज्वरजाला शान्ता तदपि न वराकी विरमति ॥ ६७॥ रम्यं हम्येतलं नं कि वस्ते श्राव्यं न गेयादिकं ` किं षा प्राणतमासमागमसखं नैवाधिकं प्रीतये ।
पए. (०) कण; कि०. 4. (2) शम्यः; व्वु. 4. प, व्वोनहि वयं का; ०. स्नव वो करिम्. ^. प. ०.१. 2. ए. (7 रणोपन एप्प का 0प्किम् ) (०) स्रः; यद्र. ^. स्य्०; १०८. °श्रू° क. ¶\, ण्टिका;० टके ०, ग् ए०.प. व्व; श्वैः ^. न्ते; नतेः प. सक्त०; वस्तु० प. । ` रए, (2) जा०; या 2०.. येन यूयम् ; मित्र येन. ¢.
र्. (®) तरिरमन्य ०; ० यतोभ्य० ¢.
दण. ४} °के०; श्चौ०. व. व्या; नसा. ध.
र्णा. (५) त्र त्र. 2. 8, प. ८०४. (2) मास, ०मं स०, 4. ०्कम् ; ०कण. ए. ए.
{ ५५ ] |
किं तृद्घन्तपततपवङ्गपवनन्पारोलदीपाङ्र- च्छायाचञ्चुलमाकरष्य सकं सन्ता वनान्तं गताः ॥६८ ॥ किं कन्दाः कन्दरेभ्यः प्रखयमुषगता निङ्ञेरा वा गिरिभ्यः ` प्रभ्वस्वा वा तरुभ्यः सरसषफलमुतो कस्करिन्यश्च शाखाः 1 वीक्ष्यन्ते यन्मुखानि प्रतममपगतप्रश्रपाणी खानां दुःखोपात्ताल्पवित्तस्मयवशपवनानर्वितभरृरुतानि ॥ ६९ ॥ गङ्खतरङ्गकणद्ीकर शीतलानि विद्याधराध्युषित चारुशिखातलानि ॥ स्थानानि किं दिम्ववः प्रख्यं मतानि यत्तावमानपरपिण्डरता मनुष्याः ॥ ७०॥ यदा मेरुः श्रीमाजिंपतति युगान्ताभ्निनि्हतः समुद्राः शुष्यन्ति प्रचुरनिकरम्राहनिरयाः । धसा गच्छत्यन्तं धरणिधरपदिरपि धृता शेरे का वात्तां करिकलमकणोग्रचपडे ॥ ७९ ॥ (०) त॒द्ध; ` सु ०. 1. ए. प. 68. 89. तृ, ऋ. तन्ना ०. 4. रतदय- तज्ज °; ०्तङ्गयक ०. ग एए, 0. प. (द) सकछम् { संततम् 8०. (गह. 2०..) द्र. °तताः; न्तम्. ध. | 1.1. (५) निरा वा गिरिभ्यः; पादपाः कि विद्री्णाः, 4. (8) किं वा शोषं गतास्ते गिरिकुहरगता निवरा वारिपूणीः. ^. °स्ता वा तरुभ्यः; स्वाः किं महीजाः. ए, 80.(०४ ट ०.१.) °किन्य ०६ न्लेभ्य ०. 0. जिग्य. ध. (०) यन्मु किं मु०. ह. 2०.(ग्ह (०.४. °म°; °मु ०, ॐ. 1. ©. ४. ए. (4) ^ खोपात्तन्य ९; °खात्तखनय ९. पष वद्छपवनान °; पत्रनवशान ° ग. ए. 80. (मष्ट. 2०.०.) 9. म (ज्णोनछ न पिः ज) विषपवनान °. ऋ. 10 4. कणाः रट्धताणड 18 द तद्ैरम्ययुक्तं सृचरितनिखिनो ज्ञानखङ्गः प्रनष्टो | येनं दवारे नू्पणां यनमदमछिनां सगतिं यन्ति धीराः || ` 1 क. (2) यत्सा ०; येना ०. ^. यत्स्या ०. क. रका; गता. 4. दा, (५) यदा; सदा. कव. यतो. फ. निहतः} दलितो 4. वलितः 1६. (2) नि- कर; मकर. 2. ए. प. सलिक. 4. (९) 1४० ्रणम्ते कयत् 8न्छ०त् 1१68 प्रधम ०४९६०६० 12668 २४ 4. (द) कड ०; कर ° 4, कणां ०; कारा० ¢. `
{ ५६ 1
एकाकी निस्पृहः शन्तः पाणिपात्रो दिगम्बरः । कदा डम्भो भविष्यामि कम॑निमृखनक्षमः ॥ ७२ ॥ प्राप्ताः त्रिपः सकङकामदुघास्ततः किं दत्तं पदं श्िरत्ति विद्विषां ततः किम् । सन्मानिताः प्रणपिनो विमपरैस्ततः किं कल्पं स्थितं वनमतां तनमिस्ततः किम् ॥ ७३ ॥ जीणा कन्था तेवः किं स्ितममरपट पट्रसूत्रं वतः किः मेका भाय तवः कि हयकररेप॒गणेणवतो वा ततः किम् । ` भृक्तं मुक्तं ववः किं कदशनमयवा वासरान्ते ततः किं व्यक्तज्योतिने वान्तमथितमवभयं वैभवं वा ततः. क्रम् ॥ ७४ ॥ भाक्तैमेवे मरणजन्मभयं हृदिस्यं सेहो न बन्धुषु न मन्मयजा विकारः । संसगेदोषरहिवा विजन वनान्ता वैरम्यमस्ति किमतः परमर्थनीयम् ॥ ७५. ॥
1.72. ©) दत्तम् ; न्यसम्, ¶, ए. 1. ह, ए. 8०. (णस. ८०.०४) ७. 4. (०) सन्मानिताः; संन्मानिनाम् 4. संप्रदिताः ¶. ए. 80. &. प. संमानितः ६.7. ०.४. ०; ०्नाम्. 4. १्वे०; ग्वा ० ¶, ए, 89. (छ. 5०.) &. (९) °य
म्; (लर. 4. (2०, प्र, ९तम् ; ®ताम्. ^, शताः 1, ८0. (गप. 5०.४.) ©. एर, प, ताति ०} ®तस्तं ° ¶\, 1०. (०. 0.9.) 6. °नुमिः; नवः त ०
(ण्ह. ७०४.) 6, ए. प, 1० 2. & 2, ४6 ष्पी) 1106 18 866००, 86९०0 कप्त & पणते पकी |
11४. (©) जी ०; न्नी? ०.1 श्वटम् ; ०वरम्, ४०. ए सुत्रम् $ ०वस्रम् 0.9. (१) 0 इयकररि &५. कंहुगृणगुणिता कोटिरेका ततः करिम्, ए०.४. (८) भक्तिं भुक्त ततः किं बदद्वनमथव्म वासरी तै तकः किम्. प0;8 11७ 35 एषण 9 ०.०. (र) एकः. श्रान्त (भवान्त ००८) स्ततः क्रि करिनुर ञ्वरैरवितो वा ततः क्रिम् 80..
1.3४. (8) ण्ये; ९हे, पत. बन्धु०; वसु० ^. नम०;चम० ^. 8०. &. (१) मतः; °मितः य, ०मर्थ॑०; ०मयै° फ. 6. \, ©. किमतः परमर्थनीयम्; इदि चेखरमर्थयन्ति 4.
{ ५७ ३
तस्मादननम्तमजर परमं विकासि
तद्भह्म चिन्तय क्िमेमिरसद्रिकस्यैः। यस्यानुषङ्गिण इमे मुवनाधिपत्य-
मोगादयः रुपणलोकमता मवन्ति ॥ ७६ ॥ पावालमाविद्सि याति नमो विलङ्खु्च
दिङ्गण्डलं भरमत्ति मानस्तचापङेन । शरान्त्यापि जातु विमङं कथमात्मनीनं
तद्भह्म न स्मरति नि्विमेषि येन ॥ ७७ ॥ रजिः तैव पुनः स एव दिवस्नो मत्वावुधा जन्तवो
धावन्द्युद्यमिनस्तथेव निमृवप्रारञ्धवत्तक्रियः । . व्यापरिः पुनरुक्तमृक्तविषयेरेवंविधेनामुना
संसारेण कदर्थिताः कथमहो मोहन रज्जामहे ॥ ७८ ॥ मदी रम्या इाण्या विपुखमुपधानं मृजखता
विवानं खाकाह व्यजनमनुकूलोयमनिलः } `
12 पा, (५) ०मम् ; °मा 7. 6. ९कासि, णकेकम्, 0, °काशि ^. ?,. ०.८0. ० काञ्ची, 1. (2) तह्य वाञ्छत जना यदि चेतनस्थाः ४, (५) भु ०६ भर. शू ए. %0. 2. 8. पष. मता; रता; ध. तमा &
1.2 र्णा, (०) सङक्घंच; ०म्न्य 2०.2. (८) रनीनम् ; कीनम् 4. पू, 2०. & नीतम् 0. 1. (2) व्द्रह्मन स्म०; न ब्रह्म संस्म० ^ ह, 80. (ग. ८०.४. ) ©. सब्रह्म सैस्मण० ४. ये०; के० ¶. ए. 2०, (०६. ०.०.) ©.
णा. (०) बर; मु०. 4. ए, 25०. 6. ए. (8) ग्न०; न्त०. ©. ग्तप्रा०; भवाः प्रा०, व्. आ. 59. °तं ्रा० ए. ०.४. °तः प्रा ०. ©. ©. म्त्- न्क ०; ०तुस्ततक्गि ०. ¶.. (५) भक्त; मुक्त 80. (०४४. 5०-2,) भूत. ©. पष. ०्रेवम् ; शरित्यम्, ए. ¶\ ०.6. प, ग्य. ०.४. °मु ०; ण्बु०. 4. (व) र्ता; कथ ०; ण्तावयण०. ह. , 6. अ, 280, (०. ८०.२४.) °दान्न; रहं न, 9 {० ६. ८०...) ©. ठज्जा ०; जानी ०. ए. 7. अ |
द, (0) व्ही; व्या. प, रम्य; मही, 4. रय्या. ¶. ए, 2०.69. - प, &. शक्ता 2, रय्या एश, प. शक्ता. 2. शप °; °तव ०. 4.
[ ५८
सछरदीपश्चन्द्ो विरतिवनिवान्ङ्गमुदितः सुखं शान्वः देते मुनिरतनुमूविनैपर श्व ॥ ७९ ॥ ैलोक्याधिपतिलमेव विरसं यस्मिन्महाशासने तल्कव्ध्वास्नवद्नमानघठने भोगे रतिं मा ङुयाः। भोगः कोपि स एकः एव प्रमो नित्योदितो जृम्भते यत्स्वादाद्विरसा भवन्ि विषयाच्वेलोक्यराज्यादयः ॥ ८०॥ किं वेदैः स्मृतिभिः पुराणपठनैः शाचैमहाविस्तरैः स्वगग्रामकुटीनिवासफलदैः कमं क्रियाविभरमैः । मु्णोक मववन्धदुःखरचनाविध्वं कालानलं स्वात्मानन्द पदप्रवेशकरूनं रेषा वणिग्वृत्तयः ॥ ८९ ॥ आयुः कलोखलोरं कतिपयदिवसस्थायिनी यौवनश्री- रथाः संकल्पकल्पा घनसमयतडिद्धिभ्रमा मोगपृराः ।
©) "्कुरदीप शन्दरो; शरचन्द्रो दीपो. पष, (2) °्खम् ; °सरी.. पति, °न्तः °स्तेम् २.
1.2, (4) शासने! शोभनम्, 4. (8) °स °; श्द्ा०. 2. ^. वत्र; मस्तु. 4. ९सनवस्रमानपय्ने; परितीषमेत्रे च मनो. 0.9. (2) तरिपरया ०; भवतत ०, 4. वि. भवार, 2. &. 7० 80. ©. प. ए. क. ४06 ग्ड [106 18 ब्रहिन्द्रदिमर्द्णां (गा, 7.) स्तृणगणान्य (य. ¶. ) त्र स्थितौ मन्य (डज. 7.) तै. 7४७५ 86004 ‡8 6 पपी" 900९९ 88 7) २. & &. 6७९0४ यच्छपात् 07 यत्सादात् 1" 89. छ, धर ए, कन भापपत् 38 पठ 8806 38 200ए७९ क्ूरथुभ बोधः 0 मोम; 3४ 80, ©. प, ए. एष परक 1० प. काल कष्ण [०6 10 भा ३8 भो (भीः 289. & ए. ) साबो क्णभङ्कुटे तदितरे भोगे रतिं मा कृथाः.
दा. (५) °व्नै; °न्तिः. 7, (८) मुक्तकम् ; मुक्तैः किम्. ७, बन्ध; सा. र 4. भर. 7. ए. ए. दुःखं ¶ ए. 2०. 6. प, दुःख; भार. ¶\, ए, ८०. ७. प. °स; °. 4. (क) ००; 0का०. ¶, ए. ©. कनम् ; °नमिदम्, 4. गाः नवैः 4. 3०.४, प. रयः; 0 तिभिः 4. क, 5०.9४.
एरका. @) रमाः मो, 4. 5००. गराः; °रः. 4. ०.४. नगाः ए, 20. ©. द.
{ ५९ 1
कण्टाक्छेषोपगुढं तदपि च न चिरं .यद्पियामिः प्रणीतं
त्रहमण्यासक्तचित्ता मवत मवमयाम्भोधिपारं तरीतुम् ॥ ८२ ॥ त्रह्माण्डमण्डङोमातं किं मोगाय मनसिनः।
शफरीस्ुरितेनानग्धेः क्षुब्धत। जातु जायते ॥ ८३ ॥ यदासीदज्ञानं स्मरतिमिरसंस्कारजनितं
तदा दष्टं नारीमयमिदमशेषं जगदपि । इदानीमस्माकं पटु तरविवेकाञ्चनज्षां
समीभूता दृष्टि्िमृवनमपि ब्रह्म मनुते ॥ ८४ ॥ रम्पाश्चन्द्रमरीचयस्तुणवती रम्था. वनान्तस्थरी
रम्यः साधुतसमगमः इामसखं कान्येषु रम्याः कथाः । कोपोपाहितवाष्पविन्दुतरलं रम्यं प्रियाया मखं
सर्वं रम्यमनित्यवामुषगते चित्ते न किच्चुदुनः ॥ ८५ ॥ भिन्ञास्षी जनमध्यसङ्क दितः स्वायत्तचेष्टः सदा
दानादानविरक्तमागंनिरतः कश्िचपस्वी स्थितः
(५) °ण्ठा० ०००, 1, ०ङ्खु०, फ. चनः; नहि 2. ए. (9)°रीनम्; °रन्तु ¶१, ©. 59. (०. 80..) ०रन्तः ए,
1.2 शा. (^). “न्द; “ण्डो, 2890. ए. किम् ¦ को. 20. (01. 0.1.) एर. जोभायः; जभाय, ₹. ए. ऊभोयम्, 5०. 7, भौयाय. ^. ०.०. (४) जानु; नृ प्र० 4. गन्धैः कषग्धवा जानु जायते; “न्धिः भुभ्भौ न खकु जयते. 2,
1 पए. ®) ग्दपि; गिति, 4. ह. (द) मनु०; तनु, ©.
1/2 ए. (2) गयस्तणवती; ०यः कुसुमिता 4. ८००. (8) °म्यः;. य्यम् 6, &, 59. दैप ¶, &. ?. साधघसमागमः शम ०, सषसमागमोदव 80.0, 4. त- च समनमगम ८, ©. सापुसभसिमागम ए. 86, सनुसुहन्समामम. . 8. सुसमः गमागत. प. °ब्ये ०६ नके], 6, (५) बिन्दु; वृत्तिं व, (क) °नित्य ९} °रम्य० क. पमष ०;०मय०, ०.४. मधि ° इ. नतैः भतम्, 4. ह. 5०. (०. 70 1\.}.
[दए (५) मध्यसङ्ग; सङ्कमध्य. 2. ए. चेटः वेशः. 6. वेषः ४०.२४. @) दाना ०; हनि °. 80. (गहु. ०.9.) प, ०रक्त ०; तविक्त ०, ^. ए. २, ०भिन्न °. ष, 29. (° क्त. ए०.४.) ०मार्मनिरनः; ग्वर्णरहितः ए, 59, (ग. 8०.४.).
[ ६० |
रध्याक्षणविश्षीगेजीर्णवसनेः संप्राप्रकन्थासखो
निमौनो निरहङतिः शामसुखामोगेकवद्धस्पुहः ॥ ८६ ॥ मातर्मेदिनि वातत मारुत सखे तेजः सुबन्धो जक
म्ात्पोम निबद्ध एकं भववम्रेष प्रणामाञ्जलिः । युष्पत्स ङ्गवंशोपजातसुषवेदेकसुरनिमेल-
ज्ञानापास्तस्रमस्तमोदमदिमा रीये परे ब्रक्मगि ॥ ८७॥ यावत्छस्थमिदं कठेवरगृहं यव्च दूरे जय॒
यावच्वेन्द्ियशक्तिरपरतिहता यावत्यो नायुषः । भालनश्रेपत्ति तावदेव विदुषा कायैः प्रयत्नो महा-
न्रोदीते मवने तु कूपखननं प्रत्युद्यमः कीटशः ॥ ८८ ॥ नाभ्यस्ता मुवि वादिवृन्ददमनी विद्या विनीतोचिता
सद्गात्रैः करिकुम्भपीठदल्मैनाकं न नीतं यञ्चः । कान्ताकोमरूपहलवाघररसः पीतो न चन्ड्ोदभे
तारुण्यं गतमेवं निष्फलमहो दन्यारये दीपवत् ॥ ८९ ॥
(५) केण; कीर्ण. 7. ८०. प. जीर्णं; चीर. 4. 80.71. कीणै ‰. ए. °्नैः; ०: न. 2. ए. °संपरप्र; °रास्यत. ए. °रस्यूत; 89. (०४४. ०.४.) 'प्रान्तेस्थ. ए. 2. सखो;ईषनो. 4. ०घरो. ए, 89. °सनो. पर, -(ढ) ननो °गो. ए. 809. (०ण&. 50.०.) रामसुखा ०} समसुधा ०, 80. (०४), 5०.१.}
72 श्एया. (०) सेनः}, ज्योतिः 4. ए, 29. 2. ए. सु०; स ०. 7. ए०. (ग्ट. 5०.च.) ०; श्र, 4. ए. 29. क. २. ए. ०मेषर ०; ०मग्र. 4. ह. 50 ०मन्स्य. 10, °मन्प्यः 2. ए. पष. (८) °तेद्रेक; तंखार. प्र, (@) तराना ० लाड. ० ए. 8०. (ग्ट. 5०.४.) ^ स ०र. 8०. (०. 80.9.) ध. ।
1. णा, (४) कलवरगृहम् ; शरोरमस्जम्, ^. 7. ए. ८०. म. 6. 2 ‰. °च दरे जरा; °अ्जरा दूरतो, 4. ¶. ए. ८० 6. ए. . ए. (८) ण्षा कथि ण््रोकायै ध. (द) गन्यरो०} गन्तम् 4. ¶, ए. 8०. भ. ४, 6. ए. श्नू० ४ तु; च 0. मत. @ न्नम्; नने ^. 2, वयर) (्द्र० ^,
1.21. (थ) भवि; प्रति० फ. दादि; बाद. 4, 0. वृन्द; दन्ति, ४. मम
१० 4. (2) १8; दन्त. ४. कूट; ए, 7. °ऊ ०; मर ६, -©, ०. (गण ०.1.) (५) पै ९; परै ०, 0.४. (९) निष्क ०; निः ० ए, ‰
[६९1
ज्ञानं सतां मानमदादिना शनं केषाद्छिदेवन्मदमानकारणम् । स्थानं विविक्तं यमिनां विमुक्तये कामतुसणामविकामकारणम् ॥ ९० ॥ जीणौ एव मनोरथाः खहुदपे यातं जरां यौवनं हन्ताङ्गेषु गुणाश्च वन्ध्यफलतां याता गुणतर्विना । विः युक्तं सदसभ्युपैति बकवान्कालः रुतान्वोक्षमी द्यज्ञावं स्मरदयासनाद्धुयुगलं मुक्त्वास्ति नान्या गतिः॥ ९९ ॥ तषा डष्यत्यास्ये पिबति सक्र खादु सुरभि ्षेषादैः सञ्शाङीन्कवर्यवि शकादिरवछिवान् । प्रदीप्ते रागाप्नौ सुदृढवरमाङ्किष्यति वेधं प्रतीकारे व्याधेः सुखमिति विपर्यस्यति जनः॥ ९२ ॥ लत्वा गङ्गे पयोभिः शुचिकुमुमफलैरर्चयिला विमो लां ध्येये ध्याने नियोज्य क्षिविधरकुदरत्रावपवैङकुनृरे । सधा. (५) न्याः सण व्यश्च. ष 80 ष. ७. ०्यः ख 6.2. जर- य°; चतथ 4. प. र. ए. 8०, ७. (@) न्ध्य ०; ण्य, 6. (९) रकाः कना
न्तोक्ठमीः कालो रि सर्गीन्तकत्. 4. ८०. (2) द्या ०; हा. र. कर ०. ©. म ए ए. त्रा; ध्या०. 4, स्मरब्यासनाङ्कियुगलम् भदनान्तकह्कियगुलम्, ए. स 5०. ©. मदनान्तकरियुगलम् ¶. सभुसूदनाङ्किकिमजम्, 2. 5. 4. ०.४. (3 णोत ४० युगलम् तण कमलम् ) त्िपुरान्तकाङ्कूयुमलम् ध, मुक्तस; मुक्तस्तु श, ए, 89, (मपह, ८०.४.) नान्यास्ति. 4. नान्या; सृक्ला. 4.
सधा. (८) शुष्यत्यास्ये; °तैः सन्पराणी ^. ए०.४. खदु सुरमि; वीतम्रम्, कप. रीतसरभि. ¶. (2) सञ्ाक्तीन् ; शान्यज्ञम्, प, सञ्दाछिम्, 8०.४. शाकादिव. कितान् ; सस्यादिकङितान्. 4. मासिाञ्यकवलान्, ग. मांसादिकलितम्, प. 5०.०४. (९) रागा ०; कामा ०. 4. ¶, 8०.9. शङ्किष्यति; जिङ्गति, प, (९) ° से; ०रम्. भ. °्मि- ति; ९निव. ए. 80.0. °ति जनः; श त्यनृबः. 50.
भा. (2) प्येष ध्यानं नियोञ्य; ध्यायन्नििरय पयन्, २, 7. नियोज्य; निवेश्य 4 श, ए. 89. 6. ध. प. व््कमूके; राय्यानिषण्मः ¶\, ए, 89. (०7. 29.2.) ©
[ ६२ 1
भात्मारामः फलम्षी गुरुवचनरतस्वव्मस्ादात्समरर
दुःखान्मोषमे कदाहं तव चरणरतो ष्यानमर्गिकप्रश्नः ॥ ९३ ॥ दाय्था रौलशिला गृहं भिरिगुहा वख तरूणां वचः
सारङ्गाः सहुदो ननु कितिरुहां वृत्तिः फलैः कोमलैः । येषो निञ्चैरमम्बुपानमुचितं रवयेव विद्याङ्गना,
मन्ये ते परमेश्वराः हिरि यैवंदो न सेवाञ्चटिः ॥ ९९ ॥ सत्यामेव भरिरोकीसरिति हररिरश्युम्बिनीविच्छटायां
सदि कस्पयन्त्यां वटविट पभवैवैल्करैः सकटैश्च । कें विद्रानिविपत्तिज्वरजानेवरुजातीव दुःस्वा्िकानां
वक्रं वीक्षेत दुःस्थे यदि हिन विमृयत्से कुटुम्बेनुकम्पाम् ॥९५॥ उद्यानेषु विचित्रभोजनविधिस्तीव्रातितीत्रं तपः
कौपीनावरणं सवरममितं भिक्षाटनं मण्डनम् । आसन्नं मरणं च मङ्गलसमं यस्यां समृत्पद्यते
तां काशीं परिहुय हन्त विबुधैरन्यत्र किं स्थीपते ॥ ९६ ॥ नायं ते समयो रहस्यमधुना निद्राति नाथो यदि
स्थिता द्रक्ष्यति कुप्यति प्रमुरिति द्वारेषु येषां वचः ।
^~
(४) °मः फलाशो; ०गेपीनो. 4. ०मोपि कीरो ०.४. ०मोफछारी. 0. (2) ०खन्मो ०६०खं मो०. 4. ग. ए. ए. ४. 5०. 6. पर. तत्रे चरणरतो ध्यानमर्ग. कप्रशषः; समकरचरणे पुंसि सेव्सयत्यम्, 7. 7, 20. ©. प. 2. >. समचर गकर पसि सेवासमुत्थम् ^. 0.४, प्रभः; पतैः ४.
सला. €) "बण व्कं० 6. व्वेरःण्यै० क, (दोमन मार. ©. |
30. (५) जच्छ ०; ०वच्छ ०. 0. (2) सटत्तिम् ; सतृत्तम्, छ. र्सां वट्रिट- प०\ °न्स्यत्ततद (शन्त्यान्तद? ) विये ए. ¶, ‡. ४, (५) °खासि ०; ° खलति ९. 11, (2) ० ०; °भ्ये० ¢. ग्व्खे क ०; न्चेकु० अध. म् गणपञ्च 9 कध.
3८. (2) °ग्डनम् ¦ ण्म. ४.
५
चेतस्तानपदाय याहि मवनं दैवस्य विश्वेशितु- निदौवारिकनि्दैोक्यपरूषं निःसीमशमेप्रदम् ॥ ९७ ॥ प्रियसखि विपदण्डव्रातप्रतापपरम्पसा | परिचयचज्ञे चिन्ताचक्रे निधाय विधिः खरः । मृदामिव बङात्पिण्डीरत्य प्रमस्मकुखाखव- द्रमयति मनो नो जानीमः किमत्र विधास्यति } ९८ ॥ महेश्वरे वा जगतामधीश्वरे ` जनादेने वा जगदन्तरात्मनि । तयोने भेदप्रतिपत्तिरस्ति मे तथापि भक्तिस्तरुणेन्दुशेखरे ॥ ९९.॥ रे कन्दपं करं कद्ययसि किं कोदण्डटङ्मसै रे रे कोकिरु कोमकैः कलैः किं.लं वृया जल्पसि । मुग्धे लिग्धविदग्धमुग्धमधुरैलेिः कटाकषैरलं चेतश्वुम्वितचन्द्रचूडचरणध्यानामृतं वतेते ॥ ९६०० ॥
0. (2) नो दौवारिकनिर्योक्तिपरूषम् ०. 20.71.
दण. (9) °्वि; ८ख ०. त, (1 काक ). 30.प. ° ०उत्रति; ०ण्डप्रान्त. 4, ०.०, °ण्डाधत, पष. प्रतापः प्रपात. 4. 80.. प्रवात. प्र. (2). ° चयचके ०; ° चङे, 0. ° चये. फ. ° चयवते. 4. ° चयवत्ते 80.2. नि ०; वि०. ए. (2) ण्ववे०; ण्व च व०. ८. (च) नो जानीमः क्रिमत्र; जो जीर्णानां कि- स) 4.
260. (4) ०तामषी ०; नतां मरे; क. 2. 8. (2) म वस्तुभेद प्रतिपत्तिर- स्तिमे प. न वस्तुतो मे प्रतिपत्तिरस्ति ए. 80. ©. न भेदेहेतु प्रतिपत्तिरस्ति 1, ए. ६. (9 फनी। ४० न्तुः प्र }. मेः नी. ^.
५. (५) र किम. ^. करिम् रे. 4. ङ्स; पटासतिः(1) 4. (2) णेः; ण्म. ‰. ण्वः; ०वम्, 4. जन्यः वन्यत, 4. 2. 8 (०) गग्बे; °म्बेः, 4. विदग्धम्. ग्घमधुरैलः; मुषारैरमधेतरालविः. 4. विदग्धमुग्धमपुरषैः, 2. ठ. ए07 मग्ध ए. 196 केव, वर्वतै; सम्प्रति, ए. 8,
{ ६४ }
कौपौनं शातखण्डजजैरतरं कन्था पुनस्तादृशी निश्चिन्वं सुखसध्यभरकष्यम शनं शय्या इमश्चाने वन । मित्रामित्रतमानतारिविमखा चिन्तातिशयून्पारूये घ्वस्ताशेषमदपमादमुदितो योगी सुखं तिष्ठति ॥ १५०९ ॥ भोगा मङ्गरवृत्तयो बहुविधास्वैरेव चे भव स्तत्कस्यैव ते परिभ्रमत रे रोकाः रवं चेष्टितैः । आहापाशशरोपशन्तिविशदं चेतः समाधीयतां कामोच्छिततिवरे स्वधामनि यदि श्रद्धेयमस्मद्वचः ॥ ९०२ ॥ धन्यानां भिरिकन्दरे निवस्तवां ज्योतिः परं ध्यायता- मानन्दाश्रुजलं पिबन्ति शकुना निःशङ्क ङूशयाः ।
0. (५) ^तरा; °तरम्, 4. 7, 89. पै. °जरम् ©, (2) निशिन्तम् ; नै- वित्तम्. . मैिन्त्यम्, 7. 9. प. ए. नोतय, ©. निित्तम्. 2०.४. निवीतम्, ४. सुखसाध्य; सुखस्बु, ^. 28०.2. निखेक्ष. ©. पि. क, ए, 89. ( फफन) ४० ए४ण्छभ्य (र), शय्या; निद्रा ध, ए. ©. 2. 39. (छन, ०.9. ) (५) ०्वा- तिविम ०; ०कारििरजा. 4. 5०.४८. ०ति शू? श्य शू०. 4. #¶. 20.४. (त्ता 0 स्ता) (2) मदप्रमाद} तमग्रमोद. 4. 20.9४. ( मः प्र ण मप्र }. ४ 1, इ. 89. ©, प. ५४९8० धण9 188६ 11965 &8 86 10110 5: खातन्त्पेण निरङ्कशं' विहरणं ` दान्तं (खाम्तं ए. ०. फ.) प्रान्तं मनः (सदा, ७०. ©. ए. प.) योगमषससरेमे च यदि त्रैजोक्यराब्येन किम् |
(ता. (2) शस्ये; °स्येह. 4. ¶\. ४. ए. प. 2०. ©. ४. ह, ०मत; मम श. 4. ८००. रे} ह. ¶. ए. ७. °तं चे ० गतैश्च ०. 4. “हितैः; °छितम् . ए, ए. & 0. (जस. 5०४.) {द} ९मै ०; नम्ये ०. 50. (गणष. ०.2.) 6, गच्छि ०. ` ण्ठ. षृ, ए. ३, 2०. 6, शले ख; “यत्व, फ. °दस ०, ०.०. श्र ०३ सल ° ०.४, (०४&. 0.9.)
ला. (५) नि ०; श्वु. ए. 59. (गण. ०.०.) 9. ¶, प. @) ज्ञ; के< णाम्; ¶, ए. 5०. (०६, 89.०.) 6. प
।
अस्पाकं तु मनोरयोपराच्चेतप्रास्रादवापीतट- कीडाकाननकङ्कौतुकजुषामायुः परिक्षीयते ॥ ९०३ ॥ भध्रातं मरणेन जन्म जरयां विदुरं यौवने संतोषो षनलिप्सया शमसुखं प्रौढाङ्गनाविभरषैः ।. ` छेकर्म॑ःतरिभिगैणा वनमुवो व्थाैनपा दुजैने रस्र्येण विभूतिरप्यपहृता प्रस्तं न किं केन वा॥ ९०४॥ -भाधिभ्याधिकतेजनस्य विविधेरारोग्पमुन्मूल्यते | क्ष्मीयंन् पतन्ति तत्र विवृतद्वारा श्व व्यापदः । ` जातं जावमवर्यमाश्ु विवशं मृच्युः करोव्यात्मसता- त्तस्कि नाम निरङ्कुशेन विधिना यानर्मितं सुस्थितम् ॥ १०५॥ शच्छेणामेभ्यमध्ये नियमितवनुभिः स्थीयते गर्ममध्ये कान्ताविश्टेषदुःखग्य॑तिकरविषमे यौवने विप्रयोगः ।
(¢) गथीप॑र ०६ ण्यः परि ०. 4. 1. (4) परि०; परम् , 4. फ. ४. 8०. ए. ७. 2. &. प्र. ए. ।
(वट. (०) शप्रतम्; ° क्रान्तम् प. ए. ए. 6. 80. (०&ः 5००. ) तफ ०्सा प. ए. 5०. 6. (ज्म. ०.2.) त्रिदयुज्ररम् ; प्रयुतम्. 4. 80.४. च्यु ङ्ल्वलम् प. °प्यतयुङुलकम् २. 8.1. यास्युनमम्, ए. 89. 9. य्युल्वणम्. 1 (०) वके ०; ०्के म ०, ‰. वनभुवो; °स्तु पठणे. 4. °्सनु पवनो. ०.2. शपा नैः. 4. , (4) °मूतिरष्यपहूता; ° भूतयेपयुपहता. कष, 3०. (ण्ण. ८००. एण इ णिन्) 6. ए. °पत्तयेप्युपहता. ¶,. केन वा; के जनाः ध. तेन का. 4,
(ष. (५) °जैनस्य प्रिषिमैः; ०र्वयस्यतितराम्, 11. (४) पतन्ति तत्र; पतव्रिषच. 34. ०ृत; °विध. ०.४. द्वारा} वाख. व. म्या ९} ह्या ०. ए. पा०, ¶\, 80. ०ण&. 59. (2) जातंजातम् ; भरायु्यीतम् एए. जाताजातम् ©. (2) नामः केन. ¶. ए, 50. (ग्ट. 8०.२४.) तेन. प्र. °स्थिवम् ; ^स्थिस्म् . 4. ए. 80. (०, 5०.2.) 6. _
८. (५) नियननिततनु ० नियमितच्तु °. &. निपतति तनु °. ^ सतिधतति ° तनु ०: 0. °र्ममध्ये; गमास. &. ¶\, इ. 8०. ( ०र्मषवसो ०.४, ) &. `. मग. 2. >. ®) ०ख; °्खम्. ^. मे ०; °मो. ०. फ. ०, ए, 6. वपर यो०; चोभो०. ग, ए, ८०. (ग. 5००.) प. |
{ ६६ }
नारौषणामप्यवत्ता विरति नियतं वृद मावोप्यसधुः संसार रे मनुष्या वदत यदि मूलं सल्पमप्यस्ति किंचित् ॥\०६॥ मयुवष॑शवं नृणां परिभित रत्रौ तदर्धं गवं तस्यास्य परस्य चीधेमपरं बारलवृद्तयोः । ओष व्याधिदियोगद्ःखसदितं तेवादिभिर्मीयते , . जीवे वारितरङ्गचच्चखवरे सौख्यं कुतः प्राणिनाम् ॥ ९०७ ॥ ्रहमज्ञानविवेकिनोमरूधियः कुन्दो दुष्करं यन्मु धन्सुपमोगक च्खनधनान्पेकान्वतो निस्पृहाः । न प्राप्तानि पुरा न सम्प्रतिन च प्राप्तौ दृढप्रत्ययो वाञ्छामात्रपरिप्रदाण्यवि परं ध्यक्तु न इाक्ता वयम् ॥९०८ ॥ ष्याध्रीव विष्ठतति जय परितजयन्ती रोगाश्च शत्रव इब प्रहरन्ति देदम् । भयुः परिस्रवति भिन्नघटादिवाम्भो ोकस्वयाप्यदिवमाचरतीति चित्रम् ॥ ९०९ ॥ ,
{०) नारीणामष्व ० वामाद्चीणाम०. धृ, ए, 280. (गह. ०.४.) ©, फ °छस °; °हस ०, &. °इसि ०. ¶, ए, 2०. ©. प. ° कसि ० ०.०. नियतम् ‡ वसतो. 4. वसतिः 1 ह. 89. 9. प. न्वोप्य ०; वेष्य०. 2. ए.
(प्रा. ४) ०छ°; °न्य०. ४. (०) योगः; गदे. ४. सवा; इद्ा०., 2. ए. (थ) चजहतर; बृहूदसमे. 4. ०.४.
(ष्या. (५) सकनम °; कनिमै०.¶. ह... ७. दुष्कण दुःक०. क (2) यन्मु ९; ये म०. 4. शन्द्युप० शन्व्यवि. ¶ काञ्चन ०; भान्ब्यवि, 4. ति. ए, 8०. ©. 2. 2. माद्यवि. क. भीय, ४. नि ०; नि: ०. ०. 2. 2. (०4&. ८०.४.) (£) नप्रा०ः संप्रा 4, ध. प. (ककलछ न छः नि फणन्वा्न्लङ् वगारन्यणड) चव (का?) ©" °दप्र० °दः प्र०, 2. ६. ०.४. श्यो; क. ‰#. ए, °यन्, पष. (9) वाञ्छा; गस्य. 0, °्फे$ °नपि; प. परम् ; वयम्. ¶\ परि, ह, 20 ©" (भप. 3०.४.} शक्ता वयम् ; तानि क्षमाः भृ!
@) °हर ०; °विशं ०]. डम् ; °हे. ^. ह. 8०. अ. (2) °य पर०६ °यै सम् &. शवराम्मो; वच्च ¢
[{ ६० 1
सृजति तावदरोषगृणाकरे पुरुषरत्नमरुकरणं भुवः । तदपि सत््षणमङ्गि करोति चे- दहं कंष्टमपण्डिवता विधेः ॥ ९९० ॥ मात्रं संकुचितं गतिर्विगलिता भ्रष्टा च दन्वाव्ि- दष्टिनैरयति वर्ते बधिरता बकल च सकायते | . भाक्यं नाद्विपते च बान्धूवजनो मायां न दुषरूषते ` हा ष्टं पुरुषस्य जीणैवयसः पुमरोप्यमिन्नायते ॥ ९६६. ॥ क्षणं बाहो मूता क्षणमपि युवा कामरतिकः क्षणं विततरधनः कषणमपि च संपु्णविमवः 1 जरजीर्णुरङनैट इवं व॑रीमंडिवतनु- नैः सप्तारान्वे विशति यमधानीजवनिकाम् ॥ ६६२ ॥ अहौ क्रहरे वा बरुवति रिपौ का सुहृदि का मणौवारूष्टेवा कुसुमशयने बा दृषदि वा । तृणे बाद्धिणे वा मम समदृशो यान्ति दिवसतः कचि सपुण्यारण्ये दिवं शिव शिेति प्रपतः ॥ ५९३. ॥ ॥ इति श्रीमतुहरिकतवेरग्यशतकं संपणंमू ॥
0, 865 पाधड०।१४५. रां
छा. (४) शकं ० ण्ठी द°, ह. ८9. & 0, ण्नौभा० श्तेमीण
तशा. (9) म्म; ०, ©. (>) मन्दि०ः ष्ण्डि० ©. (अ) °न्तै;, कै 4. 2. 2. ए५,४. पि; दि ० श्नीज्ख ०; नीय ०. 89. (०६. 8०.०४.) त शनी जण). 1. 6,
(द्मा. (०) नन्ति; शन्तु. 4. 2. 8. 20.४. (2) ण्या र; ००्दे०. ¶ृ\, ष 39. (०४६. 8०.9.) ©. २. 2
[६८]
` अण ^ पि्०ण$.
अकिंचनस्य दान्तस्य शान्वस्य समचेतसः ॥ सदा संतुष्टमनसः सौः सुखमया दिशः ॥ ९ ॥ भरनावरतीं कालो व्रजति पस वृया तनन गणितं दशास्वास्ताः सोढा व्यस्तनश्तप्तंपातविधुरः । कियद्भा वक्ष्यामः किमिव बत नात्मन्यपरतं त्वया यावेत्तवेत्पुनरपि तदेव व्यवसितम् ॥ २॥ ` अमिमवमहामानग्रन्थिप्रमेदपटीयसी गृरुतरगुणम्रामाभ्भोजस्कुटोज्ज्वलचन्दिका । विपुखविरसह्ठज्जवह्टौविदारकृटारिका जठरपिठरी दुःपृरेयं करोति विडम्बनम् ॥ ३॥ रनीमदहि वयं भिक्षामाशावासो वसीमहि । इायीमहि महीपृषे कुर्वीमहि किमीश्वरैः ॥ ४ ॥ उत्तिष्ठ क्षणमेकमुदरह गुरुं दारि्यभारं सखे श्रान्तस्तावदहं चिरं मरणजं सेवे त्वदीयं सुखम् । इतयक्तो धनवर्जितेन सहसा गतवा इमह्ाने शवो दारि्रान्मरणं वरं वरमिति ज्ञातैव तृष्णीं स्थितः ॥ ५ ॥ .
7. (०) वृ% तेर. ¶. (2) ९कात;° ताप. 2. 8. (९) वत ना ०; च तदा ०. ए. शत्मन्य०; ०माभ्य०. द. शर ०व०. न. (९) खया; वयम् ॐ. 8. ¶. , प.) “रूः °य. ©. क. (५) विसं; °चरस ०. ^. °्दार ०; ०तान ०. व 9. 9. क. °खरि ° ०.४, (छं. 8०.) (द) °नम्_; गाम्. ए. 4. 8०. म. ए. 8. &. (४४ क्न ना गणा).
प. (५) श्वरः शन्नो०, 2. 5. ^. ध. प. व, ८००, (गहु. ०.) भि- श्यम् ; भक्षम् ६०.४.
[{ ६९ }
उदन्वच्छना भूः स च निधिरपां योजनशतं सदा पान्थः पूषा गमनपरिमाणृं करयति । इति प्रापो मवृ स्कुरदवधिमूत्रामुकुलिताः संवा प्रकोन्मेषः पुनरपमसीभा विजयते ॥ ६ ¶ एको देवः केडवोवाङिको वा एकं मित्रं मूपविवौ यतिं । एको वासः पने वावनेवा एका मायां सुन्दरौ बा दरी वा॥ ७॥ एको रागिषु राज्ञते प्रियतमादेहारथहारी हरो नीरागेषु जनो विमुक्तरुलनासङ्गो न यस्मात्परः । दुवारस्मरबाणपन्नगविषन्पाविद्धमुग्धो जनः रोषः. कामविडम्बिताल विषयान्भोक्ं न मोक्तु क्षमः.॥ ८ ॥ ` एता दन्ति च रुदन्ति च का्हेतो- विश्वापस्तयान्तिः खं पर न च विनश्वसन्ि। वस्मा्नरेण सुशीरुसमन्वितेन नायः इमशानघटिका इव बजेनीयाः ॥ ९ ॥ कदा काराण्ाममरतटिनीरोधलि वस- न्वसानः कौपीनं रिराति निदधानोख्लिपुम् । भये गौरीनायं त्रिपुर डम्भो चिनयन प्रसीदेत्यकोाननिमिषमिव नेष्यामि दिवसान् ॥ ५० ॥ काकेदयं स्तनयोटैशोस्तरलूतारीकं मखे श्वाध्यते कौटिल्यं कचसंचये च वदने मान्यं त्रिके स्थूलता ।
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ए. 866 ५.४४ ६४& 211866119960प्§ 802६ $, ०2१ ३११ ४० 4 ००४68 प6ा6 0.7" श्रथ प्रत ए” कल्क ४8 1श्भठ३ *९०माई नको. ` णा. 896 वाधि भ ना 5न्नाकप९०ऽ 8408 5.
ॐ. @) णनम्; नै, &, 59 (9) शत्य; १ति०प. ए,
[ *° ]
भरं हृदये सदेव कथितं मायप्रपोगप्रिप
यासां दोषगणो मृगदृशां वाः स्युः पशुनां प्रियाः ॥ ९९ ॥ कचि द्रीणावां कचिदपि च हाहेति रुदितं ।
कचिद्वददरष्ठी कवचिदपि सृरामत्तकरडः । कविद्रामा रम्याः कवचिदपि गलक्कुष्टवपुषो
न जाने सेसारः किममृतमयः क्रि विषमयः ॥ ९२ ॥ गननरगिर च मिकलश्ुटुमीश्चरणां |
कुर्वलयं प्रहसनस्य मठः -कुतोत्ति । . वं त्वां पुमः प्रक्िविक्णेकमाजमेनं
टेन केन नटयिष्यति दीर्धमायुः ॥ ९६ ॥
८ # ६. # ॥ \४॥ नेका रक्षमीश्वखाः प्राणाश्चकं जीवितयौवनम् ।
्राचले च संसारे धम एको हि निश्चलः ॥ ९५ ॥ चुडोत्तपित चारुचन्द्रकलिकाचञ्चुच्छलाभासुरे
कीलादग्धविलोरकामशखमः श्रेयोदश्चाप्रे स्फुरन् । -अन्तःस्कूजेदपारमोहतिमिरपाग्मारमुच्ाटयं-
श्चेतेःसद्मनि यौगिनां विजयते ज्ञानप्रदीपो दरः ॥ ९६ ॥ चखेतश्रिन्तय मा रमां सरूदिमामस्थायिनीमास्यया
मृपालभरकरटीकुटौरविहरव्यापारपण्यङ्गनाम् । कन्थाक्ञुक्रिताः प्रविहय भवनद्वाराणि बासणती-
रथ्यापाङ्कुषु पाणिपात्रपतितां भिक्ञामपेक्षामहे ॥ १७ ॥ ११११... 7. 3... 1 11 प प्प्प्म्य जन् ---- कए. (4) चास्वन्द्र; चन्द्रचार, प, ^स्°; ००. प. 50.४. (९) नन्तः
णन्त. ए. °मुजाट ०; °मुच्छेड १. ‰०.. (2) °रः‡ ° रैः. 8०.४. | सफ, (८) रमस्था० ०मास्या०. @. (2) °रविहरध्या ० विडरणेब्या ०, पि, (2) °किताः; ०किनः प, क्तिः 59. ग, 9, गि ०; ००. शर,
१ ७ ९ 1 |
जतः कूमः स एकः पुथुमुवनमरायपितं येन पृष्ठ शाग्यं जन्म भवस्य भ्रमति नियमितं यत तेजस्विचक्रम् । ` संजातव्वर्थपक्षाः परहितकरणे नोपरिष्टिन चाधो ब्रहमाण्डोदुम्बरान्तर्मदाकवदपरे जन्तवो जावनष्टाः ॥ ९८ ॥ तुङ्गं वेदम सुताः सवामभिमवाः संख्यातिगाः संपदः ` केल्याणी दयिवा वयश्च नवमिदन्ञानम्ढो जनः । मतवा विश्वमनश्वरं निविरवे संसारकारागृदे सहर्य प्षणभङ्गर तदल धन्यस्तु संन्यस्यति † ९९ ॥
ददतु ददत् मारीमालिमन्तो मवन्तो
वयमपि तदमावाद्वालिदनिष्षमथीौः । जगति विदितमेतदीयते बिमान
न हि शशकविषाणे कोपि करै ददाति ॥ २० ॥ दू दर्थं घटयति नवं दूरतश्चापशब्दं
त्यक्तवा मुयो भवति निरतः सत्सभारञ्जनेषु । मन्दं मन्दं रचयति पदं छोकवित्तानवृध्या
कामं मन्त्री कविरिव सदा खेदमरैरमुक्तः॥ २१॥ न भिक्षा दुष्प्रापा पथि मम महारामरचिते
फलः संपृणा मृदिपमृगसुचमौपि वसनम् ।
सए. (०) भरावार्ितम् ; °मथ स्थापितम्, 4. -°म् ; °. 4. (०) सेमात- श्यर्थ; व्ये संनत. 4. °द्छाः; शश्राः. 4. करणे नोषरिछन्न चाके; करणं नो कारे च्यन्न कार्थ, 4. (4) नः; निष्ाः ।
उ. (०) मण; ००, छ. @) गक्ष; श्महि (ह?) 8. समर्था ण्ध्स (श ?) क्राः. 8. (2) ददतु शद्धविषाणं पे भहात्यागिनपि. 8.
ऋ, 866 कपा४8.०४०८४ 207 8न्नाक्षान्छप$ 8442028 10,
ऋका. (५) मम महारामरचिते; परथि मरामसरितः 8, #. (2) गर्िषमृग- सु८; °मुगविटपर ०, 8. र्यव्िमृग° घ.
०.
सुखेगां दुःसैवां सदुशपरिपाकः सदु वदा त्रिनेत्रं कसयत धनरुवमदान्धं प्रणमति ॥२२॥ मो खङ्क्रविदारिवा; करटिनो नोद्रेजिता वैरिणः स्तन्वङ्गधा विपुर निवृद्धफरूके न कीडितं लीकया । ने जुष्टं िरिराजनिभ्चरस्षणज्जञांकारकारं वयः कालोयं परपिण्डलोलुपतया काकैरिव प्रेरितः ॥ २३. ॥ परिभमसि किं वृथा कचन चित्त विश्राम्यतां स्वयं भेवति यद्या मवति वत्तथां नान्यथा । अतीतमपि न स्मरनपि च मान्यस्ंकल्पय- चतर्कितगमागमाननुमवस्व मोगानिह ॥ २४ ॥ पाणिं पात्रयतां नि्ैडुचिना पकषेण संतुष्यतां यंत्र क्कापि निषीदतां बहुतृणं विश्वं मुहुः पर्यताम् । अत्यागेपि तनोरखण्डपरमानन्दावनेधस्पृहां मस्य॑ः कोपि शिवप्रसादसुलमां संपत्स्यते योगिनाम् ॥ २५ ॥ पातालानन 'विमोचितो वत वरी नीती न मृदयुक्तयं गो मृष्टं शशिलाञ्छनं च मछिनं नोन्मूकिवा व्याधयः । ,. शेषस्यापि धरां विधृत्य न छतो भाराववारः क्षणं चेतः सतपुरुषामिमानमणनां मिथ्या वहनं रञ्जते ॥ २६ ॥
(0) सुखै दुःदेकी; सके वा दुःखे वा. 8. 1. °कः} °कै.
अ ए. (४) तत्तथा नान्यया; तेयथा नान्यया. ग. नान्यथा तत्तया. ए. 89. (०) °मपि न °मननु °. फ. °ब्यसम् ०} °व्यसम् ०. ए. °्यं सम्. ©. ०वि रुम्०. शः (@) °यन्नतं ०; °यन् न त ०, ए. &, 8०. ०यन्_ अत ०, ¶\. ° तगमा ०६ °तस्षमा ९. फ. तवस ०; तवामि ०. ए. ° निह; °नहम् . क.
उष, (4) ग्े०; ०७ ०. ७. ग. ए. (५) सुदाम् ; सृद्ाम्. 2३. (2) मव्यैः; मध्वा. फ. त्मम् ; °भोम्, 2०. भः प. भाः &. सन्स °स्य०. ©. {४ वणफय00 इपह्त्पप्न०प 1० धऽ 8. ).
{ ५९ |
पररणन्तशाख्लायोविचार चापलं
निवृत्चनानारस्तका्यकोतुकम् । निरस्तनिःशेषविकल्पविस्तरं
प्रपत्तमन्विच्छति शंकरं मनः ॥ २७॥ फंड स्वेच्छालभ्यं प्रतिवनमखेदं क्षितिरुहां
, परयः स्याने स्याने शिशिरमधुरं पुण्यसरिताम् ।
मृदुस्पश श्या सृरुलितरतापल्ववमयी
सहन्ते संतापे तदपि धनिनां दारि रुपणाः ॥ २८ ॥ मभ्यं भक्तं ततः किं कदशितमथवा वासरान्ते तंवः किं
कौपीने वा ततः किं किमथ सितमहइच्वाम्बरं वा ततः किमू | एका भायां ततः किः शवेगुणगुणिता कोटिरेका ततः कि
लेको भान्तस्वतः कि करितुरगरशतैरवषटेतो वा ततः निम् ॥२९॥ ` भिल्ला कामदुधा घेनुः कन्था द्ीवनिवारिणी । ` , . अचला तु शिषे भक्तर्विमवैः किं प्रयोजनम् ॥ ३० ॥ मिक्षाहारमदेन्यमंप्रतिहतं भीतिच्छदं सर्वदा ।
दुमात्सयंमदाभिमप्नमयनं दुःखौघविष्वंस्नम् । सैत्रान्वहमप्रयत्नसृलमं साधुप्रियं पावनं
शम्भोः सत्रमवा्य॑मक्षयनिर्धि शंसन्ति योगीश्वणः ॥ ६९ ॥
~---^~--“---------- ।
उक्णा. ध सरण; यरी.
उ. (०) भक्तम् ; मुक्तम्, ४. शित; °्न०. क. (2) कौधनेक नेतः किं सिनममलयर् धद्ृकूलं तरतं किम्. क. (५) °का; °का. कवि. मणिता; मणिक. ए. (ढ) 6 काडरदा9 छलः भा 8कल8 10 6 ला७४6ते 1४ हि.
ढा. (०) गह्तम् ; °सुखम्. त, ०5०; श्वि, इ, 89. ह. ण्य; न्ती. प.
{ ७8 ]
मूः पर्ङून निजमुजर्ता कन्दुकं खं विताने -दीपश्चन्द्रो विरतिवनिताङब्धतङ्कप्रमोदः । दिक्कीन्ताभिः पवनचमीन्पमानः समन्ता- ` दविक्षः शेवे नृप इव मुवि त्यक्तसवैस्पुहोपि ॥ ३२ ॥ मोभास्तङ्गतरङ्गभङ्गचपलाः प्राणाः क्षणष्व्॑तिन- ` स्तोकान्येव दिनानि -यौवनसुखं प्रीतिः परियेष्वस्थिरा । तत्संसारमसारमेव निखिं बुद्ध बुधा बोधका रोकानुग्रपेशखेन मनप्ता यत्नः समाधीयताम् ॥ ६ ॥ ` यद्रक्तं मुहुरीक्षसे न धनिनां ब्रूषे न चादुं मृषा नैषां गवैगिरः शुणोषि न पुनः प्रत्यादाया धावसि । ` काङे वक्तृणानि खादति सुखं निद्रासि निद्रागमे तन्मे ब्रूहि कुरङ्ग कुतर भवता किं नाम तप्नं तपः ॥ ३४ ॥ यनागा मदभिनगण्डकरटस्ि्ठन्ति निद्रालसा द्रि हेमवरिमूषणाश्च तुरमा वल्गन्ति यदर्षिताः । वीणावेणुमृद ङ्ग शङ्खपटहैः सुस्त यद्रोदयते सेत्तर्वं सरलोकदेवसदश धमंस्य विस्फूर्जितम् ॥ ५ ॥ यां चिन्तयामि सततं मयिस्ान रक्ता साचान्मिच्छति -जनं स जनोन्धसक्तः ।
~~-~-------~--
सदा. (4) गन्द; ०ञ्चु ०. 4. ०कम् }; कः ए. ^. @) नन्द्रौ विर ण; न्द्रः सुम. 7. (८) "ङ्गान्ता ०; °इन्या ०. &. °नः समन्तात् ; °नोनुवेकम्. ^.
(९) भृति; नन् 4. ५ैसृहो; °वे्रणो 4,
दका. (९) भङ्जचवङाः; भोगचपखाः. ए, तुल्यतरक्ाः. ए. भङ्गतरलाः प, (2) सुखम् ; मखम. ¶. सुख पष. प्रीतिः प्रिये्रस्थिरा; ग्फूरतिः क्रियासु स्थिता ७. ६, गू, 89. (ष्णाषलह तिं णि तिः) प, (लर प्रि णिक्रि) (०) °न्संसा °; °नरला० ^. ०.४. नि ०; ०म ०. 6. ८०.१..बद्धा; मला. ए. ?. वैषा बोधका; बषन्नोधपे,
` 20. बुधान्वोधने 4. ए0.2. वृधा यौवने २. 1. प. 96 भा. 0180गाो9पन्छणः ऽप 18.
[ ०५ 1
अस्मक्कतेपे परितुष्यति काचिदन्या धिक्तांचतं चमदनंचडमांचमांच॥६॥ पे सं्तेपसुखप्रमोदमुदिवास्तेषां न भिना मुदो ये लन्पे धनलोभसंकुरुधियस्तेषां न तृष्णा इता | इत्यै कस्य रते कतः स व्रिधिना ताद्क्पदं संपदां स्वात्मन्येव समाप्तरममहिमा मेसन मे रोचते ॥ ३७ ॥ वर्णं तितं शिराति वीक्ष्य हियेरुहाणां | स्थानं जरापरिभवस्य वदेव पुम् । मरोपितास्थिक्ृररां परिहूत्य यान्ति चाण्डाङकूपमिव दूरतरं तरुण्यः ॥ २८ ॥ समारम्मा मपाः कति न कतिवारांस्तव पशो पिपासोस्तुच्छेसिमन्द्रविणमृगतष्णा्णवजले । तथापि प्रत्याशा विरमति म तेदयापि शतधा न दीं यञ्चेतो नियतमशनिग्रावघटिवम् ॥ ६.९ ॥ संमोहयन्ति मदयन्ति विडम्बयन्ति । निर्भत्सैयन्तिं रमयन्ति विषादयन्ति । एताः प्रविरय सदयं हदवं नराणां निं नाम वामनयना न समाचरन्ति ॥ ४० ॥
क ४1. 8९6 का 8.४्भ०8 8६929 2, 106 ए. & 1, 1 ४४6 20165 9 भ€ 8)00पात् 6 पणद्ल 98 करलाि्णड ४0 च6 §वण्टड 19 06 एलाह
8218178,
र णा, 866 काध8"& क15९ना 9४७०७ ६६९0729 16 २0516 त् (2) जीभ; इन्ध. 89. (¢) °क्दम् { ° कतिः 8०, (ग्य. 8०.9.)}; उषा. (५) श्विरसि; इदिति, द. ०००४४९१ 1» ©. व, ¶,. सम ०. ६, @) °देव साम् ; ग्द गुमासम्, प्र. (५) कर्म ; उाततकम् पष. उकम् १. किकलम्. ए, (2) चा०; च ०. प.
कवर, (4) वारस्त०; नागस्त भुणृएश्रश्णक् ० २.
{ ७६ 1
सिंहो बलौ द्विरदशूकरमांसभोजी संवत्सरेण रतिमेति किठैकबारम् । .. पारावतः; खरशिलाकणमात्रमोजी कामी मवत्यनदिनं वद कोत्र हेतः ॥ ४९॥ स्थितिः पुण्येरण्ये सह परिचयो इन्त इरिणे फकर्मेष्या वृत्तिः प्रविनादे च तल्पानि दृषदः ; . इतीयं साम्नी भक्ति हरमक्ति स्पुहयतां वनं या गेहं क सहश्षमुपशान्यैकमनसाम् ॥ ४२॥ स्वादिष्ट मधुना धृतच्वे रसवद्यस्रसवत्यक्षरं दैवी कागमतातमनो रसवतस्तेमैव तेप्ता वयम् । कृषौ मावदिमे भवन्ति धृतये भिकषाहूताः सक्तव स्तावदास्यरुतारजनैनं हि धनैवैत्ति समीहामहे ॥ ४६ ॥ इ, (०) ण्तिः; न्तः त, (वे; °्ण्क. 2, (®) ण्नदि च; विरिति. 8, 20. (%) °ताम् $ °ती. ¶. °ति. #. (९) °न्येकः; °न्तेक. 7. 3. उना. (५) ण्ड; °दि. क. व्यदण; व्यप्र० 1५. (2) ३०; २०8. ४. ८९) णदिमे; °्दमी, 8. ४, (4) ° हि भनेः; °तरेव (न ?) वसुभिः 1४, वचिम. ; भोगन्. 8. #,
0788.
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व्यं कौ्वमहीधरप्य शिखरं देथं भरत्रीतं
प्स्यग्रवितिखण्डदण्डनविभिक्रोउविधेयोग्बुधिः 1
जेयस्तारकसूदनो युभि करक्रीडाकुरस्य ष
च्छे यस्य बभूव हेहयपतेरदामदोःकननम् |. दचपव्यठशाण ‰४8 दतुं योस्या भागमा वेदाः-त्, = ४06 {०४० णण} तस्य भप 6 इप6त् #0 क05एथः †0 सस्व, रैश्वरा = जगन्मान्या एप, --8(वातकण ०.
8४. इ ए्.--शं पुष्णाति. ए० ६6 1008 पुष् य 75 86४8९. (णा), 8/4 धणे2 2459१, प्र कापट ९8/०४भ६४ 3६. 34, ४ पाद्ण ०6 [19668 करन्ति ग्नाश्ाीण 16068 एए जन्मन्तिर, एप ४8 & ९000णत् 1४ 25 हरण छ पाप 28 8 80 ० प्रकय. [६ पकक 8160 06 पकणवनयल्त् [लभा फ ^ कणत ० १ भ 8 मा एन्मत्द म ७ ३४ च७ एप 9088. गू6 पष्क 0 एतद्र 07 656 186 वपलपशहप्०ा§ 38 ४6 58४06,-भासप्, भन्मसहगाभिचान् 598 98191. 000. विद्वा कुडेजवभूरिव जरति नो जन्म. जन्मा | भात् एप 1. 30. मान = एप१९, ड 86056 ग ०9९१8 छक १०१1७88. गोचरम् = दिविषयम् इ्ु8 वणम् ^ फा प९ 860]6"* हश्णलभाङ, ४0क6रलाः) 28 38 पड] फलव प०क.--5 "वकवः
8४. दए 16 व्छ्णपाला ४0 ९0068 कषु र तृण हषण दीनभेसनु मासेभो भवति | जघुनृधेने भवति तनुच्छम् ॥ 1१ 80, फणपत २०६ ४06 ०७४ 9९७ 89त् ठेएुतृणमिव &७. कषकः 128 उ पथिक 0य 38 ०0६ 118 ४6 ३90९९ पक्कणं पएतलाऽ8त8 रे रात्रन् फा $ 8१०२४, परमे 16 26४००४8 ४5 भगवत्तचं संसरययायं 1.60 9.
8 † 07125.
8६. भप्त. एणयः धत इर्ल्छपत् [१८ दनणृश6 एृ्ानोक्षैढण(क (नण). 808, 19४51०8) 1. क. 2 पणव दणा111911288 ., 12. वका6 1168 8 ९७४४ (000 0 छप [एकलक.-- 1 05कादवद[ढकद
8६४. 1.5. 4व्दपद.
8६, 2 द.-नाम 15 8 विकणे शवृप्रभेलप६ ४0 “००६, 9० 18 प ण्थःए् (जणाा०र ०८७७, दमण नीक्रव्ोरय ४8 कनां [तारक शणात्ऽ ये नाम केचिदिह नः &०., ० ७ व्पृपभा़ भनौनछणकय न नाम शरासनम् 9 ४16 इ ्विद्पाणा रदश, प् एक्षा10प्8 0४116 18068 प्रच्छन्न गुप्तम्=प्रच्छन्नं यथा स्यात्तथा गुप्तम्. [4978101 188 प्रच्छन्नं च तदु, च. 1४ 96805 087.600115/ ए70- ६९८५६७५. 0" गुरूणां गुरूः, #6 ०0फा्भष्वणो 138 च6 णिाणक्तण कद्र गुरवः समविद्यादूप्ां प्रटुमायन्ति स अर्तो गुरूप्णमयपि गुरूः ॥ भयं च गृणाति हितमुपदिशति इति गुरूरिति गुरूपरम्याख्यनमनौ हितकर््रौ विष. (१18 18 ६00 ह्वि-जिनलत्, ४४ ०४ {९6 {ठप पपिग्प्राध्र चछ. गुकूणां गुरूः 18 गणु] 160668६ 0६ ४1९ ०५४, गुरू 18 एणा ००७ (एणः ए, 1, 44). ` एणः ४, 6४ ९७ 6€9 वपां प्र, 8, 41. राजसु 18 १०१6६६०० पए {06 000ाला६४६०॥ 88 & 1.0. भ्रट, भणण ३8 कृष्नन्णु्क सह, एल ४ 18 इन्त कक्िन्पा; ४० कतत ण २, णण वदु 60 एषण [1 3, 67. प्रण इष पणर ४016 राजसुतूजिता ग्ण ४6 क्षिक 88 2 00प्णु०प्प्त् सु गण जपतत पृिता.---5/दवकवण 4. ।
8४. > .-7० व्ण 8£0 8858 देहिनां प्र णिनां यदि कन्तिः कषमा ववे तदा स्यन्खनवचनेन किं प्रयेजनम् तथा च क्रोधो तर्हि भरिभिः शनुभिः जिम् ।। जतिशचिदनल्ेन करिम् ! दायादाः सहनारय इते वैते (। ज्ञातयो यदा निन्दादिषरषरं वदन्ति तेनैव दाहय भवति भन्ने: मि प्रयोजनम् | **००यदि नीडा छस्जा भसतम वैते तेदा तदेव भूषरणमितरभषणेः किम् ॥ (ण्ण भाद 55 एलाणत, पर6 पापु ग ४९ व्ण 18--प्६ ०७ ० ह००त् ० रणा (४ | ४४6 6888 ऋ 6} ० &८6प७ {00 ६/6 026 पठ 0 ४6 0्थ १ 1016 84028 8150 00८8 क 128००१४ 2. 2.8. का कद्दण्न04
8६. ए शाका 18 भण 1 00४1) 5603868 0 6 पणत्. ^ 09 चलथ 16508 ४6 भ०]१.५४. ९, एए क्रकपः +686 वृष्शयुध्ड, इण्लल कण्णात् 76 ३ -काडणवनय, = फेणश्चधप पण्ण्व्यऽ रोके स्थितिः ४ जीवनस्य. . (11141. 2
। 5. , ५ 9
६६. 711. तिति स्वम् 28 8 नापप कृ ४९, हणा कव व्णाकृभि० ६७ अग्नाः ए8 ० ‹ 88. पहा एकव्ङ् ०४त् 866 ऋोप्प्पणत- 9118988 1. 119. प्र४ाकडाणं इपका55 हे सदे. ए८क्छपव्यकप,
8५ > शष.--जयन्ति, 866 4४४४ एप्प }. 1 (099. एत्. धिषाकडचकनप्तता> पिप) सयतययेन नमस्कार = भक्िषयते ए ण्थशेषं एलशातलड ३६ ४ उन्कर्वेभ वर्तन्ते रससिद्ध = ७९४१९०४ ३ प्रः 19828. 07 हता पनाध७, फला 0 अक, नकृष्ाठ म सपाह ४6 २७७०8 ४१ हन्न 10४3 1०, काहे प७दय सिद्ध ए स्यन.--4951! ष्फ.
8४. ॐ र ए.-06 नगृ ग ६16 क्णणणनात्ो पहणत्० विष्पहरिनि कषु समेकसिनि ४०६० ए सभमतोषकरिणि, एष्ट विप 18 ००६ 9 800 १ खगै एष 9 जयत् (40७४ 7,, 6) त्रिविष्टप 18 स्म {८ [+ 6.) दषा ३६ 38 १०६ शाजक्0 10 इरिन् 00405 निष्ासिन्,. संनोषकाटिम् 18 0716 0060६, = व116 = क्णपकूतणयावै लडह कदल ४6 ४0 ६५ सण्त्8, ४108 पड 10 ऽक, 1०$ ०४6 "6५11३. 5/6 कण.
8५. कड एा.- रकतया 18 श्वृणाण्णाला४ ४0 ययद्क्ति, जणपणवनरभाक ३ 18 0 06 श्म कष्णेष्णङ एफ धात एततः गरकृत्यदिभ्य उपयानम् 8९6 ऽवेवा. (तपण. 1., 270. भनुवशविषिः = न व्यक्तो विमिर्मर्रा एवंभूतः (००. गलाथ), 06 15६ कप स्कु, ७6 पष उशवनल्त, वाऽ 18 प कृष्व । ४0 ४109668 स्णुान], 18 60०७ ४0 भ्] ४06 ३45६६86 ४० पवय 1... 8.21 श. 7. ./. . ष 11 / , [#..1.1 45.57 4वा074. ।
8६. उर पा.--866 वप्ता 4०६ 711. 2. 79. एए 896 ६0० एड वदर्गम्प७ (प्मा8 एत.) 7. 62.- 7५901676.
86. उर एाा.-विगुैः स्थेयम् = पणरभफण्डु वादु 19 फऽणिपिपार सरगौरपे न व्यजति 68 ४6 तणप्णलात्थण, 0गण्. ककिद्वा४ 1. 5. उदि 18 166 पत् 70 © 8656 ० अपदिष्ट कत१९. (ण्ण. ककिश्पे- अपान ४, 188. भत्िक्रारात्रत.-- प्रथ € {6 कछपतरलकठाः गकछतथाह ध! ए नैष्ठिकत्रन. एप्त 86028 64 ए1616 1४ ०९०पा8 कभ 1 125 अत्ति धरव््कठिनम् णृ© 15 0७ ००86, भप्ग्पड्का, 0 कटिनम् , नेत्र 0६17 , 6 शप्फकपरपा6ते, #5 धऽ [श्ल कू 1 पवा००४८७ ४5 अप्पा चत् 3
१८ । 1 11,
ककाक्व् दिव्वूप्ठणतत 10 वन, 866 ए 1306 (वृकाणां (वपष. एत्, ४ 340). ५ ४ एकृष्पयलणदमे इष्न्छ्यत् कत् कूषणणत् 6०४8 प१९ त्णप- एताव 35 अपूभष्णन्त् 1 9 अद्ध वाल फक (866 ४४९ 10859168 9 ४८086 00६8 दव किक), 4 पत् पोगष्टो - धल फलाः हषा शत०पड {0 06 जोण्डलाः, ४४6 वपक्ाठसक्र ९7 ाषवैनिम फक 6 कलते छः #6 प्ल, 866 पणवाः ष्डप्परकषा82 २11.) 67 = फ)0610 16 898 इदं चसिभाराचङमणनुन्यलादासिभारबनमिव्युनम् एरभ8ा1) 1616 §्फ5 भसिनारा खन्गमारा दद्रहुःखक्यम् ® त -पण्तः 8४. 64 06198 भसिषारायां खड वारायां वतं दुषडरमित्पयेः. एणः एका ०पर पण 98 0६ वरत 866 पाप 16४18 ०]. ४. 18) 19 कपत कपा०य३ वपद्णकवप्रेठण त ४6 (0 &१९त१ 1., 225, 281. 2.-5ताम, ।
8४. इ दवई.--प्राषठ पथिः कवक 2068508 8फूभा0रण्ु, व06 ४लता)ढु दन ण कवल [98 & एषाशान् प हप्र 8४. 59 (ण्ड “ #0णठाो9). मनमहताम् = हरव्वैयै ३0 इन्र्ल्त ग वधपा व्ण्यणृभ9
मानिन्.--841470०117:0. । ।
8४. द इ.--सस = ९6460688, (010. भगावसस, पश्वो परशा'ऽ^2 प.) 21 वत् .८मापलाककु ग कशाप्& ०३६. = द्क्षापक्शपं मलावन्प्ड 1 9 चितन, [८ ४७४18 पराक्रम. 866 एभ्य ००६९ &# ३६९५०४६ 2, 32. एप ४४७ [पछ ग ४6 §त्वणद न्ग), 0वषणणरा1850 1. 49, 54107010.
8४. > ‰1.-चरणवपते. एदा ००त8 ४073 ए पादप्रसारं करोति, गत कम त्मापजातणठः 8४3 चरणानां पतनम्, 1६ 86७०8 गलाः {0 गरमा शिण 2 [कप्ण्न8] 18०४. पिण्डद = कवार ०६ ००. (णम्). एकातीक्दव०ध४ 1. 76 कणत एकलक्षं %. 81, (@ष०. 24.) ऋ)०6७ 0015 ष्णवैप 35 ०भाल्त् विण्डोवजीवी ०६ ९१३, वपुगतर (णण). ध 8ष००- 0का68 वृषभ, ऋषभ, भणादि प्ल्. ए४९१०।40०ध, ।
8४, इ दप. परिवलनि, एछ्मोणण्डठुः व्णण्ठ, वपर भाोएडामः 38 ६ 5 6षलः-पकतापण्डु प) 9० वन्त) 19 ४8 रणपत. दुनरपि जननं पुनरवि मरणं पुनर्य जंननीजकरे चयनम् ध26 किप गला४65 {0 ७ 506 608०४. (पुः कत 08दप्०९द् ० उदणद्कनध्य १. 866 जणो 38). -क का, 16 कृष्य का ‡3 [तोजणनल्माङक परतप 17 प्र कणु 11. वृचजञ्रमणः
1६016, 11
19 वत् 066 ४0 धाना) क्त् फश् 1€ प्लापत्कल्त् ङ" त९९व्.' दण] दोक]. 7700 (1 ¶. 98 ० # (0 8६. 60, 1 18 ००६, 1 घरपर, 6 तुरण वा १6७, 1४ थ ४6 1०६५व् ४४६ पध16 जणत् दं 18 2130 50ए6स्णाद४ अप्राणो ०६९ ४३ आ क दव बहुमानः 1 पभगवह्ठ४कः$ 8४. 25 ० ४0 प 1. 3 भत् 1 18 प्रा कण ० ००६७ भीं वा 18 विक्रले 0 उवमायाम्, 8९6 ४९ ¶००- धष््गो 3 भावी वनपालक कः कष्टा उष्. 1 पपत भवकाः. पभा, 1. 55. 1 णहार, ००, प'6 {नारण्यं 6688० पर्ष 06 ०००९. ^ पण अपठ षष्ठ = (ङ् पशाद वापा 01 06808 तप 16 &७.* 09 ४6 नक्िलः प्डणत्, कषक 201 प्ल पणत् 19९6 8015. 00प्रपस०प (शत 06 वा 6 ववर 0 धर एन) ९8 ? काव 8४०१४ 16०४6 ९०901018 कात् वा कला ४९606 र०७४व8 { ४08 पष्प एनोभ्)8 1०व्त् ०06 ४ अपृ०8० धकप वा 18 भनार & शप्ोऽैप९ ए इव्त फ (४७9 7 178६4066 8 परव 88108 }. 54 ६४ 1088 ०४१४), एप & 10१38926 [४ 16 [एढचशोप्ष्धत् चछ्माकक्त् कणीतइ पटुक ०६६ पण5 शंत, 86९ , 19. (४1. 1. 4.). 866 ०15० धऽ 45580 (00 ४6 ६८५४. एवे फप्पपाण्कै वप्ठाडव १४2 कणयऽ व6४5 358 (दिरप एव्.), 81१५९ भपप्राह ४6 ०००९6, व ॥9र6 षणव ध ८. एनो 058 6द्ाक्षपस्त् 19 पणत् तललपणीङ् ०पव &8 9 तूप ४९, 806 ए6पवकधाप्र 1, 1 श्र. 10168 (एण, 098०8) , ~~ 47४१1५४
8६. क 11. ^ 09 मारि सर्वस्य डोकस्य. $ गणप 1:16 तित् 9 पर्तत शपात् 16 इषएाऽवे भणते च्6ण = चा€ (कऽ्ाजाेमा 06८००68 स, 701 द्वयीवृ्चिः 16 उ७्क्वाफहट ० 8०06 9 ४6 क्ण68 00096 प्र 8- नापा 81 (वपक्रिनउ पप.) कपाल 1468 ०६ काब्जणडछ 108 ४०१् हक्पक्षवड 00 11693 18 पटः एभापप्मा 19 8िकारदु( [लभप्ा, 101. 8४०९०68 11660 80806नृग ९6 १००४९, छक, 110 क ९श्लय, (ए्णाते 86 66- 1 न्मः ग इलो 9 चट 19 जपः व्क ७०८८०0४ 39 क6भ्णट 9 14त1९8.- 411317९४,
४ ददश ए-वेराफते. एवभणोपधर6 = वैरं करोनि 865 एप क. 1; 87, णः एकप अपाणि ६०पक्ष वऽ ४6 उपप पणत् 000, भणत
42 (12
28 056 866 01948 एव एर कोभ. उ, 5, 13 भत 16. निः एन 28 पौ6 ४७ककैरदटु १त००४६९त दऽ 8 एषप्ताम् 10 पक्षी 8 3६ 35, स्णषला० 50 10पक्जः धज 18 9 पवाक एण फ जाः कड कण् १०6, = ऋन्तः ४6 (पाफलणादच्ठा = पपरतृडाशोते$ ४0 ऋका = 108618816, प्७ 598 कोपीवदोषीकृतः अती भ्नान्तः. ¶06 फश्धणोगद फा] चला ४6 प ए४४, नक्न्ष्कृ) 195608818, {६३6६8 ०] पल ऽप ४०१ 21067. 00 ध त०ाड्लणः 0) 8 अवि 01: णात ऋ0प्त् 9 6 रणकण पणपाप् $ ४0 ४6 ०666886. = भ्नेान्तेः फट क80 06 ४979६ +6- ०1४७१. ` एष पभक्लः ०१ ४७६७ कमण णट5 18 वो ४6 88४58 ८णद. श्रीष्ण मस्तकेन अभवदयेषीकुतः अनवदयेषः अवदेषः कत इव्यवदोधीकृतः. (08 38 क~ अ98 कापकअंऽ ०६ ४6 198६ क0प00प्रपते. एप ४ १०९३ १०६ इतन ४0 26 00१७०. श्षविजेष पऽ८ 915६ 96 दैषःल 28 8 तप्र ०त् पल 116 कन श्पोत् ए जणन्व् जा पभ। १16 चि 802. विद्योषविक्रम 18 8006108४ ए वाकपःध16, = फकैणवापं सामण०8 1४ 28 विद्ोषे उककृटे विक्रमः 1066 विरोध १०९५ 811 -हवृप्ठाः6 गपा ०७५००. 1६ पक्त 96 6 गकाणव्यफु कराण (०5 पत्षण) फतठडणणड्ठ (सणडपकषे रनर, व व ठह अदा ग भु एत्प्मागे 1पडा०७ णि ४५8. प्प ओष 8 ७४० भष्पाकः 0तै 18 १३० 0धौ\ 8 86 भत् णत् एहट्काणाणह 0 6णणएणप्फदे8, 8९6 ए पफक्षा9. 1, 35 0 2/8. 91. ण्णफापासपण फपतवलशयतेऽ 716 य ० पाठ दय ४0 ४6 कष धा दरण शात् ०९ वकक्रङुर्वे २००४ कणत एकएव ॐत ०९६ छण एषभ्- क. एप ०य 8 6016 0 ४6 र 0तह ७७९व् ४66 9णत् 980 ० ४८ ४९ ्ृए०पपणड ३६००९६९, ४6 नण 866४8 {0 16 धक 62068864 19 ४16 1865४ 1106 9 $ 30.--8/4नद[ण् ८,
9४. न ए.- फफक. (णण कष एषणक9 (लान, ¶ त रिपवे 2. 95 फला6 १६ (न्नाा8 0 6 00 कणः कुक -मध्यपृषठम्. क118 गणा एष्लयह 29 806 01४6068 एप 38 20६ शलापु त्णणणा ग 16 जिाज्णण्ड प्प 06 8600 कण्ट 0 पडा ९९७ = एधण्मप्णाके5द 1. 69, 12. = एषठञक्याणक्षहा1 9१8 ‰. 11. (परितरङ्किणि) भ्त 7. 143. (मध्येसमुद्रम् ). द्गते क, 177, 1४ 38 82 4 इ तेद-व्णणूणप्पव् का 6 तच्पोद्6 ०७९, पणत् भोगन्ये जणा
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14 अण्ण, ,
8९8 . 16 71015 {० {16 188 8४०2६. ९६७ 1६ 15 प३6त् 7१ 165 8९८०् 80.50.604. | 8४. उर एा.--पत्- तत् = 8006 0४ 869४ ४ ४--ौी1ला. इन श्नात् भरि
001 06 पकड ०६ पत इ. आ, दैकपदोर्न, पदिद विकृति 7 पलक ध) इधर 8686 28 निकृति पणन, रणे तल्ण्याः8 88 & एकाक 1676 प्र) 8०6 छक ९७, = ४ ्हकणऽ 8ज्फश्राषहट चाक 18 पण, ० ६७१९७, पुपस- कणरः विकृति त्प. एपप्पपणक्नाय 184 तदपि खलु मे स व्याहरस्नुर ङ्मरक्षिंणां || वरिकृतिंमखिरुक्षत्र्िपप्रचण्डतयाकरोत । 0. निकूनि ००ण- 116. 1148 1. 43 ०८ पा. 44. 11616 18 1111 पकी 771 धाद, 100६४ 0: 04. कृण प० (णणडन्पटधमः सहते 8४90वण 0 सहेत् व्ण]. कलारत ए. प्5-24. कग 6 9 6 2464 प्भोक्यक्रलेदा+# ])न 448. मयदैरश्रान्तं तपनि यदि दैवो दिनकरः ॥ किमान्नयग्राक निकून इष तेजा वमति. 424. । ।
~ 8४. > रद एाा.--^ 00 ४6 = पाल्भाणष्ठ 9 कपोतभित्ति 806 112111.. 1011008 00प्रणथात्पक ग ष्ह्ठोणा. ., 43. १५ प्रकति (णण). 8धणदट 52. १6 पच ०१ ५७15६ १6 8748 पल्वे छकाण्डडाण 9 इशत 1५५७१४।५१०९ ; तैजसा सह जानान व्यः कुद्ोपयुन्यते ० (ए \1:4364.5 तेजसां हि न वथः समीभ्यने, ० ए19१०0 ८/5 गुणाः पूजास्थानं गुणिप्र न च छिङ्गं न चं वयः #6 ०४० एनान 108६१००१.--41-34.
४. उदार. गच्छनाम् भतलेः 1148 १९60 ३६६६6त् ॥ ४6 ४6 ८९०त्
ष्ण 708६ ० ४७ नमूं०छ न्माडपाल्ते 38 तन्या ० स्कानामप्रम ््भाकटभ्क, यम् छम ४७ ०0४ एलणडट कल 70 नि6 दम्कणाफताड 9 ४६6 1 116 [्थकषपत९ ४8 ्प्ाक्षालूृतो 1001. भभिजन ॥6 कनप्ा- ` (80४ ७४प6 [फ़ सजन, एष; 88 21} ४6 कानः नपण ड शाोधाथ०6त् &'९ पृष्मा@ः गल्डवाटु 7 पप प्वणववम्, धां पम्पा, सल 3६ भान्म- भगोर नहन्भ्याषला०, 13 0६ पताण8श6 [७ = पतलह 7 क16वा8 फ0्ा ०१ एप्प) 88 प उ/पत्पाथो$ अभिजनवतो भैः शध्ये स्थिता मृहिणीपरे अतं उणशणयु ४1५08 ए08व९5.तरेरिणि = अनुषक्रासिषि 8वए8 [द्िप्ञ), कृष७ कतभपरठ ऋत्वा अट, 00 फन्रल, 18 ५०६ 1९.-6"47दव7दण दः, &
8६. इरा, भप्रतिहन = पण्कृपाऽ6त-9 ॥6९६्त् ए्णोनाा 18 ६६ 10106 र लल पाम, अरयोष्मन् (णणृषर एपलष्म। 7, 95 (चोयेप्मन्-) ४
^
4.72 ¢ 15
काणो 1. व = (मणा), (क्क) रो वित्त उष्मा (= ४,० पणत ठ र्ट्मौ),) स ए पद्मः अर्योष्मिणा परहित: कषणेन अन्यः भधति इति एनत् विचित्रम् -- 17८०१०८.
8६. र11.-- एष्य. ।
8६. उता. सङ्क ध० एणपपालयसणा कृाभंणः एफ छीसङ्गो वा दृएटसन्नो वा. एप्र४ { पपार ४० प्पर्भणद्कु 18 फठा० हच्णलःध्. 1४ 18 विषयसन्ग, 8118011 प्र€ा४ ४0 फणणताङ ० ९०8. 896 एारवर्व्तह्ा £ 9810. खक्लोयासन 35 सपान एफ षैषषनडोधः 8 दुर्जनसहचारः जन) 35 प्ल वलम पन्था ट. ६ षु 8180 फ 6९४ एल १९५०५४९ ० { समीकेपासन ०त्छपयड 7 कप्भनणाभतार 8. 6 (मत. एव.) 0 व्नृकु ग भाल व्ण पला हा ए७७ क8 इङ ९8 ०६२६ सत्रा ४४त् संगति, 119 जलः 18 काथ) ह्ि्र०प8, अनय वणु पऽप्५७) पणि 19688, स्वामि चष दफन, 1 एतमु --9*47तद[व ण्व.
8४. उ. प्तनाल ण्ण प्ल [काप 8 फपल, 0्णात००६९त् ; वित्तस्य 005४ 16 8प्एााकते पठण, ४९ 8९४ 1०6 ३0 ४6 8860यतै, कयत् तस्य पाड , 06 णु ६6 क्डलः ४ यो शत् ८ पतप (18.494, ।
8४. उ ए.- 0०6 6 ग ४16 न्णालयध्वफ 195 एते ग्ितविभा अवि गर्थिषु शोभन्ते भ 6 ववौ 1126. एण धाऽ 18 ०0६ तएण्पाष्ल, धरिष मिति. भवा जनाः एलंगह् ००-गपतपमह क्क ५16 उपल न५8868 ०१ €05गह रणत् पपहए5 लप्णाालह॑6त्. जनाः 111४6 मणिः प्त प?© 168 386 2 इषापुजन म ६७ र्ण) शोभन्ते. दत्तो भत् ईयान स०पात् इश्लण ४०१९ एलः ज्प्तीण्डुऽ षाः {11086 61४९९ रभू 0 ©, १8 आदु उप एल कपौ १6 [व७६ ० तनिम्ना. नि्हन 33 न्प१०९त् ए [द्याक्ाशा 1४ प्र'8 86086 0६ दकिन ण, क्षत, 4110 566 [९१४६६ (ए. 6. एटा, प्धृलशा ^ सदसोण प्रा लका “ छोभते' गध 00 860) णा) रक्ट्ापतकय8^॥ ए, 28 8 ए ., 47. ^1०४४ आर्शाः§ 6 (मणाल 98808 ४16 1608070 चा धल 6५ र महयपूरेण विष्याताः. ^+ 0प६ {196 १५००४. 866 कहाःप्ररद८६६ प्र, 16 भतक्ष, 80 भ्न [भ्यः क क88ग्6 1९68, 140 सकर्लाः, ४ हाप परल 8५ तण णण प ५ नह छाल, ` & पत् तछ्, द्ननलपाशकन) ९ . 19 (6५1५. एप4.).- 6.
16 [3
3६. उ प.--प्रसति = नुप्र प्र्ल्गदोणु ४ पाल व्णप्ातपा द 10 कपतजध् 15 हषलि. 1 पर्मःह 1190 ४न्<०काणटटु ६० 48 11. फदपाञदृक्ण्वद 88 पात् (शिण्णभः 125 सदस्ताज्जलि, ए0 ४6 10941१९ ४०७ 74४ 1., 4, 56. 701 भनिकान्त्य 866 1108 00 ईव्थणठ, 7 818. 0४ #6 1886 ० 110९8 © (णपा पइ ०8 गाररइ : अतः घनिनामनै- कान्त्यादेकस्थिनेरभावान् भवस्मा अर्थेषु प्रयोजनेषु गुरुूलयुनया वस्तूनि प्रथयति संकोचयति च यदी कालेन भवस्थाया मृरुलं भवति तदां गुरुवमेवच्छति यदा ऊषुखमेबाङ्गीक्ररोति तदा काङपरतेनवस्यमिदया भवति. 11118 35 ४७६ वृषा नर्क, एदल 088 ४9 णार अनश्च एनेस्मत्कारणान् अनुमीयते अत्िकन्त्यात्, न एकान्तस्य भवः भनेकान्प्यं तस्मात् भनेकरपरकारात् गुरुजमुनया गुरुधासी लपयुश्च गुखजबुसनस्य भावसत्ता तया बर्हलसेन धनिनां धनवतामर्थंषु पदार्थ स्वस्था निष्ठा व्तूनिं प्रदाथीन्परथयति करोति चाम्यत् संकोचयति सव्ययति एतेन यस्य यदक् वरिभकः तस्य वस्तुषु तादृ्येषा- न्वयः, 1१४ ४५३३ ४०० १०७६ १०४ शूएऽन्ः कमात इथड्न्म $, 7 सू०्पात् पपराह ६6 ण्ठ षड ; ५ ५ व्ण प्० 6६४0688 9त. 810911* 11688 [३6८९०16] # चण = 19 6008 व्ृ ४७०९ ग धाऽ ` पप्रा, [1॥ 18 ४0 16 पप्लिपिन्वे पाम] 1४ 28 ४७ त्णतत्णप ण फला 9 फण्षाततः
1. आ त. आ त 7 1. क. 81066 प वप्री्याछणा 8१४68 ०१ 1788 ` 06 कण भएदुऽ.#७ उष्टष्ष्वन्त् ९8 ९६४ ० इय], भरालर्मणः७ 1६ कड 2० (व्ण्यलोण्ठन्ते पड ३६ 18 ४ 84५40 ०¶ 1189 शणोप०, = ९0प्९6 5 पदषु 80 ० आव्य. करयति = ण्णञतला8, कण्ण). वरत्वं क. 7.5.
६४. 1.एा.-- मेन 18 छप प्रप्डपदष् तणरनन्धरठ म यादे. एदर्कपद्मद,
8४. इ. प्कनयन््मनद, ।
8६. 1. भन्ना 15 [96 त्वुण्ार्भूजणट ४0 0 0 क०फव्फद,
दध्म इफऽ येनोक्तं . स स्वैः सपीर्विसोयते. 00707). 8६. 108 एग०प्न गुण = १००१ पपणर, ४००१8. (जणा 8०28 प. जह्मणानामिदयुपठक्णं स्मेल" कान परलनमित्ययैः दरतपवधेप,--8/ दत.
§६४ उबर भाक्पह (दमण. लकणम §वणट 42. वा6 © ए7्छडा०ा 38 कनपल तणण्ात 1 तूर एलाणक०्योक्षह 2180. पिक्तवस्सु-
वृत्तिम्. 0०". §“वणणषथा कुक प्रियसखीवृत्तिं सपलीजने. कुण = 29186141016,
[पपाउत्व्. (णम्. निश्च 8द्व्णयत 4. वषठ् 185६ 1106 2069४9४
०7४६. 17
8. [क एज 866, 188३ ष ॐ कृत्णं वृणत ०६ सलः {णण 8 थ् 89 {00 6 ०6८९०. --5कवाकद्वद्दद । 8४. 1+.--गोचर = पपप चल ०6४० 0१ ९ कुल) 6७०७ [णक चतिकधारोतीवि-- ० नार इति ०णात् एवभू08 969 एन एच्छताणडट ; 1६ ्पठकणह ` ९४8 #6 आपृण ० ४७ क्थ. = 7० ९०४१७ ६6 1196 ४8 चात्का- - धार दति केषां गैचरो नाति, .प्०ष्ड, २४ फो 10नण ४6 पठ ४ ४9 २९७.
णहु 9 फ. पा [छएरनर० ‰ व्यवहितान्वय.-41१४०{५.
६४. .--एवादृ्ाः = समानाः (०न्णाणलक्छाक.) 1४ 8०09 {040 ६५8 ४५९६ 6 क्णपपालछषथौमः २8 एणि6 र भात रत्व्तण्ु एकादृक्लाः ५१ ` 6 20६ 116. 706 769कण्ट् एवदु लाः पक्क 00908 6 पत्थिकृ्लैश्प् 4 ४69 6०} 98 १०६6८१९ #0 © 8010४860 ६७ दीनं वचः प्र, ४४७ गदाः प्यः 06 इप0०86त् ६0 6 पठण कण प8 ४3 शणरशा, 11 8 1 ।
8४. [्.--षने सुहा भप०्ालाः पशका०6 ० धह वेषयिकसप्रमी.-22*५८५य- (11 1. ¢
8५ 171. ऽ 18 कप्त # क्रमिक ण्व्य 1. 295.---401५2{५,
8४, (नए. व्रतसू्ची = ४ ग6 क]0 [188 मह्कवि प्०८४, वत पदप 90} 260त०15 ४ सदाचार्, विमतिता = {००11810988, फ४9/ ०६ 868 अद्भिः ध; निन्दितः 895 ४10 जपन, कजाङ्केतः 8०58 78196001. 1४ 618 [11 पक, फपर९त्, इथ 6 भत् 16006 2960) फोन, 8८७05 ४0 96 ४6 8611856 #©6, 16 0008०४०0 18 ६५8 शोमति गे रुणः स जाल्यमितिं गण्यने &०. ४४व् धल 0९१०६ &०06€ पापठणड्ठो 80 गपशप &००त वषशा प्९ ॥18 8्व्ट9 पपतेऽ प कच को नाम स गुधिनां गणो भयो दु जनिनीङ्धित-ननिति निशवपे संवोभने वा 8478 दण978)01. पऽ 8१९8 दुनैनेरिति प्रतिक्रियं संवध्यते. (11111.
8५. 1१.-€० ४. 8६. इ श ा., ४५१ ३68६ ००६6 #ोणला6 तपसा = महापवाक्ष ~ दिव्रनेन, पदकार, वाठ 39228 008 ४ अदर कएञकणहुः४, 1. 3, सकवणर,
8४. 1.ए1.-दुर्गन = पणि ४४००, कुःड्०९३७द् कात्य = भंड 18 9 ण्न (०9 ४६6 9 ४/6 ०४, @0, जि ०४6 1४180०6 9६४, [2 ., 7५
15 । क्त्कयन,
भत् 0७096 6 रषा भे छण ^ प्म ।9 6 8146." भनक्षर = न अक्षर छले यिमिस्तत्तथा 898 88980, ६ 16४२३, व फण, ^ कछ कछ) भनयाछ४ै गल्भः $. ९, 8686 कत. दमय, " पण्य्कलछत' (ब्रह पये फाति ` एप पत नुपाङ्गगमृतेः खलः एश्थपभण 195 ४5 तथा गतक्ेततादिं स्वपराणिनां मूलान्यपि निङरन्तति नस्य मद्रपरूपलात्, 159 81४2४ ०००४३ ४४ , 7 णं 06 ४9887919. 710४, 8. व ए्--नमोते संमाक्नायाम् 88 प्ण.
४५ 1.१. मन० 9 षज आशधा66 त छ्पृकष्मः'5 ०००३९०६० ९व भका (०४७ 3 तपण पत्णष्ठ क्वमन्णयप् (8, ९. ००७ 0 +91}8 1४९ 38 स्थराध्व् वण्छण) } नहर्छ 8 अनल्ण), $ पिभैथालः क 3 हभप्रभ्यर्ण्ड लाक (४. ५. ०७ 38 &० व्भाऽ्त् ६१ = नल्य्छ 79 शृश्चाण्डु). अभप्रगन्भः स १४०१९३६, धाते व्नणणु. ठी 1. 15. एणाः ४16 0 चादुज 869 ववा, ष्य. 1. 180. 7० 0९ कलप ४६९९ 9 योगिनाम् 8686 9000, एमा. 1, 205. वातकी जमः 15 ००० फण ण बटुली 38 समभपन्त कि